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हिंदूधर्मग्रंथों में प्रभु श्रीचित्रगुप्त जी का महिमावर्णन -ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना




-आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 


प्रभु श्री चित्रगुप्त जी जो सृष्टि के आरम्भ से बिना आराम किये निरंतर ब्रह्माण्ड के समस्त प्राणियों की काया में आत्मतत्व रूप में स्थित रहते हैं। जिनका ज्ञान होने पर वह ज्ञानी व्यक्ति, परमज्ञानी और वह महात्मा आत्मज्ञानी कहलाता है, वह जो सम्पूर्ण जगत के प्राणियों के शुभ और अशुभ कर्मों का लेखा - जोखा लिखते हैं, जो यमो के भी 'यम' कहलाते हैं जिनके इशारे पर उनके दूत यानि यमदूत प्राणियों की आत्माओं को यमलोक तक लाते हैं। जो सम्पूर्ण चराचर के चित्त में गुप्त सत्यनिष्ठ न्यायाधीश  'श्रीचित्रगुप्त' कहलाते हैं। जिनका पूजन कलम, दवात और तलवार से सम्पूर्ण होता है। जिनकी महिमा तैंतीस कोटि देवी-देवताओं ने गायी है। 
ऐसे परमपिता परमात्मा को नमस्कार करतीं हूँ। 

प्रभु श्री चित्रगुप्त जी का पवित्र ग्रंथों में महिमा वर्णन इस प्रकार है-


1-ऋग्वेद में - अध्याय 4,5,6 सूत्र 7-1-24 में, 
अध्याय 17  सूत्र 107 /10 - 7-24 में।
ऋग्वेद के गायत्री मंत्र में -
ॐ तत्पुरूषाय विदूसहे श्री चित्रगुप्तायधीमहितन्नो गुप्त: प्रचोदयात् ।

ॐ तत्पुरूषाय विदूसहे श्री चित्रगुप्तायधीमहितन्नो कवि लेखक: प्रचोदयात्। 

ऋग्वेद नमस्कार मंत्र में -
यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय वै नम:। 
ॐ सचित्र: चित्रं विन्तये तमस्मे चित्रक्षत्रं चित्रतम वयोधाम् चँद्ररायो पुरवौ ब्रहभूयं चँद्र चँद्रामि गृहीते यदस्व: ।

2- अर्थवेद में - अध्याय 13-2-32 के आखलायन स्त्रोत 4-12-3 में। 
श्री चित्रश्वि कित्वान्महिष: सुपर्ण आरोचयन रोदसी अन्तरिक्षम् आखलायन क्षति। 
सचित्रश्रीचित्र चिन्तयंत मस्वो अग्निरीक्षे व्रहत: क्षत्रियस्य ।

3- पद्मपुराण में - सृष्टिखण्ड व पातालखण्ड के अध्याय 31 में, भूखण्ड के अध्याय 16, 67,68 में व स्वर्गखण्ड में- 
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्त, सर्वभूतक्षय, औदम्बर, घघ्न, परमेष्ठी, बृकोदराय, श्रीचित्रगुप्त, चित्र, काल, नीलाम। 

4- अग्नि पुराण में -

 श्री चित्रगुप्त प्रणम्यादा - वात्मानं सर्वदेहिनाम् ।
कायस्थअवतरण यथार्थ्यान्वेषणेेनोच्यते मया।। 

येनेदं स्वेच्छया सर्व मायया मोहित्जगत। 
राजयत्यजित: श्रीमान कायस्थ परमेश्वर:।। 


5- गरूण पुराण में - 
ब्रह्माणा निर्मिन: पूर्णा विष्णुना पालितं यदा 
यद्र संहार मूर्तिश्व ब्रह्मण: तत:
वायु सर्वगत सृष्ट: सूर्यस्तेजो विबृद्धिमान
धर्मराजस्तत: सृष्टिश्चित्रगुप्तेन संयुत: । 

6- शिव पुराण में उमासंहिता अध्याय 7 में व अग्निपुराण अघ्याय 203 व 370 में - मार्कण्डेय धर्मराज श्रीचित्रगुप्तजी को 'कायस्थ' कहा गया है। 
शिव पुराण ज्ञान संहिता के अध्याय 16 में - श्री चित्रगुप्त जी, भगवान शंकरजी के विवाह में शामिल हैं। 

