”टैसू झैंजी” प्रेम विवाह : पवित्र दंत कथा
उत्तर भारत संस्कृति दस्तक ”टैसू झैंजी”
प्रेम विवाह दंत कथा –
टेसू मेरा यहीं खड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा। टेसू अगर करे, टेसू मगर करे, टेसू लेही के टरे के वह बोल अब नहीं सुनाई पड़ते। हाथ में बर्तन और टेसू लेकर घर-घर जाकर विवाह का निमंत्रण देते बच्चों की टोलियां भी नहीं नजर आतीं। इंटरनेट की रफ्तार में टेसू-झांझी पिछड़ रहे हैं। नई पीढ़ी को इस पारंपरिक खेल का महत्व ही पता नहीं है।
दशहरे के बाद शुरू होने वाले टेसू-झांझी के खेल में बच्चे घर-घर जाकर रुपये जमा करते और शरद पूर्णिमा को विवाह कराया जाता, लेकिन बदलते वक्त में अब परंपरा लुप्त होती जा रही है। आज इंटरनेट की रफ्तार के साथ दौड़ते बच्चे अब टेसू-झांझी के बारे में नहीं जानते।
कुंभकार परिवारों के सामने मिट्टी के सामान की उपेक्षा के चलते भी रोजी रोटी का संकट खड़ा कर दिया है।
आइये! जानते हैं किवदंतियां क्या कहतीं हैं-
टेसू और झैंजी महाभारत कालीन चरित्रों के प्रतीक हैं। बलशाली भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र बरबरीक महान शक्तिशाली योद्धा था। महाभारत युद्ध के दौरान वह पराजित हो कौरवों के पक्ष की मदद का संकल्प लेकर निकला योगीराज भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि अगर बरबरीक हार रही कौरवों की सेना की तरफ से युद्ध करने लगा तो पांडवों की विजय असम्भव हो जायेगी।
जंगल में युद्ध के लिए निकले बरबरीक को रास्ते में एक अति सुन्दर राक्षस पुत्री झैंजी दिखी और वह बरबस ही वहीं रूक गये। दोनों एक दूसरे को कुछ पल देखते रहे और झैंजी ने उन्हें उसी वक्त अपना पति मान लिया। बरबरीक उन्हें देखकर सब समझ गये और बोले वह महाभारत का युद्ध जीतने जा रहे हैं।
मैं तुम्हारे लिये रूक नहीं सकता। मेरा कर्तव्य मुझे बुला रहा है। इतना कहकर बरबरीक उनकी मोहनी मूरत को हृदय में बसाये वहां से आगें निकल गए। उन्हें जाते देखकर झैंजी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए कहा कि हे! भगवान् मेरे पति की रक्षा करें और मेरा विवाह इन्हीं से सम्पन्न हो प्रभु।
इधर रास्ते में भगवान् श्री कृष्ण ने ब्राह्मण रूप धारण करके बरबरीक को रोक लिया। जहां बरबरीक ने उन्हें माता शक्ति साधना से प्राप्त हुये तीन तीरों का शक्ति प्रदर्शन किया।
जहां एक बृक्ष के सभी पत्तों में छेद कर दिए अंत वह तीर भगवान् श्री कृष्ण के पांव के नीचे दबे उसी पेड़ के पत्ते में छेद हो गया। यह महाविनाशकारी शक्ति देखकर भगवान् श्रीकृष्ण को बरबरीक ने बताया कि वह कौरवों की तरफ युद्ध करेगा अगर वह कमजोर पडे और उन्हें विजयश्री दिला देगा।
यह सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने बरबरीक का सिर धड़ से अलग कर दिया। बरबरीक ने कहा प्रभु यह सब हमने जानबूझकर किया कि मुझे आपके हाथों मरकर मुक्ति प्राप्त हो सके। भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा हे! महात्मा बरबरीक अगर तुम युद्ध में पहुंच जाते तो समयचक्र प्रकृति संतुलन बिगड़ जाता जो ठीक नही होता। अगर तुम्हारी कोई इच्छा हो तो वर मांग लो।
यह सुनकर बरबरीक ने कहा हे! दीनानाथ मैं इस महाभारत युद्ध में आपकी लीला देखने की इच्छा रखता हूँ।भगवान श्री कृष्ण ने कहा तथास्तु और उसका कटा सिर उन्हीं के तीन तीरों पर रखते हुये कहा तुम्हें सत्य के दर्शन होगें।
जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ तो सभी पांडव अपनी – अपनी वीरता का बखान कर रहे थे जिसे देखकर बरबरीक जोर से हँस पड़े। बरबरीक को इस तरह हँसते देख पांडवों ने पूछा हे! मात्मन् इस हँसी का कारण? तो बरबरीक ने कहा कि आप लोग निमित्त मात्र थे।
वहां तो प्रभु श्री कृष्ण का सुदर्शन घूम रहा था। चारों तरफ़ भगवान् श्रीकृष्ण जी की लीला नृत्य कर रही थी। यह युद्ध सत्य और असत्य के बीच चल रहा था। यह जीवन सत्य सुनकर सभी पांडव भगवान् श्रीकृष्ण जी के चरणों में नतमस्तक हो गये और मुक्ति के लिए वहां से दूर चले गए।
यह सब देखकर भगवान् श्रीकृष्ण ने बरबरीक कुछ पूछना चाहते हो क्या? बरबरीक ने कहा प्रभु आपके सुदर्शन से कट कर कोई जिन्दा नहीं बचता आखिर! मैं क्यूँ जिंदा रहा। मेरा सिर कैसे जिन्दा रहा?
