Breaking News

लखना रियासत के राजा श्री जसवंत राव जी के वंशज राजा ऋषभ शंकर शुक्ला जी का इंटरव्यू

राजा साहेब श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी 
लखना रियासत, इटावा 


इंटरव्यू : राजाजी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला 


[लखना रियासत में मिली नेताजी सुभाष चंद्र बोस की दुर्लभ पेंटिंग जिसपर लिखा है आजादी का अद्भुत श्लोगन] - 

साथियों! बता दें कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की यह दुर्लभ पेंटिंग हमें माँ काली के एक अद्भुत धाम के भ्रमण और इंटरव्यू के दौरान मिली। जब हमें पता चला कि लखना, जिला-इटावा(इष्टिकापुरी)जिसे प्राचीन काल में स्वर्ण नगरी का दर्जा प्राप्त था। गौरतलब हो कि सतयुग, द्वापर, कलयुग और आज कलयुग तक में ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध, पहुज  सहित पांच नदियों पर बसी ऐतिहासिक नगरी लखना के कालका मंदिर के अंदर सैय्यद बाबा की मज़ार है तो हम सत्यता की पड़ताल करने वहां पहुंचे। जहां हमारी मुलाकात कालका मंदिर के सम्मानित मुख्य भगत श्री कपिल कुमार दोहरे जी से हुई जिनका परिवार 6 पीढ़ियों से कालका माता मंदिर की सेवा करता आ रहा है। बातचीत के दौरान उन्होंने हमें बताया कि यह 400 फुट लंबा व 200 फुट चौड़ा तीन मंजिला मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है और यह सैय्यद बाबा की मज़ार भी तभी से यहां मौजूद है और इस क्षेत्र का दो सौ वर्ष का रिकॉर्ड रहा है कि यहाँ कभी भी हिन्दू - मुस्लिम विवाद नहीं हुआ और इस मंदिर में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध सभी जन आते हैं। इस मंदिर में भैरव, मशान, जखई आदि ग्राम देवताओं की भी प्राण प्रतिष्ठा है।उन्होंने बताया कि यह काली का बिल्कुल सात्विक धाम है और यह मंदिर, खासतौर पर बच्चों के मुण्डन संस्कार के लिए विश्व प्रसिद्ध है।इस मंदिर में शादी की प्रथम पूजा करने के लिए नवविवाहित जोड़े, पूरी दुनिया से यहां आते हैं। यहां प्रतिवर्ष 5 हजार तक झंडे़ चढ़ जाते हैं और सबसे ज्यादा भीड़ यहां नवरात्रि में होती है। हम बात कर ही रहे थे कि तभी वहां मंदिर में भक्त लोगों का एक जत्था दंडवत परिक्रमा करते हुए झंडा चढ़ाने के लिए मंदिर में दाखिल हुआ और मंदिर में जोरदार जयघोष के साथ घंटे बजने लगे।वहीं, मातायें - बहने बगल में बज रही ढ़ोलक की थाप पर झूम कर कालका माता को प्रसन्न कर रही थीं और कुछ महिलाएं पास ही की दीवार पर सिंदूर से उल्टा स्वास्तिक बना रहीं थीं। वहीं, पास में ही बनी सैय्यद बाबा की मज़ार पर वही सब लोग छल्ले, कोड़ियां, खीलदाने फूल प्रसाद आदि चढ़ा कर अपनी मुरादें मांग रहे थे। यह हिन्दू-मुस्लिम एकता का वह प्रतीक था जिसे हम देखते ही रह गये। चारों तरफ़ लोग प्रसन्न और संतुष्ट दिख रहे थे। इस बात पर कालका मंदिर के सम्मानित मुख्य भगत श्री कपिल दोहरे जी ने बताया कि माताएं - बहने उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनौती मांग रही हैं और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जायेगी तो यह इस स्वास्तिक को सीधा करने भी जरूर आयेगीं। समय जो भी लग जाये पर मैया की महिमा ऐसी है कि वो इन्हें वापस मंदिर तक खींच ही लायेगीं। आगे भगत जी ने बताया कि यहां पास में ही एक दिव्य तालाब है जिसका पानी कभी नहीं सूखता और उस तालाब के बीचोंबीच एक मण्डप गढ़ा है वो दिव्य ऊर्जा से स्थापित है। अगर कोई भी तैराक यह घोषणा करे कि वह तालाब में तैर कर