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शासन हटाओ व अनुशासन अपनाओ। - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना




विश्व जनजागरण अभियान

संक्रमण हटाने के लिए, शासन हटाओ व अनुशासन अपनाओ।

डिवाइड रूल के ब्रिटिश का चीन है हथियार, 
जिसने किया विश्वशांति व मानवता पर
चहुंओर से करोना वार से गहरा आघात
विश्व का मुआवज़ा चीन पर सवार
भारत रहे खबरदार
क्योंकि ब्रिटिश के डिवाइड रूल
का भारत है पक्षकार 
भारत ब्रिटिश से भंग करे यह समझौता
कहीं यह नेहरू खाज न बन जाये अकौता
भारत लगाये इस समझौते में पलीता, 
समझो भारत ने दुनिया का दिल है जीता
यह सलाह ही नहीं चेतावनी है, 
अहंकारी को भस्म कर देने वाली
उसकी चिताग्नि है।
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चीन का घिनौना षडयंत्र यह है कि विश्व की निरपराध जनता पर कोरोना अटैक करके जनसंख्या नियंत्रण कर दी जाये....! 

इस जनसंख्या नियंत्रण पर सारा विश्व है रोता 
सभी की रोजी रोटी छीनी कोई पड़ा है भूखा
शासन बनकर ज्ञान बांटते अनुशासन का 
किसने दिया अधिकार जनसंख्या नियंत्रण का
भूल जाओगे धोखाधड़ी इसको 'जनता' कहते हैं, 
ये वे ब्लैक कमांडो है जो मल ही मल में सोते हैं।
और ये वे व्हाटइट कमांडो हैं जो दलदल में सोते हैं
ये वे अमर अजर शिवशंकर भक्त हैं
 जो सरेआम जहर पीते हैं। 
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साथियों! यह तो चीन का षडयंत्र है अब पढ़ो ब्रिटिश का षडयंत्र - 

भारत के महामहिम राष्ट्रपति जी को लोकसभा में 2 एंग्लो इंडियन को मनोनीत करने का अधिकार हैं। जबकि राज्यपाल विधान सभा मे 01 एंग्लो इंडियन को मनोनीत करता है।बता दें कि 543 सांसद चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचते हैं जबकि लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 545 होती है तो बाकी के दो सांसद कहां से आते हैं?संविधान के मुताबिक लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों के लिए दो सीटें आरक्षित होती हैं।इन दोनों प्रतिनिधियों को तो कोई चुनाव भी नहीं लड़ना होता है। इन्हें तो डायरेक्ट राष्ट्रपति नामित कर देते हैं। 

एंग्लो इंडियन - 

संविधान के अनुच्छेद 366(2) के तहत एंग्लो इंडियन ऐसे किसी व्यक्ति को माना जाता है, जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज ब्रिटिश वंश के हों।यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों।

लोकसभा और राज्य विधान सभाओं में एंग्लो-इंडियन के लिए सीटों का विशेष आरक्षण है - बिना चुनाव लड़े डायरेक्ट नियुक्ति - 

एंग्लो-इंडियन एकमात्र समुदाय है जिसके प्रतिनिधि लोकसभा के लिए नामित होते हैं क्योंकि इस समुदाय का अपना कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं है। यह अधिकार फ्रैंक एंथोनी ने भारत के पीएम स्व. जवाहरलाल नेहरू से हासिल किया था। एंग्लो-इंडियनसमुदाय का प्रतिनिधित्व लोकसभा में दो सदस्यों द्वारा किया जाता। आप स्वंय सोचो कि अनुच्छेद 331 के तहत राष्ट्रपति लोकसभा में एंग्लो इंडियन सेसमुदाय के दो सदस्य नियुक्त करते हैं। इसी प्रकार विधानसभा में अनुच्छेद333 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार है कि (यदि विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है) वह 1 एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता है।मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, जॉर्ज बेकर और रिचर्ड हे को एंग्लो-इंडियन सदस्यों के तौर पर नामित किया गया था जो जून 2019 तक सांसद रहे। लेकिन वर्तमान में यानी कि दूसरे कार्यकाल में कोई नामांकन नहीं किया गया था। यह तभी संभव हो सका जब कुछ ईमानदार लेखकों, देशभक्तों ने हजारों लिखित पत्र भेजे, मेल किये, आवाज बुलंद की, कई बार हमने भी पीएमओ में मेल किये, लाखों भारतीयों की आवाज़ जब शासन तक पहुंची तब यह अच्छी सूचना आयी कि वर्तमान में यानी कि दूसरे कार्यकाल में कोई नामांकन नहीं किया गया। लगता है भारत सरकार जल्द ही ब्रिटिश के इस कुचक्र से मुक्ति पा लेगी। अच्छा है कि ब्रिटिश व्यवस्था के जबरन थोपे गये कानूनों, समझौतों को भारत सरकार बीन-बीन कर दाल में मिलावट स्वरूप डाले गये रंगीन पत्थरों की तरह अलग कर दें। यह शुद्धता और स्वच्छता कम से कम भारतीय संसद में बहुत जरूरी है वरना ब्रिटिश की गुलामी से हम कभी मुक्त नहीं हो सकेगें। 

  - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना🇮🇳

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