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मृत्युभोज (एक हास्यकथा) - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
मृत्युभोज (एक हास्यकथा) - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
मृत्युभोज (एक हास्य कथा)
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दिल्ली से पढ़ी - लिखी लड़की "ऊर्जा"अपने गाँव उझैनी लौट रही होती है वह पैदल रास्ते में है कि उसे रमेश अंकल का फोन आता है जो उसके माता- पिता के साथ गये थे | वह बोले," बेटा, हरिद्वार जाने वाली ट्रैन के दस डिब्बे पटरी से उतर गये हैं जबकि इस जगह पटरी जोडने का काम चल रहा था फिर भी ट्रैन को वहाँ से गुजार दिया गया और यह बड़ा हादसा हो गया जिसमें 2500 मर गये और 1200 लोग घायल हैं जिसमें उसके माता- पिता और भाई नही रहे | यह सुनते ही उसके हाथ से उसका बैग जमीन पर गिर जाता है| वह वही बैठ कर फूट-फूट कर रोने लगती है | तभी सामने से मोटर साइकिल से उसके मामा आते दिखते हैं| वह कहते हैं," अरे! बिटिया ऐसे रो क्यूँ रही हो | फिर मामा उसे मोटर साइकिल पर बैठा कर घर ले आते हैं | पूरी बात जानकर सब दुखी होते हैं तो ऊर्जा घटना स्थल पर जाने की कोशिस करती है पर उसके मामा-मामी उसे वहाँ नही जाने देते | गांव के कुछ लोग जाकर बड़ी मुश्किल से तीनों डेड बॉडी गाँव ला पाते हैं | ऊर्जा सभी से लिपटकर बहुत रोती है | कुछ दिन बाद उसके अंध विश्वासी मामा-मामी कहते है," बिटिया ये तेरा ही घर है आराम से रहो | बात ऐसी है कि तुम अपने बैंक खाते से दो लाख रूपया तेहरवीं यानि मृत्युभोज के लिये निकाल कर हमें दे दो कुछ अंतिम कर्मकाण्ड बाकि है वो भी कर लें | वरना तेरे माँ-पिताजी और भाई की मुक्ति नही होगी | ऊर्जा रोते हुये कहती है मेरा जवान 21 साल का भाई चला गया यहाँ तक की पूरा परिवार गुजर गया | मेरा तो पानी पीने तक का मन नही होता और आपको और आपके समाज को मृत्युभोज यानि आंसुओं से भीगी दावत खाने की पड़ी है | कैसे खाओगे मामा जी अपनी ही बहन के उजड़े परिवार की दावत | मामा ने कहा," तेरी बात ठीक है बिटिया पर यह भी संस्कार है |पूर्वजों के समय से चली आ रही प्रथा है | ऊर्जा," पूर्वजों का नाम बदनाम ना करो वैसे हमारे पूर्वज तो थे जो कपड़े नही पहनते थे फिर आप क्यों पेंट पहने हो मामाजी| कितना कुछ बदल गया पर समाज की सोच नही | फिर ऊर्जा ने कहती है," अपने हिन्दु धर्म में 16 संस्कार हैं जिसमें पहला गर्भाधान संस्कार अंतिम सौलहवां अंत्येष्टि संस्कार तो फिर बताईये ये सत्रहवां संस्कार कहां से प्रकट हुआ | आपको पता है मामा जी कि देश में मृत्युभोज पर कम से कम 25-30 हजार का खर्ज आता है और अगर यही आंकडा लेके चलें तो 33 लाख मृतकों के मृत्युभोज में लगभग 50 अरब 60 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष खर्च होते हैं | यह धनराशि इतनी बड़ी है जितना कि कुछ छोटे राज्यों का सालाना बजट होता है |बताओ देश का गरीब कैसे अपनी प्रगृति करेगा जब यह कुप्रथायें उसे जोंक की