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सिटीजन जर्नलिज़्म का उज्जवल भविष्य

 

आखिर! क्या है सिटीजन जर्नलिज़्म? 

सिटीजन जर्नलिज़्म का वैश्विक उज्जवल भविष्य 
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-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 



मेरा मानना है कि सिटीजन जर्नलिज्म बहुत ही शानदार कदम है जोकि आत्मविश्वास और बेहतरीन कल्पनाशीलता, सच्चाई व मेहनत से भरपूर आयाम हैं बस थोड़े से प्रशिक्षण के बाद यह अनंत सम्भावनाओं का एक विराट खुला आसमान है, सबको मौका मिलना चाहिए, सच लिखने व सच दिखाने पर सब का हक है जोकि जन्मजात और मौलिक मानवीय स्वभाव है, हमें इसे और भी प्रभावी बनने देना चाहिए।आने वाले समय में हम एक उन्नत और सशक्त पत्रकारिता स्तर को न सिर्फ़ देखने बल्कि साधने योग्य होगें जोकि अद्भुत होगा एवं वैश्विक स्तर पर इसका भविष्य उज्ज्वल है। 

आज भारत प्रेस की स्वतंत्रता में 138वें नंबर पर पहुंच गया है। क्योंकि जब अर्णव गोस्वामी सवाल पूछते हैं तो जेल जाते हैं, रवीश कुमार सवाल पूछते हैं तो गद्दार कहे जाते हैं, प्रसून जोशी को चैनल से बाहर कर दिया जाता है, अहमदाबाद के चिराग पटेल को जला दिया जाता है, मणिपुर के पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम  व गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी के साथ ज्यादती की जाती है और ना जाने कितने पत्रकारों की निर्मम हत्या करवायी जा चुकी है। पत्रकारों का काम ही है सवाल पूछना पर जब पत्रकार सत्ता के गलियारों के चश्मों चिराग बन जाते हैं तू दिक्कतें शुरू होती हैं। आकड़ों की माने तो पिछले 23 साल में दुनिया में 1928 और भारत में 74 पत्रकारों की हत्या हुई, लैटिन अमेरिका में हर महीने 12 पत्रकार मार दिए जाते हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में 248 पत्रकारों को कैद किया गया, 2020 में अब तक 64 पत्रकार लापता हुए। भारत में 2014 से 2020 के बीच 27 पत्रकार मारे गए जबकि 2009 से 2013 के बीच 22 पत्रकारों की हत्या हुई। 

पत्रकार भी क्या करे चैनल के मालिक की न सुने तो नौकरी जाती है बेरोजगारी आती है और सच बोले तो मार दिया जाता है। बहुत जगह पूंजीपतियों के मोटे विज्ञापन के चलते पत्रकार हर वो लेख छापने को तैयार हो जाता जो नहीं छपना चाहिये। जमीर और पैसा जब दोनों सामने हों और परिवार की जिम्मेदारी तो मंहगाई में लोग पैसा ही चुनते हैं वरना पत्रकार का कोई नहीं होता। क्या कोई ऐसा वकील है जो कह दे कि पत्रकारों के केस हम मुफ्त लड़ेगें? क्या कोई ऐसा जज है जो यह विश्वास दिला दे कि पत्रकारों के फैसले जल्द सुना देगें? क्या कोई नेता ऐसा है जो पत्रकारों के सम्मान में नहर, पोखर, स्मारक आदि बनवाकर मददगार साबित होता हो। फिर जनता भी सहयोग न करे तो पत्रकार क्या करे?ईमानदार पत्रकारों के हालात सचमुच बहुत खराब हैं। स्पष्ट है कि सच्चाई को रौंदा जा रहा है और झूठ सोने चांदी के बरक लगाकर परोसा जा रहा है। इतिहास गवाह है कि जब 1830 में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब पत्रकारों ने एक जबर्दस्त क्रांति शुरू की और जनता से फ्रांस के क्रांतिकारी सिद्धांतों की रक्षा की अपील की। इसके बाद विद्यार्थी, मज़दूर और किसान इस क्रांति से जुड़ते चले गए।बता दें कि देश में वर्तमान युग न्यूज़ वेब पोर्टल का युग है, सिटीज़न जर्नलिस्म का युग है। लोग मिलकर नए-नए वेब पोर्टल्स बना रहे हैं, जिससे वह जनता को जानकारी दे सकें, क्योंकि न्यूज़ चैनल जानकारी नहीं प्रोपेगेंडा परोस रहे हैं। अब कुछ गिने चुने जुझारू युवाओं की काफी मेहनत के बाद सिर्फ मोबाइल फोन न्यूज ऐप पर जानकारी मिल रही है। आज प्रेस की स्वतंत्रता खत्म होने और प्रेस पर पूंजीपतियों और राजनीति के प्रभाव के कारण ही लोग अब मेनस्ट्रीम मीडिया का साथ छोड़ रहे हैं। गौरतलब है कि 2014 के बाद मानो ऑनलाइन वेब पोर्टल की बाढ़ सी आ गई है। लोगों ने अपनी फेसबुक और ट्विटर की वॉल को ही अपडेट देने का स्त्रोत बना दिया है। आज जैसे-जैसे सिटीज़न जर्नलिज़्म को बढ़ावा मिल रहा है, वैसे-वैसे कुछ तथाकथित चाटुकार पत्रकारों की दुकाने बंद हो रही हैं। हों भी क्यों ना कि वह चैनल पर हिंदू मुस्लिम बहस ऐजेंडा चलाकर पब्लिक को गुमराह करते हैं, कभी कोई चैनल जब बेरोजगारी पर किसानों पर फौजियों के हित में बात नहीं करता तब आज सिटिजन जर्नलिस्ट वेबीनार करवाकर सही मुद्दा जनता के सामने रख रहे हैं और सुर्खियां बटौर रहे हैं। 

