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पाक से छीनेगें 'पोक' (पाक अधिकृत कश्मीर)



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जिस तरह अनुच्छेद 370 को हटाकर भारत ने अपनी सशक्तता का जोरदारी से परिचय दिया है। जिससे पाकिस्तान की आंखों से आँसू छोड़ कीचड़ तक नहीं निकल पा रहा और वह भीख का कटोरा लिए यूएन तक दौड़ा है पर अफसोस उसे उल्टे पांव ही लौटना पड़ा। वहीं सिरफिरे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका में जाकर स्वयं कहा कि हाँ हमारे देश में 40 आतंकी संगठन सक्रिय है। इस बात को अमेरिका ने गम्भीरता से लेते हुए आतंकवादियों के आका को उसके घर में घुसकर उसे स्वंय बम से उड़ाने पर मजबूर कर दिया। अब भारत हो या अमेरिका या हो रूस या साऊदी अरब विश्व के सभी शांतिप्रिय देश चाहते हैं कि किसी भी तरह इस आतंकवाद का खात्मा हो। पर जिस पाकिस्तान की राजनैतिक रोटियां सिर्फ़ और सिर्फ़ आतंक के बल पर सैकीं जाती रहीं हों जो भारत से ही पैदा हुआ और जो भारत को ही आँख दिखाता रहा हो उस जेहादी मुल्क पाकिस्तान को भारत से हमेशा ही मुंह की खानी पड़ी है। अब पगलैट पाकिस्तान को पाक अधिकृत कश्मीर (पोक) के जाने का भय ऐसे सता रहा है कि वह आधा पौना किलो के अणु परमाणु बम को भारत में गिराने की ही टुच्ची धमकी देते रहते हैं। जबकि वह जानता है कि भारत ने हजार किलो. के बम बरसा दिये तो नक्शे से पाक का वजूद ही समाप्त हो जायेगा। यह सत्य जानते हुए भी नादान पाकिस्तान हमारे कश्मीर पर नाजायज कब्जा किये बैठा है और इस पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह  सिंह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तक ने स्पष्ट शब्दों ने कहा है कि अब पोक को भी भारत में मिला कर रहेगें। तथा केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने भी कहा है कि हमारा अगला अजेंडा पोक को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाना है।वहीं 'रॉ' के पूव अधिकारी तिलक देवाशर भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करते हैं। वो कहते हैं, "ये जो कहते हैं आजाद कश्मीर (वो) बिल्कुल आजाद नहीं है। सारा कंट्रोल पाकिस्तान के हाथ में है। वहां की जो काउंसिल है, उसका चेयरमैन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री है। वहां की सेना नियंत्रण करती है।"


"वो लाइन ऑफ कंट्रोल के करीब है, तो वहां 1989 से बेशुमार कैंप चल रहे हैं। वहां वो ट्रेनिंग भी करते हैं। वहां लॉन्च पैड हैं, जहां से भारत में घुसपैठ होती है। ये आर्मी कैंप के साथ जुड़े हुए हैं।"

देवाशर ये भी दावा करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के खामोश रहने से पाकिस्तान को मनमानी का मौका मिलता है।
पर अब हम अपना हिस्सा अपनी संस्कृति को वापस लेकर रहेगें। इनसे इतर मैं तो कहती हूँ कि सुभाष चन्द्र बोस जी की बात मानो कि हक न मिले तो छीन लो। इसलिये भारत सरकार को पाकिस्तान से अपने 'पोक' को छीनने की कूटनीति अपनानी चाहिए। आपको बता दें कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को ही हम पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के नाम से जानते हैं। प्रशासनिक रूप से पाकिस्तान ने इसे दो हिस्सों में बांट रखा है जिसमें एक हिस्से को पाकिस्तान ने आजाद कश्मीर का नाम दिया है और दूसरे हिस्से का नाम गिलगित-बाल्टिस्तान है।पाक अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तान ने एक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बना रखा है। यहां का अपना मंत्री परिषद भी है और पीओके में विधानसभा भी है। और तो और यहां हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक है। हालांकि यहां के कोर्ट हों या राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सब नापाक पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं हैं। 

सभी जानते हैं कि सन् 1947 में स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया था। तब वहां के राजा हरिसिंह ने भारत सरकार से बतौर खत मदद की गुहार लगाई थी जिसपर फौजी मदद के बदले भारत ने कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने की शर्त रखी थी लेकिन कश्मीर में युद्ध के दौरान ही भारत सरकार ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठा दिया था। इसके बाद यथास्थिति रखने के लिए कहा गया और जम्मू-कश्मीर का काफी बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। इसके बाद लगभग आज से 70 साल पहले एक क़बायली हमले ने सब कुछ बदल के रख दिया था जोकि एक साल दो महीने एक हफ्ता और तीन दिन बाद खत्म हुआ था। इन्हीं क़बायलियों ने हमारी जन्नत को जहन्नम बनने की बुनियाद रखी थी जिसने पहली बार मुजाहिदीन को पैदा किया। या कहें कि आतंक को पैदा किया। 

बता दें कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) मूल कश्मीर का वह भाग है, जिसकी सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के जिन्जियांग क्षेत्र से और पूर्व में भारतीय कश्मीर से लगती हैं। यदि गिलगित-बल्टिस्तान को हटा दिया जाए तो आजाद कश्मीर का क्षेत्रफल 13,300 वर्ग किलोमीटर (भारतीय कश्मीर का लगभग 3 गुना) पर फैला है और इसकी आबादी लगभग 40 लाख है। पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद है और इसमें आठ जिले, 19 तहसीलें और 182 संघीय परिषद हैं शामिल हैं। 