तरह उसका धन चूँस रही हैं | यह सब कुछ पाखण्ड़ियों का फैलाया हुआ आढ़म्बर है | किस हिन्दू धर्म ग्रंथ में मृत्युभोज को अनिवार्य बताया गया बताइये? रामायण जी में वर्णन है कि भगवान श्री राम वन में थे जब उन्हें अपने पिता जी के स्वर्गवाश की सूचना मिली और वह इतने दुखी थे कि बहुत दिनों तक जल तक ग्रहण नही किया था और अयोध्या में महीनों किसी के घर कढ़ाई नही चढ़ाई गयी | आपने श्री मद्भागवत् गीता तो सुनी जिसमें भगवान श्री कृष्ण जी ने कहा है कि जब भोजन खिलाने वाला दुखी हो तो उस घर भोजन नही करना चाहिये | सचकहूँ तो आप लोग ना ही भगवान राम को मानते और ना ही भगवान श्री कृष्ण को आप तो बस अपने लालच की पूर्ति को ही अपना सबकुछ मानते हो | अरे! जानवर का भी अपना साथी गुजर जाये तो वह भी उस दिन कुछ नही खाते पर हम इंसान कहाँ तक गिर गये | अरे! यह प्रथा नही कुप्रथा है कुरीति है | सोचो! कोई गरीब कैसे इस कुप्रथा का सामना करता होगा | मैं तो कहती हूँ "समाज से बहिष्कृत हो मृत्युभोज नामक कुरीति" |ऊर्जा ने कहा," मामा मैं कतई मृत्युभोज नही होने दूंगी| क्योंकि वह पैसे पिताजी ने बहुत मेहनत से मेरी पढ़ाई के लिये जमा किये थे और मैं इस मृत्युभोज नामक कुरीति के लिये एक भी रूपये नही दूंगी | मामा जी आपके बच्चें हैं उनकी पढ़ाई में इस पैसे से पूरी मदद करूंगी| मामा-मामी ने बहुत समझाया पर ऊर्जा नही मानी तो उसे कमरे में बन्द कर दिया गया और उसके गले में पड़ी सोने की चैन और उसके कान के कुण्डल उतार लिये गये और उसे धमकाया गया कि मरने वाले की तेहरवीं ना की गयी तो भूत बनकर हम पर ही चिपटेगें समझी| ऊर्जा से जबरजस्ती बैंक चैकबुक पर साइन करवाकर दो लाख रूपये निकाल लिये गये और देशी घी के एक कुण्टल माल पुआ की मृत्युभोज दावत के चटकारे लेकर सभी रिश्तेदार अपने-अपने घरों को लौटने लगे और उन्ही में से एक महिला बोलीं," अरे! जिज्जी जवान लड़की है भाग गयी तो | तुम्हारे खानदान की गांव में नाक कट जायेगी | नाक बचाओ और शादी करवाओ जिज्जी | मामी बोली," जिज्जी रास्ता बताये हो तो आगें चलो | अब, तुमहीं कोई लड़का बताओ जो अपनी सोच का हो पर शहरी सोच का नही | वह बोली," मेरे गांव के जमींदार का तीसरे नम्बर का लड़का है गिरिजेश, थोड़ा सा पांव मुरकता है पर स्वभाव बहुत अच्छा , थोड़ी पीता भी है पर स्वभाव बहुत अच्छा , थोड़ा अनपढ़ है पर स्वभाव जिज्जा बहुत ही अच्छा | तोता-मैना सी जोड़ी लगेगी जिज्जी | मामी बोली ये तो बहुत ही अच्छा है| पूरा अनपढ़ तो नही है कुछ तो पढ़ लेता होगा | वह बोली," कक्षा आठ फैल है पर स्वभाव बहुत अच्छा है जिज्जी | मामी बोली अब, ऊर्जा बिटिया को न बता देना उसका ये बहुक ही अच्छा स्वभाव | बस, फिर क्या था जबरजस्ती तीन लाख रूपये और निकाल लिये गये और एक लाख की मोटरसाइकिल दहेज में में दी गयी और शादी सम्पन्न हुई | पढ़ी-लिखी ऊर्जा ब्याह के गांव सुरैंदा के जमींदार जंग बहादुर सिंह के घर पहुंची| वहाँ सबकी बातों को सुन और रीति-रिवाज देख उसने अपना माथा पीट लिया