क्या ये है हमारा समाज
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दुकानदार - यार सुनील तुमने तो सुना ! उस टेम्पो वाले दीनानाथ का
एक्सिडेंट हो गया ।
सुनील - चलो भैया देख हैं वो मार्शल लेनेवाला है अपन - तुम को हिसाब
से मिल जाया करेगी । चल एक मिनट के लिए चलते हैं ।
दुकानदार - यार बौनी का टाइम है ।बाजार का दिन है है आज समझा
कर,शाम को चलते है ।
सुनील - तू ठीक कहता है मैं भी कुछ निपटा हूँ ।
शाम को दोनों दीनानाथ के घर पहुँचते हैं ।
दुकानदार - यार अभी - अभी पता चला तेरा एक्सिडेंट हो गया है तो हम
दोनों दौड़े चले आये ।
दीनानाथ - यार तुम दोनों दोस्तों की दुआ है,मुझे कुछ भी नहीं हुआ बस
कमर मैं थोडा दर्द है,मैं उछल के दूर गिरा और बेहोश हो गया।भगवान की
कृपा से बच गया ।
पर टेम्पो का बोनट पूरा टूट गया ।
सुनील - चल कोई बात नहीं वेसे भी तू इस टेम्पो को बेच कर मार्शल लेने
वाला था ।
दीनानाथ - हाँ,यार पर अभी मेरा टेम्पो ठीक था । मुझे दुःख है मेरे ग़र्दिश
के दिनों का साथी था ।
सुनील - छोड़ न यार जो हुआ सो हुआ भाभी जी कहाँ है ?
दीनानाथ (मुस्कुराते हुए ) - चाय का मन है तुम दोनों का है ना ।
सुनील - यार भाभी जी की हाँथ की चाय का स्वाद ही अलग होता है ।
दीनानाथ - अरे ! बिमला बाहर तो आना, और हाँ चाय लेकर आना सुनील
और बाबू आया है ।
दुकानदार बाबू और सुनील चाय पीकर दीनानाथ के घर से निकल आते हैं
और सड़क पर चलते - चलते मुस्कुराते है ।
सुनील - यार विमला भाभी क्या मस्त लगती हैं और दीनानाथ तो एक
दम कचरा ,वाह ! रे भगवान कौवे को हंसनी दे दी मुझ हंस को हथनी ।
दुकानदार बाबू - चुप कर कमीने भाभी माँ सामान होती है ।एक तो फालतू
मैं गए दौड़े - दौड़े,सेल के एक भी ख़रोच तक न आई,सेल तूने मेरा पूरा
शाम का टाइम बर्बाद कर दिया ।
सुनील - अच्छा, मार्शल की चिंता किसको थी ।
दुकानदार बाबू - चुप कर छिछोरे ।
सुनील - अच्छा मैं छिछोरा हूँ और तू
दुकानदार ने सुनील के मुह पर हाँथ रखते हुए कहा यार नाराज़ क्यूँ होता
हैं ।
दोनों धूर्तता भरी हँसी हँसे और अपने घरों को चले गए ।
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ये है समाज आज कल ये है हमारा बोलचाल ये है मानसिकता कितनी
शर्म आती है की हम लोग कहाँ जा रहे है । सब कुछ स्वार्थ की भेंट चढ़
चुका है क्या ?
हम यही होने को आये थे क्या इस संसार मैं खुद से ये सवाल
पूछियेगा ?
आकांक्षा सक्सेना
बाबरपुर जिला - औरैया
उत्तर प्रदेश
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