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भजन : प्रभु तेरा विरह तुझ से चाहिये

 




तेरा विरह तुझसे चाहिए /हे! नाथ आप वही कीजिए जो आपको रूचिता हो। 


श्री कृष्ण भजन : प्रभु तेरा विरह तुझ से चाहिये 


प्रभु तेरा विरह तुझसे चाहिये 

बस और न कुछ अब चाहूँ मैं

जैसे बिन गाय के बछड़ा तड़पता है

ऐसी तड़प ही अब चाहूं मैं

बस तेरा विरह दर्द चाहूं मैं

परदेश गये साजन के लिए 

जैसे सजनी तड़पती है

बस ऐसे ही तड़पूं तेरे लिये

ऐसा विरह तुझसे चाहिये 

बस और नहीं कुछ चाहूं मैं

जैसे झूले में पड़ा असहाय शिशु 

रोता है टूटकर अपनी माँ के लिए

बस ऐसे ही रोऊँ मैं तेरे लिए 

बस और नहीं कुछ चाहूं मैं

जैसे बिन पानी के मीन छटपटाती है

बस ऐसे ही झटपटाऊं मैं

मेरा रोम रोम तुझको पुकारे प्रभु

मुझे ऐसा विरह तुझसे चाहिये 

रख ले अपनी माया तू

मुझे तेरा विरह बस तुझसे चाहिये 

मेरी निगाहें तुझको ही ढ़ूढ़ें

पलके न छपके कभीं कभी

इंतजार करूं हरपल तेरा

ऐसा विरह दे दो मुझे

बस और नहीं कुछ चाहूं मैं

मेरी धड़कन कृष्ण नाम जाप करे

मेरा चैन विरह, मेरा दर्द विरह 

अबऔर न कुछ मांगू मैं 

मुझे तेरा विरह तुझसे चाहिए 

विरह में विलीन हो जाऊं मैं

गोविंद हरे गोपाल हरे 

श्री कृष्ण हरे गोविंद हरे


_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 


हे! नाथ यह शब्दपुष्पमाला स्वीकार करें। 






भगवान का सच्चा स्मरण ही भजन है।


एक छोटी और सत्य कथा का आनंद लें । एक बार एक अत्यंत बृद्ध जिन्होंने पूरा जीवन हरि नाम संकीर्तन किया और हमेशा धार्मिक सेवा कार्यों में लगे रहे । जब वह बद्रीनाथ केदारनाथ की लंबी यात्रा पर निकले तो उनके अनुयायियों ने कहा, ''बाबा,मौसम ठीक नहीं मत जाओ, उम्र हो गयी है। बाबा ने कहा, ''तीर्थ में हूं मरूं, मेरी तो यही अंतिम इच्छा है, कहकर बाबा जी तीर्थयात्रा को निकल गये। एक तो बृद्धावस्था ऊपर से उस समय वहां आयी भयानक बाढ़ में बाबा फंस गये और बस हरि हरि कृष्णा कृष्णा पुकारते हुए सोचने लगे मेरो छोटो सो कन्हैया बाढ़ में न न न उसे कुछ न हो। बाढ़ के बाद आना प्रभु। कहते कहते बेहोशी में बाबा बड़ी दूर बहते हुए निकल गये। जब आंख खुली तो झाड़ियों में सूखे स्थान पर थे। वह धीरे-धीरे चलते गये। दूर दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा रात में चांद भी न दिख रहा था। वह वहीं एक कंदरा में बैठ कर नामजाप करने लगे। तभी वहां एक बाबा दूधभात लेकर आये और बोले, ''यह खालो, बाबा ।बाबा ने कहा, ''पहले अपना परिचय दो, कौन हो तुम, इतनी रात में..? वह बोला, नाम से क्या करना है तुम भूखे हो खा लो। बाबा ने कहा, ''न, पहले नाम बताओ। तभी भगवान प्रकट हो गये कि हे! भक्त मैं हूं श्री कृष्ण जिसे द्वारिकाधीश भी कहते हैं अनेकों नाम हैं...! वह बाबा, भगवान के चरणों में गिर कप बोले, हे! श्याम सुंदर, तुम्हारे अतिरिक्त इस निर्जन अंधेरे वन में मेरी रक्षा के लिए कौन आ सकता था। हे! नाथ क्या आप इस तरह भी सेवा करते हैं? तो भगवान बोले, जहां कोई दिखता है वहां मैं प्रेरणा कर देता है पर जहां कोई नहीं होता। वहां अपने प्रिय भक्त के पास मैं स्वंय पहुंच जाता हूं। यह भोजन कर लो भक्त सुबह तेरा इंतजाम हो जायेगा। कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये। बाबा ने दूधभात खा लिया और सो गया। सुबह वह दिव्य वर्तन वहां कहीं नही था और पुलिस के कुछ लोगों ने उस बाबा को कंधे पर बैठाकर सुरक्षित जगह पहुंचा दिया और यह फिर रमता जोगी घूमते हुए वृंदावन आ पहुंचे और भगवान की महिमा गाते भगवत भक्ति का प्रचार-प्रसार करते रहे, वृंदावन कुम्भ में जब पूछा गया कि भगवान कैसे लगते हैं तो वह रो पड़े और बोले, वो तो किसी पर भी कृपा कर दें वह बहुत दयालु हैं। जब वह मुझे दर्शन नहीं देते थे तो मैं कहता था मत दे दर्शन बस तेरा भजन करता रहूं तू मुझे दर्द ही दर्द दे। कम से कम तुझे याद तो करता रहूं। भगवान इतने सुन्दर हैं जिनके लिये शब्द ही नहीं है वह बहुत-बहुत सुन्दर है बस इतना ही कहते रहे।दोबारा उन्हें कहीं न देखा जा सका। कहीं एकांत में नटवर की याद में विलीन हो गये होगें। 




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