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गाली मुक्त गाँव

कहानी - गाली मुक्त गाँव



जब कभी मैं गली, नुक्कड़,चैराहे, बाजार में,ऑटो में, बस में, ट्रेन या किसी सरकारी व प्राईवेट ऑफिस में जाती हूँ तो हर जगह एक चीज कॉमन है जो है हर जगह कुछ लोगों के मुँह से माँ की गाली देना। ज़रा सी गुस्सा आयी नहीं कि सामने वाले को माँ की गाली सुना देना। आपने ध्यान दिया हो तो माँ की गाली में जो शब्दों का प्रयोग है वो इतना स्तरहीन है कि मैं यहां लिख भी नहीं सकती। इसलिए हमेशा मन में यह ज्वार उठता है कि क्या हमारा गाँव, कस्बा, नगर और देश कभी गाली मुक्त हो सकता है? क्या आकांक्षा सक्सेना तुम्हारे पास है कोई नया आईडिया? तो यही विचार बार-बार मन में उबाल मार रहा था। एक तो सामने ब्लॉक प्रमुख चुनाव में गाली और हिंसा की तस्वीरें, एडिटर द्वारा गाली वाली लाईन को बार-बार म्यूट करने का क्रम महसूस कर रही थी। सोचा एक कहानी कि लिखूं जिसमें कुछ ऐसा हो कि एक अच्छाई फैलाने का सुन्दर क्रम (चैन) बनता चला जाये। तो आइये! यह कहानी का नाम है, 


    गाली मुक्त गाँव -

एक कॉलेज के बाहर वाली सड़क पर राजू और काजू नाम के दो लड़के आपस में एक दूसरे का कॉलर पकड़ कर एक दूसरे को माँ की गाली देकर लड़ रहे हैं और कह रहे हैं, रीमा मेरी है! रीमा सिर्फ़ मेरी है। यह नजारा देखकर रीमा अपना बैग ठीक करते हुए वहां आती है और दोनों को एक - एक थप्पड़ मारते हुए कहती है कि तुम दोनों मेरे भाई जैसे हो, भाई मानती हूं, समझे। यह सुनकर राजू, काजू को बड़ी शर्मिंदगी होती है और वह दोनों रीमा के पांव छूने लगते हैं कि बहन माफ कर दो। अगस्त में रक्षाबंधन है, भगवान कसम राखी बांधना और गिफ्ट भी पसंद का लेना प्लीज़ माफ कर दो। तुम्हारे बिना अमीबा, पैरामीशियम के हमारे चित्र कौन बनायेगा? प्लीज़। यह सुनकर रीमा मुस्कुराई और बोली कि ओके! माफकर दूंगी पर एक शर्त पर? दोनों ने कहा, मंजूर, मंजूर । रीमा ने कहा, राजू तुम काजू के घर जाओ । काजू की मम्मी आलू पराठें बड़े स्वादिष्ट बनातीं हैं। जाओ जाकर कहना, आंटी जी आप मेरी मां जैसी है बड़ी भूख लगी है आलू पराठे मिलेगें प्लीज़। और तुम काजू, राजू के घर जाओ। राजू की मम्मी चूल्हे पर हाथ से पानी की सौंधी - सौंधी रोटियां बनातीं है जो दही के आलू से मांग लेना। कहना बहुत भूख लगी है मां जी प्लीज़। रीमा की बात मानकर दोनों एक दूसरे के घर जाते हैं और दोनों की मम्मी बड़े प्रेम आलू पराठे, चूल्हे की पानी की रोटी खिलाने के बाद दस, दस रूपये शगुन के देते हुये कहतीं हैं। बेटा खूब तरक्की करो ।खूब उन्नति करो। खूब प्यार बाटों। इस गांव का नाम ऊंचा करो। यह प्यार पाकर दोनों मां के चरण स्पर्श करके एक दूसरे के घर के बाहर निकलते हैं। दोनों सड़क पर साथ - साथ चुपचाप चल रहे हैं पर दोनों की एक दूसरे से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं होती। दो कदम आगें चलते ही दोनों एक दूसरे की तरफ देखते हैं और भावुक होकर एक दूसरे के गले लग जाते हैं और कहते हैं आज के बाद जीवन में माँ-बहन की गाली कभी नहीं देगें। फिर दोनों चार-पांच कदम और चले कि उनसे कम उम्र के दो लड़के आपस में गुथे हुए लड़ रहे थे और अब वह दोनों एक दूसरे को मां की गाली देने लग गये। यह देखकर राजू और काजू ने दोनों को हटाया और हल्के से सिर और पीठ पर मारते हुए कहा, धरती से उचके नहीं और माँ की गाली देते हो। शर्म नहीं आती। तभी वो बच्चे बोले, क्यों, आप दोनों गाली नहीं देते क्या? तो राजू, काजू ने छाती चौड़ी करते हुए गर्व से कहा, हम माँ-बहन की गाली नहीं देते और न ही कभी देगें। चलो तुम दोनों मेरे साथ। यह कहते हुए, राजू - काजू, उन दोनों बच्चों को एक दूसरे के घर ले गये और उनकी मम्मी से मिलवाया । दोनों की मम्मी ने केक दिया, चॉकलेट दी और लस्सी भी पिलायी । दोस्त की मम्मी से मिला इतना स्नेह दुलार देखकर, उन दोनों बच्चों ने प्रोमिस किया कि आज के बाद कभी भी माँ - बहन की गाली नहीं देगें। बस फिर क्या था राजू, काजू, रीमा, और उन दो बच्चों से अच्छाई की कड़ी दर कड़ी जुड़ती गयी और अच्छाई का क्रम बढ़त चला गया और कुछ समय बाद रीमा और राजू और काजू की अथक मेहनत से एक दिन उनका अपना गाँव गाली मुक्त हो गया। मुझे यकीन है कि यह लोग यहीं नहीं रूकेगें और एक दिन यह अच्छाई की चैन मिलकर पूरे भारत को गाली मुक्त भारत बना कर ही चैन पायेगी। 

हमारे प्यारे महान भारतवर्ष को सैल्यूट 🇮🇳  

कैसी लगी आपको यह कहानी प्लीज़ बताइयेगा। 


__ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

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