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अक्रेशिया को मिटा दो! - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

 चिंतन - 

अक्रेशिया मिटायें, कामयाबी पायें 

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-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 


आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||

अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। परिश्रम जैसा दूसरा हमारा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता। साथियों! यह सब हम सबने बचपन से सुना और देखा है कि आलस किस तरह हमारी जड़ें कमजोर कर देता है और हम सबको निष्क्रिय बना देता है पर फिर भी हम कहीं न कहीं, कोई न कोई, किसी न किसी तरह के आलस से ग्रसित रहते हैं। वैसे तो आलसी शब्द लैटिन इंडोलेंशिया से प्राप्त होता बताया गया है जिसका अर्थ है 'बिना दर्द के' या 'बिना परेशानी' आलस या आलस्य की तुलना में सुस्ती का प्रयोग होना। बता दें कि इस विषय पर ऑस्कर वाइल्ड ने कहा, 'कुछ भी नहीं करने के लिए,' दुनिया में सबसे मुश्किल काम है, सबसे मुश्किल और बौद्धिक। ' इस पर यह भी कहा गया है कि आलस्य को जन्म देने वाली भावना अन्य कारकों में डर और निराशा से भी जन्म लेती है। कुछ लोगों को सफलता से डर लगता है, या सफलता के साथ सहज महसूस करने के लिए पर्याप्त आत्मसम्मान नहीं जुटा पाते वह आत्मविश्वास नहीं जगा पाते, और आलस एक तरीका है जिसमें वे खुद को तोड़ सकते हैं शेक्सपियर ने एंटनी और क्लियोपेट्रा में इस विचार को और अधिक सुविख्यात और संक्षेप में व्यक्त किया है: 'फॉर्च्यून जानता है कि जब वे ज्यादातर सुविधाएं मुहैया कराते हैं, तो हम उसे सबसे अधिक तिरस्कृत करने लग जाते हैं।' इसके विपरीत, कुछ लोगों को असफलता का डर है, और आलस्य विफलता का घोतक है क्योंकि यह लोग यह साबित कर रहे होते हैं कि यह मैं को हटाने पर है "यह नहीं है कि मैं असफल रहा," वे स्वयं को कहते हैं, "ऐसा मैंने कभी किया ही नहीं है।" इसके इतर कुछ अन्य लोग भी अक्रेशिया यानि आलस का चरमबिंदु कि कर लेगें, कल कर लेगें जैसे स्वंय के शब्दों और जीवन पर थोपने वाले और जीने वाले शब्दों का जीवंत प्रयोग वहीं दूसरों के लिए हां हां होना चाहिए, यह काम होना चाहिए जैसे शब्दों का दूसरों पर व खुद पर जीवंत शाब्दिक प्रयोग कर उसे खुद की जीवनशैली बना लेना और स्वीकार भी कर लेने जैसा भाव है यह अक्रेशिया, वैसे तो यह इटेलियन शब्द है पर इसका सरल अर्थ है घोर आलस की पराकाष्ठा और उदासीनता के भाव की चरम सीमा जो वर्तमान में जीने और बड़े सपनों को सच करने के विचारों पर अंधकार अकर्मण्यता का पर्दा डाल देती है कि निराशा जनक, कुछ न करने की बातें, कल पर छोड़ने के भाव, कहीं न कहीं वह कार्य शुरू होने से पहले ही उसके न होने का पूर्वानुमान से ग्रसित दिमागी फिसलन शामिल है। यही है वह अक्रेशिया जो हम सब को हमारे दिमाग पर नकारात्मक की पर्त चढ़ाकर हमें आगें बढ़ने और सफल इंसान बनने से रोकती है। यही है वह अक्रेशिया जो हमें हमेशा पीछे धकेलती है। यही है वह अक्रेशिया जो हमें अमीर लोगों की प्रति ईर्ष्या का भाव जन्म देने का कार्य करती है। यही है वह अक्रेशिया जो हमारी औकात निर्धारित कर देती है कि तुम्हारे बाप दादा कभी अमेरिका नहीं गये तू क्या जायेगा?