उस मण्डप को स्पर्श करके लौटेगा तो वह कभी सफल होकर वापस नहीं लौटता। यानि अंहकार में भरकर आप उस मण्डप को कभी भी स्पर्श नहीं कर सकते। हमने कहा यानि यह तालाब हमें अंहकार रहित सरल होने की प्रेरणा देता है। तो वह बोले हाँ बिल्कुल। हमने पूछा यह तालाब कितना पुराना है? तो उन्होंने कहा दो सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराना है और कभी नहीं सूखा। लोग वहां जल देवता कि पूजा करके मनौती मांगते हैं और पूरी भी होती है। यह सब कालका माता की कृपा से है सम्भव होता है। फिर हमने पूछा कि भगत जी, हमने तो यह भी सुना है कि असली मूर्ति तहखाने में बंद है जिसे देखकर लोग तुंरत मर जाते थे और इसलिए वह मूर्ति बंद रखी है। उस मूर्ति की सिर्फ वर्ष में एक बार यहां के राजा ही पूजा करते हैं। यह सुनकर उन्होंने कहा कि नहीं वो मूर्ति डरावनी नहीं है।यह मात्र अफवाह है। कुछ लोगों के कहने पर एक बड़ी मूर्ति यहां स्थापित करने को मंगवाई जरूर गयी थी परन्तु कालका माता ने अपने परम भक्त महाराजा श्री जसवंत राव साहब जी को सपने में दर्शन देते हुए कहा कि यहां अब कोई फेर - बदल न किया जाये। मैं नवरूपों में स्वंय विराजित हूं । अन्य मूर्ति की आवश्यकता नहीं। तो वह मूर्ति का हमारे राजा साहब क्या करते? इसलिए उसे ऊपर वाले कमरे में ससम्मान रखवा दिया गया और हर नवरात्रि पर पहली ज्योति आज भी राजा साहब के वंशज हमारे राजा साहब ही प्रज्वलित करते हैं। आगे उन्होंने यह भी बताया कि यह मंदिर यहां के महाराज श्री जसवंत राव जी ने बनवाया था। इस पर हमने पूछा कि क्या उनके वंशज आज भी यहाँ आते हैं? तो उन्होंने बताया, हाँ पास में ही उनका अपना गेस्टहाउस है। आप फोन से पता कर लीजिए कि राजा साहब यहां हैं भी की नहीं। वैसे वो लोग इटावा हवेली में रहते हैं। फिर हमारा दूसरा पड़ाव था लखना रियासत के महाराज श्री जसवंत राव जी के वंशज से भेंट करना और हम कालका माता की पूजा करने के बाद वहां से गेस्टहाउस की तरफ निकल पड़े। अब कालका माता की ऐसी कृपा हुई कि राजा साहब के वंशज जी ने फोन पर कहा कि वो इस समय, पास में ही उन्हीं के रियासत के श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में मौजूद हैं। तो हम लक्ष्मी नारायण मंदिर पहुंचे और हमें भाग्यवश, श्री लक्ष्मी नारायण जी का दर्शन मिला और भगवान की पूजा करने के बाद हमारी भेंट लखना रियासत के महाराज श्री जसवंत राव जी के वंशज राजाजी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी से हुई। फिर शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला और सच कहूँ तो इस ऐतिहासिक वार्ता से मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे समय ने खुद 200 वर्ष पीछे झांकने वाली टाईम ट्रैवल मशीन की कोई खिड़की ही खोल दी हो। मानो आज स्वंय कालका मैया के आशीर्वाद से समय के कुछ कीमती पलों की कुंजी मिल गयी हो जिससे महाराजा साहब श्री जसवंत राव जी के गौरवशाली इतिहास की दराज़ में रखी उनके जीवनरूपी किताब के कुछ पन्नों को पलटने की स्वीकृति दे दी हो। यह एक सुखद समय ही था जब हम, हमारे देश के सुदीर्घ प्रतिष्ठित महान महाराजा साहब श्री जसवंत राव जी की भक्ति पराकाष्ठा को सुनने के लिए परमात्मा की मर्जी से भेजे गये थे। यह एक अलग ही अनुभव था जिसे पूर्णरूपेण कलमबद्ध तो नहीं किया जा सकता पर हाँ उन महान महाराजा श्री जसवंत राव जी के वंशज द्वारा उनकी शौर्य गाथा का  एक पेज लिखने का सत्य साहस जरूर किया जा सकता है। जो हमने किया। 

