Home
/
अंधेरे को चीरती कहानियां
/
दिवस (द इंडियन म्यूटन) - मात्र नौ महीने का प्रेम - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
दिवस (द इंडियन म्यूटन) - मात्र नौ महीने का प्रेम - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
किन्नर ''दिवस''
(मात्र नौ महीने का प्रेम)
*************************
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
शेखपुर नामक क़स्बे में श्रजित मल्होत्रा का सम्पन्न परिवार निवास करता था।इस क़स्बे में सब से अधिक ज़मीन जायदाद अगर किसी के पास थी तो वो मल्होत्रा जी के पास ही थी।वह बड़े ही नेक दिल और सभी की मदद करने वाले करुण स्वभाव के धनी थे।
मल्होत्रा जी के दो बेटे थे।जिन में बड़े बेटे का नाम अशिन मल्होत्रा था और छोटे बेटे का नाम आशय मल्होत्रा।बड़ा बेटा अशिन भारतीय सेना का जाँबाज़ फौजी था छोटा बेटा खेती किसानी देखता था।
श्रजीत मल्होत्रा के इस सम्पन्न परिवार में अगर किसी चीज़ की कमी थी तो यह कि उनके इतने बड़े घर में कोई चहकने वाला बच्चा नही था।उनकी दोनों बहुएं फिलहाल बे औलाद थीं।यह वो कमी थी कि सबकुछ होने के बावजूद मल्होत्रा जी को अपना ही घर सन्नाटे का बसेरा लगता।
एक दिन रोज की तरह वह सुबह तड़के टहलने निकले और जब सुबह की सैर से वापस होने लगे तो उनके कानों में नवज़ात बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी।उन्हों ने मुड़ कर आगे पीछे दाएं बाएं देखा पर कोई नज़र नही आया तो सोचने लगे, लेकिन यह मासूम बच्चे के रोने की आवाज़ आ किधर से रही है।तब ही उनकी निगाह एक कूड़ेदान पर पड़ी। जब वह कूड़े दान के पास पहुंचे तो देखा एक प्लास्टिक बैग काफी तेज़ी से हिल ङोल रहा था।मल्होत्रा जी ने जब उस बैग को उठाया और जब उसमें एक नवजात बच्चे को देखा तो वह कांप उठे।उन्हें समझने में देर न लगी कि किसी पापी ने अपने पाप को मरने के लिए इस कूड़ेदान में फेंक दिया है।उन्हों ने बच्चे को उठाया और अपने कांधे पर रखे तौलिए से उस रोते मासूम बच्चे को पोछा साफ किया और फिर सीने से लगाते हुए बोल पड़े "ईश्वर अजब है तेरी लीला"।
मल्होत्रा जी ने वहां एक पल की भी देर नही की,बच्चे को सीने से सटाये सीधा घर पहुंचे और अपनी पत्नी को आवाज़ लगायी ज़रा बाहर तो आओ क्या कर रही हो।पत्नी ने बाहर आकर जब मल्होत्रा जी की गोद मे नवजात शिशु को देखा तो पूछ बैठीं,अरे! यह बच्चा किसका है, इसे कहाँ से उठा लाये तो मल्होत्रा जी ने अपनी पत्नी को पूरा वाकया बताया तो उनकी पत्नी ने खुश हो कर उस शिशु को अपने गोद में ले लिया ।बच्चा अब भी रो रहा था।बच्चे की रोने की आवाज़ सुन कर उनकी दोनों बहुएं और उनका छोटा बेटा भी वहां पहुंच गया।दोनों बहुएं भी बच्चे को देखकर बहुत खुश हुईं।फ़ौरन वो बच्चे के लिए गाय के दूध का इंतेज़ाम करने में लग गईं।
बच्चा दूध पीने के बाद शांत था।बहुएं बच्चे को दुलार रही थीं कि बच्चे ने कपड़ा गीला कर दिया। बहुओं ने जैसे ही बच्चे के गीले कपड़े को हटा कर दूसरे वस्त्र से शिशु के तन को ढ़कना चाहा उनकी निगाह बच्चे के प्राइवेट पार्ट पर गई जिसे देख कर दोनों बहुएं सन्न रह गईं।उन्हों ने फौरन माँ को बुलाया हालात बताईं तो उन्हों ने भी अपने हाथ अपने मुंह पर रख लिए और कहा जाओ इस बच्चे को बाबू जी के हवाले कर आओ।एक बहु ने बच्चे को उठाया और बाबू जी की गोद में ले जा कर डाल दिया और कहा,बाबू जी प्लीज इस शिशु को वहीं ले जा कर छोड़ आइये जहां से इसे लाए थे।
बाबू जी बोले,यह क्या कह रही हो? आखिर! हुआ क्या?तो पास में खड़ा उनका बेटा बोला,"यह बच्चा न लड़की है ना लड़का यह तो हिजड़ा है"।
बाबू जी कुछ बोलते इस से पहले दोनों बहुयें गुस्से से बोलीं यह गंदगी हम नही रखेंगे और वैसे भी जब किन्नरों को पता चलेगा तो इसे उठा ही ले जाएंगे,और यह कह कर अपने कमरे में चली गईं।
श्रजित अपनी पत्नी से बोले,मैं इस नवजात शिशु को कहीँ नही ले जाने वाला और न ही कोई इसे उठा कर ले जा सकता है।मैं इस बच्चे को खुद पालूंगा।पत्नी ने कही ठीक है मैं आप के साथ हूँ।आप नाराज न हों।
फिर क्या था इस बच्चे के कारण प्रत्येक दिन सास बहुओं में तू तू ..मैं मैं.. होने लगी।श्रजीत जी के लाख समझाने के बावजूद कोई समझने को तैयार ही न था नतीजा एक दिन दोनों बहुयें और छोटा बेटा घर छोड़ कर दूसरे घर में रहने शहर चले गए।
श्रजीत जी को बहुत बुरा लगा पर वह इतने छोटे मासूम बच्चे के साथ अन्याय नही कर सके।
एक महीने बाद उनका बड़ा बेटा जो फौज में था उन से मिलने आया तो बोला पिता जी आप ने बहुत नेक काम किया है।मैं उन्हें बहुत समझाता हूँ पर वो लोग यहां घर पर लौटने को तैयार नही हैं,हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए।और माँ एक खुशखबरी यह है कि तुम जल्द ही दादी माँ बनने वाली हो।यह सुन कर माँ खुशी से झूम उठी और बोल पड़ीं देखो! यह बच्चा कितना भाग्यशाली है के इसके क़दम घर में पड़ते ही दूसरी खुशी ने दस्तक दे दी।
फौजी बेटे ने माँ की बातों को स्वीकार किया और कहा वाक़ई यह बहुत प्यारा और भाग्यशाली है।वैसे आप लोगों ने इसका नाम क्या रखा है? तो श्रजित जी बोले,मैं ठहरा पुराने जमाने का तू ही सुझा कोई अच्छा नाम तो आशिन ने कहा पापा इसका नाम "दिवस" रखो,दिवस माने दिन।हम सब के दिन बहुर गए पापा,सब ठीक हो गया देखो।माता पिता को भी आशिन का दिया यह नाम अच्छा लगा और फिर तीनों उसे दिवस दिवस कह कर दुलारने लगे।
श्रजित ने बात बदली और बोले बेटा तेरी नई नई पोस्टिंग है,वहां तो खूब गोलियां चलती होंगी।जानते हो कभी- कभी तो मैं यह सोच कर डर जाता हूँ कि....!!वह आगे और बोल न सके तो आशिन ने कहा, बाबू जी चिंता की कोई बात नही के सरकार सेना की सुरक्षा पर बहुत खर्च कर रही है तथा आधुनिक हथियार व अन्य सामग्री बाहर से मंगवा कर सेना के हवाले कर रही है।बाबू जी बोले अब बस भी कर बाप से झूठ बोलता है।रोज़ मैं सेना की शहादत की खबरें पढ़ता और सुनता हूँ। सच पूछो तो ऐसी खबरें पढ़कर मेरा दिल दहल उठता है।
आशिन ने कहा पापा आप भी ना...वैसे हमें यह भी नही भूलना चाहिए के वतन के लिए शहादत का जाम पीना भी कम बड़ी बात नही बाबू जी। बेटे की ज़ुबान से इस हौसले की बात सुन कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया और वह आशिन को अपने सीने से सटा लिए और कहा मुझे गर्व है अपने बेटे पर।आशिन ने माँ के आंसू पोछते हुए कहा, ''माँ रोते हुए अपने बेटे को विदा नही करते।'' यह कह कर माता - पिता का आशीर्वाद लेकर वह अपनी ड्यूटी पर वापस चला गया।
समय मानों पंख लगाकर उड़ रहा था | दिवस स्कूल जाने लगा था | वह पढ़ने में और खेल में कठिन से कठिन मंत्र स्पष्ट बोलने में बहुत होशियार और प्रतिभावान छात्र था | समय बीता आज उसका हाईस्कूल का रिज़ल्ट आया था उसने शत् प्रतिशत् नम्बरों से टॉप किया था। श्रजित जी और उनकी पत्नी बहुत खुश थीं। उन्होंने दिवस से कहा लो बेटा मिठाई खाओ कि तुमने तो कमाल ही कर दिया। दिवस गुमसुम था मानो सफलता की कोई खुशी उसके दूर -दूर तक न थी | वह बोला," पिता जी सभी बोलते हैं कि मैं आपको कूड़े में पड़ा मिला था या तू तो एक हिजड़ा है"।बाबू जी जितने भी जॉब के फार्म निकलते है उसमें साफ लिखा रहता है विकल्प "मेल" या "फीमेल" | तीसरे लिंग का विकल्प क्यों नहीं छपा होता है फार्म में ? यह देश का कानून हमारे लिये इतना पक्षपाती क्यों हैं पिताजी? मैं किन्नर(ट्रांसजैण्डर) हूँ इसमें मेरा क्या कसूर है | कोई मेरा अच्छा दोस्त नहीं है सब मुझ पर हंसते है माँ | यह सुन माँ ने उसे गले लगाकर कहा एक दिन सरकार जागेगी और न्याय के लिये बदलाव ज़रूर होगा |दुनिया बुरा कहती उसे कहने दो, ये तो दुनिया है| मैं तेरी माँ हूँ यह तेरे पिताजी हैं, बस यही सच हैं | बेटा लोगों की बातों पर ध्यान मत दो| हम सब तुझसे बहुत प्यार करते हैं और तुमसे तुम्हारे टीचर्स भी तो तुम्हें कितना प्यार करते हैं फिर मैं हूं न तुम्हारी दोस्त | कहो तुम्हें उत्तीर्ण होने की ख़ुशी में कौन सा फोन, लैपटॉप चाहिये ले लो और खूब नाम करो| जब नाम होगा तो हंसने वालों की हंसी गायब हो जायेगी | पिताजी बोले," चलो हम लोग गंगा दर्शन को चलते हैं और पिकनिक मनाकर आते हैं |
समय कब बीत गया, पता ही न चला | एक दिन दिवस ने श्रजित जी से कहा पिताजी मेरे कारण दोनों भाई और उनके बच्चे, कोई यहां नहीं आता | समाज के लोग भी कुछ कार्यक्रमों में आपको और माँ को नहीं बुलाते। मेरे कारण आपको क्या कुछ नहीं सहना पड़ रहा है| श्रजित जी ने कहा, ऐसा मत बालो दिवस, रात बहुत हो गयी है आराम कर लो जाकर | कल तुम्हारी प्रतियोगी परीक्षा है ना शहर में, जब जल्दी सोयेगा तभी तो जल्दी जगेगा दोनों मुस्कुराये और फिर दिवस कुछ देर अध्ययन करने के बाद सो गया |
दूसरे दिन वह माता-पिता जी के पाँव छूकर प्रतियोगी परीक्षा देने शहर निकल गया | परीक्षा के बाद वह अचानक शहर वाले मकान में बिन बताये ट्रक लेकर पहुँचता गया और डोरबेल बजाया तो बहु ने दरवाज़ा खोला और पूछी तुम कौन हो? दिवस ने बताया मैं शेखूपुर से आया हूँ मेरा नाम दिवस है। बहू बोलती ओह! तो तुम्हीं हो दिवस। चले जाओ यहाँ से। वह बोला," आप सब लोग घर चलिये प्लीज़"। वह बोली तुम्हारे वहां रहते तो कभी नहीं। दिवस ने कहा, मैंने वह घर छोड़ दिया है और अब आप आज के बाद मुझे वहां कभी नही देखोगी।नीचे लोडर खड़ा है सामान पैक कीजिये घर चलिये। तभी छोटी बहू बोली," अगर पिताजी तुम्हें हिस्सा भी दें तो वादा करो तुम नहीं लोगे। जो भी ज़मीन है हम दोनों की है। दिवस बोला, आप लोग चलिये मैं कुछ नहीं लूंगा | यकीन रखिये।तो वो लोग वापस लौटने को तैयार हो गईं।
रात गए वो लोग शेखूपुर वाले घर पहुंचे तो माँ ने दरवाज़ा खोला तो सामने दोनों बहुयें और उनके बच्चें व अपने छोटे बेटे को देखकर हैरान रह गईं, मारे खुशी के बच्चों के हथेलियाँ चूमने लगीं। यह सब देख श्रजित जी भी बहुत खुश हुए।
दूसरे दिन खाने के समय श्रीजित जी ने कहा लगता है दिवस शायद शहर में ही रूक गया है तभी उन्हें खाद वगैरह मंगवाने की याद आयी तो वह दिवस को फोन मिलाए तो दिवस ने कहा, मैं ठीक हूँ और फिर फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया।जिसे श्रजित ने सीरियस नही लिया।
श्रजित व उनकी पत्नी बहुत खुश थे कि एक बार फिर पूरा परिवार एक साथ था। वो बहुत खुश इस लिए भी थे के वर्षो बाद पूरा घर बच्चों की किलकारियों से खिल उठा था।
इधर दिवस रेलवे स्टेशन पर एकांत में अकेला बैठा सोच रहा था कि जो लोग उसे हिजड़ा कहते हैं उन से जाकर कोई क्यों नही पूछता कि क्या हम आसमान से टपके हैं या हमको भी किसी ने पैदा किया हैं।अजब है, ज़ाहिर है हिजड़ों ने तो हिजड़ें को जन्म नहीं दिया होगा, आख़िर! हमारा क्या कसूर है जो हमारे हिस्से में मात्र नौ महीने का ही प्रेम आता है? और जन्म लेते ही कूड़े के ढ़ेर पर फेंक दिया जाता है।कैसी विडंबना के बस हमें नौ महीने ही माँ का स्पर्श मिलता और बाकी ताउम्र माँ-बाप की सूरत देखने को भी तरस जाते हैं।बस यही जिंदगी दी है इस समाज की विकृत सोच ने, जिसने हमारा जीवन नर्क बना रखा है । यह समाज हमें नर्क की ज़िंदगी देता हैं और बदले में हम तो फिर भी सभी को दिल से दुआयें देते हैं। भगवान शिव ने विष कण्ठ में धारण कर लिया था पर हमारा तो सम्पूर्ण जीवन ही विषगार बना हुआ है फिर भी हम जी रहे हैं।
आख़िर क्यों समाज में हमें बेटी और बेटे जैसा सम्मान नहीं मिलता । सरकार की कोई भी योजना हमारे तक क्यों नहीं पहुँचती ।हर नेता हमसे वोट की उम्मीद तो रखता हैं लेकिन हमें न्याय नहीं देता क्यों?
मौका देख केवल ज़लील करते है लोग। समाज में बराबरी का दर्जा तो बहुत दूर की बात हैं। पोलियो की ड्रॉप भी हमारे लिये नहीं । लड़का-लड़की सभी को पढ़ाओ देश को साक्षर बनाओ पर किन्नर का कभी किसी स्लोगन में नाम तक नहीं आता | किन्नर नौकरी के फार्म भी ना भर सकें। क्या हम लोग समाज और देश के लिए केवल मनोरंजन का साधनमात्र हैं ? यही सब बातें सोच - सोच कर वह रो पड़ा तो पीछे से किसी ने उसके कांधे पर हाथ रखा। दिवस चौंक कर पलटा तो देखा दो तीन किन्नर उसके पीछे खड़े थे। वह बोले अपुन लोग का यही इच नसीब है चलो अपनी दुनियाँ में ।दरअसल हम बहुत दूर से ताड़ जाते हैं जो अपनी बिरादरी का होता है। दिवस चुपचाप उनके साथ एक मोहल्ले में पहुँचा जहां सभी किन्नर ही किन्नर थे। सभी ताली ठोंक के बोले,' साले कमीने लोग मजे लेकर सज़ा हम लोग को देते हैं। चल चिंता न कर सुबह इन ही से चलकर वसूलेंगे डियर। दिवस इस माहौल को देखकर डर गया और उसका डर और भी उस समय बढ़ गया जब दो-तीन किन्नर वहां उसे देखते ही आकर उससे लिपट गये। वह घबराया सा बोला प्लीज़ दूर रहो मुझे यह हरकत पसंद नही।
वहाँ का माहोल देख, उन सब लोगों से बात करने के बाद दिवस ने कहा कि मुझे नही पता आप लोग अपनी इस नर्क भरी ज़िन्दगी को किस तरह जीते हैं या आप लोगों के आगे की जीवन जीने का क्या प्लान है पर मुझे लगता है ऐसी ज़िन्दगी जीने से बेहतर है आप लोगों में जो लोग शिक्षित हैं वो किसी प्राईवेट स्कूल में पढ़ाएं बाकी किसी फर्म, कल कारखानों में मज़दूरी करें और यह सब नाच गाना,तालियां ठोंक कर वसूली करना छोड़ दें। आप ही सोचो यह नाच गाना, तालियां ठोंक कर वसूली करना क्या आप लोगों को अच्छा लगता है ?