देश के ही कुछ गद्दारों ने एक हंसते खिलखिलाते मुल्क के दो टुकड़े कर दिए थे। जिसकी वजह से लाखों लोगों को मजहब के नाम पर मार काट डाला गया और फिर उस स्वर्ग को भी नर्क बना दिया गया। जिसके राजा ने उसे बड़ी उम्मीदों के साथ अंग्रेजों से अपनी रियासत को हिंदू-मुस्लिम की सियासत से दूर रखने की गुजारिश की थी मगर उनकी रियासत की सरहदों के नजदीक बैठे मुसलमानों के लिए नया मुल्क पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना कश्मीर की इस आजादी के लिए तैयार नहीं थे। 

उनकी दलील थी कि जिस तरह गुजरात के जूनागढ़ में हिंदू आबादी को देखते हुए उसे हिंदुस्तान में मिलाया गया उसी तरह कश्मीर में मुस्लिम आवाम के हिसाब से उस पर सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान का हक है। इसी जिद्द को मनवाने के लिए जिन्ना ने कश्मीर के महाराजा हरि सिंह पर नाजायज़ दबाव बना डाला और कश्मीर को जाने वाली तमाम जरूरी चीजों की सप्लाई बंद कर दी थी। पाकिस्तान कश्मीर को अपने साथ मिलने के लिए अब ताकत का इस्तेमाल करने लगा। महाराज हरि सिंह अकेले उनका मुकाबला नहीं कर पा रहे थे और अब कश्मीर घाटी को पाकिस्तानी आतंकियों से बचाने के लिए महाराजा हरि सिंह ने आखिरकार भारत के साथ मिल जाने का फैसला लिया । फलस्वरूप भारतीय सेना ने पाक दुश्मनों को खदेड़ डाला। फिर इस जंग के आखिरी दिन एलओसी का जन्म हुआ। 

महाराजा हरि सिंह के हिंदुस्तान के साथ जाने के फैसले के फौरन बाद भारतीय सेना ने कश्मीर में मोर्चा खोल दिया। रात के अंधेरे में विमान के जरिए भारत ने सेना और हथियारों को बिना एटीसी के डायरेक्शन के श्रीनगर में उतार दिया। उस वक्त हमलावर कबायली श्रीनगर से महज एक मील की दूरी पर थे। भारतीय सेना ने सबसे पहले श्रीनगर के इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बनाया।इसके बाद तो जंग की तश्वीर और तासीर बदलते देर नहीं लगी।जिससे भारतीय सेना के बढ़ते कदमों की धमक ने तब तक कबायलियों के दिलों में दहशत पैदा कर दी थी। उनमें भगदड़ मच चुकी थी और देखते ही देखते सेना ने बारामूला, उरी और उसके आसपास के इलाकों को वापस कबायलियों से अपने कब्जे से छींन लिया और मोर्चा संभालते ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान को कर्रा अहसास करा दिया कि भारत सिर्फ आकार में ही नहीं बल्कि जांबाजी में भी पाकिस्तानी से बहुत बड़ा और सशक्त है। मोर्चा संभालने के अगले कुछ महीनों में ही दो तिहाई कश्मीर पर भारतीय सेना का कब्जा हो चुका था और भारतीय फौज जीत का परचम लहरा चुकी थी। और इस जंग के बाद कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा जिसके बाद 5 जनवरी 1949 को सीजफायर का ऐलान कर दिया गया। उसमें यह तय हुआ कि सीजफायर के वक्त जो सेनाएं जिस हिस्से में थीं उसे ही युद्ध विराम रेखा माना जाए जिसे एलओसी कहते हैं। 

इस तरह कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) कहा जाता है। फिर1949 में सीजफायर के ऐलान के बाद एलओसी की लकीर खिंच चुकी थी। यहां तक कि उसके बाद पाकिस्तान से लगने वाली तमाम सरहदों पर जो सेनाएं तैनात की गईं वो आज तक कायम हैं। 1949 से लेकर 1965 तक और आज 2019 तक कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान कोई न कोई बचकानी हरकतें करता ही रहता है और भारतीय सेना से बुरी तरह कुटता रहता है और इतना गद्दार मुल्क है जो अपने सैनिकों तक की लााशें लेने में शर्म करता है फिर भी लोगों को समझ नहीं आता कि पाक के लिये क्यों लड़ते हो। 

हाँ इसका भी बड़ा कारण है पाक अधिकृत कश्मीर में फैलायी गयी गरीबी और भुुखमरी और बेरेजगारी जिसकारण वहां के लोग पेट की खातिर तो कभी अपनी मां बहनों की इज्ज़त आबरू के कारण इन दरिंदों का साथ देने याानि आतंकी बनने की मौत की राह को चुनने पर विवश होते और जब भारतीय सेना का एक चांटा पड़ता है तो पतलून गीली करते हुए सब बक देते हैं। सच तो यह है कि अब इन आतंकियों के आकाओं की पतलून गीली होने का वक्त नजदीक है कि क्यों इसके लिये भारत सरकार वचनबद्ध और वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब भारतीय फौज सही समय देखकर एक बार पुनः पाकिस्तान को घर में घुसकर मारेगी और अपना कश्मीर जो पाक अधिकृत कश्मीर है, पाक से छींन लेगी। 

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