आज सिटिजन जर्नलिज्म के जरिये हर आम आदमी बिल्कुल सच्ची न्यूज अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर लिखकर बिना लाग लपेट चला देता है चाहे भले उसके पास पत्रकारिता की डिग्री डिप्लोमा प्रशिक्षण ना हो पर वह सच दिखाकर हीरो बन चुका है और यही है सिटिजन जर्नलिज्म पर बहुत से लोग जो यूट्यूब चैनल चला रहे हैं उनको थोड़ा प्रशिक्षण भी मिल जाये तो सोने पर सुहागा हो। अब सवाल उठता है कि उनको प्रशिक्षण दे कौन? इसलिए युवा खुद मेहनत करके सीखते- सीखते, सीखेगें फिर भर- भर टुकना पीसेगें वाली कहावत सच करते दिखाई दे रहे हैं। बिल्कुल उसी तरह कि होटलों पर वैटर फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हैं बस अभ्यास से, अनेकों लोग जो इंजीनियरिंग की डिग्री के बिना पार्ट जोडकर शानदार कारें व जहाज तक बना देते हैं और डिग्री वाले सोचते रह जाते हैं। डिग्री से ज्यादा अनुभव अनमोल है जो हमें सशक्त बनाता है। आज बिना किसी ट्रैनिंग के प्रभावी हो रही सिटिजन जर्नलिज्म जिसपर गर्व होना चाहिए। क्योंकि यही है आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद । 

आज भारत में बहुत बडी संख्या में सिटिजन जर्नलिस्ट हैं बता दें कि देश में डेटा की खपत अमेरिका और चीन की कुल डेटा खपत से भी ज्यादा है। क्योंकि युवा मोबाइल का पूरा यूज कर रहा है। कंज्यूमर स्नैपशॉट सर्वे के अनुसार कोरोना लॉकडाउन से पहले यूजर्स सोशल मीडिया पर औसतन रोज 150 मिनट बिताते थे। वहीं 75 प्रतिशत यूजर्स ने जब फेसबुक, वॉट्सऐप और ट्विटर पर ज्यादा टाइम खर्च करना शुरू किया तो यह डेली 150 मिनट से बढ़कर 280 मिनट हो गया। वर्तमान में भारत में तकरीबन 350 मिलियन सोशल मीडिया यूज़र हैं और अनुमान के मुताबिक 2023 तक यह संख्या लगभग 447 मिलियन तक पहुँच जाएगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि सोशल मीडिया के सही उपयोग द्वारा सिटिज़न जर्नलिज़्म कैसे समाज व आम आदमी की आवाज बन सकता है। सिटिज़न जर्नलिज़्म की संभावना व भूमिका आने वाले समय में और अधिक बढ़ने वाली है। 

आज सिटिजन जर्नलिज्म के माध्यम से किये गये प्रयासों से अनेकों सकारात्मक परिवर्तन अपने आस-पास होते हुए दिखाई भी देते हैं। जैसे-जैसे नागरिक पत्रकारिता का ग्राफ ब़ढ़ रहा है वैसे-वैसे इसके तौर-तरीकों में भी बदलाव दिखाई देने लगा है। आज शब्दों के साथ-साथ वर्चुअल मीडिया, न्यू मीडिया, क्रॉस मीडिया का महत्व भी बढ़ गया है। इसलिये नागरिक पत्रकारिता के लिये अब कलम के साथ-साथ मॉउस की ताकत, न्यू मीडिया की तकनीक व पहुँच को समझना भी आवश्यक हो गया है। बता दें कि सिटिज़न जर्नलिज़्म यानि नागरिक पत्रकारिता भी कहते हैं, आज आम आदमी की आवाज़ बन गया है। यह समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए, संबंधित विषय को कंटेंट के माध्यम से तकनीक का सहारा लेते हुए अपने लक्षित समूह तक पहुंचाने का एक बेजोड़ हुनर है, ज़ज्बा है। वर्तमान में नागरिक पत्रकारिता कोई नया शब्द नहीं रह गया है बल्कि आज इस विधा से न जाने कितने ही लोग अपनी सशक्त भूमिका को निभाते हुए दिखाई देते हैं।