दिवस की बातें सुन कर सरोज किन्नर ने वहां मौजूद अन्य किन्नरों से कहा, जो दिवस कहे वही करो। जरा इसे भी समाज का नंगा सच देखने का मौका दो यार। कल, परसों, नरसों, थरसों इसकी सुनो फिर उसके बाद येही सिर्फ़ हम लोग की सुनेगा।कारण चंद ही दिनों में इसे खुद ही पता चल जाएगा कि आज का सभ्य समाज कहलाने वाला समाज अंदर से कितना बदसूरत है या कितना बड़ा जाल,फ्रॉड है।इसे क्या पता यह वही जाल समाज है जो हर दिन न जाने कितनों को मौत की मुँह में धकेलने का अकेला ज़िम्मेदार भी है।और दिवस से कही चल अब तू भी जा कर सो जा। दिवस सरोज की बातें सुन कर चुप नही रहा बल्कि साफ शब्दों मैं कहा मैं सोऊंगा पर अकेले वहां मेरे साथ कोई नही होगा तब। यह सुनकर वहां मौजूद सभी ज़ोर से हंस पड़े। जब दिवस ने देखा कि एक छोटे से कमरे में पाँच-छ: लोग दायें- बायें होकर एक साथ सोये हुए हैं तो यह सब देख कर दिवस की आंखें भर आयीं।
उसी रात दिवस ने एक मैसेज अपने पिता जी को लिखा के मैं जहां भी हूँ ठीक हूं पर घर मे अब किसी नौकरी से लगने के बाद ही लौटूंगा।
इधर सुबह सभी किन्नर जब सज धज कर तैयार हो रहे थे कि दिवस वहाँ से चुपके से निकल गया और पास के ही एक प्राईवेट स्कूल में जाकर बात कर के पढ़ाने लगा। वहाँ उसने राष्ट्रीय साईकिल रेस के लिये लोगों को फॉर्म भरते देखा और पुलिस की भी दौड़ के आधार पर सीधी भर्ती का फॉर्म भरते देखा तो उसने भी दोनों फार्म में तीसरे लिंग(थर्ड जेंडर) का नया विकल्प स्वंय बनाकर फार्म भेज दिया।
वह प्राईवेट स्कूल में बच्चों को गणित पढ़ाने लगा उसके पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा था कि प्रिंसिपल उसे निकाल न सका। वह रोज़ सुबह दौड़ने जाता और स्कूल में भी पढ़ाता। यह सब देख सरोज किन्नर ने सभी से कहा दिवस अभी नया है उसकी तरफ ध्यान न दो। जो चाहे वो करने दो उसे।
एक दिन दिवस ने समाचारपत्र में सीधी पुलिसभर्ती का प्रचार देखा जिसमे लिखा था “ बस दौड़ निकालो और जॉब पाओ”।दिवस सीधी पुलिसभर्ती परीक्षा केंद्र पर पहुँच गया और जैसे ही उसने दौड़ना शुरू किया तो लोग देखते ही रह गये। पुलिस अधिकारी भी अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुये और कहा कि यह क्या ओलम्पिक का रेसर है? दौड़ पूरी होने के बाद पुलिस अधिकारी ने कहा कि बुलाओ इस लड़के को। जैसे ही पसीने से तर बतर दिवस उन अधिकारी के पास आया । तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे सभी शारीरिक मापदंड सीधी पुलिस भर्ती के अनुसार ठीक हैं और तुमने दौड़ भी मानक समय के अन्दर अच्छे समय के साथ पूरी की हैं इसलिए तुम अपना सिलेक्शन पक्का समझो। कागज़ों की प्रमाणिकता के लिए जैसे ही दिवस ने कागज़ात दिखाये तो वह चौंक कर बोले,'' तू किन्नर है?'' दिवस ने कहा," हाँ' तो उन्होंने कहा सॉरी मैं तुम्हें नहीं रख सकता। दिवस ने कहा, मैं आपकी परीक्षा में पास हुआ हूँ और क्या चाहिये। जब दूसरे लड़के, लड़कियाँ पुलिस में भर्ती हो सकते हैं तो हम किन्नर क्यों नहीं?
वह अधिकारी बोले, बात तो ठीक है पर रूल नहीं हैं,थर्ड जेंडर को पुलिस में भर्ती में लेने का हमारे पास कोई सरकारी अनुमति या ऑप्शन नही तो मैं क्या कर सकता हूँ।वैसे चिंता न करो अभी तुम जाओ बाद में मैं तुम्हें फोन ज़रूर करूगां।दरअसल इस सिलसिले में पहले हम अपने अपर के अधिकारी से भी मीटिंग कर लें। तू चिंता न करना। जब वह जाने लगा तो वहां बैठे सभी अधिकारियों ने वहाँ खड़े सभी लड़कों से कहा दिवस मल्होत्रा की शानदार दौड़ के लिये आप सभी तालियाँ बजाकर उसको सम्मान दें। पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा |दिवस ने सभी अधिकारियों को प्रणाम किया और वापस अपने किन्नर मोहल्ले में लौट आया। किन्नर सरोज उसे परेशान देख लस्सी का कुल्हड़ देते हुये कहा लस्सी पी ले काफी थक गया होगा । वह लस्सी पीने लगा तो सरोज किन्नर ने कहा चिन्ता न कर कोई तुझसे कुछ नहीं बोलेगा जो मन करे सो कर। हाँ एकबात तय है कि हम सब दिल से तेरे साथ हैं । दिवस ने हाथ जोड़कर कहा, आप सभी का धन्यवाद।
कुछ महीने बाद राष्ट्रीय साईकिल रेस प्रतियोगिता हुई जिसमें सभी देशों के साइकिल रेसर भाग ले रहे थे | दिवस को अपनी प्रैक्टिस पर पूरा भरोसा था।सरोज किन्नर की कई बड़े लोगों, पत्रकारों से अच्छी पहचान होने के बावजूद बड़ी मुश्किल से दिवस को भी उस दौड़ में हिस्सा लेने दिया गया।
आज रेस हो रही थी वहाँ उपस्थित लोग दिवस को देख कर बोल रहे थे कि किन्नर ही मिला था क्या ? लो ये तो भारत की लुटिया डुबोने आ गया। रेस शुरू हुई फिर क्या था किन्नर दिवस ने रेस शुरू की तो उसकी रफ़्तार का कोई पीछा नहीं कर सका। दिवस हाथ छोड़कर साईकिल चला रहा था। यह देख हज़ारों की संख्या में बैठे दर्शकों ने दाँतों तले अंगुलियाँ दबा लीं। ऐसा लगता रहा था मानों कोई सुपर पॉवर उसकी मदद कर रही हो। वह बहुत ही कम समय में साईकिल रेस जीत गया और एक अनोखा रिकॉर्ड अपने नाम भी कर लिया। चारों तरफ बस तिरंगे हीं तिरंगे लहरा रहे थे | यह देखकर वहाँ उपस्थित लोगों के मुँह खुले के खुले रह गये| पूरे देश- दुनियाँ में भारत का नाम रोशन हुआ और दिवस के चर्चे भी आम हो गये | सभी लोग बहुत खुश थे । मीडिया उससे सवाल पर सवाल पूछे जा रही थी। वह प्रणाम करते हुये भीड़ को चीरते हुये वहाँ से बाहर निकला कि तभी पहला फोन उसके फ़ौजी भाई अशिन का आया। वह बोला दिवस मुझे तुझ पर गर्व है मैं जल्द ही छुट्टी पर घर आ रहा हूँ घर पहुंच कर तुझे सरप्राइज़ दूंगा। मैं फोन रखता हूँ। दिवस ने कहा भैया चरणस्पर्श मुझे भी आपकी बहुत याद आती है।
बड़े भाई आशिन से बातें कर के जैसे ही वह फोन जेब में रखा सरोज किन्नर ने आगे बढ़कर उसे उसे गले से लगा लिया और प्यार से कहा "हे मेरे बच्चे मैं आज मैं बहुत खुश हूँ।
दिवस वहां से जाने लगा तो तो वहां के अधिकारी ने कहा अभी रूको कुछ पेपर वर्क कर लो। अरे भाई तुमको ईनाम की बहुत बड़ी रकम मिलने वाली है ।
ईधर श्रजित जी और उनकी पत्नि टीवी पर दिवस की कामयाबी देख बहुत खुश थे । श्रजित जी ने दिवस को मैसेज किया कि बेटा अब तो घर आजा। पिता जी का मैसेज देख दिवस ने फोन मिलाकर कर कहा, हाँ पिताजी जल्द ही आऊंगा ।
दूसरे दिन पेपर में आया कि कुछ आतंकी देश में घुस आये हैं। पूरे देश में हाईअलर्ट जारी कर दिया गया है और सीमा पर रात दिन फ़ायरिंग हो रही है | ऱोज-ऱोज यह सब सुन और पढ़कर श्रजित जी डर जाते हैं और प्रार्थना करते हैं कि हे! भगवान कुछ ऐसा हो कि किसी का बुरा न हो । यह ख़बर पढ़ कर उन्होंने अपने फ़ौजी बेटे को फोन मिलाया, पर बात न हो सकी।
दिवस के आँखों में पूरे जीवन की फ़िल्म घूम रही थी| उसे कभी माँ दिखती तो कभी पिता जी, कभी उसे भाई का वह अंतिम मोबाइल मैसेज याद आता, तो कभी उसे बहन रोती-बिलकती हुई दिखती तो कभी सरोज माँई उसे अपने पास बुलाती हुई दिखतीं, जब वह इन दर्दनाक दृश्यों से बाहर निकलने की कोशिश करता तो उसे रूद्र की दोस्ती और जैनीफर का झूठा प्यार याद आता । कभी गौशाला , तो कभी लोगों से किये अपने वादे याद आते। याद आता कि आज बीएससी का पहला पेपर था जो वह दे नहीं पाया अभी यादों का सिलसिला उसकी नज़रों के सामने घूम ही रह था तभी उसे सामने डॉक्टर डिसूज़ा दिखीं।दूसरी तरफ़ वह सोचने लगा शायद अशिन भैया को जैनीफर के बारे में पता चल गया हो और उन्हें लगा होगा कि मैं भी उसके इस आतंकी मिशन का एक हिस्सा हूँ। काश! भैया को मैं सच बता पाता । काश! रजौरा गांव में सभी के हित के लिये फाउण्डेशन खोल पाता। काश! किन्नर समाज में बदलाव ला पाता। इन्हीं सब बातों ने दिवस के मन-मस्तिष्क में कोहराम मचा दिया था और फिर पता नहीं कौन सी बात उसके दिमाग में घर कर गयी कि कुछ देर बाद ही दिवस की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं। बंद होती आँखों से दिवस ने कमरे में चारों तरफ देखा और तभी उसे पास में रखी चमचमाती हुई स्टील की एक प्लेट दिखायी दी| दिवस उस प्लेट को उठाने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी उसे देखने आये कमांडर ने उस प्लेट को उठाकर दिवस की तरफ बढ़ा दिया। दिवस अपनी पूरी ताकत बटौर कर उस प्लेट में अपना चेहरा आईने की भांति देखने लगा कि उसी समय ढ़ेर सारे किन्नरों की टोली दिवस के रूम के बाहर लगी खिड़की से अंदर की और झांकते हुये चिल्ला रही थीं कि नहीं रे! अपना मुँह न देख वरना अगले जन्म में भी यही यातना भुगतनी पड़ेगी, हटाओ इसे, मत देखो! अपना चेहरा। तभी वह प्लेट उसके मुँह पर गिरती है और एक ही पल में दिवस इस दुनियाँ से जा चुका होता है। यह देख पास में खड़े डॉक्टर, दिवस के चेहरे से प्लेट हटाते हुये उसकी नब्ज़ देखते हैं और "दिवस इज़ नो मोर" कह कर निकल जाते हैं। यह सुनकर बाहर खड़े सभी किन्नर फूट-फूट कर रोते हुए कहते हैं कि दिवस ने जानबूझ कर अंतिम वक्त में अपना चेहरा देखा, एक दिन वो फिर इसी सूरत में लौटेगा जिस सूरत को लेकर वह या हम तमाम उम्र खुशी का एक पल भी नही पा सके।पूरी ज़िंदगी शब्द "हिजड़ा" हमें किस्तों में घायल करता रहा।
यह कहानी हमने 2005 में लिखी थी फिर समय के साथ इसमें परिवर्तन करके आपके सामने प्रस्तुत है।
श्रजित जी अख़बार लेकर कस्बे के बाहर स्थित पौराणिक शिव मंदिर में जा बैठे और दिवस को फोन मिलाकर बोले बहुत याद आ रही बेटा। अगर तुम शिव मंदिर मे आ सको तो आ जाओ | दिवस स्कूल के टीचर की मोटरसाईकिल लेकर तुरन्त शिव मंदिर पहुंचा तो श्रजित जी बोले," बेटा ये अख़बार देख बीस- पच्चीस बच्चे शहीद हो गये हैं। तेरे भाई से भी बात नहीं हो पा रही मैं बहुत परेशान हूँ । दिवस ने कहा मेरी बात हुई है उन्होंने कहा हैं कि वह जल्दी ही छुट्टी पर घर आ रहे है । श्रजित जी बोले, दिवस बेटा छुट्टी सभी की कैंसिल कर दी गयी है ।' यह सुन दिवस ने फोन मिलाया पर कॉल नही मिला,बात नही हो सकी।श्रजित जी बोले, बेटा यह सरकार सभी सैनिकों को बुलटप्रूफ जैकिट क्यों नहीं उपलब्ध करवाती कम से कम कुछ तो बचाव हो | जो आतंकी आधुनिक हथियार प्रयोग करते हैं वही हथियार अपने सैनिकों को उपलब्ध क्यों नहीं ?'' दिवस ने कहा," होना तो सचमुच यही चाहिये पिताजी।खैर ! शाम हो रही पिताजी आप घर पहुँचिये मुझे कुछ काम निपटाने हैं फिर मैं भी घर आ जाऊंगा।
श्रजित जी मुस्कुराए, बोले, बेटा तू बहुत ज़्यादा समझदार हो गया है। तू क्या समझता है मुझे कुछ पता नहीं हैं कि तूने घर छोड़ दिया है, वो भी मेरे बेटे बहुओं और मेरी खुशी की ख़ातिर। इतना कहकर दिवस को गले से लगाकर बोले,तू घर छोड़ सकता है पर तेरा- मेरा रिश्ता कभी नहीं छूट सकता समझे। मैने कभी समाज की परवाह नहीं की।मैं तो हमेशा सत्य और न्याय का सेवक रहा हूँ । दिवस ने पाँव छूकर कहा,मेरे सबकुछ आप ही हो। मुझे समझिये और प्लीज़ मुझे जाने दीजिये ।आप जब भी पुकारेंगें मुझे मैं आप के पास हाज़िर हो जाऊँगा| इतना कहकर दिवस वहाँ से निकला आया।
श्रजित जी घर लौट आये और अपने सभी ज़मीन ज़ायदाद तीन हिस्सों में क़ानूनी लिखित तौर पर बाँट दिये और उन कागज़ों की एक-एक कॉपी, श्रजित जी ने अपने वकील मित्र को सबकुछ समझाकर सौंप दिया।
इधर सरोज किन्नर ने कहा," दिवस तुमको रेस से बहुत बड़ी रकम मिली है तुमने कुछ सोचा है क्या करोगे ?
दिवस ने कहा, हाँ सब सोच लिया है कल बताऊँगा आपको इस रकम का क्या करना है। आभी वो सरोज से बात कर ही रह था कि तभी दिवस के फ़ोन पे एक कॉल आयी कि "आप दिवस मल्होत्रा हैं मैं आपकी गली में खड़ी हूँ" । दिवस ने सोच लगता है कोई मज़ाक कर रहा है क्या कोई लड़की मेरे लिए गली में खड़ी होगी ? उसने ये बात सरोज को बताया तो सरोज ने बाहर झांका तो गली में बेहद खूबसूरत अंग्रेज लड़की बाहर खड़ी दिखाई पड़ी।
सरोज को बड़ी हैरानी हुई कि उनकी गली में इतनी सुन्दर लड़की! वह उसे अंदर ले आयी । उस लड़की ने भारतीय अंदाज में नमस्ते किया। धानी रंग की साड़ी पहने वह गज़ब ढ़ा रही थी।
दिवस भी उसे एकटक देखता ही रह गया ।वह बोली,दिवस मैने तुम्हारी साइकिल रेस देखी थी तुम उसके चैम्पियन रहे । मैं तुम्हारी फ़ैन हो गयी हूँ । मुझे भी रेस जीतनी है क्या आप मुझे साइकिल रेसिंग के कुछ टिप्स देगें| दिवस ने कहा कि कृपया आप अपना परिचय तो दीजिये। तो उसने अपना परिचय देते हुए वो कहा कि मेरी मदर अमेरिकन थी डैड इंडियन थे। अब दोनों नहीं रहे। मैं दिल्ली में अपने अंकल के घर रहती हूँ । क्या कल तुम मुझे स्टेडियम में मिल सकते हो प्लीज़? दिवस ने कहा, '' मैं आपको ज़रूर टिप्स दूंगा। '' यह सब बातें होती रहीं। सभी ने लस्सी पी और फिर सभी अपने अपने कार्यो में व्यस्त हो गये।
दूसरे दिन दिवस के पास बार – बार उस अंग्रेज लड़की का फोन आ रहा था तो दिवस न चाहते हुए भी स्टेडियम पहुँचा और स्टेडियम पहुँच कर उसकी तमाम बातें सुनने के बाद दिवस ने कहा ,” अरे! मैं तो आपका नाम पूछना ही भूल गया। वह बोली मेरा नाम जैनीफर है तुम मुझे जैनी कह सकते हो। वह साइकिल पर बैठ कर जैनी को रेस के टिप्स देने लगा।
वह बोली दिवस में तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। यह सुनकर दिवस चौंका और साइकिल का बैलेंस बिगड गया जिससे दोनों एक दूसरे के ऊपर ही गिर गये और साइकिल उनके ऊपर | वह लेटी हुई बोली, दिवस मैं तुमसे सच्चा प्यार करती हूँ।
दिवस ने हँसते हुये कहा, मुझसे ?
