Breaking News

इंटरव्यू : इन्दुभूषण कोचगवे जी



शख्सियत : 82 वर्षीय आदरणीय श्री इंदुभूषण कोचगवे जी जिन्होंने उत्तराखंड में, भारत में पहली बार दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए स्पेशल बीएड कोर्स का प्रारम्भ  अपने भागीरथ प्रयास से सम्भव करवाया। गौरतलब है कि वह भारत में दृष्टि बाधित बच्चों के लिए सर्वप्रथम स्थापित विद्यालय, शार्प मेमोरियल स्कूल फाॅर द ब्लाइंड में दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के सेवार्थ शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य भी किया। वहीं, एम. पी. भोज मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त बी.एड्. (स्पेशल) पाठ्यक्रम का संचालन मुख्य समन्वयक के रूप में जुझारू स्तर पर किया। फिर दिव्यांग बच्चों के सेवार्थ सन् 2003 में ''चित्रांचल कल्याण समिति'' की स्थापना करके दिव्यांग बच्चों के हितार्थ ''समुदाय आधारित पुनर्वास'' सेवा से जुड़े रहे और दिव्यांग बच्चों के मैच भी करवाये । इसके अतिरिक्त मूक बधिर बच्चों के विद्यालय  'बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग', सुविधा हीन बच्चों की संस्था उत्तराखंड राज्य बाल कल्याण परिषद'', भारत विकास परिषद 'द्रोण', उत्तराखंड डिस्लेक्सिया एंड 'डिस्एबिलिटी एसोसिएशन', हिन्दी साहित्य समिति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय प्राचीन छात्र समिति, देहरादून में स्थायी सदस्य के रूप में अभी तक सेवारत् हैं।

साहित्यकार का साक्षात्कार - 


जानिए! कौन हैं इन्दुभूषण कोचगवे जी 


साथियों! भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद्भागवत गीता में स्पष्ट कहा कि साहित्यकारों में, मैं ऋषि वेदव्यास हूँ। भगवान शिव जिनके डमरू से संस्कृत भाषा का प्राकट्य हुआ और तमिल भाषा ने उन्हीं से अस्तित्व पाया । अतैव, शिव पुराण में सदाशिव स्वंय कहते हैं कि शब्दों में, मैं ओंकार हूँ। यही नहीं विश्व के सभी धर्मों में शब्द पूजनीय माने गये हैं। इसलिए विश्व का प्रत्येक लेखक आराधनीय है और इसी क्रम में आज आपको शब्दों द्वारा शब्दों को रूबरू करायेंगे और वह शब्द होगें, भारतवर्ष की उस महान,आशुकवि, दिव्य साहित्यिक, स्थावर-जंगम सम्मोहित शख्सियत आदरणीय श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी से, जिन्होंने अनेक विषयों पर धाराप्रवाह दोहे लिखने की अपनी इस विलक्षण शब्द सिद्धि से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों में अपना एक अलग नाम-पहचान-मुकाम पाया है जिससे आज, हिंदी भाषा की 'दोहा मणि' उपाधि शब्द स्वत:ही आदरणीय श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी के नाम के आगें नतमस्तक हो गया है। बता दें कि इस "सच की दस्तक" के वही संरक्षक भी हैं जिनके बहुमूल्य मार्गदर्शन में वाराणसी से प्रकाशित होने वाली यही राष्ट्रीय मासिक पत्रिका'सच की दस्तक' निरंतर नयी उपलब्धियों को प्राप्त हो रही है। तो, आइये! जानते हैं उनकी अभूतपूर्व अविस्मरणीय मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत अनुकरणीय जीवन यात्रा उन्हीं की ज़ुबानी-

सवाल - सर आपके जन्मस्थान व अपने
परिवार के बारे में हमारे पाठकों को बतायें?

जवाब- मेरा जन्म  30 जून 1939 को कुलीन कायस्थ परिवार में वाराणसी के सन्निकट मुगलसराय (दीनदयाल उपाध्याय नगर) में हुआ। मेरी पथप्रदर्शक माताजी का नाम स्व. श्रीमती चंद्रप्रभा देवी और प्रेरणास्रोत मेरे पिताजी का नाम स्व. श्री जय मंगल प्रसाद जी है। 

सवाल- सर आपने शिक्षा कहाँ से पूर्ण की?

जवाब- मैनें रेलवे इंटर कॉलेज मुगलसराय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय पटना विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम. एस. सी., एम. ए., बी. एड्., डिप्लोमा इन फाईन आर्ट्स किया। 

सवाल- सर मुगलसराय और देहरादून के
लोग आपको 'गुरूजी' क्यों पुकारते हैं?

