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                     हमारे    ठाकुर जी ..
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 मेरे ठाकुर जो चाहते हैं
 वो,वही लिखवाते जातें हैं
हम तो हैं मिट्टी का कंण
 प्रभु पूरा ब्रह्माण्ड चलाते हैं
मेरे ठाकुर जो चाहते हैं 
वो,वही लिखवाते जाते हैं
कभी अपनी बुराई लिखवाते हैं
कभी भक्त लीला दिखलाते हैं
कभी आकर मेरे सपनों मैं
बालक बन के मुस्काते हैं 
मेरे ठाकुर जो चाहते हैं
वो,वही लिखवाते जाते हैं
हम तो न हैं, न कुछ होंगें 
वो,अपने होने का अहसास करते हैं
मेरे ठाकुर जो चाहते हैं
वो,वही लिखवाते जाते हैं

          आकांक्षा सक्सेना
औरैया,उत्तर प्रदेश

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