कि यह तो मामा लोग से भी ज्यादा अंधविश्वासी परिवार हैं | पूरे गांव के सभी छोटे-बड़े मंदिर , पूर्वजों के थान पर तेज धूप में सूप जिसमे गेहूं फटके जाते हैं लेकर घुमाया गया और सात कुओं में जबरजस्ती झंकवाया गया | यह सब अंधविश्वासी रिवाजों को झेलते हुये उसके पांव जल गये और गर्मी और लू से वह बीमार पड़ गयी | कुछ दिन बाद उसके ससुर जमींदार जंग बहादुर के पेट में भयंकर दर्द हुआ और वह बीमार पड़ गये तो गांव के ओझा ने प्रेत बाधा बताकर जमके पैसे घसीटे फिर पता चला दूर गांव का भगत ऐसा पानी देता है कि पथरी घुल के अपने आप निकल जायेगी बस, उस पानी के बहाने हजारों रूपये ऐंठें लिये गये | सभी ने फालतू बातें करके खूब पैसे खीचें फिर रही बची कसर गांव में घूम रहे झोलाझाप डाक्टर ने रात के अंधेरे में बोतल लगाकर पूरी कर दी कि नश से बहुत खून बह गया और हद तो तब हो गयी जब उसने सब्जी वाले चाकू से ससुर जी के पेट का ऑप्रेशन कर दिया | बस बहुत हो गया अब ऊर्जा ने कुछ सोचा ?वह बहुत दुखी थी कि इन सब ढ़ोगियों यानि लुटेरों ने घर की जमीन तक गिरवी रखवा डाली थी | घर में सभी के खाते में जोड़ कर मात्र एक लाख रूपया ही शेष बचा था | ऊर्जा ने एक दिन आधी रात में ससुर को कार में लिटाया और चुपचाप दिल्ली भाग गयी| गांव में यह बात वाईरल बुखार की तरह फैल गयी| सब औरते बोल रही बहन कलजुग आ गयो बहु बीमार पेट चिरे ससुर के संग भाग गयी | हाये दैया जू रूपया बैरी जो ना करबाये बो कम है जब यह बात ऊर्जा की सास को पता चली तो वह छाती पीट कर रोने लगी हे ! भगवान जा कलमुँही कुलक्षणी बहू इसी घर में आने को थी| खानदान की पूरी नाक कटवा | हाये ! पैसे की भूखी डायन पेट फटिल्ले बूढ़े ससुर को भगा ले गयी | अरे! ओ गिरजेशवा अब का करें तेरी मेहरिया को ? ऊर्जा के पति गिरजेश ने कहा," हे! भगवान मेरी बाबू और मेरे बाबूजी के साथ भाग गयी! यह कहकर वह वहीं गिर के बेहोश हो गया | इधर ऊर्जा अपनी डाक्टर दोस्त सैंकी जो दिल्ली एम्स में डाक्टर है | उससे बात करके तुरन्त ऐडमिट करा देती है | ऊर्जा के पास जो भी पैसा था वह अस्पताल में ऑप्रेशन के लिये जमा कर देती है | फि दस दिन बाद वह गांव वापस आती है और सासू माँ को आकर बताती है कि वह ससुर जी को बचाने के लिये दिल्ली गई थी | सास कहती है," अरे ! भगत ने कहा था गांव बाहर गये तो यह गंडा ताबीज किया कराया सब हो जायेगा |अब, बेटा गिरजेश तेहरवीं के लिये पैसा निकाल ले | कल्लू हलवाई से बात कर लो | जमींदार था तेरा बाबू जी तेहरवी तीन गांव ऊपर बड़ी होनी चाहिये |पांच कुण्टल के देशी घी के मालपुये बनवायेगें |समाज में नाक थोड़े ही कटवानी है | ऊर्जा कहती है," अरे! वो जिन्दा है ठीक है कुछ दिन में पूरी तरह ठीक होकर आ जायेगें देखना |वो एक एक लाख जो घर में बचे हैं मुझे दे दो ताकि बाबू जी जल्दी ठीक हो जायें | सासू मां कहती हैं," तुझे दे दूंगी तो तेरे ससुर की तेहरवीं कैसे होगी? जमींदार है हमलोग किससे उधार मागेगें बोलो | ऊर्जा कहती है,"आप कैसे लोग है ? जिन्दा इंसान की चिन्ता नही बल्कि उसकी तेहरवीं की चिन्ता पड़ी है| ये तो हद है | तभी ऊर्जा ने सोचा कहीं ये लोग भी उसे मामा-मामी की तरह कमरे में बंद न कर दें | यह सोचकर वह चुप हो जाती है और कहती है,"मैं बाबू जी को हास्पिटल से वापस लेने जा रही हूं |"वह दिल्ली जाकर ससुर जी को पूरा वीडियो दिखा देती है कि देखिये ! आपको बचाने का नही और मारने का भी नही बल्कि उसके भी आगें की प्लानिंग चल रही है यानि आपके जीते जी आपका मृत्युभोज का प्लान बन रहा है देखिये ध्यान से ये वीडियो| देखा आपने पिताजी कि तेहरवीं की ज्यादा चिन्ता है आपको ठीक करने की नही | ससुर को सच्चाई समझ आ जाती है वह कहते हैं बेटी तुम्हारे कारण में बच गया| तुमने ही मुझे खून दिया कहते कहते वह रोने लगे | वह बोली आप मेरे पिताजी हो प्लीज ये आंसु पोछ लीजिये | सही ईलाज ने आपको बचाया है | ससुर जी ने बहु के सिर पर हाथ रखते हुये कहा सदा सुखी रहो मेरी बेटी | ऊर्जा ने कहा," पिताजी मेरा भी एक प्लॉन है सुनिये|" फिर एक दिन ऊर्जा रात के अंधेरे में ससुर जी को कफन में लिटा कर घर में प्रवेश करती है| ससुर की लाश देखकर सास व दोनों बहुयें धहाड़ मार कर रोने लगती है कि तभी ऊर्जा कहती है | चुप रहिये आप लोग और मेरी बात ध्यान से सुनिये |मरते वक्त ससुर जी ने कहा था कि वो दस दिन बाद जिन्दा हो जायेगें और घर में जो माया गढ़ी है चार सोने के कलशे दबे हैं वो उठ कर खुद निकालेगें | बस किसी को कुछ न बतायें वरना माया रेंग जायेगी| वह मरे नही है
वह समाधी में है | ऊर्जा कती है तो सासू माँ इनको पूजा वाले कमरे मे आराम से लिटा देती हूँ यह ससुर जी ही इच्छा है | केवल मैं ही देख रेख करूंगी पिताजी की | सास भूत के डर से कहती है," ठीक है !ठीक है !तू ही देख रेख कर | सास छाती पीट कर कहती हैं," हे! देवता लाश घर ? यह सुनकर और देखकर उनकी दो बहुयें डर कर मायके चली जाती हैं | इधर गिरजेश बैंक से एक लाख रूपया निकाल कर लाता है और उसे पैसे निकालते देख गांव के एक चोर की नजर पड जाती है | इधर वो चोर भेष बदलकर उसकी बाइक पर लिफ्ट मांगता है, रूकवाता है| फिर जब गिरजेश घर में आता है तो दंग रह जाता मोटर साइकिल की से चोरी हो चुका होता है | तभी वह चोर जिसे सब तांत्रिक भगत समझते हैं वह जमींदार के घर आता है और कहता है,"कैसे हो मेरे प्यारे भक्तों ?" | सासू माँ कहती हैं,"अरे! बाबा कृपा करो |" कोई उपाय बताओ | हम तो बर्बाद हो गये| तेहरवीं न हुई तो तीन गाँव में हमारे खानदान की नाक कट जायेगी | बाबा बीमारी में घर में पैसा एक ना बचा | सब दवा में बर्बाद हो गये| सरकारी अस्पताल में वही गोली पेट दर्द वही मलेरिया में बांट देते हैं | इसलिये अस्पतालों से डरते हैं |इसीलिये हर ओझा को दिखाया पर कोई आराम भी नही मिला और घर का सब पैसा भी गया और बाकि बचा नासपीटे चोर ले गये | बाबा तुम्हारी शरण में पड़े हैं बचा लो |बाबा ने कहा," ये लो एक लाख रूपये मेरे एक भक्त ने दिये है पर ये उधार दे रहा हूँ अगर एक महीने के अंदर