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'अकेलेपन' को व्यवस्थित कीजिए - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

चित्र साभार: गूगल 



अकेलेपन को व्यवस्थित कीजिए 
[अकेलापन जानलेवा है, इसे खुद पर हावी न होने दें।] 

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

पूरी दुनिया में अकेलेपन को लेकर ढ़ेरसारी बातें होती हैं। हाँ सिर्फ बातें होती हैं। हम और कर भी क्या सकते हैं। हम इंसानों को खाना की तरह बातें करना भी उतना जरूरी है कि हम लोग बिना बात किये जिंदा नहीं रह सकते। क्योंकि भावनात्मक रूप से प्रभावित करने के साथसाथ अकेलापन इंसान के इम्यून सिस्टम यानी जिस्म की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को भी प्रभावित करता है।शिकागो यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार, अकेलेपन से हृदयरोग, अल्जाइमर और तेजी से बढ़ते कैंसर के पनपने की आशंका रहती है। लोगों के अलगथलग रहने से नोरीपाइनफेरिन हार्मोन का लैवल बढ़ जाता है जो वायरस से लड़ने की हमारी क्षमता को कमजोर करता है। इस से हार्टअटैक की आशंका भी बढ़ जाती है। अब आप कहेगें कि एकांत में हमें दिव्य शक्ति और आत्मऊर्जा, आत्मदर्शन की शुभ भावना से भर देता है तो इसे बुरा कैसे मान लिया जाये तो सच तो यह है कि एकांत और अकेलेपन में फर्क होता है अकेलेपन में अकेले हो जाने की नकारात्मक भावना रहती है जो एकांत में नहीं होती।  ध्यान में रखने योग्य बात यह है कि कि हम इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से समाज में रहने के लिए ही बने हैं, अकेले रहना हमारा मूल गुण ही नहीं हैं। अगर हम अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं इसका मतलब प्रकृति ने हमें जैसा बनाया है हम उसके खिलाफ़ जा रहे हैं। गांठ बांध लीजिए कि अकेलापन जानलेवा है और इसे खुद पर हावी मत होने दीजिए। यदि आपको लगता है कि आपका हँसमुख दोस्त अचानक शांति और अलग-थलग हो गया है तो उससे बात करने और मिलने व उसके दर्द को बाहर निकालने का प्रयास कीजिए। आपकी प्रेमभरी कोशिश किसी की जिंदगी बचा सकती है आपके दोस्त की असमय दर्दनाक मौत से बचा सकती है। अकेलेपन को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह मानसिक विकार अवसाद जानलेवा है। मैं तो स्पष्ट शब्दों में कहती हूँ कि अगर आज मोबाइल, नेट, फेसबुक यानि सोसलमी मीडिया न होता तो दुनिया को लॉकडाउन के बदले भारी कीमत चुकानी पड़ती वो कीमत होती भारी संख्या में इंसानों के अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या की या सड़कों पर उतर कर क्रांति करने की। हाँ हम इंसान दो टूक होना पसंद करते हैं या यह हमारी प्राकृतिक मनोदशा में व्याप्त है कि हम या तो खुद को डिप्रेशन के घेरे में खुद को ढ़ालते हुए एक रूम में कैद कर लेते हैं या फिर हम सीना तान के अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं और सत्तारूढ़ को सिंहासन तक को हिला डालते हैं। हाँ बीच के रास्ते में भी कुछ इंसान खड़े हैं जो डर और क्रांति के बीच जूझते हुए जीते हैं और जो काम वो कर नहीं पाते वो कार्य वो सोते समय सपने में या दूसरों लोगों को भड़काकर अंजाम दिलवाते हैं। यह लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती कुछ इंसान ऐसे भी हैं जिन्हें खुद के अलावा किसी से मतलब नहीं होता। अब बात आती है कि अकेलापन राहत है या पाप। तो सच तो यह है कि हर चीज की अति बुरी है। जब हम अपना अपमान नहीं सह पाते, अपनी प्रतिभा, अपनी कला का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाते, अपने प्रेम या मित्र की मौत बर्दाश्त