जैनीफर ने कहा हाँ तुम से.. यह जान कर भी कि तुम किन्नर हो, पर मुझे दिक्कत नही। तुमको विश्वास नहीं तो मैं भी किन्नर बन जाऊँ । चलो अस्पताल चलें| दिवस ने कहा कि नहीं जैनी, यह तो अन्याय होगा। वैसे भी तुम बहुत अच्छी लड़की हो। वह बोली मुझे तो सिर्फ तुम्हीं से शादी करनी है । दिवस बोला,नहीं.. मुझे नहीं करनी। यह कहता हुआ वह वहाँ से चला आया।
दूसरे दिन सुबह दिवस ने देखा कि सामने बैठी किन्नर रोशनी वहाँ बैठी सभी किन्नरों को तैयार कर रही थी। ज़रा देर में ही उसने सभी के चेहरे और बालों पर चार चाँद लगा दिये। क्या हुनर, क्या जादू था रोशनी के हाथों में कि वह जिसको छू देती वह रौशन हो जाता। दिवस कुछ सोचने लगा तो रोशनी किन्नर ने कहा," क्यों रे! मैं देख रही हूँ तू मुझे फालतू में घूरे जा रहा है तभी दिवस बीच में ही बोल पड़ा रूको रूको सुनो! मैं तो आपका हुनर देख रहा था। वाह! क्या फुर्ती है।वह मुस्कुरायी और बोली वो तो है ।
दिवस ने उससे कहा," तुम ब्यूटी पार्लर चलाओगी क्या? बड़े-बड़े स्टार तक की लाईन लग जायेगी तुम अपने हुनर को पहचानो। वह बोली मैं तो बिल्कुल तैयार हूँ पर इतनी मंहगाई में बड़े पार्लर के लिये रूपया ....? तुम समझ तो रहे हो ना।
दिवस ने कहा, आप पहले एक वादा करो..
रोशनी ने पूछा क्या? तुम बोलो न.... रोशनी की हर बात पक्की ही होती है। मैं फालतू में झूठ नहीं बोलती।
दिवस ने कहा, तुम्हें क्या अच्छा लगता है सभी के शादी ब्याह में नाचना गाना पैसे मांगना या फिर अपनी अलग पहिचान बनाना? क्या तुम नही चाहोगी कि तुम्हारा यह पर्स मेहनत के पैसे से हमेशा भरा रहे और दिल गर्व से | रोशनी बोली," मैं समझ गयी तुम क्या चाहते हो, मैं वादा करती हूँ ज़्यादा से ज़्यादा किन्नरों को मैं हुनर व रोज़गार से जोडूंगी और जिसमें जो टैलेंट होगा उसकी मैं मदद भी करूँगी। यही चाहते हो ना | दिवस ने कहा, हाँ यही चाहता हूँ अगर तुम साथ दो तो बहुत कुछ बदल सकता है। हमारा गरीब पीड़ित वंचित किन्नर समाज भी समाज में सम्मान से जी सकता है। रोशनी बोली, दिवस आज किन्नर लोग नेता,मंत्री हैं यहां तक की महा मंडलेश्वर भी हैं। समय के साथ-साथ काफी सुधार हुआ हैं लेकिन आज भी एक तबका गरीबी और बेबसी की मार झेल रहा हैं। यही सब बातें चल ही रहीं थीं कि अचानक से पास आकर किन्नर सरोज ने पूछा," क्या बातें चल रही हैं ?
दिवस ने सारी बात बतायी और बोला जो इनाम की धनराशि मिली है उससे एक शानदार ‘रोशनी ब्यूटी पार्लर’ खोलेगें और वो भी शहर में सबसे बड़ा पार्लर। आप साथ देंगी हमारा। सरोज को सब समझाने के बाद दिवस और रोशनी शहर चले गये और एक बिल्डिंग किराये पर ले ली और महीनेभर की कड़ी मेहनत के बाद शानदार ब्यूटीपार्लर शहर में खोला जो जल्दी ही बड़े पार्लरों में शुमार होने लगा। दिवस ने कहा, रोशनी तुम मुम्बई जाकर पार्लर मेकअप आर्ट का सर्टिफिकेट कोर्स पूरा कर लो। यहाँ का कार्य ये सब लोग देख लेगीं | रोशनी बोली मैं यहीं पर ऑनलाईन सर्टीफिकेट कोर्स कर लूंगी और अपना पार्लर भी देखूगी यह लैपटॉप है ना और ''इंटरनेट गुरूजी'' सब सिखा देंगे। यह सुनकर दिवस हँस पड़ा।
दिवस ने देखा सभी ग्यारह किन्नर खुशी - खुशी पार्लर में काम करके खुश थीं। वह वहाँ टहल ही रहा था कि उसने देखा सामने दीवार पर खुद की और सरोज जी की बहुत बड़ी फोटो लगी है । यह देख, वह मुस्कुराया और बोला,रोशनी जी ग्रुप फोटो लगवाओ जिसमें हम सब हों।रोशनी बोली, उधर देखो। दिवस ने पीछे मुड़कर देखा तो उन सबकी बहुत ही बड़ी और सुन्दर ग्रुप फोटो लगी हुई थी।
दिवस बोला,बहुत ही सुन्दर सचमुच ।अभी बातें चल ही रही थी कि दिवस का फोन बजने लगा तो दिवस ने कॉल रिसीव किया ।कॉल उसके फौजी भाई आशिन की थी।दिवस ने पूछा, हाँ भैया आप कब घर आ रहे हैं ?
फ़ौजी भाई अशिन बोला, बहुत जल्द मेरे भाई। अशिन ने बताया,सावधान रहना दो आतंकी देश में घुस आये हैं जो अभी पकड़े नहीं जा सके हैं और पता नहीं मुझे भी दो दिन से अजनबी लोगों के फोन आ रहे हैं और मेल भी। दिवस ने कहा," भैया आप अपना ख़्याल रखिये और जो भी हो अपने चीफ़ को ज़रूर बताना। वह बोले अभी फोन रखता हूँ दिवस फिर बात करूँगा । दिवस कुछ सोचते हुये सीढ़ियों से नीचे उतरा और पास की ही कॉफी शॉप में जाकर बैठ गया। उसने अपने पीछे से कुछ जानी पहिचानी आवाज़ सुनी तो उसने पलट के देखा वहां ब्लैक ड्रैस में अपनी सहेलियों के साथ जैनीफर बैठी थी । उसे देख कर दिवस वहाँ से उठा तो जैनीफर ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली," फ्रेण्ड तो बन सकती हूँ ना प्लीज़।पीछे खड़ी सभी सहेलियाँ एक साथ बोली,प्लीज़..प्लीज। दिवस ने कहा, अच्छा.. अच्छा ठीक है ।
इतना सुनकर सभी एक साथ कहती हैं आज कॉफी आपकी तरफ से | सभी मुस्कुराते हुये कॉफी पी रहे थे और जैनीफर साइकिल रेस का वह वीडियो सभी को दिखा रही थी| जितने लोग वहाँ कॉफी पी रहे थे सभी दिवस से हाँथ मिलाने लगे कि तभी अचानक कॉफी शॉप की खिडकियों के शीशों के टूटने की आवाज़ आयी और धड़ाधड़ गोलियाँ चलने लगीं| चारों तरफ भगदड़ मच गयी थी| हर तरफ चीख़ पुकार और खून से लथपथ लोग ही दिखाई दे रहे थे| कुछ देर बाद वहां जब सब शांत हुआ तो देखा गया चंद मिनटों में वहां तकरीबन पचास लाशें चारों तरफ बिखरी पड़ीं थीं| वह चारों तरफ देखते हुये बोला जैनी!.... जैनीफर!.... तभी उसकी खून से लथपथ सहेली ने दूर से इशारा करते हुए कहा वह वहाँ.......! वह कुछ सोच पता कि तभी पुलिस के लाउडस्पीकर से आम जनता को कुछ बताने की आवाज़ सुनायी दी | जिसमे बोला जा रहा था कि पुलिस आपके साथ है बाहर निकलो क्या पता शॉप में कोई बम भी प्लांट हो सकता है| ये सुनकर सभी भयभीत लोग जो बच गये थे और भय की वज़ह से छिपे हुए थे, वह सब तेज़ी से दौड़ते हुऐ बाहर की ओर भागने लगे।| दिवस एक बुज़ुर्ग महिला को अपने हाथों में उठाये हुये पुलिस से कहता है कि प्लीज़ ऐम्बूलेंस मंगवा दीजिये | पुलिस वाले बोले वो आ रही है देखो! आप चिन्ता न करिये | तभी दिवस ने जल्दी ही उस बुज़ुर्ग महिला को ऐम्बुलेंस में लिटाया फिर जैनी को देखने के लिए अंदर की ओर भागा| तो वहाँ उसे बेहोश पाया, आनन-फानन में उठाकर उसे भी उसी ऐम्बुलेंस में ले जाकर लिटा दिया| यह सब देख पुलिस ने पूछा, क्या तुमने आंतकियों को देखा? दिवस ने कहा," नही..इस से पहले के हम लोग संभल पाते या उन्हें पहचान पाते, वह सब निकल गये | पुलिस वाले ने कहा," अपना फोन दो। दिवस ने जैसे ही अपने पॉकेट में हाथ रखा तो फोन भी उसके पास नहीं था | वह कॉफी शॉप में अंदर फोन लेने के लिये भागा कि शायद वहीं कहीं गिर गया होगा | वह फोन उठाने के लिय जैसे ही झुका कि उसी मेज के नीचे दबा बच्चा कराहते हुये बोला मुझे निकाल लो प्लीज!! दिवस ने तुरन्त मेज उठाकर फेंकी और बड़ी मुश्किल से उस बच्चे को ऐम्बुलेंस तक पहुँचाया| पीछे से पुलिस वाले ने कहा, ये ले तेरा फोन बज रहा है| दिवस ने फोन उठाकर पूछा ,हाँ जी आप कौन? तो फोन करने वाले ने कहा, इस फोन को दूर फेंक दो इसमें बम है | दिवस बोला," तुम कौन हो ? कोई जवाब न मिलने पर दिवस ने तुरन्त उस फोन को दूर फेंक दिया तभी पुलिस वालों ने सब भीड़ को दूर कर दिया और पाँच मिनट बाद मोबाइल बहुत तेज आवाज़ के साथ फट गया। धमाका ऐसा था मानो कान के पर्दे फट जायें | दिवस ने पुलिस स्टेशन जाकर अपना फोन नम्बर अन्य जानकारी सब पुलिस को दे दी | वह हैरान था सोच कर कि मेरा मोबाइल ऐसे फटेगा और फिर वो सोचने लगा वह किसका कॉल था आख़िर ! वह आवाज़ पहिचानने की मन ही मन कोशिश कर रहा था तभी एक बड़ी सी गाड़ी आकर रूकी उसमें एक रसूखदार व्यक्ति दिवस की तरफ आगें बढ़ा और हाँथ जोड़कर बोला," आपने मेरी बृद्ध माँ और बेटे को बचाकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है | मैं यहाँ का सांसद हूँ | दिवस ने कहा, ऐसा मत कहिये प्लीज। मैंने तो अपना कर्तव्य निभाया है बस | तभी पुलिस ने कहा," इस जगह को जल्दी खाली करो जाओ यहाँ से | हम लोगों को अपना काम करने दीजिये प्लीज़ | दिवस कुछ बोल पाता कि सांसद ने कहा," चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ गाड़ी में बैठो मना मत करना प्लीज़ | दिवस रास्ते में बातचीत करता रहा | यह सब सुनकर सांसद ने कहा, दिवस मैं तुम्हें बड़े मंच पर सम्मानित करूँगा और राष्ट्रपति जी से सम्मानित करवाने की पूरी कोशिश करूँगा। सचमुच तुममें प्रतिभा के साथ-साथ बहुत सच्चे मानवीय गुण हैं | दिवस ने कहा, मेरे मोबाईल के फटने की जानकारी जिसने दी उसने मेरे साथ कई पुलिसवालों को भी बचा लिया सम्मान तो उसे मिलना चाहिये | सांसद बोले तुम बहुत अच्छे इंसान हो कहाँ रहते हो | वह बोला," शहर की मलिन बस्ती के पीछे किन्नरों के मोहल्ले में | सासंद ने कहा," हम भी चलेगें आज वहाँ |
दिवस ने कहा," आपको अस्पताल में अपने बेटे और माँ के साथ होना चाहिये |" सासंद ने दिवस की तरफ अपनत्व की भावना से देखते हुये कहा बेटे के ही साथ बैठा हूँ इस समय।'' चलो बेटा अपना मोहल्ला घुमाओ | दिवस ने पूरी मलिन बस्ती की दयनीय हालत व किन्नर बस्ती की बुरी हालत दिखाई तो सांसद मदन सिंह जी की आँख भर आयी। वह बोले, दस दिन के अंदर आपकी समस्याओं का समाधान करने का वचन देता हूँ। उनके साथ के लोगों ने वहाँ का पूरा वीडियो बनाया और कहा,हम जल्द ही शुरूवात करेंगे | फिर सांसद ने सरोज किन्नर के हाथ की चाय पी और सब वहाँ से चले गये
सरोज किन्नर ने दिवस से कहा," तुम सही सलामत हो यही काफ़ी है |" सरोज किन्नर ने अख़बार पढ़ते हुये कहा, सुप्रीम कोर्ट में किन्नरों को पिछड़ी जाति में रखते हुये थर्ड जेण्डर घोषित किया है और समानता व आरक्षण का भरोसा जताया है | दिवस ने कहा," क्या हम सभी किन्नर पिछड़ी जाति के ही लोगों की संताने हैं ?" हम पिछड़े में क्यों उच्च में क्यों नहीं? आख़िर! हमारा तो कोई कसूर नहीं | समाज के शोषण और दीन- हीन मानसिकता के कारण हमारा यह हाल है कि हम काबिल होते हुये भी किसी बड़े पोस्ट तक नहीं पहुँच पाते और पहुँच भी जायें तो लोग हमें टिकने नहीं देते | हमें आरक्षण पर नहीं बल्कि खुद पर यकीन है | हमें आरक्षण नहीं सम्मान चाहिये और जब प्रधानमंत्री जी हर किसी को शौचालय की सुविधा दे रहे थे तो हम लोगों को अलग शौचालयों की सुविधा क्यों नहीं | हर जगह महिला और पुरूष,अरे! हम भी तो इंसान है | हमारा ख़्याल क्यों नहीं हम सब भी तो वोट देते हैं सरकारी टैक्स भी देते हैं | सरोज ने यह सब रिकॉर्ड कर लिया और व्हाट्सएप पर पूरी रिकार्डिंग शेयर कर दी |दिवस ने किन्नर सरोज से कहा,"माँई! आप ब्लॉक प्रमुख का चुनाव या विधायकी का चुनाव लड़िये इस बार | कम से कम अपने समाज का कुछ तो भला होगा |
सरोज बोली, पूरा प्रयास करूँगी कि चुनाव जीतूँ ।
वह बोली, दिवस मैंने तुमसे एक बात छिपाई है वह यह कि तुम्हारे पिताजी ने एक दिन मुझे पुराने शिव मंदिर में बुलाकर कहा कि तुम इस इलाके के किन्नरों की हेड हो देखना! दिवस कहीं भटक न जाये और उसके साथ कोई अनहोनी न घट जाये। तुम उसे अपने संरक्षण में ले लो बेटी और यह कुछ रूप़ये और यह सड़क की दुकान तुम रख लो। इसमें टैण्ट का पुराना सामान भरा है बेटी मना न करना । दिवस! तुम्हारे पिताजी बहुत धार्मिक जनप्रिय इंसान हैं। जब उन्होंने मुझे बेटी कहा तो मैं मना न कर सकी और उन्हीं के मना करने के कारण मैंने तुम्हें कुछ नहीं बताया। दिवस ने कहा, अच्छा किया बता दिया पर पिताजी का विश्वास क्यूँ तोड़ा ?
वह बोली, मैं तुम्हारी नज़रों का सामना नहीं कर पा रही थी और हर समय बचती फिर रही हूँ। इसलिए आज तुम्हें सब कुछ सच-सच बता दिया बस।यह सुन कर दिवस कुछ सोचते हुये अख़बार पलटने लगा तो देखा कि यह तो अस्पताल में एडमिट जैनी की तस्वीर है। वह उस तस्वीर को देखकर परेशान हो उठा।सोचने लगा पास में अब फोन भी नही कि उस से बात हो।उसने फैसला लिया कल सुबह ही शहर जाकर उससे मिल आऊँ।अभी यही सब सोच ही रहा था कि चार-पाँच किन्नर आकर बोले,भैया वॅाव क्या लग रहे हो।यह ब्लू जीन्स ब्लैक शर्ट..सच एक दम झकास।
दिवस हँस पड़ा और बोला, तुम लोग भी न , तुमको पसंद है तो तुम लोग ही पहन लो यह शर्ट और मुझे अपनी दे दो। वह बोले,आप ही पहनो आप पर जम रहा है।
उनमें से एक ने कहा, बुरा न मानो तो एक बात पूछूँ दिवस?
हाँ पूछो ? वह बोला कि कभी लेडीज ड्रेस पहनी आपने ? दिवस ने कहा, मर जाऊँ पर कभी न पहनूँ । और बोलो.....।
उनमें से किन्नर रूद्र बोला, दिवस भैया हम लोग किन्नर होने से परेशान है पर पास के गाँव में पूरी दस नवजात बेटी पैदा होते ही मार दीं लोगों ने।उस गाँव के लोग अपने घरों में बेटी का जन्म होते ही उसे ज़िंदा दफन कर देते हैं कारण उन्हें लगता है वह अपनी बेटियों की शादी के लिए एक भारी दहेज़ की रकम कहाँ से लाएंगे?
