kyun dete ho dukh-dard etne...
क्यों देते हो दुःख -दर्द इतने
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क्यों देते हो दुःख -दर्द इतने
क्यों रुलाते हो भक्त को अपने
सबको उठाते हो भक्त को गिराते हो
क्या समझाते हो भक्त को अपने ।।
सबकुछ छोड़ा मैंने तुझपे ओ कान्हा
यश-अपयश और तुझपे ठिकाना
क्यों ठुकराते हो प्रणाम मेरा
क्यों नहीं लेते खबर पता मेरा।।
क्यों देते हो दुःख-दर्द इतने
क्यूँ रुलाते हो भक्त हो अपने
''भरे भंडारे, उनके तूने जो नहीं मानते हस्ती तुम्हारी
अपने भक्तों की रसोई क्यों है प्रभुजी खाली-खाली ''
भक्त के तन का आंचल फटा है
कैसे पीताम्बर तेरा सधा है
क्यों देते हो दुःख-दर्द इतने
क्यूँ रुलाते हो भक्त को अपने ।।
''दुनिया का नाटक दुनिया का दिखावा
तुम तो जानो लीला तुम्हारी
उनको तुमने रथ पर बिठाया जिनको आता नहीं करना सवारी ''
ऐसा प्रभु तू क्यों कर रहा है
तेरे भक्त का अरमां जल रहा है
आसुओं से तर है चेहरा वो प्यारा
पेट है आधा मन है अधूरा
फिर भी प्रभुजी आप मुस्कुरा रहें है।।
क्यों देते हो दुःख-दर्द इतने
क्यों रुलाते हो भक्त हो अपने ....
आओ प्रभु जी भक्तों के घर-आंगन
जरा देख जाओ हालत हमारी
तुम तो हमारे नटखट श्याम प्यारे
तुम्हीं हो साथी बस तुम्हीं हो सहारे ।।
इतनी सी विनती तुमसे ओ मोहन
सुदामा की तरह सभी भक्तों को तारों
दर्शन देके प्रभु जन्म सुधारो।।
आकांक्षा सक्सेना
बाबरपुर ,औरैया
उत्तर प्रदेश
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