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अपराधीकरण चरम पर.....



अपराधीकरण से देश की महिला न्यायाधीश भी सुरक्षित नहीं...


भारतीय संविधान में दिये " समानता के अधिकार" के तहत मा. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ती कुरियन जोसफ व मा. आर.एफ नरिमन ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 में दर्ज धारा 2(क्यू) में दर्ज "वयस्क पुरूष" वाला अंश हटाया जाने का फैसला कर आदेश भारत सरकार को महिलाओं के आदर व सम्मान को ध्यान में रखते हुये जारी किया | इस आदेश को जारी हुऐ अभी समय भी न बीता था कि देश के उ.प्र जिला जालौन उरई निवासी कानपुर नगर थाना कैंट क्षेत्र अन्तर्गत स्थित सर्किट हाउस के सरकारी आवास बी-2 में कानपुर देहात की गर्भवती महिला ज्यूडीशियल मजिसट्रेट श्री मति प्रतिभा गौतम की हिंसा उनके पति मनुअभिषेक राजन एडवोकेट ने कर शव को पंखे के हुक में टांग दिया उनके दोनों हाँथों की नसें कांट दीं | अपनी ओर से आत्महत्या की सूचना कोतवाली को दे दी | कोतवाली के लोग उनके शव को टैम्पों से कोतवाली लाये और बिना प्रपत्र दिये पोस्टमार्टम हाउस उसी टैम्पों से ले गये | पोस्टमार्टम कराने के बाद उनके शव को उसी टैम्पों से उनके परिजन उरई ले गये और वहाँ उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया | इससे बड़ी घरेलू हिंसा व महिलाओं का असंरक्षण तथा अनादर व अपमान और क्या हो सकता है ? इस प्रकार भारतीय महिलाओं चाहे वे गर्भवती ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट ही क्यों न हों ? वे व उनकी गर्भस्त संतान भी इस अपराधीकरण से सुरक्षित नही | क्या लाभ है भारत को ऐसे अधूरे और अविश्वसनीय कानूनों से किसी को पूर्व से ही न्याय प्राप्त न हो | देश के कानून इतने सख्त हों कि अपराधी अपराध करने से पहले हजार बार सोचे जिससे कि देश में इस प्रकार की हृदयविदारक घटनायें घटित न हों |


आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम' 

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