दिवस ने कहा, पुलिस पकड़ती नहीं ऐसे लोगों को? तो किन्नर रूद्र ने कहा,पकड़ भी जाते तो छूट जाते हैं । दिवस ने कहा, उस गाँव में कोई स्कूल, इंटर कॉलेज है क्या ? रुद्र बोला,स्कूल क्या कॉलेज भी है पर उसमें एक भी लड़की पढ़ने नहीं जाती । बहुत बुरा हाल है दिवस भैया कुछ गाँव आज भी बहुत पिछड़े हैं। पहले इन गाँवों में डकैतों का राज्य था अब डकैत नहीं रहे पर दहशत अभी भी कायम है। डरे सहमें गांव वाले आज भी बेटियों को कहीं पढ़ने नही भेजते और कम उम्र में अपनी बेटियों की शादी करना उनका स्वभाव बन चुका है। दिवस ने कहा, रूद्र मैं उस गाँव में चलना चाहूँगा चलो चलते हैं| दूसरे दिन रूद्र और दिवस उस गाँव की ओर रवाना हो गए | बहुत ही पेचीदे रास्तों से जूझते हुये वह दोनों उस गाँव में पहुंचे तो पहले कालेज की तरफ देखा तो टीचर लोग कॉलेज की छुट्टी करके बाहर आ रहे थे। दिवस ने उन्हें रोक कर उनसे कहा," हम कल इस गाँव में आप सभी के सहयोग से एक प्रोग्राम करना चाहते है जो बेटियों की शिक्षा पर आधारित है क्या आप सब सहयोग करेंगे ? वह बोले, आज इस गाँव में बारात आ रही है काफी हो हल्ला मचता है यहाँ, हम लोग कल बात करें | दिवस ने कहा, ठीक है | दिवस अन्दर गाँव में पहुंचा तो गाँव की गरीबी बीमार लोगों की लाचारी को देखकर वह बहुत दुखी हुआ । उसने देखा छोटी-छोटी बच्चियाँ मुँह ढांके खड़ी थीं जो दिवस को देखकर तेजी से अंदर चली गयीं | बड़ी मुश्किल से एक महिला ने बताया कि इस गाँव में लड़कियों की संख्या इतनी कम है कि अब लड़के वाले उल्टा दहेज़ देने की बात करते हैं और मना करने पर जबरन लड़की ले जाते हैं| दिवस ने कुछ सोचा फिर रूद्र से कहा, चलो चलते हैं । वह दोनों वापस बस्ती आ गये तो सरोज ने कहा," यह लो दिवस बेटा । दिवस ने कहा, इतना मंहगा फोन ? सरोज ने कहा, ज़रा कम बोलो! तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा। दिवस ऐसा मत बोलो आप। दिवस ने एकांत में बैठकर नेट से ढ़ेर सारी जानकारी निकाली और उसका पूरा वीडियो बनाया और फिर उसे पेनड्राइव में सेव किया |फिर जिस प्राईवेट स्कूल में दिवस ने पढ़ाया था |उस स्कूल के प्रधानाध्यापक के घर जाकर प्रोजेक्टर लेकर वापस लौट आता है तो रूद्र कहता है भैया यह क्या है ? दिवस कहता है इसे प्रोजेक्टर कहते हैं अब चलो उसी गाँव में । वहाँ खड़े अन्य चार पाँच किन्नर लोग बोले उस गाँव में तुम अकेले नहीं जाओगे हम सब चलते हैं | दिवस के हज़ार मना करने पर कोई न माना सभी उस गाँव में एक साथ दाखिल हुये | गाँव में गाने बज रहे थे शायद बारात आयी थी| दिवस ने कहा," चलो सब वहीं चलो |" देखा कि सब लोग नाच गा रहे दावत चल रही थीं | सभी आश्चर्य से एक साथ बोल पड़ते," अरे! हिजड़े और इस वक्त ?" लड़के वालों से एक व्यक्ति आकर बोला आप लोग सुबह आना | दिवस ने कहा, हम लोग नाचने गाने नेग मांगने नहीं आये हम आपको कुछ बताना चाहते हैं | यह जो जय माला का मंच बनाया है यहीं पर कुछ दिखाना है। आप पढ़े लिखे लगते हो मुझे एक फ़िल्म दिखानी है | फिर दिवस ने उन्हें काफी देर तक समझाया बताया तब कहीं जाकर वह मंच पर चढ़कर बोले," आप सभी लोग शांति से बैठ जायें और यह फ़िल्म देखें और शांति बनाये रखें | बात दूल्हे पक्ष ने कही थी तो सब चुप हो गये | चारों तरफ अंधेरा कर दिया गया और फिर दिवस ने पूरा सिस्टम लगाया और फ़िल्म शुरू हुई तो भारत माँ की फोटो दिखाई गयी फिर सीता माँ की राधा माँ की माता पार्वती की माँ काली की और फिर दिवस ने एक जय कारा लगवाया जय माता की सभी एक साथ बोले जय माता की और फिर फ़िल्म शुरू हुई एक बेटी हुई वह माँ बनी उसके एक बेटा हुआ बेटा माँ माँ कहते - कहते माँ की गोद में सो गया वर्षों बाद उसी बेटे के एक बेटी हुई तो उसने उस बेटी को पढ़ाया लिखाया तो वह देश की राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,डॉक्टर इंजीनियर वकील बनीं,पायलट,खिलाड़ी पुलिस अधिकारी बनीं और गाँव शहर,अपने माता पिता देश का नाम रोशन किया। और बाद में उस गाँव का नाम लिखकर आया कि ग्राम रजौरा की बेटियाँ भी इनमें से एक हो सकती हैं फिर उस वीडियों में एक छोटी बच्ची रोते हु़ये कहती है बाबू हमको भी पढ़ाओ । बड़ी होकर मैं भी सबका अच्छा ख्याल रखूंगी और दहेज़ मांगने वाले होंगे जेल के अंदर। दहेज के डर से मुझे न मारिये। बाबा अम्मा नमस्ते।
फ़िल्म ख़त्म हो जाती है पर चारों तरफ शांति छा जाती है | चारों तरफ बल्ब जल जाते हैं तो दिवस कहता है। गाँव रजौरा की बेटियाँ पढ़ेगीं तो यकीनन एक दिन यह 'शहर रजौरा' होगा यहाँ इतनी ही चकाचौंध होगी । तभी एक आदमी उठकर बोला," बेटी तो कर लूँ..पर खर्चा क्या तुम दोगे करोगे मदद?
दिवस ने कहा," मैं एक स्वंयसेवी संस्था रजिस्टर्ड करवाऊगां जिसमें आये दान से आप सभी की बेटियों की मदद की जायेगी और बीमार बुज़ुर्गों की | पर कल से गाँव की सब बेटियाँ स्कूल जायेंगी और उनके प्रति भी समानता रखी जायेगी | तभी रूद्र ने कहा, हम आपके गाँव में जल्द ही गौशाला बनायेगें। आप सभी बस मेरा साथ देना क्योंकि आज अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गौमूत्र की भी अच्छी-खासी मांग है और गौशाला से बहुत से लोगों को रोज़गार के अवसर भी मिलेंगे| इन सब बातों को सुनकर गाँव के लोग तालियाँ बजाने लगे | तभी उस बेटी के पिता ने कहा," आप भी दावत का खाना खा लो| तब दिवस ने कहा," हां बिलकुल खायेंगे| दिवस ने रूद्र से कहा,’बेटी की शादी है हमें उसे कुछ गिफ्ट देना चाहिये तभी रूद्र ने जेब से कुछ रूपये निकाल कर बेटी के पिता को देकर कहा,’यह हमारी तरफ से| भोलेनाथ उसे सदा सुखी रखें। इतना कहकर रूद्र कुछ कदम चला और मुड़कर देखा तो लहंगा पहने छोटी-छोटी लड़कियाँ मुस्कुराते हुये हाथ हिला कर उनका अभिवादन कर रही थीं | तो यह देख दिवस ने भी मुस्कुराते हुये हाथ हिलाया | सभी वापस लौटने लगे | रास्ते में सभी बोले, दिवस भैया आपने कमाल कर दिया अगर आप बड़े अफसर बन जाओ तो ढ़ेरों लोगों की किस्मत बदल जाये |
तभी रूद्र ने अपने सभी किन्नर साथियों से कहा की तुम सब गाड़ियों से निकल जाओ हम और दिवस भैया थोड़ा रुक कर आयेंगें। यह बात सुन सभी एक साथ बोल पड़े रुक कर क्यूँ ? तो रूद्र ने कहा की अरे! भाई "एक नंबर" आई है| यह बात सुनते ही | सभी हँसते हुये गाड़ियों मे बैठ कर आगें निकल गये | रूद्र ने गाड़ी एक किनारे लगा दी और लघु शंका के लिए सामने झाड़ियों की तरफ बढ़ गया| वहां चारों तरफ घुप अंधेरा और बड़ी बड़ी कगारें और सांपो की बामी बनी हुयीं थी| कुछ देर बाद वह चारों ओर इन्हीं सापों की बामियों को देखता हुआ वहां से लौट रहा था कि उसने मोबाइल की रोशनी में सामने जो देखा उसे देख उसका हलक सूख गया | वह दबे पाँव पास पहुंचा तो देखता है कि ब्लेक कोबरा ने दिवस को डस लिया है और दिवस बेहोश पड़ा है।
रूद्र ने दिवस को बाइक पर बिठाया और तेज़ी से बाइक लेकर अस्पताल की ओर निकल गया| जब वह अस्पताल जाने वाले रास्ते की ओर मुड़ा तो सामने से आ रहे उसके एक दोस्त ने इशारे से पुछा रूद्र क्या हुआ? तो रूद्र ने उसे अनसुना कर दिया और सीधे अस्पताल में जाकर दिवस को एडमिट करा दिया | कुछ देर बाद डाक्टर ने चैकअप किया तो बताया कि काटा तो कोबरा ने ही है पर यह हादसा हुआ कहाँ? रूद्र ने कहा, डॉक्टर साहब हम ग्राम रजौरा से लौट रहे थे| डॉक्टर ने कहा,वह इलाका कोबरा के लिये ही जाना जाता है पर हैरत है कि इतने घातक ज़हर का इनपर कोई असर नहीं है | फर्स्ट एड के बाद दिवस चुपचाप अस्पताल से बाहर आया तो रूद्र पीछे से आकर बोला," यह कैसे हो सकता है?"
आप तो देश दुनिया में अनोखे इंसान के नाम से फेमस हो सकते हैं | दिवस ने कहा , फेमस होना हो तो अपने अच्छे कर्मों से होना चाहिये, यूँ तो नहीं। और हाँ रूद्र यह बात किसी और से कभी कहना मत |रूद्र ने कहा, ठीक है भाई | तभी सामने से किन्नर उसमान, किन्नर जगत, किन्नर सरोज, किन्नर प्रीत सभी ऑटो से उतर कर भागते हुये आये और बोले," क्या हुआ तुम दोनों को ? रूद्र बोला," वो मेरा पेट थोड़ा खराब था सो चेकअप कराने आया था | यह सुनकर किन्नर उसमान ने कहा, हाँ अभी रजौरा में भी इसे "एक नम्बर" आयी थी अब शायद गया दो नम्बर होगा | यह सुन सभी हंस पड़े |
सभी बस्ती पहुंचे तो किन्नर झैलम भागते हुये आयी और बोली सरोज माई ," बुढ़वा गया ऊपर -अभी |" इतना सुनते ही सभी लोग बस्ती के अंतिम छोर पर बनी एक कच्ची मडैया यानि कच्ची झोपड़ी में टूटी खटिया पर पड़े एक जीर्ण-शीर्ण शव के पास जाकर एकत्र हुये | दिवस उस घर की हालत देख रो पड़ा कि मैं कई बार इसी घर से निकला पर कभी न सोचा था कि इसमें कोई इस हालत में तन्हा और बीमार व्यक्ति भी रहता होगा | दिवस उस बुज़ुर्ग को छूने चला कि तभी सरोज चिल्ला पड़ती है उसके पास मत जाओ और अपने आसूँ भी पोछ लो | हम लोग अपने किसी भी साथी के मरने पर इस तरह रोते नहीं समझे |यह सुनकर सभी जोर से हंस पड़े | दिवस ने देखा की वहाँ पूरी बस्ती के किन्नर इकट्ठा हैं | ताज्जुब है कि कोई रो नहीं रहा उल्टा सभी खुश हैं कि भोलेनाथ तूने खूब सुनी | दिवस पढ़ा- लिखा व्यक्ति था जो किन्नरों की रिवाजों से पूरी तरह से अनजान था | वह बोला, शर्म नहीं आती आपको कोई बुज़ुर्ग यूँ अकेला भूख प्यास से तड़पकर मर गया और आप सब हँस रहे हो | कम से कम उस मृत व्यक्ति के अंतिम दर्शन तो मुझे कर लेने दो | दिवस की यह बात सुनकर सरोज ने गुस्से से भर कर कहा, रूद्र तू इसे यहाँ से ले जा वरना अंतिम विधि में यह शोर मचायेगा। तभी एक दो उम्रदराज धाकड़ किन्नर आयीं और बोली, ऐ हैड़ी! सरोज तू इस नये नवेले से कुछ न बोल| चलो इसे में ही बता देती हूँ | सरोज ने हाथ जोड़कर कहा , मैं उसे सब समझा दूंगी आप उसे कुछ मत कहो जीजी | वह पान थूंकते हुयें बोली," तू दलाल है इसके बाप की पर मैं नहीं, समझी| इस तरह क्या देख रही हो| मुझे सब ख़बर रहती है और फिर दिवस की ओर देखते हुई बोली अरे! नये नवेले तू मेरी बात ध्यान से सुन की तू एक हिजड़ा है और यही है तेरी असली पहचान | बाहर की दुनिया सिर्फ धंधा मात्र है| जहाँ से हम लोग इस पापी पेट के लिए दो रोटी कमाते हैं| पैसा ही अपनी माँ और पैसा ही बाप.. सुन रहा है तू। हम लोगों में मुर्दे पर रोनाधोना नहीं होता,यह बात अपनी अक्ल में डाल ले तू| दिवस बोला, पर क्यों? क्या हमारे सीने में दिल नहीं ?तो वह दिवस का कॉलर पकड़ कर बोली, हाँ नहीं होता दिल, जानना चाहता है कि हिजड़ा किसे कहते हैं तो सुनो! जिसे किसी की मोहब्बत नसीब नहीं, उसे हिजड़ा कहते हैं और जिनका रसूखदार वासना के अंधे लोग हम लोगों का जबरन शारीरिक और मानसिक शोषण करते हैं, उसे हिजड़ा कहते हैं| तू इसी भाषा में समझ ले तो अच्छा दूसरी भाषा में तू फिर सह नहीं पायेगा | यह सुनकर दिवस ने कहा कि इन सब बातों का रोने से क्या तात्पर्य तो उसने कहा हम छटपटाते फिरते हैं कि कैसे मन पर काबू रखें| हम भी इंसान है और हमारी भी इच्छायें है जो घुट रही हैं| कभी कुछ जलता है मन मे कभी कुछ बुझता है, न प्यार न इज्ज़त तो इस घुटनभरी जिंदगी से हम लोग हर पल मुक्ति पाना चाहते हैं और इसीलिये मरने पर खुश होते हैं कि कम से कम इस श्रापित जीवन से मुक्ति तो मिली| इसलिए तुम भी रोते हुये उसे मत छुओ ताकि वो अगले जन्म में हिजड़े के रूप में जन्म न ले | जब रात गहरा जायेगी तब शवयात्रा निकालेगें और मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ कि अब तू सिर्फ देखेगा, बोलेगा नहीं समझे| तभी दूसरी धाकड़ किन्नर बोली," इस नये नवेला चिकने का कौनूँ भरोसा नहीं अच्छा तो यही होगा कि इसके मुंह पर टेप लगाओ रे ! तभी किन्नर बिजली, बिजली की रफ़्तार से आयी और तुरन्त उसने दिवस के मुँह पर टेप लगा दिया| फिर शव के साथ अंतिम संस्कार के रिवाजों को देखकर वह दंग रह गया| रात में अन्य नये किन्नरों के द्वारा उसके साथ जो दुर्व्यवहार किया गया और इस भंयकर काली रात में उसने किन्नर होने के भयंकर सच को सामने देखा और महसूस कर लिया था | सारी वास्तविकता जानकर वह शांत हो गया पर उसका दिमाग चकरा रहा था|
सुबह कब की हो चुकी थी| सरोज ने उसके मुंह पर लगी पट्टी भी हटा दी थी पर वह एक दम ख़ामोश उसी जगह बैठा रहा और फिर चुपचाप रजौरा गाँव की तरफ पैदल ही निकल गया | रूद्र ने देखा कि वह उसी ज़हरीले सांपों वाले गांव में जा रहा था| यह देखकर रूद्र भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। उसने देखा कि दिवस गांव में दाखिल होकर गिर पड़ता है | यह देख रूद्र दौड़कर आता हैं तो देखता कि दिवस बेहोश है| वह भागता हुआ गाँव में अंदर जाता हैं और वहाँ से आते हुये ग्रामवासी से कहता है भाई थोड़ा पानी मिलेगा| ग्रामीण ने उत्तर दिया कि पानी के लिए पूरे गाँव में केवल दो नल हैं जिसमें एक खराब पड़ा हैं और दूसरे पर भीड़ लगी होगी| मैं रिश्तेदारी में जा रहा हूँ और यह मेरा गंगा जल है। जो मैं किसी हालत में नहीं दूंगा कारण पल्लीपार गाँव यज्ञ हो रहा है उसके लिये ज़रूरी है| रूद्र बोला, ज़रूरी तो इस वक्त भैया की जान है। तुम सारे पैसे रख लो पर थोड़ा गंगा जल दे दो। वो उधर मेरा भाई बेहोश पड़ा है | वह बोला नहीं दे सकता भाई। पूजा पाठ की चीज है| यह सब देख उसने मोबाइल निकाल कर सरोज को फोन मिलाया कि रजौरा में बाईक से किसी को भेज दो | वह भागता हुआ गाँव में जाता है देखा कि नल पर लम्बी लाईन लगी है वहाँ पानी के कारण औरतें एक दूसरे से लड़ रहीं थी इस धक्का-मुक्की में किसी ने भी उसे पानी भरने नहीं दिया | यह सब देख वह वापस लौटा और वह भागते हांपते हुये दिवस के पास आया और दिवस को देखकर चीख पड़ा। उस ने देखा दिवस के हांथ - पाँव पर दो-तीन कोबरा काटकर जा रहे थे | वह सिर पीट कर बुरी तरह रो पड़ा कि अब दिवस नहीं बचेगा। वह दिवस को गोद में उठाकर लगातार भागता रहा रास्ते में बाईक से किन्नर संदेश आ रहा था | रूद्र घबराहट में कुछ बता न सका। उसने तुरन्त दिवस को बिठाया पीछे खुद बैठा और बोला सीधे अस्पताल चलो | रूद्र ने कहा, तुम पीछे बैठो बाईक मैं चलाता हूँ | इतनी रफ़्तार में बाईक लायाा कि लोग दंग रह गये और अस्पताल के सामने जैसे ही बाईक रोकी तो पीछे से दिवस ने कहा रूद्र," कोई अंदर ऐडमिट है क्या?"
