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चन्द्रयान - 2 : हम होगें कामयाब






(आज तक चंद्रमा के जिस दक्षिणी भाग पर सूरज की रोशनी तक नहीं पहुंच सकी, वहां आज भारत पहुंचा है।) 


- आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 

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सबसे पहले तो इसरो के वैज्ञानिकों को दिल से बधाई! चांद पर सोफ्ट लैंडिंग ना होने के कारण मन में बेचेनी जरूर है पर हमारे देश का मिशन चन्द्रयान-2 पूरे 95% तक सफल हुआ है।  आज इसरो ने साबित कर दिया कि 1963 में एक बैलगाड़ी पर सामान रखकर थुंबा (केरल) तक पहुंचने वाली हमारी छोटी सी संस्था आज कितनी विराट हो गई है कि नासा भी हमारी सोच और तकनीकी से आज हैरान है। हमें याद रखना चाहिए जहां तक मिशन चंद्रयान-2 की बात है तो इसमें कोई शक नहीं कि यह अत्यंत महत्वाकांक्षी और कठिन मिशन था। इसरो के वैज्ञानिक इसमें हर कदम पर नवीन उपलब्धि दर्ज करते हुए आगे बढ़ रहे थे। 3850 किलोग्राम वजन की लांचिंग ही पहले कभी नहीं हो पाई थी। जीएसएलवी के जरिए यह कमाल दिखाने के बाद बिल्कुल सटीक ढंग से चांद की कक्षा में पहुंचाया गया इसका ऑर्बिटर अपना काम बखूबी कर रहा है और यकीनन उससे मिली जानकारियां पूरी दुनिया की आँख बनेगी। हाँ, आज इसरो जहां पर खड़ा है, वह किसी एक दिन की उपलब्धि नहीं है  यह सतत प्रयासों का परिणाम है जो आज हम देख रहे हैं। आज का दिन इसी कारण काफी महत्वपूर्ण बन गया है जो यह बताता है कि लैंडर तकनीक अब हमारी मुट्ठी में है। आज के दौर में सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बेहतर तकनीक मानी जाती है, और इस मामले में हम रूस, अमेरिका और चीन के बराबर खड़े हो गए हैं।

हालांकि शुरू में साझा प्रयास के तहत यह तकनीक हमें रूस से मिलने वाली थी, लेकिन जब उसने अपने कदम पीछे खींच लिए, तो हमारे वैज्ञानिकों ने हौंसला नही खोया और इसे अपने बलबूते से इसे विकसित किया, जबकि अमेरिका और यूरोप के देश इसे हमें देने को तैयार थे। यानी, चंद्रयान-2 अभियान ने तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमारे वैज्ञानिकों का कद बढ़ाने का काम किया है और सबसे ज्यादा बड़ी और महत्वपूर्ण बात तो यह है कि  आज तक चंद्रमा के जिस दक्षिणी भाग पर सूरज की रोशनी तक नहीं पहुंच सकी, वहां आज भारत पहुंचा है। हमें यकीन है कि भारत के चन्द्रयान - 1 ने जहां विश्व को पानी के मिलने के संकेत देकर चौंका दिया था और वहीं आज चांद के दक्षिण ध्रुव क्षेत्र पर पहुंच कर विश्व भर को हैरान करके रख दिया है।

 ऐसा नहीं है कि दूसरे देशों के पास यहां तक पहुंचने की क्षमता नहीं थी, लेकिन शुरुआत हमने की। चंद्रयान-2 की रवानगी के साथ ही यह उम्मीद बंधने लगी थी कि अब कई गुत्थियां सुलझ सकेंगी। सवाल ये थे कि क्या चंद्रमा का दक्षिणी भाग, उत्तरी ध्रुव जैसा ही है? और यहां का मौसम कैसा है? व यहां किस तरह के खनिज पदार्थ मौजूद हैं? और सबसे अहम कि क्या यहां पानी का कोई भंडार है? हालांकि चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी के होने की पुष्टि कर दी थी, लेकिन भविष्य में यदि यहां पानी के भंडार का कोई सुबूत मिलता है, तो यह वैज्ञानिक खोज के लिहाज से अमूल्य उपलब्धि मानी जाएगी। यहां पानी का मिलना सिर्फ जीवन संभव बनाने के लिहाज से अहमियत नहीं रखता, बल्कि इससे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अलग-अलग करके ईंधन भी बनाया जा सकता है। साफ है, ब्रह्मांड और सौर  मंडल के बारे में कई नई जानकारियां ऐसे अभियानों से सामने आएंगी।

