मोदी जी का आत्मनिर्भर भारत मिशन - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
["आत्मनिर्भर भारत" मिशन के माध्यम से बदल रही है भारत की तश्वीर और तकदीर]
_न्यूज एडीटर आकांक्षा सक्सेना
कोविड-19 महामारी से निपटने के क्रम में विश्व की कई महाशक्तियां भी जब निराश साबित होती दिख रही हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में भारत के महान पीएम मोदी जी के धैर्य, विश्वास और दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प-शक्ति के बल पर आज भारत को आत्मनिर्भर विकास की शक्ति को सारी दुनिया के सामने गर्व के साथ अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है। आज देश में नियमों के साथ धीरे-धीरे अनलॉक शुरू हो रहा है और जीवन पटरी पर वापस भी लौट रहा है। यह भी सत्य है कि अभी तक कोरोना का कोई इलाज सम्भव नहीं है। मजबूरन हमें इसके साथ ही जीना पड़ेगा। कहते हैं न जीवन है अगर जहन तो पीना ही पड़ेगा और पीकर जीना भी पड़ेगा। वहीं इन भयंकर परिस्थितियों में पीएम मोदी ने भारत के साथ विश्व को शांति दी दवायें देकर मदद की। उन्होंने सभी कोरोनायोद्धाओं से बात करने का सफल प्रयास किया और सबको संबल दिया। इसके साथ ही सचमुच आत्मनिर्भर भारत मिशन पैकेज देकर एक महान मदद का एक विश्व रिकॉर्ड भी मानो बना दिया जोकि 20 लाख करोड़ रुपये का बहुत बड़ा सर्वजनहितकारी पैकेज है, जो हमारे भारत देश की जीडीपी का पूरा 10% है। इसमें नियोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के लिए 2760 करोड़ रुपयों का ईपीआई योगदान कम किया गया। साधारण ऋणों पर 2% ब्याज की वित्तीय मदद दी गई है। कुल 63 लाख स्वसहायता समूहों को 20 लाख रुपये तक का कोलेटरल मुक्त ऋण मिलेगा, जो पहले 10 लाख रुपये तक सीमित था। इस महान सोच से अधिक कंपनियों को लाभ देने के लिए छोटे और मध्यम उद्योगों की परिभाषा बदली जायेगी। लघु और मध्यम उद्योगों तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को मिलाकर उनके लिए 4,45,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया हैं। चूंकि आत्मनिर्भर भारत संकल्प की आत्मा में कृषि और किसान वास करते हैं जगजाहिर है कि भारत गांवों में बसता है अत:, इस अभियान के तहत कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर की दृष्टि से ग्रामीण विकास मंत्रालय वित्त वर्ष 2020-21 में 2,00,500 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि ग्रामीण भारत के विकास के लिए दी है। इसमें से 51000 करोड़ रुपये राज्यों को जारी किए जा चुके हैं।जिसमें अब किसानों को कृषि विपणन समिति कानून से मुक्त कर दिया गया है। वे जहां चाहें, अपना उत्पाद बेच सकते हैं। वे किसी भी समय अपने कृषि उत्पाद और इसके केप्टिव विपणन के लिए किसी से भी जुड़ सकते हैं और उन्हें आवश्यक वस्तु अधिनियम के कई किसान विरोधी प्रावधानों से राहत दी गई है। अब किसानों पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। जब बाजार उन्हें अधिक मूल्य प्रदान करता है, तो वे अपने उत्पाद बेच सकेंगे तथा कृषि-आधारभूत ढांचे के कार्यक्रमों के लिए 1,00,000 करोड़ रुपये, साथ ही मत्स्य विकास के लिए 20,000 करोड़ रुपये और मवेशियों में खुर और मुंह की बीमारी के टीकाकरण और उपचार के लिए 15,000 करोड़ रुपये रखे गए हैं। एक और महत्वपूर्ण चीज 70,000 करोड़ रुपए की क्रेडिट लिंक सब्सिडी भी है। बता दें कि विश्व में शहद के 5 सबसे बड़े उत्पादकों में भारत का नाम शुमार है। भारत में वर्ष 2005-06 की तुलना में अब शहद उत्पादन 242 प्रतिशत बढ़ गया है, वहीं इसके निर्यात में 265 