बचपन कुरुर हाँथों मैं ..
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उन मासूम निगाहों का भोलापन खो जाता है
चंद रुपैयों से उनका भाव लगाया जाता है
बचपन उन बच्चों का नशे की भट्टी मैं झोंका जाता है'
प्यारी मासूमियत को होटलों मैं परोसा जाता है
तुम नहीं तो हम नहीं
लोग कहते मिल जायगें
पर उन निर्दोष निगाहों को
हम कभी भूल ना पाएंगे
सहारे की प्यास जिन्हें
नाम उनको बेसहारा दिलवाते हैं
मासूमों की आहें उनकी आँखों मैं' ही सोती हैं
दिल की हर धड़कन रोटी मैं ही रोती है
सरकार ने घर का आवंटन किया है
गरीब आज भी सड़कों पर करवट ले रहा है
सरकारी सुविधाएँ गरीबों से आज भी दूर हैं
आख़िर क्यूँ हम सब मजबूर हैं ?
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...हर सरकारी अफसर,अधिकारी ,कर्मचारी और
सभी लोग प्रतिदिन सड़कों पर बसों, ट्रेनों,होटलों पर
गरीब छोटे -छोटे बच्चों को
काम करते ,भीख मांगते देखते हैं ।क्या हमारी आत्मा
हमसे एक प्रश्न नही करती की ऐसा क्यों ?
क्या सब ठीक नही किया जा सकता ?
हमारा देश आज भी इतना मजबूत है की हमारे देश का कोई छोटा बच्चा कम से कम भीख तो न मांगे ।सरकार को ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे सरकारी योजनाओं का लाभ उनको मिल सके जो इसके सच्चे हक़दार हैं। सोचो आज जो बच्चे मजदूरी कर रहें हैं होटलों पर बर्तन धो रहें हैं
उनको शिक्षा मिले तो वो भी भावी लक्ष्मी बाई ,अब्दुल
कलाम ,भगत सिंह ,सुभाष चंद्र बोष ,गाँधी जी ,टैगोर
जी ,बाबा राम देव जी हो सकते हैं क्या जरूर होंगे
...सोचो कितनी बड़ी संख्या एक लाख की संख्या मैं
मजदूर देश मैं बुरी हालत मैं जी रहें है उन तक कोई
सुविधाएँ नहीं पहुँचती हम कितनी ही भविष्य की
महानतम हस्तियाँ खोते जा रहें हैं ..अफ़सोस है .कि 'आखिर क्या कारण हैं की "बाल मजदूरों ' की हालत मैं कोई सुधार नहीं ?समाज और हम
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आकांक्षा सक्सेना
बाबरपुर जिला-औरैया
उत्तर प्रदेश
इनके
ReplyDeleteहाथों पर डंडे का प्रहार नहीं
खिलौना चाहिए,
इनके गालों पर तमाचा नहीं
प्यार भरी पुचकार चाहिए,
इन्हें डांट नहीं, उत्साहवर्धन चाहिए.
इन्हें पिंजरे का बंधन नहीं,
पंछियों सा स्वच्छंद आकाश चाहिए.
फिर देखना
ये बढ़ेंगे,
यूकेलिप्टस के पेड़ सा सीधा,
लहराएंगे परचम अनंत आसमान में, तिरंगा जैसा.
समाज पता नहीं क्यों दिन प्रतिदिन अपने ही वर्ग के प्रति लगातार असंवेदनशील होता जा रहा है. ये बेहद चिंतनीय बात है.
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