दिवस को जिंदा देख रूद्र चकराकर बेहोश हो गया | दिवस ने उसे गोद में उठाया और अस्पताल मे अंदर ले गया। डाक्टर ने पानी का एक छींटा मारा कि रूद्र उठकर बोला," दिवस की आत्मा|" दिवस बोला," मेरी आत्मा से क्या मतलब है तुम्हारा? पीछे संदेश खड़ा था तो रूद्र ने कहा," तुम जाओ हम आते हैं |
बोला अभी दिवस बेहोश था। रूद्र मन ही मन बोला पता नहीं ये क्या माज़रा है? रूद्र ने पूरी बात सुनाई और दिवस के गले, हाँथ और पाँव में कोबरा के काटे के निशान दिखाये | वह बोला," दिवस भैया आप चमत्कारी इंसान हो। साक्षात् नागदेवता के अवतार हो |" दिवस बोला," शांत रहो। तभी डाक्टर बोले," तुम दोनों को पागलपन का दौरा पड़ा है क्या.. करेन्ट दूँ? यह सुनते ही रूद्र भागा और गेट के बाहर आ खड़ा हुआ | दिवस ने कहा," रात का एक- एक सीन दिमाग में घूम रहा था | यही सोचते - सोचते चक्कर आ गया बेहोश हो गया। सबकी आवाजें बातें दिमाग में गूंजती रहती हैं | रूद्र ने कहा," ताज्जुब है कोबरा के ज़हर से कुछ नहीं होता और बातों से बेहोश ?" दिवस ने कहा," कुछ सच कोबरा से ज़्यादा ज़हरीले होते हैं मेरे भाई |" दिवस ने कहा," मैं कहीं जा रहा हूँ तुम अपना ख्याल रखना | रूद्र ने कहा," मैं तो अब मरने के बाद ही आपसे दूर होऊँगा। उससे पहले तो जहाँ चलो, साथ चलूंगा |
दिवस ने कहा," दिल्ली ऐम्स जा रहा हूँ जहाँ डा.एस.एस प्रसाद जो मेरे फ़ौजी भाई के दोस्त हैं उनसे मिलना है |"
रूद्र," हाँ, डा.प्रसाद का नाम फेमस है |"
दिवस और रूद्र दोनों डा.प्रसाद से मिलते हैं तो वह उन्हें अपने केबिन में ले जाते हैं तो दिवस उनसे कहता है कि आप मेरा ब्लड ऐण्टीवैनम बनाने के लिये ले लीजिये जिससे कोबरा जैसे भंयकर सांपों के डसे जा चुके पीड़ित मरीज़ों की रक्षा हो सके | डा. प्रसाद कहते हैं कि आप में कोबरा जैसे ज़हरीले सांपों का ज़हर झेल लेने पचा लेने की क्षमता हो तब। दिवस कहता है कि आप मेरा ब्लड टेस्ट कीजिये | डा.अपने एक मित्र डा. डिसूजा को पूरी बात बताकर केबिन में बुलाते हैं | डा.डिसूजा कुछ देर बाद ऐम्बुलेंस लेकर पहुँचती है उसी ऐम्बुलेंस में पूरी तैयारी के बाद दिवस को कोबरे के ज़हर का इंजेक्शन लगाया जाता है दिवस को कुछ नहीं होता तो दिवस की ज़िद पर दूसरे बहुत ज़हरीले सांप ब्लैक मांबा का ज़हर इंजेक्ट कर दिया जाता है पर वह उसे भी झेल जाता है | यह देख डा. डिसूजा हैरान रह जाती हैं वह कहती हैं आपका ब्लड तो इस तरह के पीड़ित मरीज़ो के लिये अमृत सिद्ध होगा |आपके ब्लड से ऐण्टीवैनम बन सकेगा जो हज़ारों सर्पदंश पीड़ितों की जान बचा सकता है | हम आपका कुछ ब्लड सुरक्षित कर ले रहे हैं पर आप एक हप्ते बाद फिर से आइये प्लीज़। वह दिवस से हाथ मिलाकर बोलीं वाव!" दि ग्रेट दिवस" |
दिवस ने डा.प्रसाद और अन्य डाक्टरों की पूरी टीम से हाथ जोड़कर कहा," आप लोगों से निवेदन है कि यह बात मीडिया से मत कहना प्लीज़ अपने तक ही रखिये मुझे हो हल्ला पसंद नहीं| मैं नि:स्वार्थ जनसेवा करना चाहता हूँ |
डा. प्रसाद बोले," यह सब आपने जाना कैसे ?"
पास में खड़े रूद्र ने कहा," सर मैं बताता हूँ फिर उसने पूरी कहानी सुना दी | डा. बोले, ग्रेट पर मुझे डर लगा सचमुच | दिवस ने कहा,आप यह बात अशिन भैया को मत कहना प्लीज़ |
डा.प्रसाद बोले," वादा करता हूँ नहीं बताऊंगा पर समय आने पर बताऊंगा ज़रूर |
तभी डा. साहब का फोन बजा वह सॉरी कहकर वहाँ से चले गये और चलते- चलते बोले कि घर रूक कर जाना | दिवस ने कहा, नहीं मुझे अभी वापस जाना है |
रूद्र और दिवस रेलवे स्टेशन पर बैठे आपस में बातचीत कर रहे थे कि सामने जैनीफर अपने कुछ दोस्तों के साथ निकल रही थी कि उसने पलट के देखा तो दिवस उसे देखता हुआ आगें बढ़ गया | फिर वह दोबारा पलटी और भागते हुये आयी और बोली, मुझे अस्पताल में अकेला छोड़ आये। क्या तुम में मानवता नाम की कोई चीज़ नहीं है ?
दिवस ने कहा, मॉफ कर दो प्लीज़ |
जैनी ने कहा," हम लोग दिल्ली घूमने आये हैं चलो अपना न्यू नम्बर दो |"
दिवस ने उसे अपना नम्बर दे दिया।
सामने ट्रेन आती देख दिवस व रूद्र कहते हैं अपनी वाली ट्रेन भी इसके बाद आ रही होगी चलो आगें चलते हैं |
जैनीफर उसे देखती हुई निकल जाती है |
कुछ देर बाद ट्रेन आती है दोनों अपनी सीट पर बैठ जाते हैं और अख़बार पढ़ने लगते हैं |
दिवस कहता है कि मेरा मन नहीं हो रहा बस्ती जाने का | रूद्र कहता है अपनी दुनिया वहीं है वरना और कहाँ जायेंगें |
दिवस भारी मन से बस्ती में दाखिल होता है |वह देखता कि खम्भे पर लटकी मरकरी की रोशनी में एक गाय कूड़े में पॉलीथिन खा रही है तो दिवस ने दौड़कर गाय के मुँह से पॉलीथीन खींच ली | देखा उस गाय की आँख का मांस लटका हुआ था मानो उसकी आँख गिरी जा रही हो | भूखी गाय की यह दुर्दशा देख उसका दिल अंदर ही अंदर रो पड़ा |उसे याद आया बचपन में माँ गौकथा सुनने ले जाया करती थी | ना जाने कितने ऋषि -मुनि ज्ञानी-ध्यानियों ने गौ माता की महिमा गायी है | जब मैं छोटा था तो पिताजी काशी घुमाने ले गये थे जहाँ हमने और माताजी ने माँ गंगा सफाई अभियान में माँ गंगा की सांझ की आरती के मनोरम दृश्य दिखाए थे | वहाँ पर भी गौ कथा हो रही थी | गौ जो इतनी पूज्यनीय है समुन्द्रमंथन से जो निकली दिव्यशक्ति है उनकी यह हालत |
तभी उसने देखा कि उस पीड़ित गाय को नज़रअंदाज़ करते हुए कई बड़े लोग सरपट निकल गये | तभी वहाँ से एक बच्चा निकला और बोला, मैने एक चोटी वाले पंडित जी से कहा कि इस गाय का इलाज करवा दो तो वह बोले, मुझे गौकथा करने जाना है। वैसे भी बहुत देर हो चुकी कह कर कार में बैठकर चले गये | दिवस ने कहा, बेटा ऐसे नहीं कहते वो पंडित जी के वेश में कोई पाखण्ड़ी रहा होगा। दिवस का मन व्याकुल हो उठा वह बोला," रूद्र इंतज़ाम करो अभी गौ माता को ले जाना है वरना गौ माता की आँख खराब हो जायेगी | रूद्र ने कहा, रूको भैया मैं पता करता हूँ | रूद्र ने कुछ लोगों को फोन किया तो पशुचिकित्सालय का पता मिल गया | रूद्र ने कहा, भैया सरोज मांई का फोन आ रहा है बोल रही हैं कि मैं खाना नहीं खाऊँगी जब तक तुम लोग घर नही आओगे |
दिवस परेशान था कि यह किन्नर बस्ती मेरे लिए नयी जगह है और किसी से पहिचान भी नहीं क्या करें? पर उसी दुनियां में लौटना ही पड़ेगा जिधर मैं जाना नहीं चाहता | रूद्र ने कहा," दिवस भैया अभी यह सब सोचने का सही समय नही है चलो माँई को कॉल करें कि गौ माता की कुछ मदद हो सके। दिवस ने कहा तुम ठीक कहते हो और उसने सरोज माँई को फोन पर कहा कि माँई! दो चार लोगों को बस्ती की लास्ट मरकरी जहाँ लगी है वहाँ भेज दो | वह बोली,क्या हुआ, अच्छा भेजती हूँ | कुछ देर में सब के सब वहाँ पहुंच गये और पीछे मलिन बस्ती से भी लोग आ गये। वहाँ घूम रहे एक पुलिस वाले ने भी पूरी मदद कर दी | गौमाता को चिकित्सालय ले जाया गया और उनका इलाज शुरू हुआ तो डाक्टर ने कहा, हमारे यहां की पशुचिकित्सा प्रणाली बिल्कुल लचर है | ऑप्रेरशन से सही होगा। सर्जन कर सकेगा बात आँख की है | हम लोग तो खुरपका मुंहपका का साधारण इलाज करते हैं बस। दिवस ने गुस्से में कहा," इंसानों ने अपने इलाज के लिये इतने बड़े-बड़े अस्पताल खोल लिये हर तरह की सुविधा कर ली, अपने लिये लाखों सर्जन तैयार कर लिये और इनकी चिन्ता नहीं जिनका दूध पी कर हम बड़े हुये। धिक्कार है! ऐसी स्वार्थी व्यवस्था पर | दिवस ने डाक्टर से कहा,"मेरी आँख ले लो मेरा मांस काट कर लगा लो पर इन्हें बचाओ डाक्टर कुछ करो आप | डाक्टर ने कहा, दिल्ली मुम्बई के कुछ डाक्टर हैं जो सर्जरी कर सकते हैं शायद।
इतनी भीड़ और हल्ला देख मीडिया आ गयी तो दिवस ने कहा," कि देश के नेता अगर अपने घुटने, कोहनी, किडनी के इलाज व सर्जरी के लिये विदेश जा सकते हैं तो यह गौमाता भी विदेश जायेगीं। आप इनकी आँख ठीक करवाओ वरना हम लोग चुप नहीं रहेंगें | कितने ही मवेशी अच्छे इलाज की कमी से दम तोड़ देते हैं | हम लोग स्वार्थवश किस हद तक गिर चुके हैं | सरकार ने कितना रोका कि पॉलीथीन सड़कों पर मत फेंकों प्रयोग मत करो पर सुनते ही नहीं भूख के कारण आवारा पशु इन्हें भारी मात्रा में खाकर तड़प-तड़प के मरते हैं | तीस-तीस किलो पॉलीथीन तक निकली है एक गाय के पेट से | पत्रकार ने कहा, आपकी बात पूरा देश सुन रहा है। पत्रकारों के जाने के बाद दिवस ने देखा गाय कराह रही थी | कुछ देर बाद पत्रकार का फ़ोन आया कि दिल्ली के डाक्टरों की पूरी टीम आ रही है फ्लाइट से चिंता न करो और पूरा देश आपको सलाम कर रहा है | लम्बे इंतजार के बाद डाक्टरों की टीम आयी और इलाज शुरू हुआ |
दो घण्टे बाद खुशखबरी मिली की इनकी आँख बच गयी है अब सब नॉर्मल है | कुछ दिनों इसे यहीं रखेगें डाक्टरों की निगरानी में जब तक यह पूरी तरह ठीक न हो जाये |
सभी किन्नर खुश थे | दिवस ने सभी डाक्टरों और मीडिया को धन्यवाद दिया और कहा," हमारी गौशाला की शुरूवात इन्हीं गौमाता से होगी। दिवस ने उस गौमाता के पाँव छूकर आशीर्वाद लिया | हमारी गौशाला में जितनी भी बेसहारा गायें हैं वो सब भी रहेंगी क्योंकि पता नहीं वो दिन कब आयेगा कि आधुनिक गौचिकित्सालय बनेगें |इसलिये हम सब मिलकर उनकी सुरक्षा करेंगे |
अख़बारों में छपा कि गौमाता की रक्षा में किन्नर समाज का योग्यदान सराहनीय रहा|
दिवस ने कहा," रजौरा गांव में गौमाता को रखना घातक हो सकता है क्योंकि वहाँ कोबरा जैसे भयंकर सांपों का डेरा है |गौशाला यहीं पशुचिकित्सालय के आस-पास ही बनायेगें जहां इलाज में देरी न हो।
तभी कुछ पत्रकार आकर बोले, यहाँ के सांसद का धन्यवाद नहीं करोगे जिनके कारण यह सब हुआ दिल्ली से अरजेंट टीम आयी।
दिवस को याद आया अच्छा यह तो वही सांसद है | दिवस ने हाथ जोड़कर उनका व डाक्टरों की पूरी टीम का धन्यवाद किया |
पत्रकार ने पूछा और कुछ कहना चाहते हो?तो दिवस ने कहा," गौऐम्बुलेंस की व्यवस्था भी हो जाए तो हम लोग अपने बीमार घायल बेहोश मवेशियों को सुविधा से पशुचिकित्सालय पहुंचा सकें कारण जान सब की क़ीमती है चाहे इंसान हो या जानवर।
मैं आदरणीय सांसद जी से विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि यहाँ इतना बड़ा सर्वजीवहिताय चिकित्सालय हो जिसमें प्रत्येक मवेशी जीव जन्तु पशु पक्षियों का इलाज आधुनिक तरीकों से हो जिससे देश का पशु-पक्षी, जीव-जन्तुधन विलुप्त न हो सके | इतना कहकर दिवस पत्रकारों को नमस्कार करता हुआ वहाँ से निकल गया।
सरोज और रूद्र ,दिवस को बस्ती ले गये जहां ज़बरदस्ती दिवस को थोड़ा खाना खिलाया और फिर सब सो गए।
सुबह हुई तो सभी ने स्नान करके शिवरात्रि के महापर्व पर भगवान शिव की पूजा की |
सरोज ने कहा, बेटा कल की घटना और तेरे मन की करूँणा देख हम सभी का मन बदल गया है एकदम और हम सभी ने फैसला किया है कि अब से हम सब मिलकर गौशाला चलायेगें | दिवस ने कहा, "सचमुच"।
सरोज ने कहा," असली किन्नर हूँ बनावटी नहीं जो कह दिया सो कह दिया"।
सरोज ने कहा," हम सभी के पास जितना भी धन है सब मिलजुल कर चलो शुरुआत करते हैं | दिवस के पास भी जो अवार्ड का कुछ बचा थोड़ा पैसा था सब मिलाकर उसने सरोज को बता दिया और फिर गौशाला के लिये जगह तलाशने लगे |एक दिन श्रजित जी इन लोगों को रास्ते में मिले और बोले," मेरा वह प्लॉट खाली पड़ा है आप लोग इसे स्वीकार करें| यह मैं गौ माता के लिये दान करता हूँ | पिता को सामने देख दिवस ने दोनों हाथों से उनके पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया |पीछे से गाँव के कुछ धार्मिक लोग भी आ गये और बोले, जो भी बन पड़ेगा पूरा सहयोग करेंगे| तभी वहाँ पर कुछ व्यापारी भी आ गये और फिर आस -पास के गाँव के सभी युवा लोगों के सहयोग से वहां बहुत भव्य गौशाला का निर्माण शुरू हुआ।
वह सब बस्ती में खुशी-खुशी लौट रहे थे कि बस्ती वाले मकान के बाहर वही दो धाकड़ किन्नर खड़े थे जिन्होंने ढेरसारा सोना पहन रखा था और जिनके साथ उन्हीं जैसे धाकड़ किन्नरों का एक गुट था । वह आँखे लाल करके गालियाँ देकर बोलीं," बड़ा शौक चढ़ा है नये काम का अभी के अभी निकलो इस बस्ती से ।आज से तुम लोग अलग और हम सब अलग ।अब भाग जाओ वरना खून बहेगा।
रूद्र उन धाकड़ किन्नर से बोला," यह ठीक नहीं कर रही तुम अम्मा"। सरोज कुछ सोचकर बोली, सब चुप रहो कहकर ज़ोरदार आवाज़ में बोली जिसको शादी ब्याह में नेग लेना हो या वही ज़िंदगी चाहिये तो उनकी तरफ जाओ और जिन्हें मेहनत की खानी हो वह मेरे साथ आओ। पीछे खड़े कुछ किन्नर उनकी तरफ चले गये। सरोज रूद्र और आठ लोगों को लेकर वह सब गौशाला पहुंचे और वहीं जाकर पुरानी दुकान जो श्रजित जी ने दान दी थी जिसमें टैन्ट का सामान भरा था उसी दुकान को खोलकर सभी उसी दुकान में फ़र्श बिछाकर सो गये।
सुबह -सुबह जैनीफर गौशाला पहुंची और सरोज से जाकर कहा," मुझे दिवस से शादी करनी है , वरना मैं मर जाऊँगीं"।
सरोज ने दिवस से जैनिफर की बात की तो दिवस ने कहा, नहीं..नही कर सकता शादी। मेरी मजबूरी है ।और मज़बूरी यह थी के एक तो वो थर्ड जेंडर था दूसरी यह के उसे पता चल चुका था कि उसका ब्लड कितना ज़हर पचा सकता है या कितना ज़हरीला है। गलती से इसके एक नाखून भी लग गया तो इसकी जान चली जायेगी। ये सोचते हुये उसने जैनीफर को मना कर दिया ।
दिवस के इनकार पर जैनिफर रो पड़ी ।
दिवस अभी किसी सोच में गुम था तभी किन्नर रोशनी और उसके साथ के सभी किन्नर आकर दिवस के गले लग गये और कहा हम सब भी गौशाला देखने आये हैं | दिवस ने पूछा, तुम्हारा पार्लर कैसा चल रहा रोशनी ? वह बोली," सब तुम्हारी कृपा है मेरे गौलोचन जी महाराज"।
दिवस ने पूछा," क्या मतलब" ?
