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साहित्य का सूर्य अस्त- नहीं रहे ''नीरज''



साहित्य जगत की महान शख्सियत 
कविराज गोपालदास सक्सेना 'नीरज' 

“आंसू जब सम्मानित
होंगे, मुझको याद किया
जाएगा, जहाँ प्रेम का
चर्चा होगा, मेरा नाम
लिया जाएगा”

       –गोपालदास ''नीरज'' 


तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते...... 

ऐसे भी भला कोई जाता है.....





कविराज "नीरज" के निधन से पूरे साहित्य जगत में शोक छाया हुआ है। उनका यूँ जाना साहित्य की दुनिया की बहुत बड़ी क्षति है।
         आज लोगों की आंखें नम हैं, जुबां पर केवल नीरज का नाम है । हो भी क्यों न कई पीढिय़ों के दिलों में राज करने वाले नीरज खुद कहते थे कि आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा...जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा। गीतकार प्रसून जोशी श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट करते हैं-युग के महान कवि नीरज के निधन का समाचार अत्यंत ही दुखद है, मैं भाग्यशाली था कि उनका स्नेह और आशीर्वाद मिला। कवि होना भाग्य है नीरज होना सौभाग्य।

इटावा यानि इष्टिकापुरी उ.प्र में हुआ था जन्म-


गोपाल दास "नीरज" का जन्म चार जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के घर हुआ था।6 वर्ष की आयु में पिता का साया उठने के बाद उनका परिवार इकदिल कस्बे के कायस्थाना मोहल्ले में रहने लगा। उनका पालन पोषण उनके फूफा हकदयाल प्रसाद सक्सेना वकील साहब ने एटा में किया।  नीरज चार भाइयों - कृष्ण दास सक्सेना , गोपालदास सक्सेना , नारायण दास सक्सेना, दामोदर दास सक्सेना में दूसरे नंबर पर थे। उन्होंने 1942 में एटा से हाईस्कूल किया। बाद में इटावा कचहरी में टाइपिस्ट रहे। लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली आपूर्ति विभाग में 67रूपये प्रतिमाह में टाइपिस्ट की नौकरी भी की।बाद में परिस्थितिवश कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी की। यहां भी एक निजी कंपनी में पांच साल तक टाइपिस्ट का काम किया। फिर, मेरठ कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता रहे। कॉलेज प्रशासन के आरोपों से कुपित होकर नौकरी छोड़ दी और अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी विभाग के प्राध्यापक बने। वह अलीगढ़ में मंगलायतन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रहे। 

 सिनेमा और नीरज
........................ 



