स्व: तलाश
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सपने देखे
फिर पढ़ लिखकर
जॉब को भागे
खुद से पूछा
कौन है तेरा
आवाज आयी
कोई नही मेरा
धक्का लगा
सच जानकर
खुद को देखा
आँख मूँद कर
सबकुछ था
टूटा उजड़ा
जीवन बीता
बाहर दौड़े
कभी न खुद
अंदर लौटे
आज मांगी
स्वंय से माफी
जीवन हारों को
हमने स्वीकारा
मार्ग शांति का
हृदय में बनाया
क्षमा, दया से
खुद को निखारा
पलकों से जब
खुद को समेटा
अंदर से जब
स्व: मुस्कुराया
आज हमने
खुद को पाया
- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
.. 🙏🏻💐धन्यवाद💐🙏🏻...
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https://dainikkhojkhabar.live/2018/03/25/स्व-तलाश-✍दैनिक-खोज-खबर/
Thanks |
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
कविता : स्व: तलाश
Reviewed by Akanksha Saxena
on
March 24, 2018
Rating: 5
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