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विक्टोरिया मेमोरियल = दर्द मेमोरियल

 




विक्टोरिया मेमोरियल नहीं यह दर्द मेमोरियल है -

Victorial memorial = Pain memorial 

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इस समय विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता में नेताजी की याद में प्रोग्राम चल रहा है जिसमें भारत के प्रधानमंत्री व बंगाल की मुख्यमंत्री मौजूद हैं। यह प्रोग्राम इसी जगह होना भी चाहिये और इस जगह की दीवारों में जय हिंद का उद्घोष गूंजना भी चाहिए। क्योंकि भारत ने पूरे दो सौ साल की गुलामी झेली है। यह वहीं असंवेदनशील रानी है जिन्होंने1877 में उस वक्त दिल्ली दरबार लगाकर भारत की औपचारिक महारानी का ताज पहना। वो भी तब, जब भारत का आधे से अधिक हिस्सा भयंकर अकाल से तड़प रहा था। उस वक्त  मद्रास, मैसूर, हैदराबाद और बॉम्बे पंजाब तक उसका प्रभाव था और पूरे 55 लाख लोगों की मौत उन दो सालों में इस अकाल से हुई थी। दरअसल जब से ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से भारत की सत्ता ब्रिटिश सरकार के हाथ में आई थी। तब ये बात चल रही थी कि इंगलैंड के  रानी को भारत की साम्राज्ञी भी घोषित किया जाए पता हो की 1857 के भंयकर विद्रोह से यह लोग भारतियों का कोप देख चुके थे। जिस जगह विक्टोरिया का ये दरबार लगाया गया था। आज वह जगह दिल्ली में बुराड़ी रोड पर निरंकारी सरोवर के पास है। आज की तारीख में उसे कोरोनेशन पार्क कहा जाता है।ये पहला दिल्ली दरबार था और बाकी के दो दिल्ली दरबार 1903 और 1911 में यहीं हुए थे।हालांकि इन तीनों ही सालों में अंग्रेजी राजधानी दिल्ली नहीं कोलकाता थी। दरअसल अंग्रेजों का मानना था कि भारतीय मुगलों की राजधानी दिल्ली को ही अपना सत्ता केन्द्र मानते आए हैं, ऐसे में दिल्ली में ही अपना दरबार लगाना उनके दिलों पर अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव डालेगा। इसी दिल्ली दरबार में पुणे सार्वजनिक सभा के समाजिक कार्यकर्ता गणेश वासुदेव जोशी भी उस दरबार में थे।  गणेश ने शिष्टता के साथ दिल्ली दरबार में अपनी एक मांग रखी, ‘हम महारानी से प्रार्थना करते हैं कि वे भारत को वही राजनीतिक और सामाजिक स्तर प्रदान करें, जैसा कि उनकी ब्रिटिश प्रजा के पास है’।यह मांग उस महारानी ने अस्वीकार कर दी और भारतीयों के मन में दिल में आजादी की ज्वाला धधक उठी। बता दें कि यह गणेश जोशी ही थे जो महाराष्ट्र के  क्रांतिकारी बासुदेव वलवंत फड़के के वकील रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई गिनती नहीं कि इस महारानी की वजह से कितने भारतीय शहीद हुए। कोई गिनती नहीं कि इस आजादी में देश का कितना लहू बहा है तब जाकर यह आजादी हमें हासिल हुई है। नेताजी बोस कहते हैं कि हक न मिले तो छीन लो। कोई हक स्वेच्छा से नहीं देता, हमें छीनना और हासिल करना होता है। आज यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि अंग्रेज चले गये पर अंग्रेजी कानून आज भी चल रहे। विक्टोरिया की सिक्के आज भी लोग पूजा में रख लेते हैं कि शुद्ध चांदी पर यह देशभक्तों के लहू से रक्तरंजित सिक्के किसी पूजा में रखने योग्य नहीं। देखा जाये तो डिवाइड एंड रूल की विध्वंसक पॉलिसी आज भी चल रही है। आज भी क्वीन विक्टोरिया मेमोरियल में लोग उसकी मूर्ति को देखने जाते हैं। आज भी गुलामी की निशानियां देश में सीना ताने खड़ी हैं। पता नहीं क्यों, आजाद भारत में इन्हें संजो कर रखा गया है? इनकी देश में कोई जरूरत नहीं है। इसका नाम victorial memorial नहीं pain memorial होना चाहिए जिसने दर्द के सिवाय क्या दिया। गुलामी से बड़ा दर्द कोई दूसरा नहीं हो सकता।आज देश को बहुत बड़े बदलाव की आवश्यकता है। 



वंदेमातरम् 

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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