Breaking News

दुनिया की छत को अपनी छत की दरकार :


तिब्बती धर्म गुरु करमापा लामा 


 दुनिया की छत को अपनी छत की दरकार  : 
 ''करमापा लामा'' पर टिकी है निगाहें - 




तिब्बत जिसे दुनिया की छत का दर्जा प्राप्त है। वही छत आज भी चीन के धोखे की आज भी दासता का दंश झेलने को विवश है। इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति की आवाज़ दफ्न नही की जा सकती। इसी कड़ी में जब 1956 एवं 1959 ई0 में हक यानि आजादी की आवाज़ें चिंगारी बनकर जोरों से भड़कीं तो चीन ने बलपूर्वक उन आवाज़ों को नेस्तनाबूद करने में ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया। 

चीन के इन्हीं अत्याचारों किसी प्रकार अपनी जान बचाकर बचकर दलाई लामा नेपाल पहुँचे बाद में भारत में आकर शरण ली। अभी भी वे भारत में रहकर चीन से तिब्बत को मुक्त करने का हर सम्भव सकारात्मक अहिंसात्मक प्रयास कर रहे हैं। सच तो यह है कि चीन के अनुगत 'पंछेण लामा' यहाँ के नाममात्र के प्रशासक हैंं,तिब्बत पर आज भी चीन का कब्जा बरकरार है और इसीलिए अब तिब्बती लोगों की आशाभरी  निगाहें तिब्बत के 17वें लामा, 33 वर्षीय करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे पर टिकीं हैं क्योंकि तिब्बत की परंपरा के अनुसार ब्लैक हैट जिसके सिर होती है वह बुद्ध का अवतारी या पुनर्जन्म होता है जो बहुत सम्मानीय होता है और वह अपने क्रिया कलापों से कुछ बड़ा कार्य कर सकता है। पूरी दुनिया लामा का आदर करती है। यही सब सोच कर चीन की भृकुटी तनी हुई है और वह करमापा लामा उग्येन त्रिनले दोरजे को पकड़ लेना चाहती है। जिस पर अमेरिका भी तिब्बती लामा के पक्ष में आ खड़ा हुआ है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार तिब्बती धर्मगुरु 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे नवंबर में भारत लौटने वाले हैं। 33 वर्षीय करमापा पिछले एक साल से मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए यूएस में हैं और उन्होंने इस बात का भी खंडन किया कि वे भारत से पलायन कर यूएस बसने की योजना में हैं। उन्होंने तिब्बतियन मीडिया को दिए इंटरव्यू में स्पष्ट कर दिया कि भारत के अलावा किसी अन्य देश में शरण लेने की उनकी कोई योजना नहीं है।करमापा दोरजे इस साल नवंबर में हिमाचल के धर्मशाला स्थित अपने मठ में लौटेंगे। बता दें कि दोरजे 1 साल से भी ज्यादा वक्त से अमेरिका में हैं। उन्होंने तीन बार अपना वीजा बढ़वाया था, जिसके बाद यह कहा जाने लगा था कि करमापा अमेरिका में बसने की योजना में हैं, लेकिन अब करमापा ने खुद मीडिया को दिए इंटरव्यू में सब स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने तिब्बतन सर्विस ऑफ रेडियो फ्री एशिया (आरएफए) को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘इस साल नवंबर में, धर्मशाला में प्रमुख तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों की मीटिंग होने जा रही है। इसलिए मेरा उसमें शामिल होना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि वर दलाई लामा का बहुत सम्मान करते हैं। 


   भारत सरकार सहित अन्य देश भी करमापा लामा को चीनी जासूस समझ बैठी थी । दिसंबर 1999 में तिब्बत के एक मठ से भागे हुए कर्मापा को 18 साल बीत चुके हैं। 14 वर्ष की अवस्था में वह नेपाली सीमा पर कठिन, बर्फीले इलाकों को पार करते हुए 10 दिनों के बाद 5 जनवरी 2000 को हिमाचल प्रदेश की धर्मशाला पहुँचे थे।उदाहरणार्थ वह एक चीनी एजेंट थे इस संदेह की पुष्टि कुछ साल पहले की गई थी जब खुफिया एजेंसियों को करमापा के पास से संदिग्ध रूप से काफी विदेशी मुद्रा मिली, जिसकी कीमत करोड़ों में थी।कर्मापा ने यह बताने की कोशिश की थी कि उनके भक्तों ने प्रेम तथा स्नेहस्वरूप वह राशि उन्हें दी थी। जिसके बाद भारत में करमापा को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे।
       कई लोगों ने यह सोचा था कि करमापा चीन की मदद से भारत पहुंचे थे, जिसके बाद करमापा को चीनी जासूस भी कहा गया पर एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार करमापा के स्वागत की तैयारियों में जुटी है। भारत सरकार करमापा लामा को दिल्ली के द्वारका इलाके में उनके सम्मान में उन्हें जमीन भी मुहैया कराने वाली है। रिपोर्ट्स के मुताबिक करमापा दिल्ली में अपना मुख्यालय बना सकेगें, इसके लिए सरकार इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास उन्हें पांच एकड़ जमीन भी मुहैया कराने पर करार हो चुका है। भारत की यह दरियादिली चीन को नगंवार गुजर रही है।



