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भजन : मंदिर ✍️ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना




मंदिर, मन का साध्य है
ॐ, ईश्वर का हृदयद्वार है
मूर्ति, ईश्वर विराजमान है
कलश, मंगल का आवाह्न है 
फूल मालाएं, प्रकृति सम्मान है
सिंदूर चंदन, कार्यसिद्धि योग है
जयकार, विजय का उद्घोष है
भजन, मन भजे नहीं आनंद है
प्रसाद, आत्मा का आहार है
शंखनाद, साधना का साधन है
परिक्रमा, शाश्वता का घोतक है
साधू-संत, ईश्वर के प्रतीक हैं 
सीढ़ियाँ, मंजिलों का आशीर्वाद है 
मेले, सामाजिकता प्रेम पर्याय है
सनातन ग्रंथ, नवसृजन का मूल हैं
पेड़ - पौधे, प्रकृति संतुलन उपाय है 
मंदिरों से लोगों की छुदा मिटती है
मंदिरों से जरूरतमंदों की मदद होती है 
मंदिर में जो प्रवचन चलते हैं 
वो, मदिरा जैसे व्यसनों का मर्दन करते है
हवन और आरती से दिशायें शुद्ध होती है 
मंदिर पर्यावरण शुद्धी के केन्द्र होते हैं
जब भर आतीं हैं आखें पीड़ा से
तो मंदिर उम्मीद जगाते हैं
जब हार जाता है इंसा तो
मंदिर ढ़ाढ़स बधाते हैं
मंदिर मुक्ति का मार्ग है। 
मंदिर भक्ति का द्वार है। 
मंदिर कर्म का विज्ञान हैं। 
मंदिर अनंत अकूत श्रद्धा भंडार है 
मंदिर माया प्राकृतिक आपदाओं में प्रयोग है
मंदिरों से मन और जीवन निर्मल होता है 
 मंदिर को परिभाषित करना दुष्कर कर्म है 
मंदिरों की व्याख्या मधुर वात्सल्ययुक्त है
मंदिर में जाना अहं से मुक्ति है। 
मंदिरों में जाना स्व: जागृति है। 
मंदिर सकारात्मक ऊर्जा केन्द्र है। 
मंदिर निश्चित ही प्रेम का पुंज हैं। 
मंदिर हमारी सांस्कृतिक विरासत स्तम्भ हैं। 



                   _ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना




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