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हिमा दास Hima Das आप Great हैं - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

अंजना और पंत मैडम जी कब दिखा रही हो अपने टीवी भोकाल चैनल पर हिमा दास का 4-5 घंटे का इंटरव्यू व उनकी फैमली के सम्मान व सफलता की पूरी कहानी....? या अपमान दिखाना ही टीआरपी कमाने का जरिया बन गया - - - 




अप्रतिम कामयाबी - 
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[21 दिन में 6 गोल्ड हिमा दास 👑आप महान और दिव्य हो सचमुच] 




पहले ढ़िंग एक्सप्रेस नाम से फेमस अब 'नई उड़न परी' नाम से फेमस हिमा दास  Hima Dasचेक गणराज्य में हाल ही में लगातार पांच स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियों में आने वालीं हिमा दास का जन्म 9 जनवरी साल 2000 में पूर्वोत्तर राज्य असम के नगांव जिले के कांधूलिमारी स्थित ढिंग गांव में हुआ था।पिता रणजीत दास और मां जोनाली दास चौथी और सबसे छोटी बेटी हिमा दास को बचपन में फुटबॉल खेलना पसंद था. दिलचस्प है कि हिमा दास लड़कों की टीम का अहम हिस्सा हुआ करतीं थीं।किसान माता-पिता के यहां पैदा हुईं हिमा दास इनका बचपन गरीबी में बीता. माता-पिता जमीन के छोटे से टुकड़े में चावल की खेती किया करते थे। लेकिन हिमा में बचपन से ही खेल-कूद में रूचि थी। इनकी प्रतिभा को सबसे पहले जिले के नवोदय विद्यालय के खेल शिक्षक शमशुल हक ने पहचाना।मैदान में उनकी तेजी को देखकर शमशुल हक ने ना केवल इन्हे दौड़ने की सलाह दी बल्कि इनकी प्रतिभा को निखारने के लिए इन्हें नगांव स्पोर्टस एसोसिएशन के अध्यक्ष गौरी शंकर रॉय से मिलवाया।इन दोनों की देख-रेख में सीमित संसाधनों के बावजूद हिमा का प्रशिक्षण शुरू हुआ और अपनी पहली ही जिलास्तरीय प्रतियोगिता में हिमा ने दो स्वर्ण पदक जीत लिया। ये ढिंग एक्सप्रेस हिमा दास के स्वर्णिम सफर की शुरूआत भर थी. जिला स्तरीय प्रतियोगिता में कोच ने पहचाना जिला स्तरीय प्रतियोगिता में हिमा दास काफी साधारण सी नजर आ रही थीं।इन्होंने बेहद साधारण जूते पहन रखे थे लेकिन जब दौड़ना शुरू किया तो अपनी तेजी से सबको हैरान कर दिया। यहीं पर स्पोर्टस एंड यूथ वेलफेयर से जुड़े निपोन दास की नजर हिमा पर पड़ी।इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर निपोन ने इन्हें प्रशिक्षित करने का फैसला किया लेकिन मुश्किल ये थी कि हिमा के गांव से गुवाहटी शहर तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर था।हिमा के पिता रणजीत अपनी बिटिया को इतनी दूर भेजने के लिए कतई तैयार नहीं थे।आखिरकार काफी समझाने के बाद वे इसके लिए तैयार हो गये। हमें उस पल का शुक्रिया अदा करना चाहिए जब रणजीत दास ने भारी मन से हिमा को गुवाहटी भेजने के लिए हामी भरी थी. पहले अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले खास नहीं थे गुवाहटी में निपोन दास की कड़ी निगरानी में हिमा का प्रशिक्षण शुरू हुआ।अपनी सच्ची लगन और खेल के प्रति जुनून की बदौलत हिमा दास ने निखरना शुरू कर दिया।हिमा अब अतंर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार हो चुकी थीं लेकिन उनके अंतर्राष्ट्रीय सफर की शुरूआत बढ़िया नहीं रही। सबसे पहले उन्होंने बैंकॉक में आयोजित एशियाई यूथ चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और सातवें स्थान पर खत्म किया। 





इसके बाद महज 18 साल की उम्र में हिमा दास ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया लेकिन पिछली बार के मुकाबले एक स्थान की बढ़त के साथ छठे नंबर पर रहीं।कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद हिमा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियन ट्रैक कंपीटिशन में हिस्सा लिया और इस जीता भी. एशियन गेम्स (जकार्ता ) से दिखाई धमक हिमा दास ने दुनिया को अपनी धमक पहली बार तब दिखाई जब उन्होंने जकार्ता में आयोजित 18वें एशियन गेम्स में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुये रजत पदक जीता. इसी में हिमा ने 50.79 सेकेंड के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम किया था. इसके अलावा उन्होंने गुवाहाटी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किया. 21 दिन के अंदर जीता छह स्वर्ण पदक अब हिमा दास चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। इस प्रतियोगिता के दौरान हिमा ने 400 मीटर की दौड़ में 51.46 सेकेंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता।




ये उपलब्धि हासिल करने वाली हिमा पहली भारतीय महिला एथलिट बन गयीं हैं. इसके अलावा हिमा दास ने 200 मीटर की अलग-अलग चार प्रतिस्पर्धा में क्रमश 2, 7, 13 और 19 जुलाई को स्वर्ण पदक अपने नाम किया. इस प्रकार जुलाई 2019 में महज 20 दिनों के भीतर पांच स्वर्ण पदक हासिल कर हिमा ने नया कीर्तिमान गढ़ा है। हिमा दास की इस अप्रतिम कामयाबी पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,सीएम योगी आदित्यनाथ , केंद्रीय खेल मंत्री किरिन रिजिजू समेत खेल और बॉलीवुड जगत की तमाम हस्तियों ने इस उपलब्धि के लिए हिमा दास को बधाई दी है।





गौरतलब है कि जब हिमा दास जब ये उपलब्धियां हासिल कर रही थीं तब बाढ़ की वजह से उनका अपना घर-परिवार संकट में था।हिमा दास ने मिसाल कायम करते हुये बाढ़ राहत कोष के लिए अपनी आधी सैलरी दान कर दी। सैल्यूट हिमा दास जी। 

हिमा दास का दर्द - क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप में केवल 10 टीमों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है लेकिन हम 200 देशों की प्रतिभागियों के साथ मुकाबला करते हैं। महज कुछ सेंकेड की दौड़ के लिए हम सालों तक पसीना बहाते हैं लेकिन दु:खद है कि हमें वो नाम और प्रोत्साहन नहीं मिलता जितना क्रिकेटरों को मिलता है - हिमा दास 

आइये! सभी खेलों को सम्मान दें व सभी खेलों के खिलाडिय़ों को वही प्यार और सम्मान दें जो हम क्रिकेट को देते हैं तभी हम हिमा दास जैसे महान खिलाड़ियों का हौंसला मजबूत कर पायेगें और अपने भारतवर्ष को भी। 

सैल्यूट हिमा दास 🙏

वंदेमातरम् 🇮🇳
भारतमाता की जय 🇮🇳

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