न लौटाये तो दुगने लूंगा समझ लो | चलो मैं इस धन को तुम्हारे घर के मंदिर में रख दूं चलो | सासू माँ को याद आया मंदिर में जमींदार यानि उसके पति की लाश रखी है | यह सोच! वह चिल्लाई नही बाबा | मै रख दूंगी मंदिर में बस आप अंदर न जाओ | बाबा भगत यानि मुझ पर शक ? सासू माँ ," नही बाबा, मेरा मतलब है कि मेरी बहू और मेरी बहस हो गयी तो वह गुस्से में पगला गयी है और वह मंदिर में ही नहा रही है | बाबाभगत यह सुनकर भौचक्का रह गया और बोला," ये पागलपन तो कहीं सुना ! भला करें राम, तुम लोगों का तो भगवान ही मालिक है सभी पर प्रेत बाधायें मंडरा रही हैं| ये लो एक लाख चलो चलता हूँ | सासू माँ ने वो रूपये झट से लपक लिये | रात में यही भगत! यही चोर! चुपचाप घर में घुसा और मंदिर वाले कमरे में पहुंचा और रूपये निकाल कर जैसे ही भागता है तभी उसकी नजर नीचे जमीन पर कफन ओढ़े लेटे जमींदार जपर पड़ती है | वह चेहरे से जैसे ही कफन हटाता है तो चौंक जाता है अरे ! जमीदार की लाश यानि ये मर चुके हैं |पर, ये लोग छुपा क्यों रहे?" लगता है कोई बडी तांत्रिक क्रिया के लिये रख रहा है | सालों भगत से भूत छुपाते हो | वह बाहर जाकर चिल्लाने लगा जमीदार नही रहे| जमींदार नही रहे |तभी, गिरजेश दौड़ कर आया और अम्मा को जगा दिया,अम्मा-अम्मा | अम्मा भड़भड़ा के उठी और बोली," अब कौन सी नयी आफत आ गई | देख! जबसे तेरी बहू आयी है भगवान कसम मरे जात हैं, हर तरह से लुटे पड़े हैं, बर्बाद हो गये है अब क्या हुआ बोलो? गिरजेश ने कहा अम्मा गांव में शोर है जमींदार खामोश हैं मतलब पूरा गाँव जान गया कि बाबू मर गये | पता नही कौन साले ने जा बात लीक कर दी मिल जाये तो टैटुंआ मसक दूँ | अम्मी बोली," चुप कर फालतू बात पहले अपनी अम्मा का टैटुंआ तो बचा ले | सब के सब ध्यान से सुनो !गिरजेश,सुरेश, निकेत तुम तीनों भाई मिलकर कोई दूसरी लाश का इंतजाम करो जल्दी अब जाओ तुरन्त | उसे जला दो जल्दी जमींदार कह कर| फिर तेहरवीं करके निपट जायें | इनकी समाधी दस दिन मे टूटे या एक महीने में हम सोने के कलशे लेकर दूर निकल जायेगें, बड़े शहर में समझ! गिरजेश और दोनो भाई रात में पूरे गांव में लावारिश लाश ढूंढ रहे होते हैं कि एक भिखारी शराब के नशे में धुत पडा दिखता है| गिरजेश कहता भैया मिल गई लाश| फिर उसे कम्बल में बांध कर चुपचाप घर ले आते हैं | तो पूरा घर लोगों से भरा होता है | पूरा गांव उस कफन मे लिपटी लाश को देख कर दहाड़ मार कर रोने लगता है | गांव के लोग कहते कि चलो! आखरी दर्शन कर लूं जमींदार जी का चेहरा खोल दो | तभी गिरजेश बोला," मरते वक्त बाबू जी बोले मेरा चेहरा मत खोलना यही अंतिम इच्छा थी उनकी | कुछ देर बाद लाईट चली जाती है और अंधेरे के सभी अपने घरों को लौट जाते हैं | उस शराबी का नशा उतरता है और वह धीरे से उस कफन से निकल कर भाग निकलता है | लाइट आने के बाद गिरजेश चिल्ला उठता है," अम्मा वह लाश भाग गई | अम्मा उसे एक चांटा मार कर कहती हैं," जिंदगी में एक भी काम सही नही किया तूने ? अब जाओ पुरानी साड़िया और फटे-पुराने कुछ लकड़ियां ले आओ जल्दी | इसी से जमींदार की ठठरी तैयारी करो | अरे! कफन में यह सब लगा कर जाओ रात में ही फूँक आओ वरना सुबह पोल खुली तो हम सब की ठठरी बंध जायेगी | उस सामान की गठरी यानि नकली ठठरी को तीनो जला रहे होते हैं कि क सारे गांव के साथ गये तो पोल खुल जायेगी | वह तीनों रात मे ही जला रहे होते हैं कि वह बाबाभगत वहा पहुँच है और
