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मॉब लिंचिंग पर राजनीति बंद करिये - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना





(जनता दुष्टों को कूटे ना तो क्या
जुर्म होने तक का इंतजार करे?) 

ज़ुर्म की आशंका पर आखिर! रिपोर्ट क्यों दर्ज नहीं की जाती? आपके कानून में बलात्कारी राम रहीम जैसों तक को पैरोल पर हामी भरी जाती है, जिसे अब तक फांसी हो जानी चाहिए थी। उस बलात्कारी ढ़ोगीं बाबा के मानवाधिकार गिनाये जा रहे हैं... जब साहिब! आप लोग जानवरों को खीर पूड़ी खिलाने में अपने निजिहित साधने में  लग जायेगें तो जनता किसी बड़े जुर्म की आशंका पर रिपोर्ट लिखवाने जाये कि फला आदमी मेरी मासूम बच्ची को कई दिनों से परेशान कर रहा है, दूसरे दिन साहिब! बच्ची मिल नहीं रही तो कानून कहता है...जुर्म की कोशिश ही तो है 'जुर्म हुआ तो नहीं', तुम्हारी बच्ची पड़ोस में होगी जाकर ढ़ूढ़ों, आ गये रिपोर्ट लिखवाने... कोई बड़े नेता आजमाखां की भैंस तो नहीं जो तुरंत रिपोर्ट लिख जाये... अब आप ही बताइए साहिब! जनता जुर्म होने तक का वेट करेगी या फिर उस मर्यादाहीन बदनियत दुष्ट को वहीं उसी वक्त उसके अमर्यादित आचरण पर कायदे से कूटेगी.......

(हाँ भीड़ द्वारा किसी को भी जान से मारने का मैं सख्त विरोध करतीं हूँ....... क्योंकि कानून बहुत लचर हैं वो कभी आपका साथ नहीं देगा, आपकी भावनाओं को नहीं समझेगा, कृपया आप कानून को हाथ में ना ही लें..पर दो चार थप्पड़ चार - पांच लातें तो इन समाज के कलंकों के लिये बनती हैं। ) 

साहिब! आप जैसी लोकलुभावन शक्तियों की मॉब लिंचिग के मामले में हिन्दू - मुस्लिम की नफ़रत भरी राजनीति कब बंद होगी? कब समानता की तीसरी आँख खुलेगी आपकी? आम जनता जाग चुकी है कि आपकी राजनीति आपको मुबारक, जनता को रोजगार चाहिए जिसपर आप मौन धारण कर लेते हो। कब तक बच्चे मोहम्‍मद गौरी का आक्रमण पढ़ते रहेगें..? शिक्षा को टैक्निकल करने की कोशिशें कब होगीं ? जिससे युवा बेरोजगारी के दंश से उबर सकें... वरना युवा शांत है जब तक तो श्रीराम है और सनक गया तो परशुराम है फिर... इसलिये साहिब! .. अब बस करो। अब आम जनता को शतरंज बनाना बंद करो।और रही बात इस मॉब लिंचिंग नाम के उपद्रव की तो आप हम सब मिलकर सरकार पर दवाब बनायें कि वह आम जन के मानवाधिकारों के प्रति पहले सजग हों....क्योंकि जो जनता आपको चुनाव जिता कर कुर्सी पर बिठा सकती है तो वही जनता कुर्सी से गिरा भी सकती है। 

साहिब! जनता को आप की तरह वोट का लालच तो है नहीं .... हाँ उसे अपने परिवार की शांति का लालच जरूर है.... जिसे वह किसी भी तरह भंग होते नहीं देख सकती। आप सर्वप्रथम अपनी दोहरी नीतियों, मापदंडों और कानूनों को पुनर्नवीनीकरण कीजिएगा।आखिर! कब तक अमीर गरीब के न्याय में अन्तर रहेगा और कब तक अमीरों के पाप, अदालतें धोतीं रहेंगीं..... 
इसके बाद ही आम जनता को दोषी ठहराइयेगा। जनता जो कमाये आपको टैक्स भी दे और दोषारोपण लांछन भी सहे। ये कहां तक उचित है.....!!

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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