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फर्जी आईडीप्रूफ सभी समस्याओं की जड़....



फर्जी आईडीप्रूफ सभी समस्याओं की जड़
रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ सभी समस्याओं का हल
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द्वापरयुग में कोरवों-पाण्डवों के मध्य युद्ध द्रोपदीजी के पास अपने विवाह का रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ न होने के कारण हुआ | त्रेतायुग में राम - रावण के मध्य युद्ध सीताजी के पास अपने जन्म का रियल इंण्ड़ियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ न होने के कारण हुआ | सतयुग में राजा हरिश्चन्द्र जी ने मरघट पर अपने पुत्र रोहिताश का अंतिम संस्कार करने को इस लिये मना कर दिया था क्योंकि उनकी पत्नि रानी तारावती के पास अपने पुत्र रोहिताश की मृत्यु का रियल इंण्ड़ियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ नही था |
   विदेशी डचों, पुर्तगालियों, यूनानियों, मुगलों व ब्रिटिश के अंग्रेजों ने भारत को हजारों वर्षों तक अपना गुलाम बनाकर रखा क्योंकि भारतीयों के पास अपने विवाह, जन्म व मृत्यु का एवं भारतीय नागरिक होने का रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ नही था |
       मुगल सम्राट औरंगजेब ने भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बना दिया था क्योंकि भारत के हिन्दुओं के पास अपने विवाह,जन्म व मृत्यु का रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ नही था | मुगल सम्राट औरंगजेब ने भारत के हिन्दुओं को हिन्दु बने रहने के लिये जजिया टैक्स लगा दिया था | यदि वह चाहता तो भारत के सभी हिन्दुओं को मुसलमान बना देता |
      नेताजी श्री सुभाषचन्द्र बोस ने ब्रिटिश के अंग्रेजों को भारत से निकाल बाहर किया था क्योंकि ब्रिटिश के अंग्रेजों के पास स्वंय अपने विवाह,जन्म व मृत्यु का रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ नही था|
   नेताजी श्री सुभाषचन्द्र बोस जी चाहते थे कि भारत के जनजीवनहित में एवं उनके भारतीय सर्वोच्च न्यायहित में प्रत्येक विवाहित, जन्मे व मृतक स्त्री, पुरूष व किन्नर भारतीय नागरिक के पास अपने भारत में विवाहित होने, पैदा होने एवं मृतक होने की पहिचान का अर्थात् उनके विवाह, जन्म व मृत्यु का पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवैधानिक एवं लाईसैंसीकृत कानूनी भारतीय उत्तराधिकारित, राष्ट्रीय मानवाधिकारित एवं भारतीय सर्वोच्च न्यायिक दस्तावेजी साक्ष्य प्रमाणपत्र एवं पहिचानपत्र तथा प्रमाणित भारतीय नागरिक होने की पहिचान का भारतीय   नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से भारत सरकार के द्वारा प्राप्त होना चाहिये और यह दस्तावेज भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा भारत सरकार के जरिये प्रत्येक भारतीय नागरिक को हर हालत में प्राप्त होना चाहिये |
      इसी कारण भारत के सम्बंधित स्वदेशी भारतीय बेईमान एवं गद्दार, अपने जीवन के टैक्सचोर एवं इस कालेधन के जमाखोर, नेताजी श्री सुभाष चन्द्र बोस से बहुत घबराते थे |
     विगत सत्तर वर्षों से जब से भारत स्वतंत्र, आजाद व मुक्त हुआ है तब से अब तक भारत स्वदेशी बेईमान एवं गद्दार अपने जीवन के टैक्स चोर व इस कालेधन के जमाखोर भारतीयों का गुलाम है | क्योंकि भारत के प्रत्येक नागरिक के पास अपने जीवन की पहिचान का एवं प्रमाणित भारतीय नागरिक होने की पहिचान का रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ आज भी भारत सरकार के द्वारा प्राप्त नही है | विगत सत्तर वर्षों से जो भी समस्यायें भारतीय सर्वोच्च न्यायालय, भारत सरकार एवं भारतीय नागरिकों के सामने हैं वे सब भारतीयों के रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ न होने के कारण हैं |
      भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार के द्वारा भारतीय नागरिकों के विवाह, जन्म व मृत्यु के पंजीकरण, बीमाकरण एवं लाईसैंसीकरण के अधिनियमों के तहत संचालित अभिलेखानुसार भारत के प्रत्येक विवाहित, जन्मे व मृतक स्त्री, पुरूष व किन्नर भारतीय नागरिक के विवाह, जन्म व मृत्यु का वैधानिक पंजीकरण राजस्वकर, संवैधानिक बीमाकरण वित्तकर एवं कानूनी लाईसैंसीकरण आयकर बतौर बकाया जीवन का असली टैक्स कालाधन भारत के राजकोष, वित्तकोष व आयकोष में अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से भारतीय जनजीवनहित में एवं उनके भारतीय सर्वोच्च न्यायहित में जमा नही करवाया है और इन तीनों कोषों को सामर्थ से अधिक बहुत बड़े पैमाने पर अनावश्यकरूप से अशोधनीय नुकसान पहुंचाया है और भारतीयों को जीवन की टैक्सचोरी एवं कालेधन की जमाखोरी का मार्ग दिखाया है |
        भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार के द्वारा भारत के प्रत्येक विवाहित, जन्मे व मृतक स्त्री, पुरूष व किन्नर भारतीय नागरिक को उसके विवाहित होने, पैदा होने एवं मृतक होने की पहिचान का उसके विवाह, जन्म, एवं मृत्यु का पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवैधानिक एवं लाईसैंसीकृत कानूनी भारतीय उत्तराधिकारित, राष्ट्रीय मानवाधिकारित एवं भारतीय सर्वोच्च न्यायिक दस्तावेजी साक्ष्य प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से भारतीय नागरिकों के विवाह, जन्म व मृत्यु के पंजीकरण, बीमाकरण एवं लाईसैंसीकरण के अधिनियमों के तहत संचालित अभिलेखानुसार प्राप्त नही करवाया है और न ही प्रत्येक भारतीय नागरिक को भारत का प्रमाणित भारतीय नागरिक होने की पहिचान का भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से प्राप्त करवाया है तथा न ही इन प्रमाणित दस्तावेजों को भारतीय नागरिकों के पहिचान के सभी प्रकार के राजनीतिक समाजी सरकारी व मतकारी, आर्थिक समाजी अर्द्धसरकारी व कर्मचारी एवं सामाजिक समाजी निजीकारी व श्रमकारी दस्तावेजों में अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से दर्ज करवाया है |
    भारतीय सर्वोच्च न्यायालय नें भारत सरकार के द्वारा भारतीय संविधान एवं भारत के कानूनों में पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवैधानिक एवं लाईसैंसीकृत कानूनी भारतीय उत्तराधिकारित, राष्ट्रीय मानवाधिकारित एवं भारतीय सर्वोच्च न्यायिकरूप से विवाहित, जन्मे व मृतक स्त्री, पुरूष व किन्नर भारतीय नागरिक की दस्तावेजी साक्ष्य परिभाषा ही दर्ज नही करवायी है और न ही उपरोक्त अधिनियमों का उल्लंघन घृणित, जघन्य, अक्षम्य अपराध दर्ज करवाया है बल्कि भारतीय जनजीवन को वैधानिक, संवैधानिक एवं कानूनी रूप से दस्तावेजी लावारिस अपना गुलाम बनाया है|
       भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने जीवन का सृजनशील उद्देश्य पूरा किया जाने हेतु उसे उसकी इच्छा, शिक्षा व योग्यतानुसार बिना किसी बाधा के समान सरकारी व मतकारी, अर्द्धसरकारी व कर्मचारी एवं निजीकारी व श्रमकारी आजीविका व पैंसन तथा समान अत्याधुनिक बुनियादी सेवाये व सुविधायें भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार के द्वारा अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से भारतीय जनजीवनहित में एवं उनके भारतीय सर्वोच्च न्यायहित में प्राप्त नही करवायी हैं और उनका जीवन अशिक्षित एवं अपराधी, बेरोजगार बजरिये रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ न होने के कारण बनाया है |
  यही कारण है कि भारतीय जनजीवन स्तर हाईटेक नही है | अत: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार के द्वारा भारतीय संविधान एवं भारतीय कानूनों में उपरोक्त बुनियादी कमी को पूरा करवाना चाहिये | जिससे कि भारत में मौजूद सम्बंधित विभाजनकारी एवं विनाशकारी तथा पूर्वनियोजित धोखाधड़ी के षड़यंत्रकारी लोगों का षड़यंत्र समाप्त हो सके | ऐसे षड़यंत्रकारी लोग अपने सहखातेदार की अचल सम्पत्ति का बैनामा कर देते हैं और अविवाहित की मृत्यु कारित करवाकर किसी को भी उस मृतक का बाजरिये फर्जी वसीयत फर्जी वारिस बनवाकर बाजरिये अदालत उस अविवाहित मृतक व्यक्ति की चल व अचल सम्पत्ति हड़प जाते हैं और किसी भी व्यक्ति की खसरा खतौनी निकालकर किसी भी बैंक में इस