इसरो के लिए भविष्य के तीन अन्य अभियान काफी महत्वपूर्ण हैं। इनमें पहला है, शुक्र अभियान। दूसरा, अंतरिक्ष प्रयोगशाला बनाना, जो धरती के चक्कर लगाएगी। और तीसरा, सूरज की सतह का अध्ययन करने वाला ‘आदित्य एल- 1’ मिशन। हालांकि इन सबसे इतर जो सबसे अद्भुत अभियान होगा और जिसे फिलहाल अनुमति का इंतजार है, वह है हवा में मौजूद ऑक्सीजन को बतौर लॉन्च ईंधन इस्तेमाल करना। इस पर किसी दूसरे देश ने अभी काम नहीं किया है। मगर हम यह साहस कर रहे हैं। अगर यह मिशन सफल रहा, तो हम ईंधन के लिहाज से बेहद किफायती लॉन्च व्हीकल बना पाएंगे। चंद्रयान-2 अभियान ने इन सारी संभावनाओं के द्वार खोले हैं।

अब कुछ लोगों के सवाल हैं कि चंद्रयान-2 से आम आदमी को क्या फायदा ? तो जवाब यह है कि इस तरह के महान अभियान न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय चर्चा में आते हैं, बल्कि आम लोगों की वैज्ञानिक समझ भी बढ़ाते हैं। इससे जाहिर तौर पर आम आदमी और वैज्ञानिक समुदाय के बीच आपसी विश्वास बढ़ता है। चंद्रयान-2 जैसे अभियान वैज्ञानिक समुदाय के लिए बेहतरीन रिपोर्ट कार्ड भी सिद्ध होते हैं क्योंकि यह देश में विज्ञान की देश के हौंसले की मजबूत सेहत बताने का काम करते हैं। अब सवाल पूछने वाले यह समझने की कोशिश करें कि जब एक समय में लोग चांद को बेहद खूबसूरती का प्रतीक मानते थे, सुनहरी कल्पनाएं गढ़ते थे, उन सबको इन अभियानों से पता चलता है कि चांद में पर्वर हैं और गहरे गड्ढे हैं तब साहित्य की सारी कल्पनाएं सिर्फ़ फंतासी साबित हो जाती हैं और लोगों की आंखे खुलती हैं,कई बार आंखें खोलने का मिशन भी विज्ञान साबित होता हैं।हां यह सच है कि विज्ञान विचार के पीछे चलता है और विचार को कल्पना का सहारा चाहिए होता है। एक वक्त था जब अपोलो-11 ने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों को नए सिरे से सोचने पर बाध्य कर दिया था। तब अमेरिकी जनरल होमर एबुशी को 1958 में यह तक कहना पड़ गया था कि ‘जो चांद को नियंत्रित करता है, वही धरती को नियंत्रित करता है।’

आज चांद वाकई मानवता के रक्षक के तौर पर उभरता दिखाई पड़ता है। वहां पानी मिलने के प्रमाण मिले हैं। बताने की जरूरत नहीं कि बढ़ती आबादी के बोझ के साथ धरती पर पेयजल का संकट गहराता जा रहा है, इसलिए हमें अब वैकल्पिक ग्रहों की जरूरत महसूस हो रही है। चांद के साथ मंगल वैज्ञानिकों के आकर्षण का केंद्र है, क्योंकि वहां भी जीवन के लिए जरूरी जल की पर्याप्त उपस्थिति है। अब अगर विज्ञान और हम सब अपने और अपनी पृथ्वी के भविस्य में दूर की नहीं सोचेगेें, तो एक दिन इंसानियत भी संकट में पड़ सकती है। पर सवाल पूछने वाले निगेटिविटी के इस कदर शिकार हैं कि उन्हें अंतरिक्ष मिशन देश की पैसे की बर्बादी लगते हैं, उन्हें अपनी राजनीतिक पट्टी चढ़ी आँखों से देश का विकास रास ही नहीं आता।