कालका माता मंदिर में रखे प्राचीन नगाड़ों की कहानी - 




हमने राजाजी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी से कहा कि वह हमें राजासाहब श्री जसवंत राव जी के शोर्य की दास्तान सुनाने की कृपा करें। तब उन्होंने कहा कि आप अभी-अभी कालका मंदिर से आ रहे हैं। क्या आपने वहां दो बड़े-बड़े नगाड़े रखे देखे? हमने कहा हाँ, राजाजी! देखे तो थे। तब राजाजी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी ने कहा कि चलिए! हम आपको इसी नगाड़े से जुड़ी एक एतिहासिक घटना सुनाते हैं जो लोकप्रिय जनश्रुति भी है। उन्होंने कहा कि यह लगभग दो सौ वर्ष पुरानी घटना है जब हमारी समृद्ध लखना, इटावा रियासत के पास ही के क्षेत्र जो आज कस्बा बाबरपुर, औरैया के नाम से जाना जाता। यहां पर एक मुस्लिम नवाब बड़े ही क्रूरता से राज्य किया करता था। वो नवाब होते हुए भी बड़ा ही चोर-लुटेरा प्रवृत्ति का व्यक्ति था। जो भी व्यापारी का काफ़िला उसकी क्षेत्र सीमा से गुजरता तो वह उसे बड़ी ही बेहरहमी से लूट लिया करता था। जिस कारण उस रास्ते से आने-जाने वाला सम्पूर्ण व्यापारी जगत, इस क्रूर नवाब से दु:खी और पीड़ित था। जब यह बात राजा साहब श्री जसवंत राव जी को पता चली तो उन्होंने उस नवाब पर चढ़ायी कर दी और उसे हराकर बाकी सब छोड़कर जीत की निशानी के तौर पर उसके नगाड़े अपनी लखना रियासत में ले आये और कालका मैया को समर्पित कर दिये। नवाब ने देखा कि यह कैसा राजा है? मेरा धन - औरत - सेवक कुछ नहीं ले गया। मगर फिर देखा कि अरे! ये क्या? मेरे जिस्म से जान, मेरे नगाड़े ही ले गया। बता दें कि इस नवाब को सनकी नवाब के नाम से भी जाना जाता था । इसकी आदत थी कि जब ये किसी व्यापारी का कारंवा लूटता था तो यह उस लूट का जश्न तीन दिन तक लगातार नगाड़ा बजाकर मनाता था। रात दिन इस आवाज़ से जनता भी त्रस्त थी। वो नवाब इस कदर सनकी था कि जो उसकी बात नहीं मानता यानि अवमानना करता तो वह उसके परिवार बच्चों आदि को नगाड़े के करीब बांध कर तेज आवाज़ में नगाड़े बजाकर यातनाएं दिया करता था। जब उसने देखा कि लखना रियासत के राजा साहब तो उसके नगाड़े ही ले गये।यह देखकर वो बौखला उठा और सोचने लगा कि वो मेरा गला काट देते। मुझे कारावास में रखते पर मुझे इस बेइज्जती के साथ नहीं जीना। बस इसी बेइज्जती से बौखलाया नवाब पूरी तरह विक्षिप्त हो गया था। ऐसे थे लखना रियासत के राजा श्री जसवंत राव जी ।जिन्होंने नवाब के अंहकार का अंत और मानभंग करके अपनी ही नहीं आस - पास की रियासतों तक की प्रजा में शांति और खुशहाली की अद्भुत गाथा लिखी, वो भी बिना रक्तपात किये। यह थी उनकी युद्ध कूटनीति कला। आज भी वो प्राचीन नगाड़े, कालका मैया मंदिर में यानि गढ़ी(किले) में सुरक्षित रखें हैं जो महाराजा जसवंत राव जी के अदम्य शौर्य और अंहिसा वाली कुशल कूटनीति व जनहितैषी स्वभाव की महान ऐतिहासिक धरोहर हैं। सचमुच अनुकरणीय है, महाराजा साहेब श्री जसवंत राव जी की जीवनी, जो आने वाली उन्नत पीढ़ियों को सदा प्रेरित करती रहेगी। 

राजाजी के श्रीमुख से यह अद्भुत वीरगाथा सुन हमारा उत्साह, और चार गुना बढ़ चुका था। हमने राजाजी से विनम्र निवेदन किया कि वह राजा साहब श्री जसवंत राव जी का कालका मैया के प्रति उनकी अनन्य भक्ति के विषय में बतायें। वैसे जनश्रुति है कि राजा साहब को काली माता की सिद्धि थी, जगतमाँ जगदम्बा उन्हें दर्शन देती थीं। कृपया आप हमें कालका मंदिर का पूरा इतिहास विस्तार से बताने की कृपा करें? 

 साथियों! शुरूआत हुई राजा जी के परिचय से - 


1- राजा जी आपका पूरा परिचय? 
   
मेरा नाम ऋषभ शंकर शुक्ला है और मेरे पिताश्री का नाम राजा श्री रविशंकर शुक्ला जी हैं और हम राजा साहब श्री जसवंत राव जी के चौथी पीढ़ी के वंशज हैं। 


2- राजाजी! कृपया कालका माता मंदिर का इतिहास  बतायें? 


