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राधाबल्लभ सरकार मंदिर, वृंदावन

 



भगवान राधाबल्लभ सरकार के दर्शन, वृंदावन मंदिर -

मंदिर कथा - इस मंदिर की एक कहानी भगवान शिव से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि ब्राह्मण आत्मदेव भगवान शिव के परम उपासक थे। भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए उन्होंने कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण आत्मदेव ने भगवान शिव से कहा वो उन्हें ऐसा कुछ प्रदान करें जो उनके ह्रदय को सबसे प्रिय हो। तब भगवान शिव ने अपने ह्रदय से श्री राधावल्लभलाल को प्रकट किया। श्री राधावल्लभ के श्री विग्रह को भगवान शिव ने ब्राह्मण आत्मदेव को दिया था जब वो कैलाश पर्वत पर तप करने गए थे। साथ ही भगवान शिव ने उन्हें श्री राधावल्लभ की सेवा की पद्दति भी बताई थी। इसके बाद कई सालों तक ब्राह्मण आत्मदेव के वंशज उनकी सेवा करते रहे। लेकिन भगवान राधावल्लभलाल को श्री कृष्ण के अनुयायी हितहरिवंश महाप्रभु वृंदावन लेकर आए थे, जब हरिवंश महाप्रभु को एक रात सपने में श्री राधा ने आदेश दिया कि तुम मेरे स्वरूप को ब्राह्मण आत्मदेव से लेकर वृंदावन ले जाकर स्थापित करो। वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर के संप्रदाचार्य बताते हैं कि हरिवंशमहाप्रभु राधा वल्लभलाल को लेकर वृंदावन आए और मदनटेर जिसे ऊंची ठौर बोला जाता है वहां पर विराजमान किया, लताओं का मंदिर बनाया। जब उनके बड़े पुत्र गद्दी पर बैठे वंचनमहाप्रभु तब उनके शासन काल में यहां पर एक पहला मंदिर बना है राधा वल्लभ जी का जो इस वृंदावन में राधा वल्लभ जी का सबसे पुराना मंदिर है। संप्रदाचार्य इसका वर्णन करते हुए कहते हैं कि राधा वल्लभलाल, दोनों एक में युगल हैं।आधे में कृष्ण जी हैं और आधे में राधा जी, दोनों एक ही स्वरुप हैं।


मान्यता - लोकमान्यता है कि अगर अंहकारवश कोई  वृंदावन पहुंच जायें पर अगर भगवान श्रीराधे कृष्ण की मर्जी न हुई तो उस व्यक्ति को राधाबल्लभ के दर्शन लाख प्रयत्न के बाद भी नहीं हो सकते।


जय श्री राधाबल्लभ सरकार की जय हो। भगवान आप सभी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करें 💐🙏

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