यह सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा प्रेम और भक्ति के कारण झैंजी के द्वारा की गयी अनंत प्रार्थना के कारण। बरबरीक ने आँखें बंद की तो उसे झैंजी उनके लिए प्रार्थना करती प्रेम में डूबी दिखीं। बरबरीक ने आँखें खोलीं और कहा प्रभु मेरा सिर ही जिंदा है।
यह प्रेम विवाह कैसे सम्पन्न होगा। मैं झैंजी के प्रेम को पूर्णता कैसे दे सकता हूं जब मैं मुक्ति के पथ पर हूँ। भगवान् श्रीकृष्ण मुस्कुराये और बोले कि बरबरीक प्रेम ही मुक्ति है। चलो झैंजी के पास चलो।
भगवान् श्रीकृष्ण ने झैंजी के पास पहुंच कर उसे पूरी घटना सुना दी और पीछे तीन तीर पर रखा बरबरीक का सिर दिखा दिया जो झैंजी के प्रेम के प्रति नतमस्तक था। झैंजी ने जब बरबरीक की आँखों में अपने प्रति अथाह प्रेम देखा तो वह तृप्त हो गयीं।वह बोली प्रभु यह कुछ बोलते क्यों नहीं? यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने बरबरीक से कहा टेसू की तरह अड़े तो खड़े हो पर मौन क्यों? अपनी पत्नी से कुछ तो बोलो?
यह सुनकर बरबरीक मुस्कुराये और बोले! आपका सम्मान करता हूं आपके सामने क्या बोलूं, पर आप तो सर्वत्र हैं और फिर झैंजी की तरफ देखकर बोले प्रिये! यह शरीर तो मेरा समाप्त हो चुका अब क्या कहूँ।यह सुनकर झैंजी ने कहा जो शरीर तक सीमित हो वो प्रेम नहीं।
उनके जवाब से बरबरीक संतुष्ट हुए। फिर भगवान ने श्रीकृष्ण ने स्वयं बरबरीक को ठीक कर दिया और झैंजी का विवाह सम्पन्न कराया और कहा सारा संसार तुम्हारे निस्वार्थ प्रेम को सदा – सदा याद रखेगा और प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के दिन तुम्हारे विवाह से ही सभी की शादियों के मुहूर्त प्रारम्भ होगें। प्रतिवर्ष तुम्हारा विवाह टेसू झैंजी के प्रेम विवाह त्यौहार के रूप में मनाया जायेगा और यह विवाह प्रेम से प्रेम के विवाह के रूप में जाना जायेगा।
विवाह उपरांत प्रेम से पोर-पोर भीगी हुई टेसू और झैंजी की आत्मा भगवान् श्रीकृष्ण के श्री चरणों में विलीन हो गयी।
और वहां के आदिवासियों ने उसी सिर के प्रतीक को तीन लडकियों पर रखकर व मिट्टी के मटकी में छेद करके उसमें आत्मा स्वरूपा तेल का जलता हुआ दीपक रखकर पूरे गांव में घर-घर दर्शनहेतु घुमाया और भगवान् श्रीकृष्ण से सभी की अमर प्रेम, मुक्ति और सुख शांति के लिए प्रार्थनाएं कीं।
🙏जय श्री कृष्ण 🙏
- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार मैम
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रोचक कथा ! हम अपने लोक-साहित्य, लोक-परंपरा और लोक-संस्कृति से विलग होकर और पश्चिम की अंधी नक़ल करके ख़ुद अपनी पहचान भूलते जा रहे हैं.
ReplyDeleteजी सहमत आदरणीय
Delete🙏🙏🙏💐
पौराणिक कथाओं के साथ जुडी अनुठी परम्पराऐं अब समाप्ति के कगार पर है, जो उस समय लोगो को एक दुसरे से जोडती थी मनोरंजन का साधन और सांस्कृतिक धरोहर थी अब नये भौतिक साधनों में खो गई।
ReplyDeleteसुंदर दंत कथा।
जी सहमत हूं आपके विचार से । हम सब लोग मिलकर अपनी सभ्यता को सजों सकते हैं, एक प्रयास । 🙏💐🙏🙏💐
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