 सवाल पूछने वाले यह भी देखें कि जब देश को पता चला कि 6-7 सितंबर की रात 1:55 बजे लैंडर विक्रम को चांद की सतह पर उतरना था। लेकिन, लैंडिंग से कुछ मिनट पहले ही जब वह चांद की सतह से दो किमी. की दूरी पर आकर रूक गया यानि कुछ तकनीकी समस्‍या के चलते  विक्रम लैंडर का पृथ्वी से संपर्क टूट गया है तो उस वक्त पूरा भारत एक साथ प्रार्थनाएं कर रहा था, उस दिन पूरी दुनिया ने भारत की ज्ञान विज्ञान के प्रति अटूट प्रेम और आस्था देखी।

दूसरा यह है कि देश कै प्रधानमंत्री कैसा हो? इसका जवाब प्रधानमंत्री जी के उस दिलदार स्वभाव से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने वैज्ञानिकों के मायूस चेहरे देखे तो किस तरह उन्होंने एक अच्छे अभिभावक की भूमिका निभायी, उन्होंने किस तरह देश के इसरो चीफ के. सीवम जी को सीने से लगा लिया था और कहा मैं तुम्हारे साथ हूँ, यह वह सुन्दर तश्वीर थी जो हमेशा हमेशा के लिए याद की जायेगी। उस कठिन वक्त में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमें अपने रास्ते के आखिरी कदम पर रुकावट भले मिली हो, लेकिन हम इससे अपनी मंजिल के रास्ते से डिगे नहीं हैं। आज चंद्रमा को छूने की हमारी इच्छाशक्ति और भी मजबूत हुई है। बीते कुछ घंटे से पूरा देश जगा हुआ है। हम अपने वैज्ञानिकों के साथ खडे़ हैं और रहेंगे। हम बहुत करीब थे, लेकिन हमें आने वाले समय में और दूरी तय करनी है। सभी भारतीय आज खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। हमें अपने स्पेस प्रोग्राम और वैज्ञानिकों पर बेहद गर्व है।’  प्रधानमंत्री द्वारा व पूरे देश के विश्वास व प्रार्थनाओं के चलते इसरो ने जब डाटा चैक किया तो वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया था कि ऑर्बिटर अच्छे से काम कर रहा है और संपर्क में है। वह पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है। ऑर्बिटर ने रविवार को  इसरो को दो खुशखबरी दीं। पहला उसने थर्मल इमेजेस के जरिए लापता लैंडर का पता लगा लिया है। दूसरा ये कि ऑर्बिटर, लैंडर की कमी को काफी हद तक पूरा करेगा। और इसरो चीफ के सिवन जी ने जू यह खुशखबरी देश से साझा की तो पूरा देश झूम उठा था।

जी हां, ये बड़ी खुशखबरी है कि ऑर्बिटर अब एक साल की बजाय सात साल से ज्यादा समय तक काम करेगा। ये भी इसरो के वैज्ञानिकों के लिए बड़ी उपलब्धि है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने पूरे मिशन में ऑर्बिटर को इस तरह से नियंत्रति किया है कि उसमें उम्मीद से ज्यादा ईंधन बचा हुआ है। इसकी मदद से ऑर्बिटर सात साल से ज्यादा समय तक, तकरीबन साढ़े सात साल तक चंद्रमा के चक्कर काट सकता है। ये जानकारी इसरो प्रमुख के सिवन ने मीडिया से बातचीत के दौरान दी है।फिलहाल, इसरो का पूरा फोकस फिलहाल चांद की दक्षिणी सतह पर उतरे लैंडर विक्रम से दोबारा संपर्क स्थापित करने का है। दरअसल, लैंडर को एक लूनर डे (पृथ्वी के 14 दिन) तक खोज करने के लिए ही बनाया गया है। इस दौरान उससे दोबारा संपर्क होने की संभावना ज्यादा है। इसके बाद भी लैंडर से संपर्क स्थापित भी हो सकता है।