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पीएम मोदी ने प्रथम पैकेज में ही देश के गरीब परिवारों को खाद्य सुरक्षा कवच देते हुए उन्हें 25 किलो चावल/गेहूं और 5 किलोग्राम दालें मुफ्त (पांच महीने के लिए) देने का ऐलान किया। इसके साथ प्रति माह 5 किलो चावल/गेहूं, 2-3 रुपये प्रति किग्रा की बेहद रियायती दर पर प्रदान करने की पूर्व योजनाओं को भी जारी रखा गया। लगभग 5 करोड़ गैर-राशन कार्डधारकों के लिए भी सरकार ने दो महीने के लिए 10 किलो चावल/गेहूं और 2 किलो दालें मुफ्त देने की व्यवस्था की। महिलाओं के 20 करोड़ जन-धन खातों में 500-500 की तीन किस्तों में कुल 1500 रुपए पहुंचाने की व्यवस्था की गई। कुल 8 करोड़ परिवारों को 2,000 रुपये के 3 गैस सिलेंडर मिले। लगभग 9 करोड़ किसानों ने अपने बैंक खातों में 2,000 रुपये प्राप्त किए। इसी प्रकार 50 लाख रेहड़ी-पटरीवालों को प्रत्येक को 10,000 रुपये मिलेंगे। लाखों निर्माण श्रमिकों को निर्माण श्रमिक निधि से सहायता राशि मिली। जिसका आकंडा यह है कि हमारे देश के गरीब जरूरतमंद समाज के 10% सबसे नीचे के तबके के परिवारों को इस योजना से 10-10 हजार रुपये प्राप्त हुए। इसके अलाव सरकार ने स्वास्थ्य पैकेज के रूप में 15,000 करोड़ रुपये और राज्य आपदा राहत कोष के लिए 11,000 करोड़ रुपये जारी किए और कोविड-19 से जंग में 3000 रेलगाड़ियों से लगभग 45 लाख प्रवासी मजदूरों को उनके घर वापस भेजा गया। विदेशों में फंसे हजारों भारतीय निवासियों को भी सफलतापूर्वक वहां से निकालने में भारत सरकार सराहना की पात्र है।लॉकडाउन के समय में सरकार ने गांवों में मनरेगा के माध्यम से कार्य करवाते हुए इसे रोजगार का एक सशक्त जरिया बनाया है। 40,000 करोड़ रुपए की अभूतपूर्व वृद्धि के साथ मनरेगा का कुल बजट अब 1,01,500 करोड़ रुपए हो गया है। यही नहीं, 23,329 करोड़ रुपये की राशि जारी भी की जा चुकी है। जब प्रवासी मजदूर अपने गांव पहुंच चुके हैं तो ऐसी स्थिति में मनरेगा के तहत प्रतिदिन करीब 2.50 करोड़ मजदूरों को रोजगार का अवसर दिया जा रहा है, जबकि 14 अप्रैल, 2020 को यह संख्या करीब 14 लाख थी। यानी मनरेगा से गांवों में लगभग बीस गुना ज्यादा रोजगार श्रमिकों को मिल रहा है। मनरेगा के तहत औसत मजदूरी में 20 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वृद्धि की गई है। पिछले वर्ष की तुलना में यह 11 प्रतिशत से ज्यादा है।प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के पैकेज के रूप में 20.65 करोड़ महिला जन-धन खाताधारकों के खाते में 500-500 रुपये की दो किस्तों में राशि भेजी जा चुकी है। वहीं देश में महिला स्वयसहायता समूहों के लिए बगैर गारंटी के ऋण की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख कर दी गई है। यह महिला सशक्तीकरण का आत्मनिर्भर आधार बना है। जिसमें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जुड़ी बहनें अब तक 12.81 करोड़ मास्क, 3.36 लाख लीटर सैनिटाइजर और 90,000 लीटर लिक्विड हैंडवॉश का निर्माण कर चुकी है। इतना ही नहीं, मिशन की बहनें 12,511 सामुदायिक रसोई का संचालन कर करीब 9 करोड़ लोगों के लिए भोजन उपलब्ध करा चुकी हैं।प्रधानमंत्री जी के वादे के मुताबिक हर गरीब को छत मिले, इसके लिए प्रयास जारी हैं। आवास के लिए राज्यों के पास कुल 12 हजार 482 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत कुल 2.21 करोड़ आवास स्वीकृत किए जा चुके हैं, जिसमें करीब 1 करोड़ 2 लाख 51 हजार आवास पूरे किए जा चुके हैं। करीब 48 लाख आवास ऐसे हैं, जिनके लिए तीसरी/चौथी किस्त जारी की जा चुकी है।