कहता है ," जमींदार जी को चुपचाप जला रहे हो क्या राज है जो छिपा रहे हो | देखो! मुझे भी सिद्धी चाहिये पैसा भी | मैं गांव वालों को समझा दूंगा तुम मुझे भी शक्तियाँ और धन दोगे बोलो? गिरजेश ने कहा लगता है बाबाभगत भी प्रेत बाधा का शिकार हो गये हैं | वह बोला," हाँ भगत जी आप सब सम्भांल लो |" आप जो कहोगे मैं दूंगा | बस, फिर क्या था उस बाबा भगत ने पूरे गांव में जाकर कहा कि जमींदार के ग्रह बहुत भारी थे |मुझे भगवान का आदेश हुआ तो रात में ही मिट्टी लगा दी | यह सुनकर गांव के लोग बोले आपने करवाया है अंतिम संस्कार तो ठीक ही होगा | बस दुख यह कि जमींदार जी के अंतिम दर्शन ना मिल सके | वह बहुत भले इंसान थे भगवान ने उन्हें बहुत जल्दी बुला लिया| वैसे भगत जी तेहरवीं कब की है और कितने कुन्तल के माल पुआ बनेगें कुछ पता चल पाया ? भगत ने कहा," आखिर! गाँव के जमींदार थे वह छोड़ो मालपुआ पूरी बड़ी दावत होगी बफर सिस्टम होगा जो मर्जी सो खाओ मतलब सब्जी पूड़ी रसगुल्ला पनीर सब बनेगा| दूसरे दिन जमींदार जी का पूरा घर रिश्तेदारों से भर जाता है और ऊर्जा ने जमींदार जी को तलघर में शिफ्ट कर दिया | शाम तक सभी रिश्तेदार अपने घरों को लौट गये | इधर दवा और अच्छी देख-रेख से जमींदार को पूरी तरह आराम मिल चुका था | फिर आज तेहरवी का दिन नजदीक आ गया | सासू माँ ने मंदिर में जाकर रूपये देखे तो उनको नही मिले | वह छाती पीट के रोने लगी हाय दैया गिरिजेशवा जल्दी आओ! देखो! फिर चोरी हो गई कल तेरे बाबू जी की तेहरवीं है और घर में एक भी रूपया नही | ऊपर से बाबाभगत को दूना देना होगा | हाय ये अपशगुनी बहू जब से आयी हमारे किस्मत में भूकम्प आ चुका है |घर में चोरी पर चोरी हो रही है | हे! भगवान का करूँ अब | ओ! गिरजेशा जा बहू को बालाजी ले जा जरूर इसके अंदर कोई चुडैल घुसी है जो हम सब से पता नही कौन जनम को गिन - गिन के बदला ले रही है | गिरजेश बोला अम्मा तू चिन्ता ना कर बाबू जी के दुश्मन उमेदपुर के विधायक सोवरनसिंह का लड़का मोनू सिंह मेरा दोस्त बन गया है वह हम लोग की मदद को तै़यार है | उसने कहा है," तुम अपना घर मुझे दो लाख में गिरवी रख दो और अपनी मोटर साइकिल मुझे पचास हजार में बेच दो | अम्मा बोलीं," इतने में बड़ी दावत कैसे होगी बेटा? बीस हजार तो ब्राहम्मण को दान हो जायेगा | अब, और पैसा कहाँ से आयेगा? गिरिजेश ने कहा," अम्मा तेरा पुराना जेवर किस दिन काम आयेगा | अम्मा बोली," गांव में नाक की बात ना होती तो अपना जेवर तो मैं भगवान को भी ना दूँ | बस फिर क्या था घर गिरवी रख कर जेवर बेच कर भव्य मृत्युभोज