 आज भारत के चंद्रयान-2 अभियान की चांदचूँमती कामयाबी को देखकर अमेरिकी राष्ट्र्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं कि अब भारत को विकसित देश मान ही लेना चाहिए। तो अब हम सबको अपने आर्थिक अंतर्विरोधों के बावजूद हमारे इस महादेश को अब किसी से पिछड़ना नहीं है अब हमें भी दूर की सोचनी  होगी। यूरोपीय स्पेस एजेंसी 2030 तक चंद्रमा पर ‘इंटरनेशनल विलेज’ बनाने की बात कह रही है। रूस की अंतरिक्ष संस्था रॉसकॉसमॉस ने एलान किया है कि वह 2025 तक चांद पर बस्ती बनाने का काम शुरू कर देगी। इसे 2040 तक पूरा कर लिया जाएगा। ऐसे में विश्व का  सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारा भारतवर्ष, आंखें मूंदकर तो नहीं बैठ सकता। हम हिन्दुस्तानी आने वाले सालों में आबादी के मामले में चीन को पछाड़ने जा रहे हैं। ऐसे में, हमें धरती के विकल्पों पर ध्यान तो देना ही होगा।

अब कुछ लोग मीडिया पर सवाल उठाते हैं कि चन्द्रयान - 2 में मोदी - मोदी ही क्यों हो रहा है? तो इसका जवाब यह है कि यदि हम इतिहास में झांके तो यहीं कहेगें कि अगर मुगल सम्राटों ने ऐश-ओ-आराम की जगह उसी समय के हिसाब से मजबूत आधुनिक नौसेना के गठन पर बल दिया होता, तो शायद हम यूरोपीय उपनिवेशवादियों के गुलाम न हुए होते। और बता दें कि यूरोप के राजा-रानी उस वक्त यही कर रहे थे। क्वीन एलिजाबेथ ने इंग्लैंड को विश्व विजयी नौसेना का उपहार दिया, बाद में  जार कैथराइन ने समुद्र की शक्ति को पहचाना। वह कहती थीं  कि हमें यानि (रूस) दुनिया के लिए एक खिड़की चाहिए। खिड़की यानी समुद्र और इसके लिए उन्होंने पोलैंड को विभाजित तक कर डाला था। बताने की जरूरत नहीं कि अमेरिका की खोज करने वाले कोलंबस को मजबूत आर्थिक मदद स्पेन की रानी इसाबेला से हासिल हुई थी। और आज हमारे देश के प्रधानमंत्री सेना को राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान - इसरो को मजबूती दिलाने में हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं तो उनकी तारीफ तो होनी ही चाहिए और हम लोग हमारी जांबाज सेना की हमारे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चीफ व अन्य वैज्ञानिक सेना की व अपने हुनरमंद भारतीयों के श्रेष्ठ प्रयासों की जयकार नहीं करेगें, कवर पर नहीं छापेगें तो क्या आतंकी देश के पप्पुओं की खबर छापेगें जो आधा- पाव किलो के बम फेंकनेे की गीदड़ भभकी देते हैं क्या उनकी जयकार करेगें? ये भी कोई बात हुई भला। सच तो यह है कि आने वाले दिन हमारे महानतम् ज्ञान और कौशल से युक्त 'इसरों' के यानि विज्ञान के हैं,हमारे आध्यात्म के हैं, हमारी महानतम् मर्यादाशाली गौरवशाली सभ्यता व संस्कृति के हैं , हमारी सेना के शौर्य और पराक्रम के हैं, हमारी प्रगति के हैं, हमारेे प्रत्येक भारतीय आमजन के सपनों के हैं उपलब्धियों के हैं। हमारे जोरदार मानवहितकारी प्रयासों से परिपूर्ण महापरिवर्तन के हैं जो हमें बहुत जल्द ही विश्व के विकसित देशों के साथ खड़ा कर देगें और इस बात का हमें पूर्ण विश्वास है कि हाँ हम होगें कामयाब.....!

वंदेमातरम्









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