नागरिक पत्रकार का मतलब यह भी है कि निष्पक्ष भाव से समाचार सामग्री का सृजन करना । नागरिक पत्रकारिता के कारण ही कौन-से समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित होंगे, ये निर्णय अब केवल कुछ मुठ्ठी भर लोगों का नहीं रह गया है। नागरिक पत्रकारिता की भूमिका व नये मीडिया तक उसकी पहुँच ने अब सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। आज नागरिक पत्रकारिता एक ओर जहाँ समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निवर्हन है वहीं दूसरी ओर मीडिया में समाज की सहभागिता बढ़ाने हेतु एक सुनहरा रोजगारपरक अवसर भी है।

सही मायने में नागरिक पत्रकारिता आम आदमी की अभिव्यक्ति है। आम आदमी से जुड़ी ऐसी अनेकों कहानियाँ हैं जो परिर्वतन की वाहक बनती हैं। व्यवस्था का ध्यान आकर्षित करना हो या व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करना हो, नागरिक पत्रकारिता धीरे-धीरे एक प्रभावी सत्यनिष्ठ ज़रिया बनकर उभर रही है। नागरिक पत्रकारिता जहाँ पर एक अवसर व अपनी भूमिका को निभाने का एक सशक्त माध्यम दिखाई देती है, वहीं इसमें अनके प्रकार की चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो इस शब्द की स्वीकृति को लेकर ही कुछ वर्गों में दिखाई देती है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति किसी सूचना व जानकारी को प्रचारित व प्रसारित करता है तो क्या उसे पत्रकार मान लिया जाए ? तो इसका जवाब है, हाँ। नागरिक पत्रकारिता के नाम पर किसी के जीवन के व्यक्तिगत पहलू जिसका समाज से सीधा-सीधा कोई सरोकार नहीं है एवं सनसनीखेज खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से दिखा देना भी एक बड़ी चुनौती है। इन सब चुनौतियों के बावजूद भी नागरिक पत्रकारिता में असीम संभावना है। वर्तमान तकनीक के माध्यम से पत्रकारिता के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, उपलब्ध माध्यमों का प्रयोग कर व्यक्ति नागरिक पत्रकारिता के रूप में अपने को दृढ़ता से स्थापित कर सकता है। नागरिक पत्रकारिता से शुरू होकर मुख्य टीवीमीडिया तक का सफ़र आज असंभव नहीं है। आज नागरिक पत्रकार को यह समझना होगा कि नागरिक पत्रकारिता लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का एक मंच है। सूचना के अधिकार को किस प्रकार नागरिक पत्रकारिता का पर्याय बनाया जा सकता है यह भी उसको गम्भीरता से सीखना होगा। भाषा की शुद्धता, स्पष्टतः,सौम्यता, उसका स्तर बनाए रखना भी इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नागरिक पत्रकारिता करते हुए किस प्रकार के विषयों का चयन किया जाए और उन्हें अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए फोटो, वीडियो व ग्राफिक्स के महत्व को भी उसे समझाना होगा।

आज इस कार्य को आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है टेक्नोलॉजी ने। आज हर नागरिक अपने फोन के माध्यम से दुनिया के साथ हर पल जुड़ा हुआ है। वह कहीं से भी किसी को न्यूज, तस्वीरें, वीडियो और आलेख भेज सकता है। पहले कंटेंट का निर्माण कुछ विशेषज्ञों तक ही सीमित था। मौजूदा दौर में इंटरनेट से जुड़ा तकरीबन हर व्यक्ति लगातार कंटेंट का निर्माण ही नहीं कर रहा बल्कि उसे सतत सम्प्रेषित भी कर रहा है। सोशल मीडिया ने ऐसे एप्लिकेशन विकसित कर लिए हैं जिससे तकरीबन हर कोई अपनी भाषा में, चाहे सीमित दायरे में ही क्यों न हो, एक मीडियाकर्मी बन चुका है। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, वीचैट, टिकटॉक आज किसी भी बड़े मीडिया संस्थान से कहीं बड़े मीडिया उपक्रम हैं। लेकिन ध्यान रखने की बात है कि इन सब प्लेटफॉर्म पर कंटेंट आम नागरिक यानि हमारे सिटिजन जर्नलिस्ट ही बनाते और सम्प्रेषित करते हैं। आज सिटिजन जर्नलिज्म चरम पर है बस जरूरत है तो मजबूत इच्छाशक्ति से पत्रकारिता की हर बारीकियों को सीखने की और फेक न्यूज से बचने की राह पर अंगद की तरह पांव जमा देने की फिर हमें आगें बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। गर्व से कहो पत्रकार हैं हम, गर्व से कहो सिटिज़न जर्नलिस्ट हैं हम।












1 comment:

  1. मैंम अर्णव गोस्वामी का नाम नहीं आना चाहिए था वो तो पहले ही बिका हुआ है।

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