        इस वर्ष, भारत के तिब्बती आध्यात्मिक नेता को अरूणाचल प्रदेश सहित उत्तर-पूर्व के कई हिस्सों में दौरे की अनुमति देने का भी चीन ने विरोध किया है । दलाई लामा के अपनी मातृभूमि हिमालय में चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद वर्ष 1959 में वह तिब्बत से भाग निकलने को विवश थे और तब से ही वह भारत में रह रहे हैं। सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चीन (सीपीसी) के ‘यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट’ कार्यकारी उपाध्यक्ष झांग यीजियोंग ने कहा, ‘‘किसी भी देश या किसी भी संगठन का दलाई लामा से मिलने का न्यौता स्वीकार करना हमारी नजर में चीनी लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला एक गंभीर अपराध होगा।’’ झांग ने यह भी कहा कि चीन दूसरे देशों और नेताओं के 82 वर्षीय दलाई लामा से एक धार्मिक नेता के तौर पर मिलने के किसी भी तर्क को स्वीकार नहीं करेगा। 
       उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह साफ करना चाहता हूं कि 14वें दलाई लामा धर्म की आड़ में एक राजनीतिक हस्ती हैं।’’ झांग ने भारत का नाम लिए बिना कहा कि दलाई लामा वर्ष 1959 में अपनी मातृभूमि को धोखा दे दूसरे देश भाग गए और निर्वासन में अपनी सरकार स्थापित की जिसे चीन भूल नहीं सकता। वहीं, हाल ही में खबर आई थी कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ ने देश के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान, भारत रत्‍न के लिए नोबेल विजेता और तिब्‍बत के धर्मगुरु दलाई लामा के पक्ष में अभियान शुरु किया है। 5 अप्रैल को दलाई लामा चीन के कड़े विरोध के बावजूद अरुणाचल प्रदेश के तवांग पहुंचे थे। अभियान के प्रमुख और पश्चिमी कामेंग जिले के आरएसएस नेता ल्‍हुंदुप चोसांग ने यह अभियान शुरू किया है। उन्‍होंने कहा था, ”हमने अब तक 5000 हस्‍ताक्षर इकट्ठा किए हैं। 25,000 हस्‍ताक्षर हो जाने के बाद हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाएंगे।”


        33 वर्षीय कर्मापा पिछले एक साल से इलाज के लिए अमेरिका में हैं। इसलिए जब कर्मापा को विदेश में चिकित्सा उपचार के लिए पिछले साल जाना था तो उन्हें जाने की इजाजत दे दी गई थी। प्रवास के दौरान जब उनके प्रवास दस्तावेजों की वैधता समाप्त हो गई, तो उन्हें नवीनीकृत कर दिया गया। जब उनका भारतीय वीजा समाप्त हो गया, तो उसे भी शांतिपूर्वक नवीनीकरण कर दिया गया था।कर्मापा की ओर से यह संदेश भी स्वीकार कर लिया गया है कि वह जून में भारत लौट आएंगे, लेकिन अब मानसून के बाद नवंबर तक उनकी यात्रा स्थगित कर दी गई।नवंबर में सभी धर्मों गुरूओं की बैठक में दमाई लामा के प्रतिबद्ध होने के बाद अब सभी अधिकारी राहत की सांस ले रहे हैं।आरएफए के साथ पिछले हफ्ते के साक्षात्कार में कर्मापा ने कहा, “जब मैं पहली बार भारत आया तो मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसमें मुझ पर एक चीनी एजेंट होने का आरोप भी शामिल है।”करमापा ने यह भी कहा, “अब हमारे पास अपनी स्थिति, जिसने एक बड़ा अंतर उत्पन्न किया है, की व्याख्या करने के लिए उच्च स्तरीय भारतीय नेताओं से मिलने का अवसर है।”



