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मूर्ख बनाओ, राज करो

मुहर्रम का यह शांतिपूर्ण जुलूस देखो- मंदिरों और हिंदुओं के घर के सामने से निकलते हुए। पर हिंदुओं ने तो कभी पत्थर नहीं चलाये, कभी विरोध नहीं किया। हमेशा सम्मान किया।🙏


मुहर्रम का शांतिपूर्ण जुलूस देखो- मंदिरों और हिंदुओं के घर के सामने से निकलते हुए। पर हिंदुओं ने तो कभी पत्थर नहीं चलाये, कभी विरोध नहीं किया। छतों से उत्साहपूर्वक आपका जुलूस देखा पर छतों से एक भी पत्थर, पेट्रोल बोतल नहीं फेंकी गयी। हमेशा सम्मान किया।🙏ये दंगे नेताओं के इशारों पर ही होते हैं जिसे डर्टी पॉलिटिक्स कहते हैं। यह जो चिल्ला रहे हैं हाय! रोहिंग्या हाय! बांग्लादेशी, तो इनको भारत में शरण किसने दी?इनकी बहुलता को संवेदनशील इलाके की सनद (सर्टिफिकेट) किसने दी? तो बताओ कि दूसरे देशों के लोगों को भारत की नागरिकता किसने दी? पाकिस्तान तक के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा चुकी है। आधारकार्ड कैसे बन जाते हैं? वोट के लिए  यह नेता किसी भी हद तक, कुछ भी करते हैं। फिर जब दंगे हों तो बस टीवी पर डिबेट में बैठकर आरोप-प्रत्यारोप करके पल्ला झाड़ लेते हैं। ध्यान से देखते रहना कि यह जो दंगे में आरोपी पकड़े गये हैं, यह सब धीरे-धीरे छूट ही जायेगें। पर जो दंगे में मर गये वो कभी वापस नहीं आते। किसी के घायल होने पर गहरे जख्म हुए उनके निशान कभी नहीं मिटेगें। पर चुनाव हमेशा आबाद रहेगें। नेता जीतते रहेगें और जनता हारती रहेगी बस हारती रहेगी.. आप ध्यान से देखो! जब तक चुनावी दौर चलेगा एक दूसरे को गालियां देगें। चुनाव खत्म होते ही एक दूसरे के धुरविरोधी नेता, साथ बैठे हुए, एक दूसरे के घर आते-जाते दिखेगें। हिन्दी पर लेक्चर देगें, भारतीय संस्कृति पर ज्ञान देगें और खुद के बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं।