करीब दो सौ वर्ष पुरानी बात है जो हमारे बाबा के बाबा थे, राजा साहब श्री जसवंत राव जी, वो माता काली के अनन्य भक्त थे। पहले यहां पुल नहीं हुआ करते थे तो वह पास के ही चकरनगर क्षेत्र में नाव से नदी पार करके कालका मैया के दर्शन को जाया करते थे। एक बार वह माता के दर्शनों को जा रहे थे कि अचानक उन्होंने सुना कि वहां तो बहुत तेज बाढ़ आयी हुई है।चूँकि राजा साहब प्रतिदिन कालका मैया के दर्शन को जाते थे। पाठकों! मैं बता दूं कि यह जो प्रतिदिन वाला नियम होता है ना, बस इसी को साध लेना ही 'साधना' कहलाती है। फिर वहां बाढ़ का खतरा देखकर भी राजा साहब के कदम पीछे नहीं लौटे और यह देखकर मल्लाह ने घबराते हुए कहा राजा साहब जी नदी बहुत उफान पर है, नाव पलट जायेगी। बता दें कि उस समय नदियां बहुत चौड़ी हुआ करतीं थीं। मल्लाह की  बात सुनकर राजा साहब बहुत उदास हो गये। उन्होंने मन ही मन सोचा! अब जैसी कालका मैया की इच्छा । फिर उन्होंने अपने सैनिकों से वहीं दूर एक पेड़ के नीचे ही रात्रि पड़ाव डालने को कहा। राजा साहब की भक्ति से सब लोग परिचित थे तो सभी ने वहीं तम्बू वगैरह लगाकर उनकी सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर दिया। फिर सोचते - विचारते कब रात हो गयी उन्हें पता ही नहीं चला। फिर एक चमत्कारी घटना घटी कि उसी रात राजा साहब को कालका माँ ने स्वंय दर्शन देते हुए कहा कि हे! पुत्र मैं तेरी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ। अभी यहां से जा और अब मैं पूरे नौ रूप में तेरे ही नगर क्षेत्र में प्रकट होऊँगी। मेरे नौ अवतार तेरे नगर में खुद चल कर आयेगें और तेरे ही निजनिवास में विराजेगें। कुछ देर बाद अचानक राजा साहब की आँख खुली। उन्होंने उसी वक्त अपने खास कारिंदों को बुलाकर कहा कि तुरंत जाओ और पता करो।क्या यहां आस-पास किसी पेड़ में आग लगी है? बता दें कि आज भी यह जगह लखना में है जिसे 'बेरीशाह का बाग' के नाम से जाना जाता है। फिर राजा साहब को इतना बेचैन देख वो कारिंदे तुरंत ही आस-पास के क्षेत्र में खोजबीन के लिए निकल पड़े। जहां उन्हें किसी अनजान शख्स के माध्यम से पता चला कि फ़लां जगह धुआं उठ रहा है। कारिंदे जब उस जगह (बेरीशाह का बाग) पहुंचे तो वहां सचमुच एक पेड़ में आग लगी हुई थी और उसी पेड़ के नीचे जब खुदाई की गयी तो मां की नौ दिव्य प्रतिमाएं प्रकट हुईं। जिनकी हमारे निजनिवास यानि हमारी गढ़ी में ही विधि विधान से स्थापना करवा दी गई। मैया का भी यही आदेश था कि हमारे निजनिवास में ही रहेगीं। तब हम सब यहीं रहते थे और राजा साहब तड़के सुबह नियमित इन्हीं नव शक्तियों की पूजा करके ही अपने दिन की शुरूआत किया करते थे। यहां मैं बताना चाहूंगा कि मैया ने हमारे पूर्वज राजा साहब जी से सपने में आकर यह भी आदेश दिया था कि मैं कच्चे स्थान यानि गाय के गोबर से लिपे चबूतरे में ही वास करूंगी और मेरे ऊपर कोई भी छत नहीं होनी चाहिए, मैं खुले में ही रहना पसंद करूंगी। 

यह मंदिर कितना पुराना होगा राजाजी? 

ये मंदिर  संवत् 1857 में बना और अब चल रही है संवत 2077 तो लगभग दो सौ बीस साल पुराना है हमारा यह कालका मंदिर।


राजाजी! कृपया बतायें कि आखिर! कालका माता मंदिर में माता के चबूतरे के बगल में मज़ार क्यों हैं? मंदिर के अंदर मज़ार? 

अब जैसी कालका मैया की इच्छा और राजा साहब की इच्छा। हाँ! पहले राजघरानों में बेहद विश्वासपात्र मुस्लिम कारिंदे भी हुआ करते थे और वो समय ऐसा था कि जंगल बहुत थे। हिंसक जानवरों से लोग बहुत डरे रहते थे कि कहां जमीन लें और कहां इस पर मज़ार आदि बनायें? जिस कारण राजा साहब ने अपने इन विश्वासी मुस्लिम कारिंदे से कह दिया कि तुम चिंता न करो मंदिर में ही अपनी इबादत कर लो।तब उन कारिन्दे ने मंदिर में ही सैय्यद बाबा की मज़ार बनाकर अपनी इबादत करना शुरू कर दिया और उनके जीवन की रक्षा भी हो सकी। एक राजा का प्रथम कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करे और अपने राज्य में शांति, प्रेम और सौहार्द स्थापित करे। अंततः, यही तो अपने देश की खासियत थी। 

राजाजी! पूरे विश्व के किसी भी मस्जिद में क्या हमारे हिन्दू देवी-देवता मौजूद हैं? 

