शिवजी ने स्वयं इन दीवारों का निर्माण किया
जंबुकेश्वर शिव मंदिर, तमिलनाडु -
[इस दिव्य मंदिर की दीवारें भगवान शिव ने स्वंय मजदूरों के साथ मिलकर बनाई थीं]
दक्षिण भारत के तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थापित शिव मंदिर का नाम ‘जंबुकेश्वर मंदिर’ है। इसके बारे में कहानी मिलती है कि इस मंदिर की दीवारें बनवाने के लिए भोलेनाथ स्वयं ही आते थे, इस भाव से कि भक्त और भगवान प्रेमरूप में सदा एक ही हैं। मंदिर को लेकर यह भी कथा मिलती है कि एक बार माता पार्वती ने शिव ज्ञान की प्राप्ति के लिए पृथ्वी पर आकर इसी स्थान पर अपने हाथ से शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी। तकरीबन 1800 वर्ष पहले हिंदू चोल राजवंश के राजा कोकेंगानन ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।
जंबुकेश्वर मंदिर को लेकर एक और कहानी मिलती है। कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने पृथ्वी के सुधार के लिए की गई और हमेशा तप में रहने की वजह को लेकर शिवजी की तपस्या का मज़ाक उड़ा दिया । शिव, पार्वती के इस कृत की निंदा करना चाहते थे पर उन्होंने पार्वती को प्रेमपूर्वक कैलाश से पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने का आग्रह किया कि तप की महिमा आप स्वंय भी महसूस करो। भगवान शिव के निर्देशानुसार अक्विलादेश्वरी के रूप में देवी पार्वती पृथ्वी पर जंबू वन में तपस्या के लिए पहुंची। देवी ने कावेरी नदी के पास वेन नवल पेड़ के नीचे अपने पति के प्रति अनन्य निष्ठा भाव से शिवलिंग बनाया और शिव पूजा में लीन हो गईं। बाद में लिंग अप्पुलिंगम के रूप में जाना गया। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने अक्विलादेश्वरी को दर्शन दिए और उन्हें शिव तपो ज्ञान की प्राप्ति हुई ।
जंबुकेश्वर मंदिर में मूर्तियों को एक-दूसरे के विपरीत स्थापित किया गया है। जिन मंदिरों में ऐसी व्यवस्था होती है उन्हें उपदेशा स्थालम कहा जाता है। क्योंकि इस मंदिर में देवी पार्वती एक शिष्य और जंबुकेश्वर भगवान शिव उनके एक गुरु के रूप में मौजूद हैं। इसलिए इस मंदिर में थिरु कल्याणम यानी किसी का शादी-ब्याह नहीं कराया जाता है। यहां ज्ञान की पूजा होती है।
जंबुकेश्वर मंदिर में भूमिगत जल धारा है। इसकी वजह से यहां पानी की कभी कमी नहीं पड़ती। मंदिर के अंदर पांच प्रांगण मौजूद हैं। मंदिर के पांचवे परिसर की सुरक्षा के लिए विशाल दीवारों का निर्माण किया गया है, जिसे विबुडी प्रकाश के नाम से जाना जाता है, जो लगभग एक मील तक फैला हुआ है और 2 फीट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा है। पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार इस दिव्य मंदिर की दीवारें भगवान शिव ने स्वंय मजदूरों के साथ मिलकर बनाई थीं। चौथे परिसर में एक बड़ा हॉल है और 769 स्तंभ मौजूद हैं। इसके अलावा एक दिव्य जल कुंड भी मौजदू है। तीसरे परिसर में दो बड़े गोपुरम मौजूद हैं। जो 73 और 100 फीट लंबे हैं। इसके तरह बाकी के परिसर भी खास वास्तु विशेषता के लिए जाने जाते हैं। मंदिर का गर्भगृह चौकोर आकार का है। मंदिर के गर्भगृह की छत पर एक विमान भी मौजूद है।
नोट : किसी का बयान था कि भारत में सुई भी नहीं बनती थी.. तो इन मंदिरों की दीवारों पर कारीगरी देखो कि उस समय कितने उन्नत औजार हुआ करते थे और कितनी समृद्ध थी हमारी वास्तुकला की विरासत। भारत महान है और हमेशा रहेगा।ॐ नम: शिवाय 🙏💐भगवान आप सभी का जबर्दस्त अच्छा करें।
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