खुद के बच्चों की उम्र भी कार्यकर्ताओं के बच्चों की उम्र बिल्कुल बराबर हो तब भी अपने बच्चों को सुरक्षित जोन में रखते हैं । आपने कभी सोचा! कि पक्ष-विपक्ष के नेताओं के बच्चे सोसलमीडिया पर एक दूसरे विरोधी नेताओं के बच्चों से फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि पर लड़-झगड़ रहे हों। मुझे तो लगता है नेताओं के बच्चे सोसलमीडिया से ही दूर रहते हैं। पता है क्यों, क्योंकि यह अपने बच्चे हैं, यह तनावमुक्त रहे हैं, इन पर कोई केस मुकदमा न चले। क्योंकि यह पैदा ही बड़ी पोजीशन के लिए हुए हैं। बाकि आम जनता भूसा है ग्रुप बनाये आपस में लड़े - जूझे, हमारी जिंदाबाद करे, हमारी रैलियों में आकर भीड़ बढ़ाये। समानता की बात सिर्फ़ ढकोसला है।  खुद के बच्चे किसी पार्टी के साधारण कार्यकर्ता मतलब जिंदाबाद करने वाले नहीं बनेगें। वह डायरेक्ट मंत्री आदि बड़े पोजीशन पर होगें चाहे काबिल हों या न हों। देश में हर दिन अनेकों बेसहारा बच्चे षडयंत्र के तहत क्रय-विक्रय हो जाते हैं, मानव अंगों की तस्करी जारी है। कोई नहीं जानता यह हैवानियत किस हद तक जायेगी। सोचो! नेता लोग हजारों करोड़ की सम्पत्ति मालिक कैसे बन जाते हैं? सोचो! क्या ये अपनी रैलियां अपनी सैलरी से करते होगें? सबसे मजे की बात जिस कौम को आपस में लड़ाकर अपना उल्लू सीधा किया जाता है, वही कौम के लोग सिर्फ़ लोग नहीं बल्कि एक दूसरे के दामाद हैं, रिश्तेदार हैं। आम जनता का छज्जा भी बढ़ जाये तो कार्यवाही और अमीरों के लिए कानून अलग। नेताओं के लिए अदालत रात में भी खुल जाया करतीं हैं और आम जनता जीते जी मृतात्मा की तरह वर्षों न्याय के लिए दिन दोपेहरी में भी भटकतीं फिरतीं हैं। आंसू लिए घर लौटती हैं। गरीब और बेरोजगार का सिर्फ़ भगवान है बाकि दूजी आस नहीं। देश में बेरोजगारों की भर्तियां लटकीं पड़ी हैं कोई सुनवाई नहीं, तब तक वह ओवरएज हो जायेगा।फिर वह क्रीम पाऊडर बेचे या अन्य काम ढूंढे। डिग्री डिप्लोमा में लगा धन कौन सा वापस मिलने वाला है। 

देश में कोर्ट में मुकदमें फाईनल नहीं हो रहे, पीड़ित कोर्ट के बाहर सुबह से शाम तक लाईन में बैठे हुए चुपचाप तारीख लेके लौटते-लौटते कब जवान से बूढे हो गये, कोई सुनवाई नहीं खुद के बच्चे किसी पार्टी के साधारण कार्यकर्ता मतलब जिंदाबाद करने वाले नहीं होते। वह डायरेक्ट मंत्री आदि बड़े पोजीशन पर होगें चाहे काबिल हों या न हों। 