उस समय रहे होगें। सोचा होगा कि सौहार्द बना रहे। हम सब संगठित रहें। संगठित होकर एक भारत, मजबूत भारत बनायें। पर समय ऐसा बदला कि
आज पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम हो रहा है और सौहार्द घट रहा है। बता दूं कि हिन्दुओं का हृदय शुरू से ही विशाल रहा है। देश में पहली मस्जिद केरल के राजा ने बनवायी थी । यहां धार्मिक आजादी है। यहां सभी धर्मों मत-मजहब के लोग मिलजुल कर रहते हैं। यही तो भारतवर्ष है जिसकी विभिन्नता में एकता को पूरा विश्व सलाम करता है। 

राजाजी! आज जो देश में हिन्दू-मुस्लिम हो रहा है। क्या आप सभी से एक शांति की अपील करेगें?

देखिए! हिन्दू मुस्लिम बिल्कुल नहीं होना चाहिए। हमें मिलजुल कर प्रेम से रहना चाहिए। हमें एक दूसरे की आस्था की कद्र करनी चाहिए और हम सब मिलजुलकर एक साथ रह सकते हैं। 


राजाजी! हम सब इस समय लक्ष्मी नारायण मंदिर में बैठे हैं। यह मंदिर कितना पुराना होगा? 

यह हमारी परदादी रानी महालक्ष्मीबाई ने बनवाया था। वह भगवान विष्णु की परमभक्त थीं। यह मंदिर पूरे 109 वर्ष पुराना है। इसमें जो नक्काशी है वो हमारे राजस्थानी कलाकारों की अद्भुत प्रतिभा परिणाम है और ऊपर जो झूमर लगे हैं । यह उसी समय के हैं जिन्हें इटली और बेल्जियम से स्पेशली इसी मंदिर के लिए मंगवाया गया था और यह हैं इस मंदिर के मुख्य पुजारी श्री विनोद चौबे जी जोकि कालका मंदिर के भी पुजारी हैं। इनका भी परिवार पीढ़ियों से दोनों मंदिरों की सेवा करता आ रहा है। 

हमने पास में ही बैठे लक्ष्मी नारायण मंदिर के सम्मानित मुख्य पुजारी श्री विनोद चौबे जी से पूछा कि आप दोनों मंदिरों की पूजा करते हैं, समाज को कोई संदेश देना चाहेगें? 

जाति-पात पूछे नहीं कोई हरि को भजे सो हरि के होई
सब एक परमात्मा की संतान है। वैमनस्यता त्यागो प्रेम से रहो। 


 राजाजी! वर्तमान में आप किन कार्यों से जुड़े हैं? 

आप मुझे राजाजी शब्द से सम्बोधित ना करेें, रजवाड़े कब के खत्म हो चुके।


आदरणीय राजाजी मुझे बहुत ही प्रसन्नता है कि आज मैं एक महान राजघराने के राजा का साक्षात्कार कर रही हूँ और यह 'राजाजी' शब्द बोलने में मुझे बहुत गर्व हो रहा है, यह हमारी तरफ़ से सम्पूर्ण लखना रियासत के सभी राजाओं के लिए एक सम्मानित 'शब्द सुमन प्रतीक' हैं कृपया स्वीकार करें। 
 

जी! धन्यवाद। वर्तमान में हम कालका मैया और भगवान लक्ष्मी नारायण और पूर्वजों की कृपा से हमारे कुछ उद्योग हैं। प्रापर्टी डीलर, कुछ मैरिज होम वगैरह हैं और अन्य सोसलवर्क सम्बंधित हैं। यहां हमारी दो गढ़ी (छोटे किले) हैं जिनमें उसी जमाने के हाथीपालक, जेलपालक, महारानी का खाना चखने वाले लोगों समेत अनेकों सेवादारों के करीब 250 लोगों के परिवार बड़ी खुशी-खुशी रह रहे हैं। ये सब हमारा ही अपना परिवार हैं, वो हमें सम्मान देते हैं और हम उन्हें प्रेम देते हैं, मदद करते हैं। बस प्रेम और सद्भावना ही हमारी पूँजी है। सबका विश्वास ही हमारा ख़जाना। 

राजाजी! क्या  2024 में भी मोदी जी की सरकार आयेगी? 