कभी तेरो बाप दादा ने कम्पनियां नहीं चलायीं तो तू क्या चलायेगा? कभी तेरे बाप दादा ने लेख व किताबें नहीं लिखीं तू क्या लिखेगा? कभी तेरे बाप दादा मंच पर नहीं गये तो तू क्या नेता पीएम बनेगा? तेरा बाप दादा समोसा बनाता था तो तू ज्यादा से ज्यादा बड़ा रेस्टोरेंट खोल ले। तू सरकारी नौकरी कर ले। तू बस यही कर ले ज्यादा बड़ा न सोच। यही हैं वह अक्रेशिया से ग्रसित लोग जो हमें कुछ भी बहुत बड़ा करना तो दूर सोचने तक नहीं देते। और तो और जो लोग अक्रेशिया से पीड़ित हैं। वे अपनी स्थिति को इतना निराशाजनक मानते हैं कि वे इसके माध्यम से सोचना भी शुरू नहीं कर सकते हैं, अकेले इसका समाधान करें। क्योंकि इन लोगों के पास सोचने और उनकी स्थिति का पता करने की क्षमता नहीं है या फिर अधूरी क्षमता है, इसलिए यह तर्क दिया जा सकता है कि वे वास्तव में आलसी नहीं हैं, और कुछ हद तक, यह सब आलसी लोगों के बारे में भी कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में, आलस्य की अवधारणा आलसी न होने का चयन करने की क्षमता को मानती है, जो कि, स्वतंत्र इच्छा के अस्तित्व को मानती है।अब स्वतंत्रता की बात करें तो हम यही कहेगें कि अक्रेशिया हमें स्वतंत्रत होने ही नहीं देती। अक्रेशिया निराशा का ही पर्याय है। जो व्यक्ति को कभी लबरेज़ नहीं कर सकती। वह हमारी भरपूरता की सीमायें निर्धारित करने पर दृढ़ होती है। वह हमें कमजोर और सीमित करने का नाम है। जबकि हम मनुष्य और मनुष्यता असीम और विराटता का नाम है। जब अल्बर्ट कैमस ने 1 9 42 के अपने निबंध, द मिथ ऑफ सिसिपस में बेतुका पर अपना दर्शन प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होंने कहा कि 'शीर्ष पर होने वाला संघर्ष स्वयं एक आदमी के दिल को भरने के लिए पर्याप्त है। बस वह निराश नहीं होना चाहिए। यानि शीर्ष पर पहुंचने वालों को अक्रेशिया के सघन बादलों को चीर कर ही जाना होगा, तभी हम उस विराट अंतरिक्ष के सहगामी और दार्शनिक बन पायेगें वरना आज सिर्फ हम अपने ग्रंथ की चांद तारों वाली कहानियों में ही उलझे रहते जब तक कि कुछ लोगों ने अपनी अक्रेशिया के पार जाकर अंतरिक्ष में अपना पहला कदम न रखा होता। आज हम मनुष्यों ने जितनी भी ऊँचाइयाँ प्राप्त की हैं, वह तब ही की हैं जब हमने हमारी औकात की धारणा को धराशायी कर दिया। जब हमने बल्ब,बिजली, ट्रेन, हवाई जहाज, मोबाइल, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, ड्रोन व लार्ड हारड्रल कोलायडल महाशीन की संकल्पना सर्वप्रथम अपने दिमाग में की और उतार डाला जमीन पर, अक्रेशिया से ग्रसित लोग सिर्फ़ यह कहने के लिए पैदा होते हैं कि तू यह नहीं कर सकता। तुझे तेरी चादर से बड़े पांव नहीं फैलाने चाहिये, तुझे विदेश नहीं जाना चाहिए, तुझे अमीरों से नफरत करनी चाहिए। जब हम धन और धनवान व सफल लोगों से ही नफरत करेगें तो कभी उनका संघर्ष नहीं पढ़ सकेगें और जब उनका संघर्ष नही पढ़ेगें तो हमें मोटीवेशन नहीं मिलेगा और जब हमें मोटीवेशन नहीं मिलेगा तो हम कुए के मेढक ही बने रहेगें, हम कभी समंदर का सपना तक नहीं देख सकेगें बस यहीं अक्रेशिया जीत जाती है और हमारे हौंसलों की उड़ान भरते सपने दम तोड़ देते हैं और हम कमरे में लेटे लेटे यही सोचते हैं कि हमारे अंदर यह टेलेंट था