देश में बेरोजगारों की भर्तियां लटकीं पड़ी हैं कोई सुनवाई नहीं। देश में कोर्ट में मुकदमें फाईनल नहीं हो रहे, पीड़ित कोर्ट के बाहर सुबह से शाम तक लाईन में बैठे हुए चुपचाप तारीख लेके लौटते-लौटते कब जवान से बूढे हो गये, कोई सुनवाई नहीं। बीपीएड यानि खेल शिक्षक की डिग्री बिल्कुल व्यर्थ हो गयी, सब के सब डिग्रीधारी ओवरएज होकर अन्य कार्यों में लग चुके हैं। फिर अगर आपको सचमुच कोई जरूरी कार्य है और आप बड़े नेता से मिलना चाहो तो आसानी से मिल ही नहीं सकते। पर अमीर बिजनेसमैन लोग बॉलीवुड, फॉलीवुड सारे वुड का कोई भी आसानी से बिल्कुल बगल में खड़े होकर मिल लेता है। आम और गरीब आदमी सिर्फ़ वोट देने की मशीन भर है। अनेकों ऐसे गांव और जिले हैं जहां ग़र कोई अकस्मात दुर्घटना हो जाये तो वहां के स्थानीय अस्पतालों में ऑक्सीजन और ब्लड बैंक तक की कोई सुविधा नहीं है । पीड़ित को किराये पर वाहन करके शहर को जाना पड़ता है, उसकी जान की कोई कीमत नहीं। इसी तरह हमारा पशुधन यानि पशु के लिए बहुत ही साधारण ईलाज के साधन हैं।क्योंकि उनकी भी जान की कोई कीमत नहीं। कुछ ही दिन पहले की खबर है कि कुछ लोगों ने पशु धन को दूध न दे सकने के कारण जिंदा ही जला दिया और नहर में फेंक दिया। आज का इंसान इतना स्वार्थी हो चुका है कि उसका बस चले तो गली चलते कुत्ते और बिल्ली, बंदर तक का बाल्टी लगाकर दूध दोह ले। वो खबर तो पढ़ी ही होगी जिसमें महाराष्ट्र के गोठाणे गांव के पास सह्यादारी टाइगर रिजर्व में बंगाल मॉनिटर छिपकली का बलात्कार कर डाला। किसी को नहीं छोड़ रहा यह इंसान। जिसे पाल रहा बस इसी लिये पाल रहा। इस हद तक गिर चुका है कि गिरा शब्द भी छोटा पड़ गया है। मानवता, नैतिक मूल्य सबकुछ स्वार्थ की भट्टी में पूर्णता भस्म हो चुके हैं बस जो कुछ अच्छे लोगों से यह दुनिया कायम है। रही पेड़ों की बात तो अंत्येष्टि स्थलों पर जिस रफ़्तार से लकड़ियां जलती है,उतने पेड़ नहीं लगाये जा पाते क्योंकि बस्तियां घनी, पेड़ लगाये लोग तो कहाँ?और इलेक्ट्रानिक शवदाह ग्रह बहुत जगह ठप पड़े हैं। नदियों में अभी तक नाले गिरने की प्रक्रिया थमी नहीं है।वहीं, आज से चार दिन पहले की खबर है कि नासिक के रोहीले गांव में पानी की कमी से लोग इतने परेशान हैं कि महिलाओं को दूर कुँए की गहराई में स्वंय उतर कर पानी भरना पड़ रहा है। प्रिंट मीडिया से पूछो कि छपाई का कागज़ कितना मंहगा पड़ रहा है। संपादक किस तरह मैग्जीन, पेपर निकाल पा रहा है, ऊपर से लोगों का मानसिक दबाव ब्याज का, यह प्रिंट मीडिया के लोग ही जानते हैं।  देश का हर आम आदमी अनेकों कारणों से परेशान है।जब वह सुबह-शाम टीवी या अखबार को लेकर बैठता तो तनाव और निराशा से घिर जाता है। और उदासी ओढ़ कर सो जाता है। क्योंकि उसे पता है, उसकी समस्या सिर्फ़ उसी को सुलझानी है, यह टीवी, अखबार, बवाल सुनकर, देखकर कुछ नहीं होने वाला। जब बीवी के ज्यादा कहने पर वह किसी छुटपुट नेता के पास जाता है तो नेता कहते हैं, मैं कुछ नहीं कर सकता पुलिस के पास जाओ । पुलिस के पास जाता है तो पुलिस कहती है कि मैं कुछ नहीं कर सकता, कोर्ट में जाओ। जब तुम सब कुछ नहीं कर सकते, सबकुछ कोर्ट ही करेगी तो तुमको वोट किसलिए दें?? पर उसके दिल की कोई सुनने वाला नहीं... आज मुझे रमेश नाम के एक सज्जन मिले बोले, 'कि न्यूज में सिर्फ हिन्दू-मुसलमान और रूस-यूक्रेन चलता रहता है? हमारे यहां तो दोनों पक्ष के जुलूस निकलते कभी झगड़ा नहीं होता फिर टीवी पर अचानक इतने सारे दंगों की न्यूज? दूसरे हमारे जमीन के मुकदमें फाईनल नहीं होते.. कोर्ट का न्यूज क्यों नहीं आती? हमने कहा,''न्यूज वालों का काम है जो चल रहा है वो दिखाना रही कोर्ट की न्यूज की बात तो कोर्ट, की अवमानना का नोटिस आ जायेगा इसलिए

...... वो चले गये पर तमाम सवाल छोड़ गये। आगें क्या लिखूं.. आप सभी लोग अपने-अपने विवेक से काम लो। सच कहूं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंदी राजनीति खेली जा रही है जिसमें सिर्फ़ आम आदमी जूझ रहा है बाकि नेताओं और अमीरों को कोई नुकसान नहीं होने वाला। सत्ता सत्ता सत्ता..मूर्ख बनाओ राज करो।

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना


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