वह बोली जो गौमाता कि नयन की रक्षा करे वह गौलोचन और तुम महाराज इसलिये कि बहुत राज़ छिपाये रहते हो दिल के अंदर।सारे राज खोल दो और जैनिफर जैसी सुंदर लड़की को अपना लो।कुछ नही तो दोस्त बन कर रहना,क्या करना है। दिवस ने कहा, जैनी दोस्त तो हम हैं ही हमारी,हाँ हम उस से शादी नही कर सकते के हमारी कुछ निजी मजबूरियां हैं और सब से बड़ी बात तो यह के मैं अपने स्वार्थ के लिये किसी के जज़्बात से तो नही खेल सकता।
जैनी कुछ देर गुस्सा रही फिर सब साथ में घुलमिल गये।
दिवस और जैनी बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे और हर पल साथ रहते थे | रूद्र ने उस दुकान में भरे टेण्ट के सामान से छोटा सा टैण्टहाउस खोल लिया था।
कुछ महीने बीते दिवस की बीएससी तृतीय वर्ष की परीक्षा सामने थी सो वह पढ़ाई में व्यस्त था | उसे अपने फ़ौजी भाई की तमन्ना पूरी करनी थी कि वह प्रथम श्रेणी में पास हो।
रात में पुलिस वाला सीटी बजाता हुआ गस्त पर निकलता तो दिवस को उसी दुकान में पढ़ते देख वह दिवस की तरफ स्नेह से मुस्कुराता हुआ निकल जाता दिवस कहता उस दिन गौ माता को अस्पताल पहुचाने में आपने जो सहयोग किया उसके लिये आपका धन्यवाद।वह मुस्कुराते हुये निकल गया |
इधर अख़बार में आया कि सरकार ने नोटबंदी कर दी है कुछ दिन की परेशानी है । सभी बोले, भ्रष्टाचार मिट सकता है तो हम सब सहयोग करेंगे सरकार का साथ देगें | अख़बार पलटा तो ख़बर थी,देश की सीमा पर आतंकी हमले नहीं रूके और तेरह जवान शहीद । यह सब पढ़कर दिवस ने अख़बार सीने से लगाकर कहा," उन सभी की आत्मा को शांति देना शिवजी और फिर पढ़ायी में लग गया।
गौशाला का निर्माण सभी के सहयोग से काफी हद तक पूरा हो चुका था । गौशाला में अभी ग्यारह गायें थीं | सबकुछ अच्छा चल रहा था।
एक दिन दिल्ली से डाक्टर प्रसाद का फोन आया कि दिल्ली आ जाओ तुम्हारे ब्लड से हज़ारो ज़िंदगियाँ बच सकती हैं।
वह बोला," मैं जल्द आ रहा हूँ"।
तभी रूद्र दौड़ते हुये आया और बोला, दिवस भैया ! रजौरा गाँव में पाँच बच्चे सर्पदंश से अस्पताल में भर्ती हैं । दिवस ने कहा, चलो चलकर देख आते हैं | वह दो कदम ही आगें बढ़े कि एक अत्यंत गरीब बुज़ुर्ग बोला, रजौरा गांव में तुम लोग ने कुछ नही किया वादा तो बहुत बड़ा-बड़ा किये थे । दिवस ने कहा, जल्द ही एक फाउण्डेशन खोलूंगा सबकी मदद होगी | वह गरीब मज़दूर रोते हुये बोला, मुझे मेरी गाय वापस दे दो | दिवस ने कहा, कल आये थे तो कह रहे थे कि मेरी गाय भूखी है रख लो,आज कहते हो वापस दे दो,क्यों..क्या हुआ?
वह गरीब बोला, एक ही बेटी है कल शाम में बारात आनी है किसी ने मेरे घर चोरी कर ली कुछ नहीं छोड़ा घर में एक गेहूँ का दाना तक नहीं | मेरी बिटिया को चोरों ने बहुत मारा है वह मर न जाये | कल मुझ गरीब की इज्ज़त लुट जायेगी लला बेटा मेरी इज्ज़त बचा लो | यह गाय मुझे बेचकर जो पैसा मिलेगा उससे मेरी इज्ज़त बच जायेगी | दिवस बोला ,इज्ज़त बच जायेगी पर गौ माता की जान चली जायेगी। यह सब सुनकर "रूद्र बोला,"किसे बेचोगे ?
वह बोला जो अच्छे पैसे देगा ।
रूद्र बोला," सीधे बोलो कसाई को।
वह गरीब बोला," यह गाय नहीं मेरी आत्मा है। बेटी का बाप अपनी आत्मा बेचेगा क्या करें वो फूट-फूट रो पड़ा ।
दिवस ने कहा,"तुम्हारे गांव का विधायक होगा | कहाँ रहता हैं घर बताओ।
वह गरीब बोला,विधायक के ही खेतों में मज़दूरी करते हैं बिटवा, पर तीन चार महीने से एक भी रूपया नहीं दिया ।
वह बहुत ही घटिया इंसान है |
दिवस और रूद्र किसी तरह विधायक से मिलने पहुंचे तो गार्ड ने उनसे मिलाने से साफ मना कर दिया कहा साहब बिज़ी हैं।
दिवस ने रूद्र से कहा कल शाम शादी है| हमें आज रात तक ही पैसों का इंतजाम करना होगा। यही सब बात कर ही रहे थे कि रोशनी का फोन आ गया उसने बताया है उसने कार ले ली है । ऱास्ते में शॉपिंग करते हुये तुम सब से मिलने आ रही हूँ | दिवस बोला, आ जाओ जितना भी कैश हो लेती आना। रोशनी ने कहा, मैं जल्द पहुँचती हूँ । रोशनी ने सोचा, सभी के लिये यहीं से लहंगा , साड़ी, मेकअप किट लेती चलूं इतना तो सबका हक बनता ही है। फिर सोची पता नहीं दिवस ने कैश क्यूँ मंगवाया है तो चलो जो है पूरा कैश ही लेकर चलती हूँ ।
इधर दिवस वापस आकर सभी को उस गरीब की पूरी बात बतायी और पूछा हम सब लोगों के पास कुल मिलाकर कितना कैश होगा? सरोज ने कहा देशभर में नोटबंदी हुई है । कैश तो ज़्यादा नहीं है घर में और बैंक से दो हज़ार ही निकल रहा वो भी लम्बी लाईन लगाने के बाद | कैश तो नहीं होगा ज़्यादा | यह कहते -कहते सरोज खांसते हुऐ बेहोश हो जाती है | सभी आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाते हैं | वहाँ पता चलता है कि अगर आज रात ही उनकी पथरी का ऑप्रेशन न हुआ तो बचने के चांस बहुत कम हैं | सरोज को बेहोश देख दिवस को ऐसा लगा मानो उसकी माँ लेटी हैं | डाक्टर ने सभी को वहाँ से जाने को कहा कि यहाँ से भीड़ हटाओ पेसेंट को आराम करने दो और पच्चीस हज़ार रूपये का इंतज़ाम करो | फिलहाल रूम का पाँच हज़ार काउण्टर पर जमा कर दो ।
दिवस ने सोचा," पैसा कितना ज़रूरी है, काश! मेरे पास पैसा होता।
रूद्र ने कहा," सरोज माई की यह गले की चैन बेच दूँ क्या ? दिवस ने कहा, नहीं यह चैन नहीं बिकेगी
वह अस्पताल से वापस आकर घर के बरामदे में बैठा चिंता में डूबा था कि वहां अचानक तपेश्वर और मुक्ता दोनों किन्नर पहुंच गए और कहा कि दिवस आज हम लोग पार्टी में नाच-गाकर नेग लेना बन्द न किये होते तो आज अपने हाथ खाली न होते |अब पच्चीस हज़ार कहाँ से लायें ऊपर से बैंक भी बड़ी रकम निकालने दे नहीं रहे | तभी दिवस के मन में एक विचार आया और सभी को वह आईडिया बताया | सभी लोग उसके आईडिया को मान जाते हैं पर सुनकर बहुत हैरान होते हैं।
रूद्र और दिवस और सभी आठों किन्नर मिलकर सब समान जुटातें हैं | सब सामान एक लोडर में चढ़ाते हैं और उनमें से एक किन्नर सफेद कपड़े पर नील से कुछ लिखकर बैनर बना लेता है।
कुछ समय के इंतजार के बाद रोशनी पूरी तैयारी के साथ सभी साथी किन्नरों के साथ पहुँचती है और कहती है, देखो! दिवस, लो मैं आ गयी ।
दिवस रोशनी को सरोज मांई के बारे में बताता है और फिर सभी अस्पताल पहुँच गए।सरोज माँई से मिलने के बाद उसने काउंटर पर आकर फीस जमा कर दी। और वापस बस्ती लौट आए।
दिवस ने कहा रोशनी आज तुम्हारी परीक्षा है तीन सुन्दरियाँ तैयार कर दो कि लोग देखते रह जायें एक लोडर पर रहेगा एक दो भीड़ में शामिल रहेगें और एक दो टिकट काउंटर पर। पूरी बात समझकर रोशनी ने सब का सुंदर ढ़ंग से मेकअप किया । कुछ देर बाद दिवस आता और कहता है नाचने वाली दो ही रखो। उसमें से तारा को सरोज मांई के पास पहुंचा दो मांई को अकेलापन नहीं लगेगा तो तारा ने कहा मुझे अकेले नहीं सितारा को भी भेज दो वरना मैं वहां अकेले नहीं रह पाऊंगी कारण डाक्टर बहुत चिल्लाते हैं | रोशनी ने कहा बस एक ही कब तक नाचेगी ? दिवस मन ही मन सोचता है कि गाय को कसाई काट देगा तो उस गरीब की बेटी की शादी न रूक जाये कहीं। मजदूर आत्महत्या न कर लें। यह सोचकर कहता है कि मेरी प्रतिज्ञा थी कि जिस दिन साड़ी लहंगा पहनू तो मर जाऊँ पर प्रतिज्ञा से बड़ा कर्तव्य है। रोशनी कहती है कहाँ खो गये। दिवस ने कहा तुम मुझे नाचना सिखाओ मैं नाचूंगा। रोशनी आश्चर्य से कहती है दिवस तुम तो पुण्यआत्मा इंसान हो कसम से, चलो मैं तुम्हें सिखाती हूँ |
शाम को सभी पूरी तैयारी के साथ रजौरा गांव में दाखिल हुए और वहाँ चल रहे मेले में मिलजुल कर अपनी डांस पार्टी का पूरा सेट लगाए। खुद ही बैनर बनाये जिस पर" च्विंगम डार्लिंग डांस पार्टी" का नाम लिखा और टिकट पचास रुपए का एलान। दिवस ने बैनर देखकर कहा," हे भोलेनाथ ,रंगीले ने यह क्या फालतू बैनर बनाया है कितना गंदा नाम रखा है मैने तो सोचा भी नहीं था कि वह यह नाम रखेगा |अब तो भगवान ही मालिक हैं कि यह रंगीला अंदर डांस पर कौन सा भद्दा गाना बजायेगा।लेकिन अब हो भी क्या सकता था कि पूरा सेट लग चुका था।
डीजे शुरू हुआ फिल्मी बोल्ड गाने बजने लगे। वहाँ मेले में घूमते लोगों से, पुलिस वालों से दिवस ने कहा, उस गरीब किसान की गाय बिक जायेगी कट जायेगी, बेटी की बारात लौट जायेगी उसकी मदद कर दो | सभी बोले, यार एक रूपया नहीं है देख रहे हो बैंक से पैसा नहीं मिल रहा जाओ यार । कोई भी उस गरीब किसान की मदद को आगे नहीं बढ़ा, हाँ "बेबी डार्लिंग", "मस्त कली" कह कर ज़ेहनी अय्याशी का मज़ा खूब लिए ! लोग कहते यह नाम पहली बार सुना है चल यार देखा जाये। रात होते-होते च्वींगम डांस पार्टी फुल थी और लोगों के ऊपर लोग चढ़े थे कि चारों तरफ नीले पीले बल्बों की चकाचौंध रोशनी में किन्नर नीलम और उर्वशी हीरे की तरह चमक रही थीं और जब उन्होंने गानों पर नाचना शुरू किया तो जनता लगातार पैसे उड़ा रही थी। दिवस और रोशनी अंदर बहुत खुश थे रूपया खूब आ रहा था। रात दो बज गये थे भीड़ बढ़ती ही जा रही थी | तभी दिवस ने कोने से झांक कर देखा तो हैरान रह गया कि आस -पास के सभी बड़े अधिकारी विधायक नेता वहाँ शराब पीकर झूम रहे थे और विधायक जी उन खूबसूरत परियों के ऊपर रूपया उड़ाये जा रहे थे। दिवस यह सब देख दंग रह गया। पीछे से रोशनी ने कहा," बस एक घंटे और ऐसी भीड़ रही तो बहुत पैसा होगा। उस गरीब की बेटी की शादी बहुत अच्छे से हो जायेगी और माँई के इलाज के लिये भी पैसे निकल आएंगे और घटा तो मैंने जो गहने बनवाये थे वह सब बेच कर अच्छा इलाज हो जायेगा। तभी रूद्र ने फोन करके बताया कि भैया में बाहर टिकट बना रहा हूँ गज़ब की भीड़ है। दिवस ने कहा, यह भीड़ एक झूठ का रूप है । तभी नीलम स्टेज छोड़कर दिवस के पास आकर बोली," मेरा सर बहुत दर्द कर रहा है अगर अब और नाची तो उल्टियाँ करने लगूंगी पेट में भी दर्द हो रहा है । दिवस ने कहा, तुम आराम करो। रोशनी बोली, रूको मेरे पर्स में है दर्द की टेबलेट। रोशनी ने उसे दवा देकर कहा यहीं लेट जाओ । एक को नाचता देख जनता चिल्लाने लगी तो दिवस ने कहा तुम सब जाओ बसंती तुम गुलाबो को भेजो | रोशनी ने रूद्र से कहा, बाहर रेखा, सुरेखा से कहो कि वह लोडर तैयार रखें हम लोग जल्दी ही निकलेगें रूपया सब बैग में भर लिया है । दिवस और रोशनी ने बाहर झांक कर जनता का मिजाज़ भांप लिया था। दिवस ने मौके की नज़ाकत देखते हुये कहा, रोशनी पहना दे मुझे लहंगा ओढ़ा दे मुझे चुनरी और सजा कर बना दे मुझे सुन्दरी। फिर क्या था रोशनी उसे स्पीड में सजाने लगी और बाहर मंच पर जनता जूते चप्पल फेंकने लगी तभी दिवस का फोन बजा तो रोशनी ने देखा कि जैनीफर का कॉल है उसने फोन ऑफ कर दिया। अब उर्वशी मंच से भाग कर पीछे आ गयी और बोली, हम लोग पीछे से सब सामान बैग सहित लोडर पर जाकर बैठते हैं यह सुनकर दिवस ने कहा, जैसा उचित समझो।
जनता उठ -उठ कर जाने लगती है तभी गाना बजता है "रूको मतवालों ज़रा नज़र हम पे भी डालो "
तुम्हारी दीवानी आयी च्वींगम जवानी
मेरा नशा वोदका ये भी भारी
कर देगी घायल च्वींगम जवानी
सारी जनता देख हैरान हो जाती है इतनी सुन्दर लड़की कसम से च्वींगम है मेरी तो नज़र ही नहीं हट रही मानो नज़र चिपक गयी है हुस्न पर। लोग सीटियां बजा रहे थे दिवस अंदर ही अंदर टूट रहा था कि वह यह क्या बन गया।तभी उसके दायें बायें रोशनी टूट के नाचने लगी और दिवस भी हाथ फैलाकर घूमने लगा वह भी झूम कर नाच उठा और नाचता ही रहा नाचता ही रहा सारी जनता उसे छूने और पास से देखने को मचल पड़ी | तभी विधायक और उसके साथी ऊपर स्टेज पर आकर दिवस का हाथ पकड़ कर नाचने लगे और उसे चूमने लगे|दिवस दूर हटा तो जेब से नोटों की गड्डियाँ निकाल कर सब बरसा दी और उसे बार -बार चूमने को भागने लगे पूरी जनता सीटियां बजा रही थी।गाना बज रहा था