पर टेलेंट दिखाने की विदेश तक जाने की हिम्मत न जुटा सके। पता है क्यों? तो छोटा सा उदाहरण लो अपने लोगों से कहो कि मुझे पासपोर्ट बनवाना है तो वह तुरंत कहेगें क्यों? विदेश जाना है, पागल हो क्या? इतने पैसे में भैंस खरीद लो, तबेला खोल लो। शुरू हो जायेगें अक्रेशिया ग्रस्त ज्ञान देने। बिना यह जाने कि पासपोर्ट का मतलब है परमानेंट एड्रेस। यह एक लीगल डाक्यूमेंट है जिसे होना ही चाहिए और विदेश जाने के लिए वीजा लगता है। पर मैं आप से कहती हूँ कि तोड़ तो इन अक्रेशिया ग्रसित लोगों की बनायी सीमारेखा जो हमें अमीर और सफल इंसान बनने से रोकती हैं और डंके की चोट पर पासपोर्ट बनवाओ तथा उसे रोज देखा करो और खुद से कहा करो पासपोर्ट है जल्द ही बीजा भी लगवाऊंगा य लगवाऊंगी और विदेश यात्रा जरूर करेगें और अपने माता-पिता व छोटे भाईयों बहनों को हवाई यात्रा जरूर कराऊंगा व कराऊंगी चाहे जो हो जाये। मुझे मेरे कार्यों में जी जान अंतिम श्वांस तक खपाना पड़े मैं खपा दूंगा और मैं अमीर और कामयाब जरूर बनूंगा। कोई मुझे मेरे सपनों को पूरा करने से रोक नहीं सकता। तो बस सबसे पहले इस अक्रेशिया को अपने दिल-ओ-दिमाग से बाहर कर दो, अक्रेशिया कहती है करना चाहिए, कर लेना, रहने दो, चादप देखो, अपना बेक ग्राऊंड देखो, यह देखो वो देखो। पर आपको सिर्फ़ अपना सपना पूरा करना है बस और नहीं यह चाहिए नहीं चाह लिया। करेगें नहीं कर लिया। कल नहीं आज, आज नहीं अभी से जुटना होगा क्योंकि हमें हमारे लिये हमारी फैमली की खुशी और तरक्की के लिए देश की समृद्धि के लिए कामयाब होना ही होगा। होना ही है क्योंकि अक्रेशिया मिटेगी तो वर्तमान जिंदा होकर लह लहा उठेगा और जो वर्तमान में जीते हैं वहीं कामयाब होते हैं। सोचो वर्तमान कितना सुन्दर सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण शब्द है और जिसे अंग्रेजी में प्रेजेंट कहते हैं और उपहार को भी प्रेजेंट कहते हैं यानि प्रेजेंट ही प्रेजेंट है। जब हम हमारे इस वर्तमान में जीने की सुवास में समर्पित होगें तो हम ब्रह्मांड के अनंत उपहारों को पाने के सही अधिकारी होगें और ब्रह्मांड देने में बिल्कुल कंजूस नहीं है बस हमारा ही पात्र उल्टा रखा है। हमें हमारे अंदर की अक्रेशिया को मिटाकर वर्तमान के सुन्दर अध्याय में अपना खूबसूरत नाम अंकित करवा देना है जिसे हमारी आने वाली पीढियां यह कहें कि मुझे आप जैसा बनना है आप ही हमारे रोल मॉडल हैं। यहीं होगी हमारी कामयाबी जब हम दूर बैठे यह सोच रहे होगें कि यह सुनहरी उन्नत पीढियां हम से भी आगें सोचें, लिखें और करें व जियें। जीवन भी हमें नवीनता, उत्साह और कामयाब होने के लिए मिला है क्योंकि एक प्रसन्न हृदय ही दूसरे को प्रसन्नता दे सकता है और हमें हर सफलता हर तरह के प्यार के आनंद के और खुशियों की भरपूरता में जीने व जीने देने की भावना के लिए जिम्मेदारी से उस अस्तित्व ने सौंपा है और हमें हमारी यह जिम्मेदारी बहुत प्रेम और सद्भावना से जीनी है। हमें प्रेम से सराबोर होकर प्रण लेना चाहिए कि अक्रेशिया को मिटाना है और चरम सफलता के पर्याय बनकर सम्पूर्ण मानवता के लिए सुन्दर  और अनुकरणीय जीवन को जीते हुए एक सुखद व शानदार वर्तमान बनाना है जो हमारे उन्नत होने का इतिहास रचेगा। 

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