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कोरोना काल, काशी बनी महाश्मशान



 ..... एक भाई ने पूछा है कि काशी में क्या हाल है? तो सच आँसुओं से तर है....यूँ तो पुराणों में काशी को महाश्मशान लिखा गया है पर इस समय आप यह शब्द यथार्थ में नम आखों से देख सकते हैं।इस कोरोना काल में काशी के सभी घाट फुल हैं..वहीं जलने वालीं लकड़ियों का स्टॉक कम पड़ रहा है और पापी पेट के लिए लोग बाकी बचे स्टॉक को भारी कीमत पर बेचने पर विवश हैं। गंगा माता की छाती पर अनगिनत शवों की हड्डियों के ढ़ेर और अनेकों मजबूरों गरीबों के शव बिना अंतिम संस्कार के ही लावारिस की तरह तैर रहे हैं....मीडिया के दिखाने पर प्रशासन का नींद टूटी है और अब सभी से विनम्र निवेदन किया जा रहा है कि हम मदद करेगें आप लोग कृपया शवों को जल प्रवाह न करें। वाराणसी का डोम समाज, बुनकर समाज बहुत दर्द में है... .आगें क्या लिखूं..... इंसानियत शर्मसार है। कुछ लोगों ने आपदा को घटिया मानसिकता से अवसर में बदल लिया है । वह मौका देखकर कफ़न चोरी कर रहे हैं । मृत लावारिस शवों के जेवर, मोबाइल चुरा रहे हैं । कुछ भ्रष्ट नेता व कुछ भ्रष्ट डॉक्टरों, नर्सों की अंतरिक्ष चीरती धनलोलुप  महत्वाकांक्षा के कारण नकली इंजेक्शन, दवाओं के वितरण और एम्बुलेंस व ऑक्सीजन सेलेण्डर की अंधाधुंध कीमत बसूली ने अनेकों जिंदगियों को काल के गाल में ढकेलने को विवश कर दिया है और जिन कालाबाजारी करते अपराधियों को पुलिस ने बड़ी मुश्किल से धर दबोचा है बस अच्छा हो कि देश का कोई भी वकील अब इन मानवता के दुश्मनों का रिप्रेजेंटेटिव न बने.. इनका केस न लड़े । इन्हें समझ आना चाहिए कि इन लोगों ने कितना जघन्य अपराध किया है....बात वकीलों की करें तो वकीलों का भी इस कोरोना काल में भारी नुकसान हुआ है और उनके मुवक्किल भी रो रहे हैं कि कब अदालत खुले और केस फाईनल हो.. ,वहीं कुछ गरीब वकीलों का घर कचहरी पर ही पूरी तरह डिपेंड हैं, न उनके खेती है और न ही अपना निजि मकान, उनके बस्ते पर आने वाले मुवक्किल- दो चार मुकदमें ही उनकी रोज की दाल-रोटी होते थे जोकि अब वो सब भी कोरोना काल में भगवान भरोसे जीवन यापन कर रहे हैं..किसी भी न्यायाधीश को उनपर ज़रा सा रहम नही आता कि कुछ राहत- व्यवस्था करें....फिर अब पापी पेट जो न कराये वो कम ही है.....बाकि देश का संविधान और कानून जाने... इस दौर में हर कोई टूट सा गया है, हर कोई सहमा हुआ है ..गांव के गरीब आखों में आँसू लिये कहते हैं कि इस वैक्सीन से मेरे घर के कमाने वाले की तबियत बिगड़ी तो गांव में कोई अच्छा अस्पताल नहीं और शहर के अस्पताल में हमारी कोई सुनेगा नहीं वहां किसी कोरोना वाले वार्ड में हमारे परिवारी को लिटा दिया तब? उनको समझाना कठिन! हम सब तो यही कर सकते हैं कि हमसब एक दूसरे की यथासंभव मदद करें। आखिर! एक दिन आँसू का भी आँसू सूखेगा और इस कोरोना महामारी का भी अंत होगा, जरूर होगा। 

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