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कविता : शायद - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

 


शायद...!

किसी रोज़ मेरी आखों में ठहर कर देखो
कि इंतजार की रातें कितनी गहरी होती हैं...
जो तुम न ठहर सको.... तो लौट कर देखो...!
वापसी की कसक कितनी धारदार होती है....!
इनमें से तुम कुछ भी नहीं करोगे...
क्योंकि तुम्हें न हारना पसंद और न ही हराना
क्योंकि तुम्हें न काश! पसंद और न ही शायद!
तुमने सदा ही जीवन को लिखा पर जिया नहीं
हां तुमने पाने को गलत कहा पर न पाकर..
हां तुम यात्री रहे पर न बने खोजी 
हां तुमने चीत्कार लिखी और मैनें खामोशी..
तुमने सिर्फ़ सौंदर्य उकेरा और मैनें तुम्हें..
क्या तुम वो नहीं जो मुझे लिखना था....
पर शायद तुम वो हो जिसे मुझे पढ़ना था....!

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

















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