का आयोजन शुरू होता है | तभी उस गांव का हलवाई रसोई में जानबूझ कर आग लेता देता है,और चिल्लाता है देखो! सब चासनी जल गई है| सब सामान भी जल गया जल्दी बीस हजार दो तो मैं कुछ इंतजाम करूं | वो भी गिरजेश को बेवकूफ बनाकर बीस हजार रूपये खींच लेता है | इधर तेहरवीं में आये हुये पाखण्डी पंडित बोले," जमींदार जी की तेहरवी है और आज तेहरवी के दिन मृतक की याद में दिया गया दान बहुत फलदायी होता है| और फिर, धर्म की आड़ में दान के रूप में पंडितों ने भी खूब लूटाई की | अब जैसे ही पंडित ने मुँह में पहला निवाला रखा ही था कि तभी जमींदार वहाँ चिल्लाते हुये दाखिल हुये कि रूको! अभी करवाता हूँ अपनी तेहरवीं रूको | जमींदार को जिन्दा देख! वहाँ बैठे पंडित सहित उपस्थित सभी गाँव के लोग दूर भाग खडे़ होते हैं | जमींदार कहते हैं अरे! भाग क्यों रहे हो? मैं जिंदा हूँ | मैं मरने का नाटक कर रहा था देख रहा था कि मेरे अपने कितने अपने है पर अफसोस! सब मुझे मारने पर तुले थे | देखो! ये मेरे कलयुगी लड़के और मेरी पत्नी कोई मेरा नही | और तभी गुस्से में आकर वह सामने बैठी अपनी पत्नी का गला दबाने लगते हैं तो गिरजेश बीच में आ जाता है | गिरजेश को देखकर जमींदार गुस्से में गिरजेश का ही गला दबाने लगते हैं | और एक जोरदार थप्पड गिरजेश के गाल पर छाप देते हैं और कहते हैं कि अरे! कलयुगी औलाद तुमने मेरी दवा न करवाकर मेरी तेहरवीं करवा डाली | घर भी गिरवी रख दिया तूने और माँ के जेवर भी गिरवी रख आया और इतमे से भी दिल ना भरा तेरा कि तूने मेरे दुश्मन से दोस्ती भी कर ली और शादी की मोटरसाइकिल भी उसे बेच दी| अरे! कलजुगी औलाद आज मैं तुझे जान से मार दूंगा | तभी ऊर्जा वहां आ जाती है और कहती है छोड़ दीजिये पिताजी इन्हें शांत हो जाइये | जमींदार ने कहा," नही बेटी आज बोलना बहुत जरूरी है तो सुनो! गाँव वालों अगर आज मेरी छोटी बहू ऊर्जा ना होती तो मैं कब का मर चुका होता और आप सब अब तक मेरी तेहरवीं भी चाट चुके होते | इसने सही वक्त में मेरा सही इलाज करवाया | मुझे अपना रक्त दान देकर नयी जिंदगी दी है | यह बहु नही मेरी बेटी है जिसकी पढ़ाई- लिखाई और नयी सोच पर गर्व है मुझे | अब मैं इसे और पढाऊंगा और किसी पढ़ो- लिखे लड़के से दूसरी शादी करवा दूंगा | यह सुनते ही गिरजेश पिताजी के पांव में गिर गया और बोला बाबू जी मैं सुधर जाऊंगा बस एक मौका दे दो | वह बोले," उठ सोच के बताऊंगा समझे तभी ऊर्जा ने कहा," एक खुलासा बाकि है अभी वो कि इस गांव का चोर कौन?तभी तुरन्त सामने खड़े ढ़ोंगी बाबा भगत के सामने जाकर कहती है आपका काला चिट्ठा इस मोबाइल में कैद है |अब आप खुद बोलेगें या मैं सभी को दिखाऊं | यह सुनकर भगत कांपते हुये बोला," हाँ, इस गांव का चोर मैं ही हूँ जिसके घर तेहरवीं कार्यक्रम होता है उसके घर से एक-दो दिन पहले पैसे चोरी करता हूँ फिर मैं खुद उसी को उधार देता हूँ और जगह भी बताता हूँ और कहता हूँ जल्दी ना चुकाये तो दूने लूंगा और दूने धन के लालच में मैं खुद ही उस घर में जाकर