गोपालदास ''नीरज'' कलम के उन बादशाहों में से एक रहे, जिनको सिनेमावालों ने भरपूर प्यार और सम्मान दिया । 60 के दशक में गीतकार के तौर पर गोपालदास नीरज धूम मचा रहे थे। रेडियो पर उनकी कविताओं को चाव से सुना जाता था। लखनऊ रेडियो स्टेशन पर उनकी उस दौर की लोकप्रिय हुई कविता गुबार देखते रहे... प्रसारित हुई। जिससे प्रभावित होकर उस दौर के फिल्मकार आर चंद्रा उनसे मिलने पंहुचे। फिल्मों में गीत लिखने के नाम पर नीरज ने दो टूक शब्दों में उनसे कह दिया कि वे फिल्म के नाम पर कुछ नहीं लिखेंगे, उनकी लिखी कविताओं में से अगर वे किसी को फिल्म में इस्तेमाल करना चाहें, तो उनको एतराज नहीं होगा।
नीरज की सिनेमा की दुनिया में ये पहली चहलकदमी थी, लेकिन इसे एक मुकम्मल तस्वीर बनने में 6 साल से ज्यादा का वक्त लगा, जब आर चंद्रा, जो नीरज की कविताओं के मुरीद बन चुके थे और लगातार उनसे मुलाकातें करते रहते थे। 1966 में आर चंद्रा ने नई उमर की नई फसल नाम से एक फिल्म बनाई, जिसमें चंद्रा ने नीरज की आठ रचनाओं को शामिल किया, जिनमें कारवां गुजर गया के अलावा देखती ही रहो तुम दर्पण आज.. (गायक मुकेश) को रखा गया। फिल्म तो ज्यादा नहीं चली, लेकिन रफी की आवाज में कारवां गुजर गया.. लोकप्रियता के रास्ते पर आगे बढ़ता चला गया।
       कहते हैं कि नीरज को गीतकार के तौर पर एक हजार रु. की रकम के साथ साइन किया गया और इस शर्त के साथ कि गीत-संगीत की सारी बातें एस डी साहब तय करेंगे। देव आनंद ने इस शर्त को भी कबूल कर लिया। एसडी बर्मन और देव आनंद के साथ प्रेम प्रतिज्ञा की पहली सीटिंग में नीरज को रंगीला.. शब्द पर कुछ लिखने के लिए कहा गया। तकरीबन 20 मिनट में अपनी डायरी से नीरज ने एक गाना एसडी के हवाले कर दिया और इस गाने के बोल थे, रंगीला रे... तेरे रंग में... कहते हैं कि ये गाना सुनकर देव आनंद ने नीरज को गले लगा लिया और एसडी बर्मन का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि आप एक नायाब हीरा तलाश करके लाए हो।
           नीरज देव आनंद से ज्यादा एसडी बर्मन के साथ ज्यादा घुलेमिले थे और इस जोड़ी ने तेरे मेरे सपने और शर्मिली फिल्मों के लिए भी साथ काम किया। नीरज ने एसडी बर्मन को अपनी आत्मा का हिस्सा माना और जिस दिन एसडी वर्मन दुनिया से विदा हुए, तो नीरज ने कहा, मेरे लिए फिल्मी दुनिया का सफर अब पूरा हुआ।
           एसडी बर्मन के अलावा शंकर जयकिशन के साथ नीरज की दोस्ती रंग लायी और इस जोड़ी के साथ मेरा नाम जोकर सहित कई फिल्मों में नीरज ने गाने लिखे, जिनमें बस यही अपराध हर बार करता हूं लोकप्रियता के शिखर पर पंहुचा, तो मेरा नाम जोकर का गीत ए भाई जरा देखकर चलो.. भी सुपर हिट रहा।
       गोपाल दास नीरज ने खुद को फिल्मी गीतकार कभी नहीं माना, तो इसकी वजह ये रही कि वे फिल्मों की दुनिया में स्टारडम की चमक धमक और चापलूसी के माहौल को वह हजम नहीं कर सके। उन्होंने हर मौके पर यही कहा कि टेलेंट की कमी नहीं, लेकिन कद्र भी नहीं होती। वे एक और बात कहते थे, मैं अगर झुककर लिखता, तो पता नहीं क्या क्या लिख जाता, लेकिन जो लिखा, वो दिल से लिखा।
डिजिटल और इंटरनेट क्रांति की इस मौजूदा दुनिया की पीढ़ी के लिए नीरज की लेखनी एक इतिहास और सिनेमा के सुनहरी दौर के साथ जीने वालों के लिए नीरज का जाना शब्दों के ऐसे दीवाने का जाना है, जो सिनेमा की दुनिया को अपने गीतों का खजाना सौप गया।
नीरज के लिखे चंद चर्चित गीत
कारवां गुजर गया.... (नई उमर की नई फसल)
मेरा मन तेरा प्यासा- (गैंबलर)
खिलते हैं गुल यहां.. (शर्मिली)
रंगीला रे... मेरे मन में... (प्रेम प्रतिज्ञा) ए भाई जरा देखकर चलो... (मेरा नाम जोकर)
और, पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले झूठा ही सही
एक यादगार गीत है जिसकी कशिश जाती ही नहीं...