यह तो भारत की विवेकशील जनता - जनार्दन ही तय करेगी। समय की बंद मुट्ठी में क्या है वह तो समय ही बतायेगा। जनता का निर्णय सर्वश्रेष्ठ ही होगा। 


राजाजी! आप यूपी के मुख्यमंत्री योगी जी पर क्या कहेगें? 

योगीजी जी कि कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। उनकी भेदभाव रहित सभी योजनाएं प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रही हैं। नि:संदेह वह सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री हैं। 

राजाजी! आवाज़ उठी है कि महँगाई बहुत है? 

सच तो यह है कि एक गरीब के लिए महँगाई तो सदा से ही रही है। जिसपर तथाकथित कुछ लोग अपनी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने वास्ते अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं। मेरे कहने का तात्पर्य है कि गरीब के पास इतना समय नहीं कि वह अपनी रोजी-रोटी छोड़कर नेतागीरी कर सके। किसी गरीब से गरीब कह के देखो! वो लाठी चला देगा। जब वो गरीब, खुद को गरीब नहीं मान रहा तो उसके हिमायती वो लोग बन रहे हैं जिन्हें उनसे कोई मतलब नहीं। 

राजाजी! समान नागरिक संहिता से क्या लाभ होगें? 

यह देश के प्रत्येक नागरिक को समानता के साथ स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार देगा। मुस्लिम भाई अगर यह सोच रहे हैं कि यह उनके खिलाफ़ है तो मैं बता दूं कि यह पाकिस्तान में लागू है और यह यूएई जहां के मुस्लिम सबसे शुद्ध मुस्लिम, कट्टर मुस्लिम रक्त को मानते हैं। वहां भी लागू है। अब भारत में, हर देश से लिये गये कानून, संविधान में मौजूद हैं जबकि होना तो यह चाहिये कि हमारे यहां चार तरह के मौसम हैं। हर जाति- धर्म, मजहब, सम्प्रदाय के लोग हैं, सबकी अपनी जनसंख्या है तो यहां के लोगों के हिसाब से कानून बनायें जाने चाहिए। हम अमेरिका और अफ्रीका आदि अनेकों देशों की तरह यहां कपड़े नहीं पहन सकते तो उनके कानून, कैसे आत्मसात कर सकते हैं? यह विमर्श का विषय है। 


राजाजी! चूँकि आप एडवोकेट भी हैं तो न्याय में देरी के विषय में क्या कहना चाहेंगे? 

न्याय में देरी सचमुच अन्याय है । भारत सरकार इस विषय पर बहुत गम्भीर है। सिस्टम को सुधरने में समय लगेगा पर हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये। 
    
राजाजी! जो लोग दिनभर सरकार को कोसते हैं उनके लिये दो शब्द? 
  
सरकारों को कोसने से कुछ नहीं होगा। राष्ट्रहित सर्वोपरि की भावना से देश के जिम्मेदार नागरिक के तौर पर यथासंभव समाजहितेषी, मानवतापूर्ण कार्य हम सब को भी करने चाहिये। 


साथियों! एक सच्चे राजा की जो परिभाषा है वो आपके सामने मौजूद हैं जिन्होंने अपनी बात पूरी सच्चाई से हम सब के सामने रखी। उन्होंने सबको मिलजुल कर प्रेम से रहने की बात कही। जिनके बारे में यही कहूंगी कि उनमें किसी भी तरह का एक कंण मात्र भी अंहकार नहीं था। जिन्होंने मई की इतनी भीषण गर्मी में न सिर्फ़ हमें अपना कीमती समय दिया वरन् उन्होंने अपनी गढ़ी (किले जोकि उनके पूर्वजों का निज निवास रहा) का भी भ्रमण करवाया जिसमें हमने दो सौ वर्ष पुरानी धरोहर देखीं। सबसे बड़ी बात तो तब घटी कि जब राजाजी हमें अपने पूर्वजों की फोटो और पेंटिंग के बारे में बता रहे थे कि तभी उसी दीवार पर हमें नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी की दुर्लभ पेंटिंग दिखी जिसमें वो एक दौड़ते हुए घोड़े पर सवार हैं और साथ में ही दूसरे घोड़े पर एक महिला भी सवार हैं। इस पेंटिंग को जब हमने बहुत ध्यान से देखा तो उसमें कोई श्लोगन लिखा था फिर हमने फोटो क्लियर टेक्नोलॉजी के प्रयोग से फोटो को और बड़ा और स्पष्ट करके देखा तब हम वह श्लोगन पढ़ सके। यह सचमुच इतने गर्व का पल था जब हम जंग-ए-आजादी के महानायक नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी के ''तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा '' के अलावा दूसरा महान श्लोगन देख और पढ़ रहे थे। यह कुछ इस प्रकार है.. 