7- वशिष्ठ पुराण में - भगवान राम के विवाह में भगवान श्री राम जी के द्वारा सर्वप्रथम आहूति परमात्मा श्री चित्रगुप्त जी को दी गई। 

8- लिंग पुराण में - अध्याय 98 में शिवजी का नाम
'भक्त कायस्थ' लिखा है। 

9- ब्रह्म पुराण में - अध्याय 2-5-56 में श्री चित्रगुप्तजी परम न्यायाधीश का कार्य करते हैं। 

10- मत्स्य पुराण में - 
श्री चित्रगुप्त जी को केतु, दाता, प्रदाता, सविता, प्रसविता, शासत:, आमत्य, मंत्री, प्राज्ञ, ललाट का विधाता, धर्मराज, न्यायाधीश, लेखक, सैनिक, सिपाहियों का सरदार, याम्यसुब्रत, परमेश्वर, घमिष्ठ, यम कहा गया है।

11- ब्रह्मावृत पुराण में - श्री चित्रगुप्त जी का वर्णन है। 
12- कूर्म पुराण में - पूर्व भाग अध्याय 40 में। 

13- भविष्य पुराण में - उत्तराखण्ड अध्याय 89 में। 

14- स्कन्द पुराण में - श्री चित्रगुप्त जी के अवतरण का वर्णन है। 

15- यम संहिता में - 

उदीच्य वेषधरं सौम्यदर्शम् द्विभुजं केतु प्रायधिदेवं श्रीचित्रगुप्त मा वाह्यमि। 
चितकेत दीता प्रदाता सविता प्रसदिता शासनानमन्त:। 
16- उपनिषदों में - श्री चित्रगुप्त जी का वर्णन। 

17- कठोपनिषद् में - यम के नाम से श्री चित्रगुप्त जी का वर्णन। 

18- वाल्मीकि रामायण में - आत्मज्ञानी जनक ने श्री चित्रगुप्त जी का पूजन किया। 

19- महाभारत अनुशासन पर्व में - श्रीकृष्ण चँद्र  वासुदेव जी ने सर्वप्रथम श्री चित्रगुप्त जी का पूजन किया है - 
मासिभाजन सुयुक्तश्चरसित्वं महीते
लेखनी कटनी हस्ते श्री चित्रगुप्त: नमस्तुते। 

20- मनुस्मृति में - अध्याय श्लोक 64 से 79 के अनुसार - श्री चित्रगुप्त जी का भारत में कार्यकाल - 
1960853088 वर्ष विक्रम संवत 2044 तक। कार्य स्थल - भारत के उत्तराखंड में स्थित पुष्पभद्रा नदी तट पर स्थित विशाल वटबृक्ष के निकट धर्मराजपुर यानि यमराजपुर यानि सूर्यपुर यानि श्री चित्रगुप्तपुर 20 योजन क्षेत्र है, इसमें प्रतिहार रहते हैं। 
बृह्मपुत्र श्रवण समस्त जीवों के कर्मों का वर्णन यम को करते हैं जिनसे यह सब श्री चित्रगुप्त जी को विदित होता है। इन श्री चित्रगुप्त जी के द्वारा समस्त जीवों को उनके पाप पुण्य कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है। 
श्री चित्रगुप्तपुरमं तत्र योजनातु विंशाति:
कायस्थ पश्चन्ति पापे पुण्ये च सर्वश: ।

श्री चित्रगुप्त प्राणायाम - 

प्रतिदिन प्रातः सूर्योदय से एक घंटा काल में उत्तरपूर्व की ओर मुँह करके सुखासन पर बैठकर आँखें बंद करके शांति से चित्त तनावरहित शरीर, दाहिना हाथ नाभि पर फेर कर 12 बार लम्बी सांसे लेकर मस्तिष्क पर मस्तिष्क पर हाथ फेरिये। इससे आयु में बृद्धि, हृदय पुष्ट, शरीर निरोगी होता है। तथा स्मरण शक्ति की बृद्धि होती है।









🕉️ श्री चित्रगुप्ताय नम:
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