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जींस वाली बहू - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना





कहानी : जींस वाली बहू 

मेरी एक मित्र ने पूछा कि संकीर्णता क्या हैं ? किसी सरल घटना से समझाओ जिससे मुझे समझ आ जाये।
हमने कहा," सुनो, ये दो सहेलियों का वार्तालाप से समझो।
सहेली रेखा," सुनो 'सोनल' की माँ,कल तुम कहाँ गयीं थी? मैं तुम्हारे घर आयी और वापस लौट गयी।
'सोनल' की माँ," वो मैं अपनी पुरानी सहेली के घर गयी थी।
सहेली रेखा,"कोई खास काम था क्या?

'सोनल' की माँ," सोचा उसकी लड़की शादी लायक हो गयी है काफी पढ़ी - लिखी एम.बी.ए है तो सोचा अपने गौरव के लिये देख लूँ,गौरव भी उसको पसंद करता है। 
ये बात भी मैं जानती हूँ।


सहेली रेखा," हाँ,तो परेशानी क्या है? कर डालो शादी बच्चों की खुशी में अपनी खुशी।"

तभी अचानक 'सोनल' चश्मा लगाये बाल खोले पटियाला सलवार पहने अपनी माँ और आंटी(रेखा) को नज़रअंदाज करते हुई अपने ऊपर वाले कमरे में चली गयी।

सहेली रेखा को 'सोनल' का यह व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा न लगा पर वह चुप रही।
तभी सोनल की माँ खुद किचन में जाकर रेखा के लिये पानी और पेठा लेकर आयी और बोलीं लो पानी पी लो,आजकल गर्मी बहुत पड़ रही है, आदमी तक सूखा जा रहा है।

सहेली रेखा पानी पीते हुये बोली,"चलो,फिर गौरव की शादी कब है?

सोनल की माँ,"मुझे वो लड़की ही पसंद नहीं आयी? अब जब दूसरी अच्छी लड़की देखूंगी तब करूगीं अपने गौरव की शादी लड़की ऐसी हो जो घर लेके चले संस्कारी हो।

सहेली रेखा," अच्छा,ये बताओ तुम्हारी उस सहेली की बेटी का नाम क्या है?''

सोनल की माँ," शिवानी।"

रेखा,"तो,शिवानी ने तुमको देख कर नमस्ते की ?

सोनल की माँ,"हाँ,नमस्ते भी की ,उसने तुरन्त मेरे लिये चाय भी बनायी और गरमागरम पकोड़े भी बनाये और मेरे पास बैठी हंसती रही, बतियाती भी रही और उसके  टेलर मास्टर पिताजी बोले बेटी ही मेरी पूँजी है। 
रेखा,"तो,कमी क्या लगी उसमें ?

सोनल की माँ,"वो जीन्स टी-शर्ट पहने थी।

ऐसी लड़कियाँ क्या घर परिवार सम्भालेंगी बोलो?

मैने गौरव से कह दिया अब उसकी बात ना ही करे।


सहेली रेखा," पहनावा से क्या,उसका स्वभाव तो अच्छा है। अतिथि का सम्मान करना जानती है। बृद्धाआश्रम में जितने भी बुजुर्ग हैं क्या उन सभी को जीन्सवाली बहुओं ने उन्हें वहाँ पहुँचाया है ?

और तुम्हारी बड़ी बेटी 'मीनल' को उसके ससुरालीजनों ने घर से निकाल दिया क्या वो भी जीन्स पहनती थी? नहीं ना फिर... अरे! हम तुम ने भी तो अपने जमाने मैं वेलवॉटम पहने थे तो क्या हम लोगों ने गृहस्थी नहीं देखी?

सोचो! जब तुम दूसरे के लड़की के लिये ऐसे सोच सकती हो तो कल के दिन तुम्हारे भी लड़की 'सोनल' को लोग देखने आयेगें वो क्या बोलेगें?