ग़र मैं अपना नहीं तो आओ मैदान में 
ग़र दुश्मन नहीं क्या है ज़िन्दगी 
पूछ हमें अश्व रेस पर जान दी 
जान देने का ही इनाम है ज़िन्दगी

इस दुर्लभ पेंटिंग के अलावा हमें एक सर्टिफिकेट भी दिखा तो राजाजी ने बताया कि यह उनकी परदादी रानी महालक्ष्मी बाई को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने बेटी महालक्ष्मीबाई सम्बोधित करते हुये 'रानी' उपाधि सम्मान से गवर्नर जनरल द्वारा जनवरी 1924 में उनके महान समाजिक पारदर्शी न्यायिक मानवीय कार्यों से प्रभावित हो उन्हें अलंकृत किया गया था। जो उस समय का बहुत बड़ा सम्मान था।










इसके अलावा हमने गोलमेज सम्मेलन की पेंटिंग देखी और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी की भी पेंटिंग देखी जोकि इतना समय बीत जाने के कारण काफी धुधँली हो चुकी थी। तब राजाजी ने हमें बताया कि जवाहरलाल नेहरू जी के पिताजी श्री मोती लाल नेहरू जी हमारी लखना रियासत के वकील हुआ करते थे। मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू जी की भी कालका माता मंदिर और सैय्यद बाबा में गहरी आस्था थी। बता दूं कि हमारी पूरी रॉयल फैमली में उस समय से आज तक सब वैरिस्टर थे और आज भी हैं। मोतीलाल नेहरु जी, इसी रूम में कभी आराम किया करते थे। इसके बाद हमारी नज़र वहां लगी सबसे बड़ी पेंटिंग पर गयी तब राजा जी ने बताया कि यह बड़ी सी सुन्दर पेंटिंग उनके बाबा के चाचा जी श्री साहेब बहादुर महाराजा लला रघुवंश राव साहेब बहादुर रईस, लखना की है।यह पेंटिंग एक राजा के रौबीला व्यक्तिव को समेटे उस समय के महानतम् राजाओं की समृद्धि की परिचायक दिखी। इसके बाद राजाजी ने यह भी कहा कि और भी फोटो पेंटिंग, अभी फ्रेम के लिए गयीं हुईं हैं। फिर हम दूसरे कमरे में गये जहां क्रमशः हमें दो सौ वर्ष पुरानी राजा साहब श्री जसवंत राव जी की बग्घी, तलवारें, सोफे, प्राचीन टेंट,पर्दे,रानी साहब की ड्रेसिंग ट्रेबल व उनके पान रखने की बनी खूबसूरत खिड़की, कुर्सियाँ, खड़ाऊं, मटके, लस्सी कुल्हड़, भोजन वाली चौकियां और बहुत बड़ा मिट्टी का कुठला(अन्न भण्डारण), हाथियों को बांधने का प्राचीन हौद्दा, अनेकों अनमोल धरोहर देखने को मिलीं।




साथ ही हमने वह स्थान भी देखा जहां मल्लयुद्ध (पहलवानी) हुआ करता था, ऊपर काँच से बना शीष महल था जो समय की आँधियों में जीर्णावस्था में था तो हमने ऊपर मंजिल पर जाना उचित नहीं समझा। हमने राजा साहब श्री जसवंत राव जी की छतरी (समाधि स्थल) देखा जहां बैठकर वो न्याय किया करते थे। 