जरिये उसकी कृषि भूमि को गिरवी रखवाकर उस बैंक से ऋण हासिल कर लेते हैं और जब उस बैंक के द्वारा उस पीड़ित को ऋण बसूली की आरसी जारी होती है तो वह इस षड़यंत्र से मुक्ति पाने के लिये अदालत जाता है, उसके ऊपर वर्डन ऑफ प्रूफ होने के कारण वह अपने को अदालत में निर्दोष साबित नही कर पाता है और उसकी गिरवी रखी कृषि भूमि वह बैंक कुर्क नीलाम कर देती है इस प्रकार वह निर्दोष भूमिहीन हो जाता है | इस प्रकार देश में षड़यंत्रकारी लोग भूराजस्वकर की चोरी एवं इस कालेधन की जमाखोरी बहुत बड़े पैमाने पर करते हैं | यह सब रियल इंण्डियन लीगल लाइफ आईडी प्रूफ न होने के कारण होता है |
   हालाँकि वर्तमान भारत सरकार के प्रधानमंत्री मोदी जी ने टैक्सचोरी व कालेधन की बसूली का अभियान भारतीय अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाये जाने के लिये तथा नगदी विहीन बैंक व्यवस्था का अभियान भी चला रखा है इस बास्ते प्रतिबंधित एवं परिवर्तित नोट करेंसी का राष्ट्रव्यापी अभियान भी चला रखा है | परन्तु इस व्यवस्था पर साईबर क्राईम का खतरा भी बढ चुका है | इसे ध्यान में रखते हुये रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडी प्रूफ सभी भारतीयों को जारी करना जरूरी है और फर्जी आईडीप्रूफ नस्ट करवाया जाना जरूरी है | तभी भारत अपराधमुक्त , रोजगारयुक्त एवं विकासशील तथा विश्व विजयी सैन्यशक्तिशाली ईमानदार एवं वफादार राष्ट्र बनाया जा सकता है | तभी भारत के घर-घर का एवं भारत का आंतरिक एवं बाहरी विभाजन एवं विनाश होने से बचाया जा सकता है और देश की सभी समस्याओं का हल आसानी से किया जा सकता है |
आशा है कि इस ओर भारत सरकार एवं भारतीय सर्वोच्च न्यायालय अवश्य ध्यान देगें एवं अवश्य कृत कार्यवाही करेगें जिससे कि भारत के सभी न्यायालय सामर्थ से अधिक बहुत बड़े पैमाने पर अनावश्यक मामलों के बोझ से  बाजरिये रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडी प्रूफ के स्वतंत्र आजाद एवं मुक्त हो सकें | क्योंकि फर्जी आईडी प्रूफ ही भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है तथा रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडी प्रूफ ही भारत की सभी मामलों में सबसे बड़ी मजबूती है जो देश में कायम होनी चाहिये |
भारतीय नागरिकों के विवाह, जन्म व मृत्यु के पंजीकरण, बीमाकरण एवं लाईसैंसीकरण के
अधिनियमों के तहत संचालित अभिलेखानुसार पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवैधानिक एवं लाईसैंसीकृत कानूनी भारतीय उत्तराधिकारित, राष्ट्रीय मानवाधिकारित एवं भारतीय सर्वोच्च न्यायिकरूप से भारत का प्रत्येक विवाहित, जन्मा व मृतक स्त्री, पुरूष व किन्नर भारतीय नागरिक न तो विवाहित है और न ही उसका जन्म हुआ है बल्कि वह तो पूर्व से ही मृतक है जिसे अपने विवाहित होने, पैदा होने एवं मृतक होने की प्रमाणित दस्तावेजी पहिचान का अर्थात् उसके विवाह, जन्म व मृत्यु का पंजीकृत वैधानिक, बीमाकृत संवेधानिक एवं लाईसैंसीकृत कानूनी भारतीय उत्तराधिकारित, राष्ट्रीय मानवाधिकारित एवं भारतीय सर्वोच्च न्यायिक प्रमाणित दस्तावेजी साक्ष्य प्रमाणपत्र एवं पहिचानपत्र अनिवार्य एवं परमावश्यकरूप से भारतीय जनजीवनहित में एवं उनके भारतीय सर्वोच्च न्यायहित में अब तक न तो भारत सरकार ने दिया है और न ही मा. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत संज्ञान लेकर भारत सरकार के द्वारा प्राप्त करवाया है | भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार द्वारा भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत का प्रमाणित नागरिक होने की पहिचान का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र प्राप्त नही करवाया है |
अब भारत सरकार एवं मा.भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ही बताये कि भारत में सवा सौ करोड़ लोग कौन है और कहाँ के प्रमाणित नागरिक हैं ? क्या इन नागरिकों को अपना रियल इंण्डियन लीगल लाईफ आईडीप्रूफ प्राप्त है ? यदि नहीं तो क्यों ?
 

समाज और हम


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