यह बात है सच है कि कोविड-19 महामारी से निपटने के क्रम में भारत ने सबसे लंबा और सख्त लॉकडाउन रखा जिस कारण हमारी अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुँचा। आर्थिक गतिविधियां ठप होने के साथ व्यापार पर निर्भर क्षेत्र जैसे- यात्री विमानन, शिपिंग, होटल, रेस्तरां आदि की गतिविधियाँ ठहर सी गई हैं। अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता के कारण ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर आदि उद्योगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। देश के औद्योगिक उत्पादन में 60 प्रतिशत का योगदान करने वाले 6 राज्य कोरोना से बुरी तरह प्रभावित हैं।इस कोरोना के कारण भारत में लगभग 400 मिलियन लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं। देश के 75 लाख सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमी (एमएसएमई) लगभग 180 मिलियन लोगों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं, पर कोरोना महामारी के कारण इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ रही है। जिसे देखते हुए भारत के महान प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत मिशन की जोरदार दस्तक दी है। यह सच है कि भारत में लॉकडाउन से परेशानियां बढ़ीं पर करोड़ों लोगों की कोरोना से होने वाली दर्दनाक मौत से जान की रक्षा कर लीं गयी । यह आत्मनिर्भर भारत ही है कि आज हमारे पास 800 से अधिक कोविड के अस्पताल हैं। और कोविड-19 से लड़ने के लिए 300 से अधिक प्रयोगशालाएं हैं। पीपीई किट, मास्क और यहां तक कि 'स्वाब स्टिक सबकुछ देशी बन रहा है। अब भारत में भी वेंटिलेटर का उत्पादन किया जा रहा है। कुल 165 डिस्टलरियों और 962 निर्माताओं को हैंड सैनिटाइटर बनाने के लिए लाइसेंस दे दिए गए हैं, जिसके नतीजतन 87 लाख लीटर हैंड सैनिटाइजर का उत्पादन किया जा चुका है। हमारा देश आत्मनिर्भर पहले भी था पर मोदी जी के नेतृत्व ने इसे जोरदार आत्मविश्वास भरी गति दे दी है। आज विचारणीय यह है कि कोविड-19 से परेशान देश विदेश बदर बुरे हाल गांवों में लौटी श्रम शक्ति को तात्कालिक परिस्थितियों में तो सरकारी व गैरसरकारी काम मिले ही, भविष्य में भी ऐसी व्यवस्थाएं निर्मित हों कि ये पलायन जैसा यातनाएं सहने को विवश न हों। परिणामस्वरूप आज हर हाथ को रोजगार से जोड़ने की व स्वरोजगार बढ़ाने के लिए सरकार हर सम्भव मदद देेन को कृतसंकल्पित हैैं। हो भी क्यों न जब भारत और चीन के बीच 2001-02 में आपसी व्यापार महज तीन अरब डॉलर था जो 2018-19 में बढ़कर करीब 87 अरब डॉलर पर पहुंच गया। भारत में चीन से करीब 70 अरब डॉलर मूल्य का आयात किया और चीन को करीब 17 अरब डॉलर का निर्यात किया । सरल शब्दों में हम कह सकते है कि हम चीन को किए जाने वाले निर्यात की तुलना में चार गुना आयात करते है। इतना ही नहीं चिंताजनक यह भी है कि हमारे कुल विदेश व्यापार घाटे का करीब एक तिहाई व्यापार घाटा चीन से संबंधित है।चूंकि चीन ने नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिविधियाँ बढ़ाई गई हैं, अतएव इस मुद्दे को न केवल सरकार के द्वारा वरन प्रत्येक भारतीय के द्वारा एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया जाना होगा। वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा भी चीन से मुकाबले की आर्थिक रणनीति बनानी होगी।