"शीला मुन्नी को भूलो वो लोकल जवानी"।अरे! ऑरिजनल है च्वींगम डार्लिंग की जवान
दिवस ने मन ही मन कहा, कितना भद्दा गाना बजाया इस रंगीले ने इसको यही गाना मिला था। यह जनता मुझे नोंच खायेगी। दूर खड़े रूद्र ने सोचा इससे पहले कि इस विधायक के गुर्गे दिवस की जान ले लें मुझे कुछ करना पड़ेगा | यही सोचते हुये रूद्र ने तुरंत कुछ जाकर पूरे मेले की बिजली ही काट दी और चारों तरफ अंधेरा हो गया तो रूद्र ने माइक से कहा कृपया आप सभी लोग अपनी-अपनी जगह बैठे रहिये। इतना कहकर सभी दौड़कर पीछे खड़े लोडर में बैठ गये और वहाँ से रफूचक्कर हो गये ।
अब वह सब बस्ती में आकर जैसे ही घर के अंदर आये।तो दिवस चुपचाप सिर पकड़ कर बैठ गया। सभी एक टक दिवस को देख रहे थे तो दिवस ने सवालिया नज़रों से कहा,क्या हुआ ? तो रूद्र आईना देकर बोला, खुद ही देख लो । दिवस खुद को देखता ही रह गया और फिर आईना किनारे रख दिया। रूद्र ने कहा, रोशनी भैया आप हूर लग रहे है जो देखे पागल हो जाये ।
दिवस कहता है मैं चेंज करके आता हूँ । रोशनी कहती है कि लगभग पचास हज़ार रूपया आ गया है डांस पार्टी से अब उस किसान बेटी की शादी खूब धूमधाम से शादी हो जायेगी । दिवस बोला, यह शादी मंदिर में दो फूलमाला से हो जाया करें तो गरीब को राहत मिल जाये। रोशनी कहती है सबकुछ बदल सकता है बाबू पर समाज की ये रिवाजें नहीं बदलने वाली हम सब इसमें पिस रहे हैं और पिसते रहेंगे।
दिवस ने पूछा, नीलम सो गयी क्या ? रोशनी ने बताया, वह दवा खाकर लेटी है अब आराम है उसे । तभी रंगीला बोला, कुछ भी कहो दिवस आज हॉट लग रहा था क्या कला है मेकअप भी । रोशनी बोली, एचडी मेकअप था तो दिवस बोला,इतना भद्दा गाना बजाया तुमने | रंगीले ने कहा, मंदिर नहीं था जो भजन बजाता जैसा दर्द वैसी दवा दी जाती है क्या गज़ब पैसा आया। दिवस बोला, तुम से बहस करना ही बेकार है । यह सुनकर रंगीले ने कहा, भैया जब देशभक्ति की और सामाजिक कविता या भजन लिख कर फेसबुक पर पोस्ट करता हूँ तो एक दो लाइक बस और इस तरह के गाने पोस्ट करता हूँ तो हज़ारों में लाइक और कमेन्ट्स आते हैं अच्छी चीज़ कोई नहीं पढ़ता सुनता नहीं भैया । दिवस ने कहा, देशभक्ति और भजन गीत मैं पढ़ूंगा चलो मुझे पोस्ट करो पर अब कभी ऐसे अश्लील शब्द मत लिखना माता सरस्वती जी का व अक्षरों का अपमान होता है । रंगीले ने कहा, ठीक है प्रॉमिस । रंगीले ने कहा, भैया मेरा फेसबुक अकॉउण्ट बना दो मेरा पहले वाला किसी ने हैक कर लिया । दिवस ने कहा, तुम्हीं बना लो मुझे गुस्सा आता है । रंगीले ने दिवस से कहा, फेसबुक अकाउण्ट बनाने से गुस्सा बढ़ता है क्यूँ भाई ? दिवस ने कहा, मार्क जुकरवर्ग ने फेसबुक में मेल और फीमेल ऑप्सन रखे हैं वह भी हम लोग थर्ड जेण्डर को नज़रदांज कर गये | बस सब सोच कर मेरा गुस्सा भड़क जाता है | नौकरी के फॉर्म में भी महिला /पुरूष विकल्प छपा होता है । हम लोग क्या पशु हैं जो नौकरी नहीं कर सकते । रंगीले ने कहा, दिवस भैया शांत हो जाओ एक दिन अपनी भी किस्मत बदलेगी, बदलाव ज़रूर होगा ।
सुबह पांच बजे थे सब नहा धोकर तैयार हुये भगवान शिव की पूजा करके वह सब उठे तो वह दोनों धाकड़ किन्नर गाली बकते हुये अंदर आये और बोले, क्या हुआ सरोज को ? यह पैसा रख लो और अस्पताल का पता दो । तभी उनकी नज़र दिवस पर पड़ी जो चुन्नी में उलझे सैफ्टीपिन को निकाल रहा था | वह दोनों बोले, यह कौन नवा गुलाब खिला और तेजी से उठ कर दिवस की तरफ बढ़ी तो दिवस ने दरवाजा बन्द करना चाहा तो उन्होंने धक्के से खोल दिया और बोली," वाह.. क्या बात है और उसके गालों को चूमकर गलत हरकतें करनी लगीं। दिवस ने दरवाज़े में इतना ज़ोर का धक्का मारा कि पूरा दरवाज़ा खुल गया और सब चिल्लाये अम्मा ये दिवस है क्या कर रही हो। दिवस ने कहा," आपकी उमर का लिहाज कर रहा हूँ वरना इतना कमज़ोर नहीं कि अपनी रक्षा न कर सकूँ । हाँ हम किन्नर हैं तो क्या हमारी कोई इज्ज़त नहीं है जब चाहे तब किसी की मजबूरी का फायदा उठा लो ,गलत कर लो ? वह बोली, उस दिन तेरा मुंह टेप से बंद था तो मज़ा पूरा न हुआ ज़रा चिल्लाता तू तब मज़ा ज्यादा आता । यह सुन दिवस को वो रात पूरी फ़िल्म की तरह दिमाग में घूम गयी । वह बोली ," जो भी हो नवेले आ !आ! न मेरे पास । यह सब देख रंगीले ,रूद्र और बिजली ने कहा,यह लो अपने पैसे और निकलो अब। बहुत सहा आपको अब आपका टाईम गया। फिर कभी नज़र आये आप लोग तो थाने में रिपोर्ट कर देगें ।
कुछ देर बाद सभी सरोज से मिलने अस्पताल पहुंचे। रोशनी ने कहा, डा. साहब आप ऑप्रेशन की तैयारी करें बस दस मिनिट में पैसा लाते हैं । तभी पीछे से रूद्र आकर कहता है यह लो पैसा । पूरा पैसा काउण्टर पर जमा हो जाता है तो दिवस कहता है ," रूद्र यह पैसा ? रूद्र कहता है, मैने अपनी बाईक बेच दी । यह सुनते ही दिवस, रोशनी और रूद्र तीनों गले मिल जाते हैं।
डा. कहता है बाहर चलिये भीड़ मत लगाइये ।
अब सभी पूरा टैण्ट का सामान बर्तन व हलवाई पूरी व्यवस्था के साथ रजौरा गाँव पहुंचते हैं। दोपेहर तक सब व्यवस्था हो जाती है । वह गरीब पूरा सजा घर देखकर हैरान रह जाता है कि कितना अच्छा इंतजाम है । वह गरीब चिल्ला के कहता है कि धन्य हो आप लोग जो मेरी बेटी की डोली आपके वजह से उठ रही। वह किसान कहता है कि मेरे लिये तो आप सब देवता हैं आप सभी के पांव पखारना चाहता हूँ । दिवस कहता है, जिसकी यह शादी है वह हम सब की छोटी बहन है अगर आपका बेटा यह सब करता तो क्या आप उसके पांव पखारते ?हमें देवता ना कहो बस एक बार बेटा कह कर सीने से लगा लो। दिवस उस गरीब किसान के पांव छूता है तो वह किसान उसे सीने से लगा लेता है और फिर सभी एक साथ होकर गले लगते हैं ।
किसान कहता है बेटा कुछ ही देर में बारात आ जायेगी। समय हो तो विदाई तक रूकें आप सब । तभी एक लड़की आकर कहती है आप सबको पार्वती बुला रही है। किसान कहता है मेरी बेटी पार्वती आप सब से मिलना चाहती है । पार्वती कहती है दिवस भैया मेरी एक इच्छा है कि शादी में थोड़ा पैसा बचाकर मेरे बापू के नाम से गौकथा करवा देना जिससे मेरे बापू गौ बेचने जा रहे थे न उस पाप से बच जायें | दिवस और खड़े सभी लोगों की आंखे डबडबा आयीं उसने कलावा वाला धागा तोड़- तोड़ कर सभी किन्नरों को बांध कर कहा आज से आप सब मेरे भाई । दिवस ने उसके पांव छूकर उसे गले लगाया और कहा मैं गौ कथा ज़रूर कराऊँगा । तभी दिवस की नजरें सामने टूटी पड़ी अँगवारी पर गयी जिसमें ''वाटर ऑफ इंडिया'' यानि एक प्रकार का कलश जिसे जादू दिखाने वालों अपने प्रोग्राम में प्रमुखता से प्रयोग करते हैं, पर गयीं। वह तुरंत उस गरीब से बोला आप जादूगर हैं ? यह सुनकर उस गरीब ने कहा, हैं नहीं था। इस वक्त तो सिर्फ़ कर्ज में डूबा हुआ गरीब किसान या कहे कि मजदूर हूँ बस। दिवस के दिल में यह बातें खंजर की भाँति धँस गयी कि हमारे भारतीय जादूगरों और किसानों का यह हाल! तभी सामने एक छोटी बच्ची की तस्वीर देख दिवस ने कहा, यह तुम हो पार्वती ?
पार्वती ने कहा, नहीं भैया यह मेरी छोटी बहन है जो अब भगवान के पास है।
दिवस ने कहा, वह बीमार थी क्या ?
यह सुन पार्वती फूट-फूट कर रो पड़ी।बताई कि शाम को खेत पर शौच के लिये गयी किसी ने उसके साथ दुष्कर्म किया और वह मर गयी तब वह महज़ सात साल की थी । पैसे नहीं थे वरना अच्छा इलाज होता तो बच जाती।
यह सुन कर दिवस की आंखें बरस पड़ीं । वह आँसू पोछकर बोला, यह अपने देश,धर्म समाज के लिए एक अज़ाब,श्राप से क्या कम है या फिर बदकिस्मती कह लें कि,जिस देश समाज मे कन्याएं पूजी जाती हैं उसी देश समाज की कन्याएं आज सुरक्षित नही,कब कोई उसे बाजार बना दे,कब कोई किसी सरे राह आबरू तार तार करें,कब कोई किसी को जीते जी मौत के मुँह में ढकेल दें,कुछ नही कहा जा सकता। हमारे देश में आज भी करोड़ों लोग खुले में शौच जाते हैं लेकिन इसकी चिंता किसे है,शायद किसी को नही और एक बड़ा खास कारण यह है कि जैसे अपने इस देश समाज का वो सिस्टम ही सड़ गल चुका जिस पर कभी हमें नाज़ था।
पास में खड़े सभी रिश्तेदार और गाँव के लड़के दिवस की बातें सुन कर ताली बजाकर बोले,आपने बिल्कुल सही कहा दिवस भैया , जानते तो सब हैं पर मानता कोई नहीं । तभी रोशनी का फोन बजा, रोशनी ने पर्स में हाथ डाला तो फोन कट चुका था। उसी पर्स में दिवस का फोन पड़ा था तो रोशनी ने दिवस से कहा, ये लो अपना फोन । दिवस ने अपना फोन ऑन किया तो देखा दर्ज़न भर मिस कॉल व मैसेज पिता जी श्रजित मल्होत्रा के थे और उस से दो एक कम जैनीफर व अन्य का मिस कॉल व मेसेज था। उसने सोचा पिता जी और जेनिफर को खुद कॉल मिला कर बात कर लें तभी रूद्र ने कहा, दिवस शहर में आतंकी हमला हुआ है देखो अपना ब्यूटी पार्लर और उसके आस-पास की सभी दुकानें खत्म। दिवस यह देखो व्हाट्सअप पर आई तस्वीरें ।इस बीच दिवस अपने पिताजी का मैसेज पढ़ते ही, तेजी से बाहर निकला पीछे-पीछे रूद्र और रोशनी भी । दिवस ने कहा, तुम लोग व्यवस्था सम्भालो मैं आता हूँ और फिर वह सरपट दौड़ पड़ा और दौड़ता ही गया । रूद्र ने रोशनी से कहा. कुछ तो हुआ है.. तुम यहीं रूको मैं पीछे जाता हूँ । रोशनी ने कहा, यह लो चाबी, कार से निकल जाओ । तभी रास्तें में दिवस का फोन बजा , दिवस ने वह कॉल अनसुनी कर दी तो लगातार आतीं कॉल देखकर उसने कॉल रिसीव की तो उधर से
डाक्टर ने कहा," सॉरी सरोज इज़ नो मोर" ।दिवस के अंदर दुखों का पहाड़ फट पड़ा, वह भागता रहा | रास्ते में रूद्र ने गाड़ी रोक कर उसे ज़बरदस्ती गाड़ी में बिठाया दिवस पत्थर बना खामोश बैठा रहा । रूद्र ने कहा, कहाँ जाना है भैया? पर दिवस पत्थन बना चुप बैठा रहा। यह देख रूद्र ने दिवस के हाथ से फोन ले लिया कॉल रिकार्ड चेक और मैसेज बॉक्स चेक किया तो रूद्र भी रो पड़ा और उसने सरोज के पास न जाकर सीधे दिवस को ले कर पिताजी के घर शेखूपुर पहुँचा | वहां कस्बें व आस-पास के गांवों से आये लोग पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे और चारों तरफ वंदे मातरम् के नारे गूंज रहे थे | दिवस के फ़ौजी भाई का शव फूलों से ढ़का था । दिवस जैसे ही रोते अशिन भाई के अंतिम दर्शन करने के लिए आगे बढ़ा तो पिताजी ने गुस्से से कहा, दिवस तुम यहाँ से चले जाओ अश्विन की अंतिम इच्छा थी कि तुम्हारा साया भी उस पर न पड़े। विश्वास नहीं होता तो यह मैसेज देखो । दिवस बोला, भैया ऐसे कभी नहीं लिख सकते। दिवस रोते हुये बोला, माँ कहाँ है पिताजी ? वह बोले, यह ख़बर सुन कर कल रात वह चल बसी , मैने तुझे रात में कई बार फोन किया सुबह भी किया पर तू पता नहीं कहाँ बिजी था। तभी वहाँ खड़े कुछ रूढ़िवादी लोग बोले," हिजड़ों को भगाओ वरना अश्विन उस अगले जन्म में हिजड़ा होगा"।दिवस के लिए यह सारे शब्द भंयकर दर्द बनकर इस कदर हावी हुये कि वह अपने दिल और दिमाग का संतुलन ही खो बैठा। उसने बदहवासी में दूर से ही अशिन भैया को सैल्यूट किया तभी उसकी नज़र दूर पेड़ के पीछे छिपे अनजान व्यक्ति पर पड़ी जो अशिन भैया के पास खड़े कमाण्डर पर निशाना साध रहा था। यह देख बिना एक पल गँवाये दिवस तुरन्त कमाण्डर को धक्का देता है और गोली दिवस के सीने के पार हो जाती है । यह देख श्रजित जी बेहोश हो जाते हैं और वहां खड़े सभी लोग उस गोली मारने वाले के पीछे दौड़ पड़ते हैं चारों तरफ अफरा-तफरी मच जाती है। रूद्र दौड़कर दिवस को अपनी गोद में उठाकर गाड़ी में लिटाकर वहाँ से तेजी से अस्पताल की तरफ निकल जाता है | रास्ते में दिवस का फोन बजा। रूद्र ने वह कॉल देखी तो दिल्ली के डाक्टर का वॉयस मैसेज था।दिवस "आओ आपका ब्लड बहुत कीमती है कब आ रहे हो" ?