जब चम्बल का बागी हुआ नीरज का मुरीद-


यह वह दौर था जब नीरज नाम किसी भी काव्य सम्मेलन की सफलता की गारंटी था। ऐसी ही ग्राम  काव्यसंध्या से नीरज जी वापसी में लौट रहे थे उनके कहनेनुसार उन्हें ग्रामीणों ने एक जीप में बिठाकर इटावा रेलवे स्टेशन के लिए विदा किया पर रात रास्ते मेंअचानक उनकी जीप का डीजल खत्म हो गया। चारों ओर बीहड़ का सन्नाटा देख वह घबरा गये कि अचानक मुंह बांधे दो बंदूकधारी लालटेन लिये उनके पास आये और ड्राइवर को पकड़ कर सवाल करने लगे बाद में बोले चलो दद्दा के पास तुम झूठे हो कौन सा कवि देररात यूँ यहां से गुजरता होगा। नीरज और ड्राइवर को दद्दा के सामने हाजिर कर दिया गया। जहां दद्दा सामने चारपाई पर लेटे हुये थे। बंदूकधारी ने बताया कि दद्दा यह कवि हैं कहते हैं जीप खराब हो गयी। यह सुन दद्दा ने कहा हं कैसे मान लें तुम कवि हो। चलो एक भजन सुनाओ। नीरज ने जब सुरमयी आवाज़ से भजन की शुरुआत की तो सब दंग रह गये। दद्दा ने नीरज से कई भजन सुने। बाद में जेब में हाथ डाला और सौ रूपये बतौर इनाम उनको देते हुये कहा बहुत ही अच्छा गाते हो। तुम्हारे गले में माँ सरस्वती का वाश है। बाद में बंदूकधारियों से बोले जा ड्राइवर को कुछ खुराक दे दो। तो बंदूकधारी ने डीजल टीन उनको देते हुये कहा कि कविजी को ले कर चले थे तो कम से कम डीजल टंकी चैक तो कर लेते। बाद में जब नीरज ने बंदूकधारियों से दद्दा के विषय में पूछना चाहा तो वह बंदूकधारी बोले चुपचाप निकल लो यहां से दद्दा नाम ही काफी है समझे। बाद में पता चला कि यह दद्दा कोई और नहीं बल्कि चम्बल के बागी सम्राट माधौ सिंह थे।यह सुनकर नीरज कांप गये और बागी सम्राट माधौ सिंह का काव्य से इस कदर प्रेम देख चकित रह गये। 

विदेशी में भी मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा-


कविराज नीरज उन उत्कृष्ट कवियों में से एक हैं जिन्हें विदेश में भी बहुत प्यार और सम्मान हासिल था। उन्होंने करीब बारह मुल्कों जैसे-नेपाल, अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया तक के तमाम शहरों में काव्यपाठ कर न सिर्फ सबको अपना मुरीद बनाया बल्कि हिन्दुस्तान का नाम बुलंद किया।

प्रकाशित कृतियाँ - 



-नदी किनारे (पूर्वनाम संघर्ष) 
-लहर पुकारे(पूर्वनाम अंतर्ध्वनि) 
-बादर बरस गयो(पूर्वनाम विभावरी) 
-प्राण गीत
-दर्द दिया है
-नीरज की पाती
-दो गीत
-मुक्तकी
-आसावरी
-गीत-अगीत
-नीरज की गीतिकाएं
-वंशीवट सूना है
-नीरज रचमावली(3खंड़ों में) 
-नीरज दोहावली
-नीरज ज्योतिष दोहावली
-नीरज के प्रेमगीत
-बादलों से सलाम लेता हूँ 
-कुछ दोहे नीरज के
-कारवां गुजर गया
-तुम्हारे लिए 
-फिर दीप जलेगा
-गीत जो गाए नही
-लोकप्रिय गीतकार नीरज
-आधुनिक हिंदी कवि नीरज
-पंत-कला, काव्य और दर्शन 
-नील पंखी(ब्लू बर्ड का हिन्दी अनुवाद) 
-लिख - लिख भेजत पाती