पैसे चोरी करता हूँ | इतना सुनते ही गांव के लोग उसे पकड़ कर पेड़ पर उल्टा टांग देते हैं और कहते हैं आराम से पीटेगें उसको रोज -रोज | ऊर्जा कहती है किस -किस को टांगेगें ? इस भगत को या उस झोलाझाप डाक्टर को या उस पानी देने वाले ओझा को किस- किस को हम सब को सुधरना तभी कुछ बदल पायेगें| इसे पेड़ से उतार दो |ये पुलिस का काम है इसे जाकर पुलिस को सौंप दो | गांव वाले कहते हैं बिटिया तुमने जमींदार जी को बचाकर बहुत पुण्य कार्य किया है | यह सुनकर ऊर्जा सभी से हाथ जोड़कर कहती है कि आप सब लोग मुझे अपनी बेटी मानते हों तो इस मृत्युभोज नामक कुरीति को दिल-ओ- दिमाग से और इस गाँव से बहिष्कृत कर दीजिये
जिस कुरीति के चलते किसी गरीब का घर तक बिकने की नौबत आ जाये उसके ऊपर बड़ा कर्जा हो जाये ऐसी कुप्रथा को बन्द कर देना चाहिये | जरा सोचिये! यह कैसी कुप्रथायें हैं कि मरने के बाद तेहरवीं की दावत, सालभर बाद वर्षी की दावत और हर साल श्राद्ध की दावत | हम मरे हु़ये व्यक्ति का शोक मवा रहे हैं या माल उड़ा रहे हैं | बेचारा गरीब इंसान इन सब कुप्रथाओं का बोझ ढ़ोये या गृहस्थी का खर्च चलाये | आइये ! हम सब इस कुप्रथा के बदले अपनों की याद में पेड़ लगायें जो बेहद गरीब परिवार हैं उनके बच्चों को पढ़ाने में वो पैसा लगायें तथा अपने किसी गरीब पड़ोसी की यथासम्भव मदद कर दें और अगर खाना ही खिलाना है तो रेलेवे स्टेशनों पर मंदिरों के बाहर निराश्रित गरीब बुजुर्ग द्विव्यांग लोग बैठे होते हैं तो यह भोजन उन्हें करवा दीजिये इस सुन्दर कार्यों से आपके अपनों की आत्मा संतुष्ट हो ये तो नही पता पर आपकी आत्मा जरूर सुकून पायेगी | यह सुनकर गांव के लोग बोले बेटी बिल्कुल सही कहा आज से तुम इस गाँव की प्रधान हो | आज से इस गांव में ही नही आस-पास के किसी गांव में तेहरवीं नही होगी| जमींदार ने कहा," गांव की प्रधान बनने पर तुमको बहुत -बहुत बधाई अगर तुम शहर जाकर आगें पढ़ना चाहो तो हमारी हाँ हैं बेटी| तभी उसकी सासू माँ उसके पास आकर बोली," यह सब तो ठीक है पर यह जो जिन्दा तेहरवीं का खाना बना है इसका क्या होगा? जमींदार हँस पड़े और बोले,"यह हमारा जिन्दाभोज है तो हम सब मिलकर खायेगें ?
यह सुनकर सब हंस पड़ते फिर वही खाना गरीबों को बांटा जाता है और गांव से इस कुरीति के मिटने की याद में ढ़ेर सारे पौधे लगाये जातें हैं |
दो महीने बाद-
गिरजेश ऊर्जा को कॉफी देते हुये कहता है मेड़मजी बुक पूरी हो गयी आपकी? अब तो आराम कर लीजिये| मेड़म जी! वैसे आपने इस बुक का नाम क्या रखा है? तो ऊर्जा मुस्कुराते हुये कहती है इस बुक का नाम है 'मृत्युभोज' एक हास्य कथा | यह सुनकर दोनो गले लग कर हंस पड़ते हैं |
रजिस्टर्ड स्टोरी @कॉपीराइट
Written by Akanksha Saxena
Blogger samaj Aur Hum
स्वहस्तरचित कहानी
मृत्युभोज (एक हास्यकथा) - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
Reviewed by Akanksha Saxena
on
September 22, 2019
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