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कहानी : सेम टू यू ✍️ ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना


आखिर! हम कब तक 'सेम टू यू' कहकर दिल से खुल कर बधाई और शुभकामनाएं देने से पल्ला झाड़ते रहेगें....हम और कितना शॉर्ट होगें.....! यही सोच हमारी संकीर्ण मानसिकता का पर्याय बनती जा रही है... 


कहानी :  सेम टू यू - 




शर्दी और उस पर ये बरसात दद्दा मरे जात हैं कसम से,अलाव से आग तापते हुऐ बेचे चाचा बोले,बड़ी ठण्ड हैं। तभी उनकी बात काटते हुऐ मलखे दद्दा बोले,"जे क्या ठण्ड है। ठण्ड तो हमाये जमाने में पड़त ती छप्पर पर ओले की चद्दर बिछ जात ती और दिन रात बस आग का ही आसरा होत हतो बस बा थी ठण्ड पर अब तो मॉर्डन जमाना है। आज के लरका बहू रूम हीटर जला लेत तो काहे की शर्दी। यह सुन कर सब हंस पड़े। 

दूर से देख रहे कुछ दिनों की छुट्टी पर आये नवनिर्वाचित वन विभाग के अधिकारी लोकेश कुमार आकर बोले,"अरे! चचा बड़ी जोर की हंसी आ रही क्या बात है? हम भी सुने। यह सुनकर बेंचें चचा बोले,"अरे! लला लोटन। तभी आलोक जी उन्हें बीच में टोकते हुए बोले, ''लोटन बोलोगे तो हम नहीं बैठेंगें यहाँ।'' ये सुनकर वहां बैठे सब लोग बोले जा अंग्रेजी ने ना सब प्रेम खत्म कर दओ। लुटनवा में जो दुलार है वो लोकेश शब्द में नाही। 

लोकेश ने मन ही मन सोचा गाँव के गँवार क्या जाने लाईफ स्टाइल और स्टेन्डर्ड....तभी पास में बैठी तोजी मौसी बोली,"बिटवा लोकेशवा जे बता बड़े शहर में क्या कुछ होत है...बता ना वहाँ की शादी ब्याह...कैसी होत? लोकेश ने घमण्ड में भर के कहा,"मौसी जी शादी ऑनलाईन फिक्स होती हैं आजकल। फेसबुक व्हाटस अप पर लव होता फिर शादी वो भी अपने मनमर्जी से और अपने बराबरी में। अब ये नहीं कि माँ बाप किसी गंवार के पल्ले बाँध दें। 

मौसी तो सह सुन चुप हो गयीं पर मलखे दद्दा चुप न रह सके वो बोले,"लला गंवार किन्हें कहत हैं?" लोकेश बोला,"गंवार मतलब जिसे उठने-बैठने की अक्ल न हो और सामने वाले को अच्छी तरह अपनी बात से प्रभावित न कर सके वो गंवार है और जो बिना मतलब के काम करे फालतू बातों में वक्त बरबाद करें।

और तो और जिसे ये नही पता कि डियो और सेण्ट में क्या फर्क? जो बालों की क्रीम मुँह पर पोत ले। ऐसे लोग गंवार नहीं तो क्या हैं? 

ये सुनकर अलाव ताप रहे कभी गोद में खिलाये लोटन जो आज लोकेश बन चुका था। कभी उसकी तोतली बोली  सबके मन को सुकून पहुंचाती थी पर आज उसके इन जलते तीर जैसे शब्दों ने तो अलाव की आग को भी ठण्डा कर  मानो दिलों में सुलगा दिया था। 

वहीं पास में बैठी मौसी की नातिन जो कक्षा - 8 में पढ़ती थी सब सुन रही थी वह बोली," लो ये देखो!आलू भी भुन गये लो खाओ ना लोकेश चाचा। लोकेश बोला,"ओह! चाचा न कहो अभी में जवान हूँ। मौसी की नातिन बोली,"चाचा सुबह से आप दिखे नही चलो अब बोल देती हूँ।
लोकेश,"क्या ?" 
वो झट सेे उठी और लोकेश के गले से लग कर 
खुशी से बोली, ''हैपी न्यू इअर चाचू।'' 
लोकेश बोला,"सैम टू यू फिर सबकी तरफ
देख के बोला ,"सैम टू यू ऑल।
यह सुनकर वह बोली,"चाचू आज आपका और मेरा दोनों का बर्थ डे यानि जन्मदिन है। वो फिर से खुश होकर लोकेश के गले से लग के बोली,"हैपी बर्थ डे चाचू। 
लोकेश ने कहा,"सेम टू यू डियर प्रीती और सुन क्या गिफ्ट चाहिये माँग लो, तेरा चाचू दुनिया की कोई भी बड़ी चीज तुझे ऐज ए गिफ्ट दे सकता है। 
वह बोली,"प्रोमिस। "
लोकेश ने कहा, ''पक्का। '' अब जल्दी बोलो। 
प्रीती ने कहा,"चाचू बस आज के बाद किसी से भी सेम टू यू मत बोलियेगा । 

