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मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार कब तक. ......?





जैण्डर जस्टिस  : एक देश एक कानून 

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प्रगतिशील लोगों का तर्क है कि जब अन्य धर्मों की महिलाओं के जैण्डर जस्टिस के लिये तमाम संवैधानिक नियम,अधिनियम एवं कानून बनाये गये है तो मुस्लिम महिलाओं को इनसे महरूम क्यों रखा जा रहा है ? सभ्य भारतीय समान नागरिक आचार संहिता को लेकर देश में गर्मीगर्म बहस का दौर जारी है | हिन्दुस्तानी जहालती उलेमा तीन तलाक एवं बहुविवाह के विरोधी क्यों नहीं हैं| क्या वे भारत में इस्लाम के पूर्व के अरबों के जहालत युग को कायम रखना चाहते हैं ? इस युग में जैसे वर्तमान में भारत में भी मुस्लिम बालकों की बाल्यावस्था में  मुसलमानी खतना के द्वारा उनकी मुस्लिम पहिचान बना दी जाती है | उसी प्रकार अरब में जहालत युग में मुस्लिम बालिकाओं की बाल्यावस्था में इसी प्रकार सुन्नत प्रथा द्वारा उनकी मुस्लिम होने की पहिचान बना दी जाती थी | इस प्रक्रिया से अक्सर बालिकाओं की मृत्यु हो जाया करती थी | इस प्रकार की महिलाओं से संतानोत्पत्ति सम्भव नहीं थी परन्तु फिर भी उनसे निकाह किया जाता था | तीन तलाक के द्वारा विवाह सम्बंध विच्छेद हो जाता था और महिला को अपने ही घर में परपुरूष के साथ निकाह करना होता था और तीन माह तक इद्दत काल पूरा करना होता था और इसके बाद उस पीड़ित महिला को उस परपुरूष को तलाक देना होता था और फिर उस महिला को अपने पूर्व पति से निकाह करना होता था और फिर यह पति भी उस पीड़ित महिला को तलाक देकर अपने से हमेशा के लिये दूर करने वास्ते यूज एण्ड़ थ्रो कर देता था और संतानोत्पति के लिये मानव तस्करी के द्वारा बाहरी देशों से बालिकाओं एवं महिलाओं की प्राप्ति करता था | इस प्रकार अरब में इस्लाम के पूर्व यह जहालत का युग जारी था |
       तत्कालीन इस प्रथा से पीड़ित महिलाओं की आवाज पर ही इस तीन तलाक एवं बहुविवाह के विरोधी पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब थे | इस्लामी न्याय शास्त्र में कानून या नैतिक सिद्धांत का आधार केवल कुरान एवं सुन्नत या हदीस-ए-नववी है जो पैगम्बर साहब के कथनी एवं करनी है | इसके बाद इजमा तथा कयास यानि आम सहमति एवं विवेक का प्रयोग है जो देश काल की जरूरतों के अनुसार नियम रचना के सिद्धांत के तौर पर स्वीकृत है |
      मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की पुस्तक मजमूमा कवानीन इस्लमी, पृष्ठ १३७ में यह स्वीकार्य है कि "तलाक विद्दत एवं ममनू" यानि धार्मिक विकृति और निषिद्ध है |
      आज के तरक्कीनुमा जमाने में मुस्लिम महिलाओं की बदतर स्थिति के लिये जिम्मेदार हिन्दुस्तान के उलैमा हैं जो रहनुमा बनकर तलवार लिये खड़े हैं और जिनका निशाना उनकी हीं अपनी मुस्लिम महिलायें हैं | ऐसा प्रतीत होता है कि यह लोग हिन्दुस्तान में भी वही पुराना अरबों का जहालत युग कायम रखना चाहते हैं | ये लोग मुस्लिम महिलाओं को कम अक्ल का कहते हैं और मा.सर्वोच्च न्यायालय में इसे सिद्ध करने के लिये
पहुंच जाते हैं |