हमने गढ़ी घूमते हुए महसूस  किया कि सचमुच महल के नक्शे बनाने वाले लोग और नक्काशी करने वाले कारीगर गजब का बुद्धि विवेक रखते थे। जोकि महल में छोटी से छोटी हर चीज का ध्यान रखते थे कि सफाईकर्मी किस दरबाजे से  सुविधापूर्ण ढ़ंग से निकलेगें और रसोइया किस तरह भोजन बनायेगें कि उन्हें ज्यादा गर्मी न लगे। इसके बाद हम लखना के स्थानीय बुजुर्ग लोगों से मिले। हमने उनसे पूछा कि माता काली के अनन्य भक्त महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी क्या कभी लखना आये थे? हमने लखना गढ़ी में उनके अद्भुत नारे यानि श्लोगन लिखी पेंटिंग देखी है। तब उन्होंने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा, हाँ! हमारे पूर्वज बताते थे कि सुभाष बाबू आजादी की अलख जगाने के लिए कालका माता के दर्शनों के लिए लखना आये थे और यहां के लोगों ने आजाद हिंद फौज के लिए प्रेमपूर्वक मदद धनराशि दी थी और लखना के राजा साहब सहित यहां के व्यापारियों ने चांदी के बहुत बड़ी मात्रा में सिक्के दिये थे। सुभाष बाबू के भाषण, मन में आजादी की लौ जला देने वाले थे। तब उनके बोले हुए शब्द नारे बनकर हर युवा के पसंदीदा अलंकार हुआ करते थे। यह बिल्कुल सही है कि उनकी पेंटिंग पर लिखा गया यह नारा यकीनन सुभाष बाबू के श्री मुख से निकले हुए हीं अनमोल शब्द हैं। कुछ आजादी के स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े गुप्त सूत्र रेड बुक, ब्लू बुक के बारे में भी हमारे पूर्वज बताया करते थे जो अब हमें याद भी नहीं हैं। वैसे यह नारे यह बुलंद शब्द  नेताजी की अनमोल याद है बेटी। पर उन्होंने कहा कि हम सीधे-सीधे गरीब लोग हैं मेरा नाम अपनी मीडिया में मत देना। कहीं कोई पूछताछ हुई तो हमारे पास खोने को कुछ नहीं। वैसे भी नेताजी के बारे में बोलने वालों को एक समय में चुन-चुन कर षड्यंत्र के तहत मार दिया गया। हमने कहा आपका शक किसकी तरफ है तो उन्होंने कहा, 'अब सच कहें या पक्की श्याह हकीकत, दुनिया जानती है।'' पर जानबूझकर सच दबाया जा चुका है। फिर हम उन बुजुर्गों का आशीर्वाद लिये स्वतंत्रता संग्राम की वीरगाथायें सुनते हुए वहां से निकले। साथियों! सच कहूँ तो हमारे पूर्वज बहुत महान थे जिनकी संयुक्त परिवार की नीति आज के आधुनिक लोगों को अब बखूबी समझ आने लगी है और इस कोरोना काल में काफी लोगों का हृदयपरिवर्तन हुआ। जिसमें विदेश गये भारतीय, अपने देश - अपने गाँव लौट कर यहां उद्योग लगाकर, अब भारतीयता को जी रहे हैं। इसके अलावा हमारे पूर्वज कुशल वास्तुविद थे। उनकी न सिर्फ़ महल निर्माण नक्शे बनाने आदि की टेक्नोलॉजी बहुत ही शानदार थी बल्कि वे राष्ट्रनिर्माण के भी कुशल शिल्पी थे। 

सम्मानित पाठकों! तो यह था हमारी लखना रियासत की महान विरासत का प्राचीन समृद्ध इतिहास जिसे एक दिन में देखना-जानना-समझना काफी नहीं था पर राजाजी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी व उनके सेवादारों ने जितना भी दिखाया - बताया, यही हमारी टीम के लिए अनमोल था। हम, सच की दस्तक टीम, राजाजी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी के इस सभ्य, शालीन और करूणामयी व्यवहार के लिए सदैव कृतज्ञ रहेगें। 

नोट : हम सच की दस्तक परिवार की इतिहास संरक्षण मुहिम की तरफ़ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदरणीय श्री योगी आदित्यनाथ जी से और इटावा जिले के विधायक जी और इटावा जिले के जिलाधिकारी जी, आप सभी से विनम्र निवेदन करते हैं कि आप सभी अपने यथा सम्भव प्रयास और मदद  से लखना रियासत की पूरी गढ़ी (किले) को डिस्ट्रिक्ट हैरिटेज घोषित करने की कृपा करें। यह प्रधानमंत्री मोदी जी के सुझावे 'सकल्प से सिद्धि' की दिशा में एक प्रभावशाली कदम होगा जिससे कि इस जिले ही नहीं अपितु पूरे देश के युवाओं, शोधार्थी को अदम्य शोर्य, सोहार्द, विलक्षण युद्ध नीति, कौशल,सकारात्मक राजनीत और असीम भक्ति और आध्यात्मिकता का अहर्निश प्रपात से जुड़ने का अपने इतिहास को जानने का गौरव प्राप्त हो सकेगा। 












इंटरव्यू की झलकियां राजाजी ने दिये बेबाक जवाब - 





1- यूट्यूब लिंक 👇👇

https://youtu.be/aZlv_l9pIfU

लखना रियासत के 200 वर्ष पुराने लखना देवी मंदिर के अंदर सैय्यद बाबा की मज़ार का सच 

2-यूट्यूब लिंक 👇👇इंटरव्यू 👇👇

https://youtu.be/GWImx2b9UuU

लखना रियासत के महाराज श्री जसवंत राव जी के 6वीं पीढ़ी के वंशज राजा साहेब जी श्री ऋषभ शंकर शुक्ला जी का इंटरव्यू 


3-यूट्यूब लिंक 👇👇

https://youtu.be/MkUqZXx31r0

लखना रियासत की गढ़ी (किले) का भ्रमण जिसमें मिलीं दो सौ वर्ष प्राचीन धरोहर और नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस जी की दुर्लभ पेंटिंग जिसमें लिखा है विचित्र नारा (श्लोगन) 

 

No comments