सोनल की माँ,"मेरी सोनल तो पटियाला सूट दुपट्टा पहनती है।''

रेखा," हाँ,पहनती है,पर मुझसे, ये क्या संस्कार हैं उसके कि मुझसे, नमस्ते तक ना की उसने।  ....बुरा मत मानना, पहनावा नहीं संस्कार देखो। खुशदिल स्वभाव देखो। बहू को बेटी समझो,घर में काम करनेवाली बंधुआ मजदूर, नोकरानी नहीं,घर बच्चे सम्भालनेवाली आया नहीं।

सोनल की माँ ," कुछ सोच पाती,तभी ढ़ेर सारी चुन्नट वाली पटियाला सूट और ब्लू चश्में को सिर पर चढ़ाते हुए 'सोनल' बोली मॉम में अपने फ्रैंन्डस के साथ मूवी देखने जा रही हूँ,रात हो जायेगी, मेरा खाना मत बनाना।" 

तभी सोनल की मां ने कहा, ''सोनल, लौटते में मेरी खाँसी वाली दवा लेते आना? सोनल चिल्लाते हुए, ''गौरव भैया को बोल दो माँ मुझे समझ नहीं आती दवा ववा...!! कह कर स्कूटी स्टार्ट करके निकल गयी।

रेखा,"  मैं चलती हूँ, सोनल हूँ की माँ.. 

और चलते हुए बोली देखो! सोनल की माँ तुम ये अपने दिमाग की संकीर्णता खत्म करो और जिंदगी मैं सही फैसले लो। किसी के कपड़ों से उसके बारे में गलत राय न बनाओ। 


जरूरी नहीं कि जींस वाली बहू बुरी ही हो और सूट पटियाला वाली भली ही हो, समझी।


सोनल की माँ," तुम शायद सच कह रही हो।"
रेखा के चले जाने के बाद.. 

सोनल की माँ बड़बड़ाते हुए बोलीं कि ये रेखा की बच्ची, मुझे समझा रही है।
अरे! जींस तो मैं उसका यहां लाकर साड़ी में बदल दूँगी पर उसका बाप कह रहा कि सिर्फ़ बेटी ही उसकी पूँजी है, अब साधारण टेलर मास्टर हमें  दे भी क्या सकता है? कहाँ मेरा बेटा गौरव  सरकारी प्राईमरी स्कूल का मास्टर कहाँ यह टेलर मास्टर? शादी ऐसी हो कि दुनिया देखे, तमाम मिलेगीं लड़कियां मेरा बेटा सरकारी मास्टर जो है? और सामने मेज पर पांव फैलाकर कुर्सी पर सिर टेक कर  अपनी रिश्तेदार माला को कॉल करते हुए बोलीं, ''हाँ, माला  तू जो  डाक्टर साहब की.. वो लड़की बता रही थी... प्रिया... उसका बॉयडाटा.... भेज। 

माला, ''प्रिया बहुत मॉडर्न है, और हाँ उसकी  मुम्बई कॉलसेंटर में पर्मानेंट जॉब भी हो गयी है.. जींस वाली बहू चलेगी तुझे... 

सोनल की माँ, ''अरे! हम भी बहुत मॉडर्न  है.... 

माला, ''तेरा लड़का और बहू  दोनों अलग रहेगें  सोनल की माँ... मेरा मतलब.... तू समझ रही ना.... 
सोनल की माँ, ''क्या मतलब, मतलब कर रही... 
माला, ''बहू के हाथ की गर्म रोटियां नहीं मिलेगीं तुझे.. सोच ले...

सोनल की मां, '' नौकरानी रख लूंगी...बाकि चीजों के लिए मार्केट पड़ा है.. 

माला, '' नाती - नातिन  भी  मार्केट से लेना.... 

माला, ''सोनल की माँ  प्रिया की शादी कब की हो गयी जब पिछले साल तुमने उसे जींस वाली कहकर रिजेक्ट कर दिया था.... ढूंढती रहो..मैं तो बस मजे ले रही थी कि तुम्हारी लालच रूपी दाल गली की नहीं .. देख रही थी कहाँ रूकेगी जाकर तुम्हारे लालच की ट्रेन......सोनल की माँ तुम्हारा यही लालच तुम्हारे बेटे गौरव की लाईफ बर्बाद कर देगा....कह कर फोन काट दिया। 

देखा! दोस्तों यही है हमारे दिमागों की संकीर्ण अवस्था या यूँ कहूँ कि निम्नस्तरीय मानसिकता जिसे बदलना बेहद कठिन कार्य है। आपने देखा कि रेखा और माला के बहुत समझाने पर भी सोनल की माँ पर कोई असर नहीं हुआ। होता भी कैसे लालच था दहेज़ पर ठीकरा फोड़ दिया जींस पर। वो ये सोचती रहीं कि मैं रेखा की बात मानकर छोटी सिद्ध न हो जाऊँ। इंसान में अंहकार और लालच की जो भावना है बस यही संकीर्ण मानसिकता, इंसान का इंसानियतरूपी कद कभी बढ़ने ही नहीं देती। 




-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना,पत्रकार  
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 
मेम्बर ऑफ स्क्रिप्ट राईटर ऐसोसिएसन मुम्बई 

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