     इस्लाम का इतिहास बदलाव पर टिका है| शरियत के कानून सन् 632 से ही बदलते चले आ रहे हैं | कानून समाज की जरूरत के हिसाब से बनाया जाता है न कि कानून के हिसाब से समाज गढ़ा जाता है |
          अरब में तीन तलाक एवं बहु विवाह की प्रथा इसलिये समाप्त हुई जब सम्बंधित देशों ने मानव तस्करी को प्रतिबंधित कर दिया और इस वास्ते कानून सख्त कर दिये | जब तत्कालीन अरब के लोगों को तस्करी के द्वारा प्राप्त होने वालीं बालिकायें एवं महिलायें प्राप्त होनी बन्द हो गयीं | वर्तमान में अभी भी भारत से बालिकाओं एवं महिलाओं की मानव तस्करी पूरी तरह से उन्मूलित नही हो पायी है |अरब एवं कुछ पश्चिमी मुस्लिम देशों में अभी भी सम्बंधित लोगों को बालिकायें एवं महिलायें तथा बालक एवं पुरूष मानव तस्करी के द्वारा प्राप्त होते हैं जिनका उत्पीड़न किसी से छिपा नहीं है |
       भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं जिसके तहत धर्म,जाति ,समुदाय, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता | सभी को समान अधिकार सुनिश्चित करना भारत सरकार की जिम्मेदारी है| अनुच्छेद 19 के अनुसार जीवन जीना और आजादी से जीना मूल मानवाधिकार है | अनुच्छेद 25 के अनुसार लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य तथा अन्य मूल्य अधिकारों के उपबंधों के तहत सभी को अंत:करण की स्वतंत्रता व धर्मपालन का एवं आचरण व प्रचार का समान अधिकार है | अनुच्छेद 44 जैण्डर जस्टिस का है |वर्तमान में भारत में तीन तलाक एवं बहुविवाह का टकराव स्त्री अधिकार व पुरूष प्रधान सत्ता की विचारधारा का है |
        यह टकराव भारत के समस्त कानूनों में मौजूद है | भारत के समस्त कानूनों में भारतीय नागरिकों के विवाह,जन्म व मृत्यु के पंजीकरण, बीमाकरण व लाईसैंसीकरण के अधिनियमों के तहत संचालित सर्वोच्च न्यायिक दस्तावेजी साक्ष्य अभिलेखानुसार पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवैधानिक व लाईसैंसीकृत कानूनी सर्वोच्च न्यायिक रूप से विवाहित, जन्में एवं मृतक स्त्री, पुरूष एवं किन्नर भारतीय नागरिक व्यक्ति की समदर्शी, पारदर्शी सर्वोच्च न्यायिक स्पष्ट परिभाषा ही दर्ज नहीं है और इन अधिनियमों का उल्लंघन भारत के समस्त कानूनों में अक्षम्य अपराध भी दर्ज नहीं है | इससे बड़ा जैण्डर अनजस्टिस और क्या हो सकता है | जीवन की टैक्सचोरी व इस कालेधन की जमाखोरी  यही सर्वोच्च अन्याय देश में व्याप्त समस्त प्रकार के अशिक्षा, अपराधीकरण एवं बेरोजगारीकरण का मूलकारण है और यही जैण्डर अनजस्टिस बालिकाओं एवं महिलाओं के विरूद्ध होते चले आ रहे अपराधों एवं अन्याय का मूल कारण है जो भारतीय जनजीवन के विकास में सबसे बड़ी बाधा है |
      अत: भारत के केन्द्रीय विधि आयोग को उपरोक्त तथ्यों को एवं जैण्डर जस्टिस व एक देश व एक कानून को ध्यान में रखते हुये यथाशीघ्र सभ्य भारतीय समान नागरिक आचार संहिता का सृजन एवं क्रियान्वन तथा भारत के समस्त कानूनों में उक्त अधिनियमों से सम्बंधित संसोधन स्व:विवेकानुसार करवाना चाहिये |

आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर समाज और हम

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