इधर दिवस को बेहोशी में भी वह सभी शब्द साफ सुनाई दे रहे थे "अश्विन तुम्हारी छाया भी देखना नहीं चाहता था".. "माँ गुज़र गयी तू कहाँ था" । दिवस सोचता है मैं नाच रहा था और माँ अंतिम श्वांस ले रही थी । तभी हल्की बेहोशी में उसे एक मंज़र दिखता जिस में कोई चीख रहा था " दिवस कहाँ हो ..जल्द आओ आपका ब्लड बहुत कीमती है जिससे कई बच्चों की जान बचायी जा सकती है वग़ैरा... "। दिवस के दिमाग वो बच्चे घूम रहे थे जो सर्पदंश से पीड़ित अस्पताल में पड़े ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे थे । वह दिवस को पुकार रहे थे। दूसरी तरफ रोशनी का आतंकी हमले में बर्बाद हो चुका ब्यूटीपार्लर दिखता है। रूद्र भी गाड़ी रोक कर दिवस की हालत देख व अशिन भैया को सोचकर फूट-फूट कर रो पड़ता हैं कि शहादत सबसे महान होती है यही सोचकर आज मैं सरोज माँई के पास नहीं जा सका। वह सोच कर बैचेन हो उठता है अब मैं घायल दिवस को अस्पताल ले जाऊँ या सरोज मांई के पास जाऊँ।फिर उसे ख्याल आता पहले दिवस को अस्पताल ले चलते हैं उस के बाद माँई के पास हॉस्पिटल चलेंगे। रूद्र दिवस को ले कर पास के एक सरकारी अस्पताल पहुंचा वहाँ डाक्टर ने उससे कहा यहाँ ब्लड बैंक की सुविधा नहीं हैं आप शहर निकल जाओ जाम न मिला तो एक घंटा लगेगा। रूद्र चिल्लाता है यह अस्पताल है या बस मेडिकल स्टोर । वह बहुत स्पीड में कार दौड़ाता हुआ पूरे एक घंटे बाद शहर के एक प्राईवेट हॉस्पिटल में पहुंचा वहाँ डाक्टर नेे उस से कहा, ''बेड खाली नहीं है सभी मलेरिया डेगूं के मरीज़ों से भरे हैं ।'' वह चिल्लाकर कहता है शहीद के भाई के लिये बेड नहीं है या फिर कुछ और चाहिये? बुलाऊँ मीडिया को? तो दिवस को एक सिंगल रूम दे दिया गया। इसी दौरान रूद्र का फोन बजा,रूद्र ने कॉल रिसीव किया,बताने वाले ने जो बताया उसे सुन कर रूद्र अपना सिर पकड़ कर चीख़ पड़ा । डाक्टर ने पूछा, क्या हुआ ?
रूद्र ने भरी आँखों से जवाब दिया ,"डाक्टर साहब रजौरा गांव की शादी में मेरा पूरा परिवार रोशनी, नीलम, रंगीला, और मेरी बहन पार्वती सब के सब बम धमाके में मारे गये । यह बात भी बैड पर लेटे हुये दिवस ने साफ सुनी तो उसकी आँख खुल गईं वह चीखना चाहता था पर आवाज़ गले से बाहर नहीं आ रही थी । वह पागलों की तरह चिल्ला रहा था पर आवाज़ कहीं खो चुकी थी । डाक्टर ने रूद्र से कहा इस रूम से बाहर निकलो हमें कुछ ही देर में आपके इस पेसेन्ट का ऑपरेशन करना होगा।
रूद्र दिवस की तरफ देखते हुए उस रूम से बाहर निकलता है तभी उसके पास एक अननोन कॉल आती है कि इस एड्रैस पर तुरंत चले आओ अगर उस राजौरा गांव धमाके के बारे में जानना चाहते हो।
रूद्र जब उस अनजान कॉलर के बताये एड्रेस पर पहुंचता है तो सामने से आते हुये एक नकाबपोश ने रूद्र को तुरंत गोली मार दी।रूद्र वहीं लड़खड़ाते हुये गिर पड़ा ।
इधर हॉस्पिटल में दिवस के पास कोई आता है और उसे एक बहुत ही ख़तरनाक ज़हर का इंजेक्शन लगा कर चला जाता है। दिवस को हल्की बेहोशी में उस इंजेक्शन लगाने वाले की छुअन से पता चल जाता है कि यह कौन है ।दिवस ने आंख खोलकर देखा तो वहाँ कोई नज़र नहीं आया।
वह अनजान कॉलर, दिवस को ज़हर का इंजेक्शन लगाने वाले को कॉल करता है कि रूद्र को गोली मार दी है वह यहीं बेहोश पड़ा है। दिवस को जहर का इंजेक्शन लगाने वाला कहता है, अपना यह फोन रूद्र के कान में तो लगाना । रूद्र उस कॉल में जानी पहचानी आवाज़ सुनता है जिसने कहा " मैने तेरे दिवस को वो ज़हर दिया है कि अबतक वह भी मर चुका होगा। रूद्र ने चौंक कर कहा "तो आप ने किया ये सब"! मुझे तो विश्वास नहीं होता और हाँ शायद तुम नही जानते कि उस पर किसी ज़हर का कोई असर नहीं होने वाला इसलिए आप अपना मिशन फेल ही समझो और इतना कहकर रूद्र बेहोश होने का नाटक करके वहीं पड़ा रहता है। रूद्र को बेहोश होते देख वहाँ खड़े अनजान कॉलर हँस कर कहने लगा ''बेकार गोली बर्बाद की यह तो बोली से ही मर गया"। इतना कहकर वह रूद्र की पॉकेट सेे उसका फोन निकाल कर पास में रखे एक पत्थर से कुचल देता है और वहां से चला जाता है। उस अनजान कॉलर के वहाँ से जाने के बाद खून से लतपथ रूद्र भागता गिरता किसी तरह सड़क तक आया तो कुछ पत्रकारों की नज़र उस पर पड़ गई,पत्रकारों को रुद्र ने अपनी आपबीती सुनाते हुए दिवस के कातिल का नाम भी बता दिया। और यह भी बता दिया कि उसका दोस्त दिवस पास के ही मदर टेरेसा हॉस्टपिटल में एडमिट ज़िन्दगी और मौत के बीच जूझ रहा है जिसे उसी क़ातिल ने उसके शरीर मे धोखे से कोई जानलेवा ज़हर इंजेक्शन के माध्यम से चढ़ा दिया है।उसे जान का खतरा है उसे जाकर बचा लीजिये। इतना कहकर खून से लतपथ रूद्र वहीं गिर पड़ता है । पत्रकार उसे तुरन्त मदर टेरेसा अस्पताल में एडमिट करवाने के लिये रवाना हो जाते है लेकिन इस से पहले के वो रुद्र को अस्पताल के बेड तक पहुंचा पाते रूद्र ने दम तोड़ दिया। सभी मीडियाकर्मी वहांं भीड़ लगाकर बातचीत कर ही रहे थे कि तभी सेना के कमांडर के .सी.त्यागी भी दिवस से मिलने उसी अस्पताल में पहुंच गये अस्पताल के मैन गेट पर मीडिया की इतनी भीड़ देख वह मीडिया वालों से पूछे यहां इतनी भीड़ कैसी? तो मीडिया के कुछ लोगों ने उन्हें पूरी बात विस्तार से
बता दी। कमांडर पूरी बात सुनकर तेज कदमों से दिवस के रूम की तरफ बढ़े लेकिन डॉक्टर ने उन्हें अंदर जाने से यह कह कर मना कर दिया कि ओ. पी. डी में दिवस का ऑपेरशन चल रहा है। कमांडर ने कहा ठीक है जबतक उसे होश नहीं आता तब तक मैं यहीं रूम के बाहर खड़ा इंतजार करूंगा । रात लगभग एक बजे डाक्टर ने बताया " दिवस अब खतरे के बाहर है" अब आप उससे मिल सकते हैं। कमाण्डर दिवस के पास जाकर पूछते हैं कैसै हो दिवस?
दिवस इशारे में कहता है ठीक हूँ सर। कमांडर कहते हैं, ''दिवस" कई लोगों ने तुम्हारे बारे में मुझे बहुत कुछ बताया। यह पास में खड़े चर्चित क्राइम रिपोर्टर माइटी इकबाल (ऐमी) जी हैं जिन्होंने यह भी बताया कि तुम बहुत ही नेक इंसान, काबिल लड़के हो। तुमने मेरी भी जान बचायी है थैंक्स दिवस । दिवस ने उन क्राइम रिपोर्टर ऐमी से कुछ बोलना चाहा पर उसकी ज़ुबान ने साथ नही दिया,वह कुछ बोल नहीं सका तभी डाक्टर ने बताया कि किसी ने इसे ख़तरनाक ज़हर का एक ऐसा इंजेक्शन दे दिया था जो सायनायड से भी अधिक खतरनाक है। यह सिरेंज पड़ी मिली है और यह देखो! हाथ की नस से खून निकल कर जम गया है पर यह ज़िन्दा है। रात डाक्टरों की टीम ने टेस्ट में पाया कि इसका ब्लड बहुत स्पेशल है जिसपर किसी भी तरह के प्वॉयजन का असर नहीं हो सकता।अभी डॉक्टर कमांडर को केस की डिटेल बता ही रहे थे कि तभी कमांडर का फोन बजने लगा,कमांडर ने फोन रिसीव किया और अपने मित्र की पूरी बात ध्यान से सुनी और फिर कमांडर के.सी त्यागी ने दिवस को एक खुशखबरी सुनाते हुए कहा, '' दिवस! वह पकड़ी गयी जिसने तुम्हारे भाई को नेट से मैसेज किये उन्हें कॉल करके तुम्हारे खिलाफ भड़काया तुम्हें आतंकी हमले में लिप्त होने की झूठी कहानी सुनाई बाद में उसी के कारण तुम्हारे भाई की सरहद पार आतंकी की गोली लगने से उसकी जान भी गयी।और अब जो भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष की जान लेने का जाल बुन रही थी, वही जिसने तुम्हारी बहन पार्वती की शादी उजाड़ दी, तुम्हारे अपनों की जानें लीं जिसने तुझे ज़हर जिसने तुम्हें धोखा दिया जिसने तुम्हारे साथ-साथ इस देश को भी धोखा दिया। जानना चाहोगे वो गद्दार कौन है ? दिवस ने तुरन्त हाँ में सिर हिला दिया।तो कमाण्डर ने कहा," वह कोई और नहीं तुम्हारी गर्लफ्रेंड जैनीफर है जो सीमापार के आतंकियों की जासूस है। उस जासूस का प्लॉन था हमारे देश के म्यूटन यानि सुपर पॉवर विशेष शक्ति रखने वाले भारतीयों को खत्म करना और उसके इस मकसद के बीच में जो आया वह मारा गया उसे पता चल गया था दिवस कि तुम एक विशेष व्यक्ति हो जो बिना थके सैंकड़ों किलोमीटर रफ़्तार से दौड़ सकते हो और बेहद ईमानदार ही उस ने सोचा अगर यह भारतीय सेना में भर्ती हो गया तो भारतीय सेना बहुत मज़बूत होगी। शायद इन्हीं कारणों से उसने तुमको अपना शिकार बनाया।
दिवस ने यह सब सुनकर अपनी आँखे बन्द कर लीं उसे वो छुअन याद आयी जो इंजेक्शन देकर भागी थी। दिवस चुपचाप पत्थर की तरह पड़ा रहा। पास में खड़े पत्रकार ने कहा," इतना ही नहीं उस जैनीफर ने तुम्हारे दोस्त रूद्र को भी मरवा दिया वो भी अब इस दुनिया में नही रहा।
पत्रकार ऐमी ने एक बड़ा खुलासा करते हुए आगें कहा कि जो नकाबपोश जैनिफर के साथ पकड़ा गया जिसने रूद्र को गोली मारी वह नकाबपोश कोई और नहीं बल्कि खुद श्रृजित जी का छोटा बेटा आशय मल्होत्रा था जिसने गलतफहमी में दिवस से अपने बड़े भाई अशिन मल्होत्रा की मौत का बदला लेने हेतु दिवस के भाई जैसे दोस्त रूद्र को मार दिया वह भी जैनीफर के साथ मिलकर।
यह सच सुनते ही दिवस के आँख से आँसू निकल पड़े। कमांडर बोले," बैडलक मि.दिवस श्रजित जी ने भी एक गलतफहमी में आकर अपने बेटे के गम में खुद ही अपने सर में गोली मार कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ।
दिवस यह सुन कर अपनी पूरी ताकत को समेंटते हुये जोर से चीखा और पल भर में बेहोश होकर वही लुढ़क गया।
तभी पास ही खड़े दूसरे पत्रकार स्यामल ने कहा," श्रजित जी अपनी प्रापर्टी का एक बड़ा हिस्सा दिवस के नाम कर गये हैं।
कुछ देर बाद डाक्टर दिवस की नब्ज़ चेक करते हैं तो मुस्कुराकर कहते हैं कि अब दिवस बिल्कुल ठीक है। यह सुनकर पत्रकार कहते हैं बधाई हो दिवस ये तो बताइये कि पिता से मिले इस प्रापर्टी और पैसे का आप क्या करोगे?
दिवस इशारा करता है कि कागज़ कलम दे दो ।
वहीं खड़े पत्रकार ऐमी जी ने अपनी डायरी और पेन दिवस की ओर बढ़ा दिया।
दिवस ने उस पर लिखा उसमें मेरे हिस्से का पूरा धन-सम्पत्ति मैं भारतीय सेना को दान करता हूँ जिससे सैनिकों की रक्षाहेतु बुलेटप्रूफ जैकिटें खरीदीं जा सकें।नीचे वंदेमातरम् लिखकर उसके हाथ से क़लम छूट गयी।
दिवस के आँखों में पूरे जीवन की फ़िल्म घूम रही थी| उसे कभी माँ दिखती तो कभी पिता जी, कभी उसे भाई का वह अंतिम मोबाइल मैसेज याद आता, तो कभी उसे बहन रोती-बिलकती हुई दिखती तो कभी सरोज माँई उसे अपने पास बुलाती हुई दिखतीं, जब वह इन दर्दनाक दृश्यों से बाहर निकलने की कोशिश करता तो उसे रूद्र की दोस्ती और जैनीफर का झूठा प्यार याद आता । कभी गौशाला , तो कभी लोगों से किये अपने वादे याद आते। याद आता कि आज बीएससी का पहला पेपर था जो वह दे नहीं पाया अभी यादों का सिलसिला उसकी नज़रों के सामने घूम ही रह था तभी उसे सामने डॉक्टर डिसूज़ा दिखीं।दूसरी तरफ़ वह सोचने लगा शायद अशिन भैया को जैनीफर के बारे में पता चल गया हो और उन्हें लगा होगा कि मैं भी उसके इस आतंकी मिशन का एक हिस्सा हूँ। काश! भैया को मैं सच बता पाता । काश! रजौरा गांव में सभी के हित के लिये फाउण्डेशन खोल पाता। काश! किन्नर समाज में बदलाव ला पाता। इन्हीं सब बातों ने दिवस के मन-मस्तिष्क में कोहराम मचा दिया था और फिर पता नहीं कौन सी बात उसके दिमाग में घर कर गयी कि कुछ देर बाद ही दिवस की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं। बंद होती आँखों से दिवस ने कमरे में चारों तरफ देखा और तभी उसे पास में रखी चमचमाती हुई स्टील की एक प्लेट दिखायी दी| दिवस उस प्लेट को उठाने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी उसे देखने आये कमांडर ने उस प्लेट को उठाकर दिवस की तरफ बढ़ा दिया। दिवस अपनी पूरी ताकत बटौर कर उस प्लेट में अपना चेहरा आईने की भांति देखने लगा कि उसी समय ढ़ेर सारे किन्नरों की टोली दिवस के रूम के बाहर लगी खिड़की से अंदर की और झांकते हुये चिल्ला रही थीं कि नहीं रे! अपना मुँह न देख वरना अगले जन्म में भी यही यातना भुगतनी पड़ेगी, हटाओ इसे, मत देखो! अपना चेहरा। तभी वह प्लेट उसके मुँह पर गिरती है और एक ही पल में दिवस इस दुनियाँ से जा चुका होता है। यह देख पास में खड़े डॉक्टर, दिवस के चेहरे से प्लेट हटाते हुये उसकी नब्ज़ देखते हैं और "दिवस इज़ नो मोर" कह कर निकल जाते हैं। यह सुनकर बाहर खड़े सभी किन्नर फूट-फूट कर रोते हुए कहते हैं कि दिवस ने जानबूझ कर अंतिम वक्त में अपना चेहरा देखा, एक दिन वो फिर इसी सूरत में लौटेगा जिस सूरत को लेकर वह या हम तमाम उम्र खुशी का एक पल भी नही पा सके।पूरी ज़िंदगी शब्द "हिजड़ा" हमें किस्तों में घायल करता रहा।
अंतिम संस्कार करने की बात पर किन्नर बोले," दिवस का अंतिम संस्कार हम करेंगे । यह बात सुनकर सेना के कमांडर ने कहा,’दिवस ने भारतीय सेना की रक्षा की है। हम पूरे राष्ट्रीय सम्मान से उसका अंतिम संस्कार करेंगे तभी डा.डिसूज़ा अपनी टीम के साथ वहाँ पहुंच गई और दिवस को ‘द ग्रेट इण्डियन म्यूटन’ के नाम से पुकारती, वहां खड़े सभी लोगों को बताती हैं कि दिवस के पास नेचुरल सुपर पॉवर थी जिससे दिवस पर दुनिया के किसी भी तरह के घातर ज़हर का असर नहीं हो सकता था| आज दिवस हमारे बीच होता तो उसके ब्लड से ऐण्टीवैनम बनता जिससे लाखों सर्पदंश पीड़ितों की जान बचायी जा सकती थी। तो, हम आपसे निवेदन करते हैं कि यह बहुत पवित्र आत्मा का शरीर है। हम इसको कैमीकल से सुरक्षित करके रखेगें जब तक पृथ्वी रहेगी तब तक दिवस हमारे साथ होगा। बहुत समझाने के बाद वहाँ उपस्थित पूरा किन्नर समाज डा. डिसूजा की बात मान गया और फिर दिवस का शरीर हमेशा के लिये सुरक्षित कर लिया गया। सालभर बाद स्वंय भारतीय सेना के इन्हीं कमाण्डर-इन-चीफ के.सी.त्यागी जी ने और उनकी लेखिका बेटी जागृति त्यागी ने मिलकर एक किताब लिखी जिसका नाम दिया "दिवस द इंडियन म्यूटन"।
यह कहानी हमने 2005 में लिखी थी फिर समय के साथ इसमें परिवर्तन करके आपके सामने प्रस्तुत है।
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
दिवस (द इंडियन म्यूटन) - मात्र नौ महीने का प्रेम - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
Reviewed by Akanksha Saxena
on
April 03, 2019
Rating: 5
No comments