Breaking News

कहानी : कीमत - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना


 काल्पनिक पिक गूगल

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

यह कहानी नहीं मेरा जीताजागता अनुभव है कि मैं बाजार से एक सुन्दर छाता लेने के लिए जा रही थी। मौसम तो प्यारे से नटखट देव की तरह हैं कि जब घर से निकली थी तो मौसम सुहाना था और कुछ ही दूर चली कि सूर्य भगवान सिर पर आ गये। मानो उन्होंने अपनी चिलचिलाती धूप से हम सबको अग्नि स्नान करवा दिया हो। बस सिर पर दुपट्टा बांध कर लेडीज मार्केट में दाखिल हुई तो अजीब सी बहस की आवााज़ें मेरे कानों में विष सा घोल गयीं। मैंने पास जाकर देखा तो एक सूटबूट धारी अमीरों से अंग्रेजी में गिटपिट करने वाले एक महानुभाव उस गरीब को हिंदी में बड़ी ही भयंकर गाली देते हुए कह रहे थे कि जरा सा जूता फटा था केवल वही तो सिला है तुमने, जूतों पर चढ़ी जरा सी धूल ही हटाई है तुमने, और मेरे जूते का फटा तल्ला ही तो बदला है, इस सबके चालीस रूपये हो गये। तू मुझे बेवकूफ़ समझकर दिन दहाड़े लूट रहा है। इसमें कौन सा बड़ा काम कर दिया जो चालीस रूपये मांग रहा है। बीस रूपये लो बस। वो जूता सिलने वाला बुजुर्ग अपने फटे गमछे से अपने माथे का पसीना पोछते हुए, उसके पांव की तरफ़ जूता बढ़ाते हुए बोले,'' लो पहन लो, सामने नुमाइश पंडाल में आपको जो समाज रत्न सम्मान मिलने वाला है, उसमें कहीं देरी न हो जाये। जाओ बाबू साहब रहने दो पैसा। यह सुनकर मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा, ''कोट वाले अंकल, क्या कहा आपने कि जूते से थोड़ी धूल ही तो हटाई, जूता ही तो सिला, तल्ला ही तो बदला तो कौन सा बड़ा काम किया? बीस रूपये काफी हैं? वह बोला, ''तुम क्या इसकी नातिन लगती हो?'' मैंने कहा, ''हाँ नातिन लगती हूं पर आप पहले मेरी बात का जवाब दो?'' वह बोले यह केवल मात्र10-20 रूपये का काम है।बूढ़ा बिना बात मुझे ठग रहा है । अच्छा पहनावा देखकर लोग ठगने लगते हैं। मैंने कहा महानुभाव मैं आपको सौ रूपये दूंगी कृपया आप इन जूता गांठने वाले बुजुर्ग के जूते पर कपड़ा मार दो और जरा सी धूल हटा दो ।आपको इनका जूूूता सिलना भी नहींं और न ही तल्ला बदलना है केवल धूल साफ कर दो बस। वह गुस्से से आगें निकाल कर बोला, ''यह काम तो मैं किसी कीमत पर नहीं कर सकता?'' हमने कहा, ''आदरणीय! जो काम आप किसी भी कीमत पर नहीं कर सकते। सोचो! वही काम ये आदरणीय बुजुर्ग, दस बीस रूपये में कैसे कर दें? ये कैसा न्याय? ये बुजुर्ग आपका जूता साफ कर रहे हैं। क्या कोई भी इनकी इस कार्य की कीमत दे सकता है? हाँ यह जरूर है कि हम इन्हीं के मुतााबिक पारिश्रमिक अवश्य दे सकते है पर कीमत नहीं। यह सुनकर उस कोट वाले आदमी ने चुपचाप अपने जेब से दस - दस रूपये के चार नोट निकाले। यह देख उस बुजुर्ग ने रूपए लेने के लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया तो उस सूटबूट वाले ने पैसे हाथ में न देकर उसके पास में रखे लकड़ी के बाक्स पर रखकर चल दिया ।यह देखकर, पीछे से मैने कहा कि हाथ तो उसने आपके जूते को भी लगाया था फिर उसे क्यों पहन लिया? तब तक वो पास में लगी नुमाइश यानि प्रदर्शनी के पास हो रहे समाज रत्न कार्यक्रम की तरफ़ तेज कदमों से चला गया, हाँ बुजुर्ग के मुताबिक उसे समाज रत्न जो मिलना था। मैंने बुजुुर्ग से पूछा, '' बाबा, क्या आप इन्हें जानते थे? वह बुजुुर्ग मुस्कुराते हुए बोला, बिटिया! क्षेत्र के छुटपुट नेता को कौन नहीं जानता।

Published in newspaper










                 ससम्मान धन्यवाद आदरणीय 🙏💐

No comments