नहीं कर पाते, कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होते, माफिया के धमकी को जवाब नहीं दे पाते और सबसे बड़ी बात जब खुद के माता- पिता, भाई बहन, पति या पत्नी, हमें खुद को हमेशा शून्य समझे, हमारे टेलेंट को मजाक बनाये, घरवाले हमेशा सरकारी नौकरी का दबाव बनाते हों, तब व्यक्ति अपने टेलेंट से अपनी वैश्विक पहचान और घरवालों के दबाव के बीच जूझता हुआ जीने लगता है। बाद में उसे अपनों से ही परायों जैसी फीलिंग्स आने लगे और गद्दारी के उदाहरण मिलने लगें तो इंसान कितना ही बड़ा ख्यातिप्राप्त करोड़पति या टेलेंटिड और सफल व्यक्ति ही क्यों न हो, वह टूट कर भीतर ही भीतर बिखर जाता है। वह जानता है कि उसके पास यही एक टेलेंट है जो उसकी पहचान है पर परिवार के सरकारी नौकरी के दबाव, कभी परिवार की मर्जी शादी का दबाव, कभी सामाजिक पतन का भय, यह उसे पल-पल मार रहा होता है। वह अपने कारण किसी को परेशान नहीं देखना चाहता इसलिए वह अपने अंतर्मन में बहुत बड़ी जंग लड़ता है। वह उस जंग में कुछ समय के लिए बाहर भी आ जाता है तो प्रेम के तलाश करता है। फिर वो प्रेम चाहे माँ का हो, पत्नी का हो या प्रेमिका का या किसी दोस्त का या सहकर्मी का, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि सामने कौन है। वह गले लग कर जीभर के रोना चाहता है। हाँ यह बात स्पष्ट है कि ऐसी परिस्थिति में वह शारीरिक प्रेम करने की स्थिति में नहीं होता, वह केवल मोरल सपोर्ट चाहता है। वह बड़ी हिम्मत जुटा कर अंतिम बार किसी को फोन करने की कोशिश करता है पर सामने वाला फोन नहीं उठाता, वह हर दरबाजे पर कोशिश करता है पर जब उसे, उस वक्त किसी से कोई रिस्पांस नहीं मिलता तो उसके अंदर धैर्य की सीमा टूट जाती है और दर्द का ज्वालामुखी फट पड़ता है और फिर वो बिना एक मिनट की देरी के या तो फांसी पर लटक जाता है, या स्पीड में सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जाकर 14वीं मंजिल से कूद जाता है या फिर वो उस समय जो कर सकता है वो कर जाता है। यही वो काला समय होता है जब इस व्यक्ति को बचाया जा सकता है पर कहते हैं न कि हम सब मॉर्डन और मनी माईंडेड हो चुके हैं, पैसा ही भगवान बन चुका है, रिश्ते नाते विश्वास, किसी के टेलेंट की कद्र, किसी के सपनों में साझीदार बनना हम सब भूलते जा रहे हैं, एक तो वैसे भी इस पैसे ने दिलों से दूरियां बढ़ा रखीं थी पर लोग बेमन से ही कम से कम मिलते तो थे, बुराई ही सही पर दो बातें करते तो थे पर जब से यह कोरोना आया है तब से हर किसी की जिंदगी हर तरह से नर्क बन चुकी है। एक स्पर्श जहां खून बढ़ा दिया करता था वहीं आज छूना मना है। गले लगाना मना है। सामाजिक दूरी का पालन करना जरूरी है। आज इंसान वो घुटन की मनहूस जिंदगी जीने को मजबूर है जिसमें डिप्रेशन न होगा तो क्या होगा? हमें चाहिये कि भले ही सामाजिक दूरी रहे पर दिलों को जोड़े रखिये। सोसलमीडिया दोस्ती का सबसे बड़ा प्लैटफार्म है। अच्छे लोगों से जुड़िये और अपना टैलेंट वैश्विक स्तर पर ऑनलाइन दिखाइये। एक बार खुद के लिए जीकर देखिये और प्रेम से परिवार में खुल कर चर्चा कर लीजिए, सब नहीं तो कोई एक तो सपोर्ट करेगा। चीजों शांति से सुलझाने का प्रयास कीजिए व अपने अकेलेपन को अपनी सुन्दर यादों व अपनी हॉबी से व्यवस्थित कीजिए तथा सर्वशक्तिमान ईश्वर पर भरोसा रखिये।किसी भी बात पर जल्दबाजी मत करिये। स्वंय को व परिवार को थोड़ा समय दीजिए और वह दिन दूर नहीं जब आपको न्यूज और टेलीविजन पर देखकर आपकी फैमली सहित आपका पूरा मोहल्ला आपको देखकर खुश और गर्व से झूम रहा होगा।










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