जवाब- वो इसलिए कि मैं 1969 से अक्टूबर 1978 तक - नगरपालिका इंटर कॉलेज, मुगलसराय में रसायन विज्ञान प्रवक्ता रहा और 1978 - फरवरी 1999 तक - रेलवे इण्टर कॉलेज, मुगलसराय में शिक्षक था और वहीं से प्रधानाध्यापक के पद से सेवामुक्त हुआ। सेवा मुक्त होने के बाद अक्टूबर 1999 से जुलाई 2001 तक - प्राचार्य, एस. जी. आर. आर. पब्लिक स्कूल, भानियावाला, देहरादून रहा। अक्टूबर 2001-2007 तक -  भारत में दृष्टि बाधित बच्चों के लिए सर्वप्रथम स्थापित विद्यालय, शार्प मेमोरियल स्कूल फाॅर द ब्लाइंड में दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के सेवार्थ शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य किया। वहीं, एम. पी. भोज मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त बी.एड्. (स्पेशल) पाठ्यक्रम का संचालन मुख्य समन्वयक के रूप में किया।

सवाल - सर आप किसी सोसाइटी 
से भी जुड़े हैं? 

जवाब- जी, ''चित्रांचल कल्याण समिति'' से। दिव्यांग बच्चों के सेवार्थ सन् 2003 में ''चित्रांचल कल्याण समिति'' की स्थापना करके दिव्यांग बच्चों के हितार्थ ''समुदाय आधारित पुनर्वास'' सेवा से जुड़ा हुआ हूँ। इसके अतिरिक्त मूक बधिर बच्चों के विद्यालय  'बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग', सुविधा हीन बच्चों की संस्था उत्तराखंड राज्य बाल कल्याण परिषद'', भारत विकास परिषद 'द्रोण', उत्तराखंड डिस्लेक्सिया एंड 'डिस्एबिलिटी एसोसिएशन', हिन्दी साहित्य समिति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय प्राचीन छात्र समिति, देहरादून में स्थायी सदस्य के रूप में अभी तक सेवारत् हूँ।

सवाल - सर आप भारत की किन 
पत्रिकाओं से बतौर लेखन जुड़े रहे?

जवाब - लगभग सभी सुप्रसिद्ध पत्र - पत्रिकाओं - सर्व प्रथम 'धर्मयुग', आज, गाण्डीव, सरिता में मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुईं। देहरादून आने के बाद विज्ञान परिचर्चा, कविताम्बरा, सोच विचार तथा रत्नांक में मेरी कहानी तथा कविताएं प्रकाशित होती रही हैं । 

सवाल - सर कृपया आपकी लिखी 
हुई पुस्तक के बारे में ''सच की दस्तक" के 
पाठकों को बतायें?

जवाब- आकांक्षा! जीवन के सत्तर वर्ष के पश्चात मेरी पहली पुस्तक "सात दशक पश्चात ही गढ़ा घरौंदा एक" जो पूरी तरह दोहे पर  आधारित है, 2017 में प्रकाशित हुई।' इसमें विभिन्न विषयों, जैसे - ममता के प्रहरी (माता-पिता), बेटी, बचपन, अनाथ बच्चे, विकलांगता, मौसम, आदि पर करीब 721 दोहों का संकलन है। 

सवाल - सर आपके सबसे ज्यादा पसंदीदा 
कवि और लेखक कौन से हैं?

जवाब - कवियों में तुलसीदास, सूरदास,महादेवी वर्मा, जयशंकर 'प्रसाद' तथा मैथिलीशरण गुप्त। कहानीकार के रूप में प्रेमचन्द जी। 

सवाल - सर आपकी इस साहित्य यात्रा में 
सबसे ज्यादा सहयोग किसका रहा और 
किस तरह का  संघर्ष रहा? 

जवाब - देहरादून आने के बाद प्रोफेसर डी. पी. एस. खन्ना जी, श्री सुशील चन्द्र डोभाल जी, डॉ. मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी जी, श्री जगदीश बाबला जी तथा मेरे बचपन के मित्र श्री गौरीशंकर तिवारी ने हर कदम पर सहयोग किया और अब श्री शिव मोहन सिंह जी भी साथ निभा रहे हैं। रही बात संघर्ष की तो जब अच्छे मित्र और सहयोगी मेरे साथ हैं तो  संघर्ष कैसा। 

सवाल- आपके पूरी जीवन की अद्भुत 
यात्रा में आपकी प्रेरणा कौन रहीं?मतलब 
हर पुरूष की सफलता के पीछे नारी का 
हाथ होने वाली कहावत में.. वो कौन रहीं? 

जवाब- मेरी माँ और मेरी अर्धांगिनी व मेरा परिवार मेरी ऊर्जा रही हैं। दु:खद है कि अब दोनों ही मेरे साथ भौतिक रूप से नहीं हैं परन्तु वे मेरी स्मृति पटल पर सदा अमर हैं और रहेगीं।

सवाल - सर आप को सर्वप्रथम लेखन की 
प्रेरणा किससे मिली? 

जवाब - श्री जगदीश बाबला जी ने प्रेरित किया और सुविधा हीन तथा दिव्यांग बच्चों से प्रेरणा मिली। 

सवाल - युवा लेखकों नवांकुरों को आप
क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब - सर्वप्रथम जब हम अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करेंगे तभी अच्छी चीजें पाठकों को दे सकेंगे। जीवन में दिव्यांग बच्चों से प्रेरणा लेनी चाहिए








No comments