लोकेश ने प्रीती की तरफ देखा तो वह लोकेश से दूर हटते हुए बोली,"चाचू! सब कुछ इतना भी शॉर्ट ना कर दो कि प्रेम के लिये जगह ही न बचे। आज शुभकामनाएं, सेम टू यू  होकर रह गयीं और अंतिम संस्कार की श्रध्दांजलि रिप RIP होकर रह गयी...! 

वह रोते हुए बोली,"चाचू आपकी इस पद - पोजीशन में मेरे अपने चाचू कहीं खो गये। गिफ्ट ही देना है तो मुझे मेरे वहीं गवार चाचू दे दो।

वही पुराने वाले चाचू हमें वापस कर दो जो हम सब के साथ ईखड -दूखड़, गोली-कंच्चा,लपा,घोड़ा-झमालखाई,आँख-मिचौली,छुआ-छुअल्ली खेला करते थे जिनके पास लम्बी जादू की कहानियां हेतीं थीं जिनके पास ढ़ेर सारा प्यार होता था जो मम्मी दादी के सामने पतलून तक कभी शॉर्ट नहीं पहनते थे... 
वही प्यारे शर्मीले से चाचू मुझे लाकर दे दो। 

अब टुकुर-टुकुर देख क्या रहे हो, लाओ! मेरा गिफ्ट दो। आप मेरे चाचू नहीं वो इतने कंजूस कभी नहीं थे जो मुँह से बोले जाने वाले शब्दों की भी कंजूसी करें जो सेम टू यू बोल कर पल्ला झाड़ लें। 
जो दिल खोल के आशीर्वाद भी न दे सकें।

वैसे सही कहा,"सेम टू यू चाचू थोड़ा शर्म करो शायद इन शब्दों का ये भी मतलब होता है ना...। सेम माने शर्म है न चाचू।  

यह कहकर वह फूट-फूट के रो पड़ी। 
यह सब सुनकर लोकेश अंदर तक हिल गया और आज अपनी भतीजी के सही शब्दों से उसके मन में घर बना चुका घमंड का प्रेत पल भर में हीं छू-मंतर हो गया। 

उसे लगा मानो आज किसी ने उसे सत्य का आईना दिखाई दिया हो। उसने महसूस किया कि मेरी भतीजी इस छोटी सी बच्ची के प्रेम में वो सच्चाई है जिसने आज मेरी आँखें खोल दीं । 

आज वह इस सत्य को समझ चुका था कि उसने कितनी बड़ी गल्ती की है और यह भी कि अपने देश,गाँव,रिश्ते-सम्बंधों और उसकी विवधता को उसके प्रेम को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। क्योंकि यही विविधता ही प्रेम की जड़ है और दुनिया में प्रेम से बड़ा कुछ नहीं होता। 

लोकेश ने बड़ी आत्मियता से अपनी भतीजी प्रीती के आँसू पोंछे और पहले की तरह उसे दुलारते हुए अपने कंधे पर बैठा लिया। और प्रीति अपने पुराने चाचू को वापस पाकर बहुत खुश थी। 

आज लोकेश ने  महसूस किया कि एक छोटे बच्चे के शब्द भी जीवन की प्रेरणा बन सकते है। लोकेश ने पांव छूते हुए कहा,"दद्दा माँफ कर दो। " 

यह देख वहां बैठे सब लोग चुप रहे और कोई कुछ न बोला। तो लोकेश ने बड़े ही प्यार से कहा," चच्चा अब भुकरे ही रहोगे कि भुने आलू ठण्डे करोगे लोटन ही हूँ ना थोड़ा सा लुढ़क गया था बस...यह सुनते ही सब जोर से हँस पड़े और प्रीती अपने चाचू की गोद में बैठी भुने आलू का श्वाद लेने लगी। 



-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 
मेम्बर ऑफ फिल्म स्क्रिप्ट राईटर ऐसोसिएसन मुम्बई। 














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