इतना ही नहीं वैश्विक कंपनी ब्लूमबर्ग के द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट मई 2020 के मुताबिक कोविड-19 के कारण चीन के प्रति नाराजगी से चीन में कार्यरत कई वैश्विक निर्यातक कंपनियां अपने मैन्युफैक्चरिंग का काम पूरी तरह या आंशिक रूप से चीन से बाहर स्थानांतरित करने की कमर कस चुकी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन से बाहर निकलती कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत इन्हें बिना किसी परेशानी के जमीन मुहैया कराने पर तेजी से काम कर रहा है। खासतौर से जापान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन की कई कंपनियों भारत को प्राथमिकता देते हुए दिखाई दे रही हैं। ये चारों देश भारत के टॉप-10 ट्रेडिंग पार्टनर्स में शामिल हैं।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भारत आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़कर चीन से आयात में कमी कर सकता है और वोकल फॉर लोकल अभियान से मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को एक नई ऊर्जा मिलने की उम्मीद है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना के संकट में जब दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ढह गई हैं, तब भी लोकल यानी स्थानीय आपूर्ति व्यवस्था, स्थानीय विनिर्माण, स्थानीय बाजार देश में देवदूत बनकर आयें हैं। अत:, अब हमें गम्भीरता से अपने कई उद्योगों के लिए कच्चे माल का आयात जो दुनिया के कई देशों से होता हैं। हमें एक चुनौती के रूप में सबसे पहले देश में ऐसे कच्चे माल का उत्पादन शुरू करना होगा क्योंकि आज देश में इस विदेशी निवेश की छाया में क्या शेष बचा है। सारे विदेशी ब्राण्ड देश को लूटने में लगे हैं। व्यापारिक परिदृश्य भी विदेशों के पक्ष में है। संचार माध्यम, अमेजॉन, गूगल, एपल आज किस गति से हमारा धन छीन रहे हैं। खुदरा व्यापार चरमरा रहा है। डॉलर के लिए प्रतिभाएं बाहर जा रही हैं। रुपए का जिस प्रकार अवमूल्यन हो रहा है और हाल यह है कि आज का अतिमहत्वाकांक्षी मॉर्डन वर्ग डॉलर के लिए अपने सारे सिद्धान्त बेचने को तैयार है। शिक्षा ने धन के आगे सबको घुटने टेकना सिखा दिया। जिस गति से विदेशी निवेश हो रहा है, चाहे सीधा या शेयर-मार्केट में, इससे हमारे देश का स्वामित्व कहीं खोखला ना हो जाये। इस कारण आज पूरे भारतवर्ष को अपनी गौरवशाली महान संस्कृति और विरासत को साधते हुए आगें बढ़ना होगा। वहीं हमें यह भी ध्यान देना देना होगा कि हमारे देश की अदालतों में करोड़ों मुकदमें लंबित हैं। विचारणीय यह है कि क्रिमिनल या जमीनी किसी भी तरह के मुकदमों के अनावश्यक बोझ से देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि देेश के नागरिक भी मानसिक,शारीरिक और आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। सरकार और अदालतों को चाहिए कि शीघ्र अतिशीघ्र देश के सभी जमीनी विवादास्पद मुकदमों को सुलझाने की समय सीमा निर्धारित करते हुए लक्ष्य बनाकर इन मुकदमों को तुरंत निपटाने की दिशा में सार्थक भूमिका निभाते हुए ठोस कदम उठायें जायें। जिससे वर्षों से विवादित भूमि जीवन और जीविका आजाद मुक्त और स्वतंत्र हो सके और उनपर लोग खेती, मकान, दुकान आदि बनाकर अपना जीवन और जीविका को दीर्घकालिक बनाने के लिए प्रयास कर सकें जिससे सरकार को भी लाभ और लोगों को भी आर्थिक मानसिक और शारीरिक शांति मिल सके और वह सक्षम - आत्मनिर्भिर बनने की दिशा में देश के विकास में अपना योगदान कर सकेगें। हमें हमारे जीवन मूल्य जिंदा रखने होगें। इतना ही नहीं हमें हमारी कर्मठता पर पूरा भरोसा है कि एक दिन हम चीन को जरूर पछाड़ देगें और ज्यादा सामान बनाने और बेचने वाले देश के रूप में उभरेगें और यही है आत्मनिर्भर प्रतिभाशाली भारत मिशन जो हमें नयी पहचान के साथ नयी उड़ान देने में सक्षम होगा ।
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