      इसका तात्पर्य यह है कि धर्मशाला और दिल्ली में यह निम्न स्तर की नौकरशाही थी, जिसने पिछले 18 वर्षों में उनका जीवन नरक बना दिया था। लेकिन ऐसा बताने से भी कोई फायदा नहीं हुआ था।पिछले साल जो दिल्ली का हृदय परिवर्तन हुआ है। उस समय उन्होंने चिंताओं को ज़ाहिर किया था कि उनकी कहानियां, एक 14 वर्षीय बच्चे का चीन जैसे देश से बच निकलने की मुश्किल यात्रा तय करना, कल्पनात्मक लगती थीं।लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा था कि यह सीधा, साधा सत्य था। उन्होंने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि दलाई लामा के अलावा किसी और ने उन्हें आशीर्वाद नहीं दिया था और उन्हें कर्म कागुयू विरासत के उत्तराधिकारी 17 वें कर्मापा लामा के रूप में स्वीकार किया था।
      उन्होंने इस संवाददाता के साथ अपने साक्षात्कार में बताया, अगर भारत उनकी ओर ध्यान नहीं देता तो वे अन्य विकल्पों की भी तलाश कर सकते थे।पिछले हफ्ते वाशिंगटन में रेडियो फ्री एशिया (आरएफए) की तिब्बती सेवा के साथ एक साक्षात्कार में, कर्मापा ने पुष्टी की थी कि दलाई लामा द्वारा बौद्ध धर्म के सभी आध्यात्मिक गुरूओं की एक बैठक में भाग लेने के लिए वह भारत वापस लौट रहे हैं।
      करमापा ने आरएफए से कहा था, “मुझे कोई संदेह या सवाल नहीं है कि भारत में मेरी वापसी बिल्कुल निश्चित है।” “इस साल नवंबर में, भारत के धर्मशाला में प्रमुख तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों की एक महत्वपूर्ण बैठक होगी। इसलिए, उसमें मेरा शामिल होना अनिवार्य है।”सरकार के साथ तिब्बती मामलों के एक सलाहकार अमिताभ माथुर, जिन्होंने न्यूयार्क में जून में करमापा लामा से मुलाकात में यह बात सामने आई है कि करमापा लामा ने कहा कि “जब वापसी के समय और परिस्थितियों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा तब करमापा लाम वापस लौटेंगे।”



       तिब्बत लोगों की उम्मीदों के मोती दलाई लामा की बढ़ती उम्र जो की अब 83साल है और चीन सरकार के भारत के आस पास के क्षेत्र में अपने विस्तार के चलते , बीजिंग के खिलाफ एक तथाकथित “कार्ड” के रूप में तिब्बती समुदाय-निर्वासन का उपयोग करने की रणनीति अब  कमज़ोर होती दिख रही है।कर्मापा की ऑलिव शाखा एक महत्वपूर्ण कदम है। 900 वर्ष पुराने कर्म कागुयू परंपरा के आध्यात्मिक नेता के रूप में, तिब्बती बौद्ध धर्म में चार संप्रदाय हैं, जिनमें से एक गेलुगपा है जिसके नेता दलाई लामा हैं, कर्मापा 18 वर्षों से धर्माशाला की तलहटी में स्थिति एक आवास में रहते हैं जिसपर दिन रात एक सुरक्षा चौकीदार के द्वारा नज़र रखी जाती है।



      सूत्रों के मुताबिक, करमापा लामा को भारत सरकार द्वारा भूमि की पेशकश से काफी राहत मिली है। भारत - तिब्बत रणनीति 17वें करमापा लामा ओग्येन ट्राइनले दोरजे की सुरक्षा को लेकर चुनौती का सामना कर रही है। दोरजे को दलाई लामा के बाद सबसे प्रभावशाली तिब्बत बौद्ध धार्मिक गुरु माना जा रहा है। दोरजे ने उनकी यात्रा और किसी भी राजनीतिक भूमिका में उनकी रूचि को लेकर 'संयम' की बात पर नाखुशी जाहिर की है।करमापा ने हाल ही में कहा कि वह नवंबर में फिर से वापस आएंगे। शायद अगले महीने शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद वह आएंगे। यह कार्यक्रम 1893 में स्वामी विवेकानंद के भाषण की याद में आयोजित किया जा रहा है। माना जाता है कि करमापा ने यह बात साफ कर दी है कि वह जब भी भारत में होते हैं तो उनकी चीन द्वारा उनकी निगरानी की जाती है। उन्हें कार्यक्रमों में बोलने के लिए और कहीं आने-जाने के लिए इजाजत लेनी होती है। उन्हें दक्षिण पूर्वी एशिया में जाने की इजाजत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने लिए कोई भी राजनीतिक भूमिका नहीं देखते हैं और उन्हें दलाई लामा की तरफ से गाइड किया जाएगा और तिब्बत की प्रगति के लिए हम कटिबद्ध हैं। यहां यही कहना सार्थक होगा कि दुनिया की छत कहे जाने वाले तिब्बत के बाशिंदों के सिर पर आजादी की वो छत कब और किन परिस्थितियों में आयेगी और कौन से लामा के सिर सजेगा वह आजादी का ताज यह तो वक्त ही बताएगा।

@कॉपीराइट 

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक राष्ट्रीय मासिक पत्रिका  वाराणसी उ. प्र



No comments