महिला एवं बाल कल्याण हेतु पुनर्खोज :
सिस्टम का प्रभाव
.......................कैसे बनायीं जाती हैं संताने
शैतान व हैवान?
....................................................."जाको कष्ट विधाता देयी,ताकी मति पहले हर लेयी"
हिन्दुस्तान में जब आपसी असभ्य अमानवीय रिश्तों, मैत्री व सांस्कृतिक सम्बंधों के अनैतिक गुणमूल्यों के निजस्वार्थी व पराधीनता के अमानुष कर्म की एवं मर्यादाहीन असत्यवादी अमानुष धर्म की, सबका विभाजन व सबका विनाश की बदनियति एवं बदनीति की अस्वच्छ अलोकतांत्रिक राज्यव्यवस्था संचालन की विधायिका की संसदीय कार्य प्रणाली क्रियान्वित की जाती है तो देश के राजनैतिक समाज का मुखिया एवं देश की विधि के विधान का विधाता प्रधानमंत्री अपने पूर्वनियोजित मतिदान के धोखाधड़ी के अपराधिक षडयंत्र के द्वारा देश की वयस्क जनता की ईश्वर द्वारा प्रदत्त उसकी मति, दान के रूप में हर कर उसे मतिहीन बना देता है | ऐसे मतिहीन माता-पिता की संताने सिर के बल उल्टी जन्म लेती हैं जिन्हें सीधी बात आसानी से समझ में ना आकर, उल्टी बात ही आसानी से समझ में आती है | इन नवजात शिशु संतानों को जन्मजात ही सबसे पहली बार पशुओं का दूध पिलाया जाता है जिससे वे पशुता के गुणों से भरपूर पशु समान अमानुष शैतान एवं हैवान हो जाती हैं जो वयस्क होने पर मतिदान के द्वारा मतिहीन, अशिक्षित, बेरोजगार, आतंकी, भ्रष्टाचारी,दुराचारी, व्यभिचारी,बलात्कारी, अपराधी, अन्यायपीड़ित, पर्यावरण को प्रदूषित करने, जनसंख्यावृद्धि करने तथा अपना, अपने परिवार, समाज व देश का विभाजन एवं विनाश करने में, मानवजाति एवं मानवता को मिटाने हेतु परमाणु व हाईड्रोजन बम बनाने में जुट जातीं हैं | इनकी नजरों में आपसी सभ्य मानवीय रिश्तों, मैत्री व सांस्कृतिक सम्बंधों के नैतिक गुणमूल्य नही हुआ करते| ऐसे लोग निजस्वार्थी व पराधीन एवं मर्यादाहीन व असत्यवादी होते हैं | इस प्रकार देश के राजनीतिक समाज की राजनीति शैतानियत एवं हैवानियत को जन्म देती है |
कैसे बनायी जातीं है संताने नेक इंसान व एक भगवान ? -
हिन्दुस्तान में जब आपसी सभ्य मानवीय रिश्तों, मैत्री व सांस्कृतिक सम्बंधों के नैतिक गुणमूल्यों के बुनियादी स्वंय सहायताकारी,परोपकारी व स्वाधीनता के मानवकर्म की एवं बुनियादी स्वंय सेवाकारी मर्यादाशाली सत्यवादी मानवधर्म की, सबका साथ व सबका विकास की नेक नियति व नेकनीति की पारदर्शी स्वच्छ लोकतांत्रिक राज्यव्यवस्था संचालन की न्यायपालिका की संघात्मक ईश्वरीय कार्यप्रणाली क्रियान्वित की जाती है तो देश की वयस्क जनता अपने संविधान से प्राप्त अपनी ईश्वर प्रदत्त मति की निजता के मौलिक अधिकार के तहत निडर होकर अपनी मतिदान का बहिष्कार करती है और वह मतिवान बनती है | ऐसी मतिवान जनता की संताने नेक इंसान व एक भगवान की भांति पैरों के बल सीधी अवतरित होतीं हैं जिन्हें सीधी बात ही आसानी से समझ में आती है, इन्हें उल्टी बात आसानी से समझ में नही आती| इन शिशु संतानों को सबसे पहली बार अपनी सभ्य मानवीय रिश्ते की या मैत्री की या सांस्कृतिक सम्बंधों की नैतिक गुणवान अपनी माँ समान शिशुवान मौसी का, उसके बाद माँ का मानुष दूध पीने को मिलता है जिससे ये संतानें मानवता के गुणों से भरपूर नेक इंसान व एक भगवानरूप होती हैं | ये संताने मतिवान, शिक्षित, रोजगारयुक्त, सभी प्रकार के अपराधों से मुक्त, न्याययुक्त, पर्यावरण को स्वच्छ रखने वाली जनसंख्या नियन्त्रित करने वाली, अपना व अपने परिवार, समाज व देश को संगठित एवं विकाशसील बनाने वाली होती है | इनकी नजरों में आपसी सभ्य मानवीय रिश्तों, मैत्री व सांस्कृतिक सम्बंधों के नैतिक गुणमूल्य हुआ करते हैं | ऐसी संताने बुनियादी स्वंय सहायताकारी परोपकारी वा स्वाधीनता के मानवकर्म की एवं बुनियादी स्वंयसेवाकारी मर्यादाशाली सत्यवादी मानवधर्म की अनुयायी होतीं है| ऐसी संतानों हों, ऐसी इच्छा सभी सभ्य माता-पिता करते हैं | देश की जनता के सामने ये दोनों ही सिस्टम मौजूद हैं |अब, देश की जनता को स्वंय ही फैसला करना है कि वह स्वंय को व अपनी संतानों को क्या बनाना चाहतीं हैं ?
ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक
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