संपादन-

लय-त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 
हिन्दी रूबाइयां, हिन्दी के श्रृंगार गीत, गीतकार (मासिक), हिन्दी के विरह गीत
उन्होंने "गीत जो गाए नहीं" और "बच्चन-यात्री अग्निपथ का" सहित कई किताबें भी लिखीं।

20 से अधिक शोध-

"नीरज" हिंदी के उन चंद कवियों में से हैं, जिनकी रचनाओं पर 20 से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। और अभी कई जारी भी हैं।

अलंकरण - 



-साहित्य वाचस्पति (1991, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग) 
-विद्यावाचस्पति (1995,विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ)
-डीलिट की मानक उपाधियाँ (1996 डॉ.बीआर अम्बेडकर
-विश्वविद्यालय आगरा व 2007 में लखनऊ विश्वविद्यालय) 
-टैगोर वाचस्पति (1974,टैगोर सोसाइटी जयपुर) 
-यशभारती (1994,एक लाख रूपये से सम्मानित उ. प्र सरकार) 
-आलमी ऊर्दू कॉन्फ्रेंस, नई दिल्ली (1981)
-उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कार (1990)
-हिन्दी गौरव सम्मान (2004,उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ) 
इनके साथ गीत गंधर्व, गीत सम्राट, गीत कौस्तुभ, गीतऋषि, धरती तिलक आदि उपाधियों से विभूषित। 

पद्म सम्मान-

गोपाल दास "नीरज" को 1991 में पद्मश्री व 2007 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा व साहित्य क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पर दो-दो बार सम्मानित किया था।

कविराज नीरज स्मृति में सम्मानित होंगें कवि : योगी आदित्यनाथ -

मुख्यमंत्री उ.प्र योगी आदित्यनाथ ने यह घोषणा की है कि - 
"नीरज" की स्मृति में उत्तर प्रदेश हिदी संस्थान प्रत्येक वर्ष उनके स्मृति दिवस (पुण्य तिथि) पर प्रदेश के पांच नवोदित कवियों को एक-एक लाख रुपये का पुरस्कार, अंगवस्त्र व सम्मान-पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा 

        सचमुच कुछ लोग आते तो शख्स रूप में हैं और उनकी रूखसती शख्सियत के बन होती है । आज वह हमारे बीच मौजूद नहीं है पर उनके लिखे शब्दों में वो आज भी अमर हैं और रहेगें। 


-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 




परमपिता परमात्मा कलम के पुजारी की आत्मा 
को शांति और मुक्ति प्रदान करें। 

                        भावपूर्ण श्रध्दांजलि 
                            शत् शत् नमन  

                        🙏🌼🌼🌼🙏

4 comments:

  1. बहुत बढ़िया आलेख. बधाई और आभार!!!

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    1. आपका ससम्मान आभार आदरणीय
      🙏💐

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  2. अब मै बूढा किन शब्दो से नवाजू बिटिया जहाँ प्रशंसा के कोई शब्द नही बचते तुम उन शब्दो से भी बहुत ऊँची होगयी आज बिटिया आकांक्षा सक्सेना मेरी कलम तुम्हे सलाम करती है बहुत सुंदर बहुत आभार ।।
    समाज को ऐसे कलमकारो की जानकारी सदेव देती रहना इसी आशाअपेक्षा मे आपका शुभेच्छु मै कवि "भयंकर"
    ईश्वर आपको सदेव ऊंचाईया ही प्रदानकरे आपका कल्याण हो

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  3. आदरणीय आपके शब्द हमारे लिये ऑक्सीजन है। आपका आशीर्वाद स्वरूप हाथ हमारे सिर पर हमेशा बनायें रखियेगा।
    आदरणीय सैल्यूट तो आपको करती हूँ कि आप सब उम्दा लेखकों को पढ़कर ही दो शब्द को जोड़ने का प्रयास करते रहती हूँ।
    आपका ससम्मान आभार आदरणीय 🙏🙏🙏💐

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