रक्षाबंधन महापर्व पर सन्नाटा क्यों?
एक समय था जब बहुत बड़ी संख्या में भाई लोग अपने कलाई पर ढ़ेर सारी राखी बंधवाकर गर्व महसूस करते थे और बहनें भी भाइयों और भाइयों के दोस्तों, चाचा, ताऊ, बाबा, गांव भर के लोगों को ढ़ेरसारी राखी बांधकर आनंदित हो जाया करतीं थी। रक्षाबंधन पर हर घर में मेले सा माहौल रहता था । सावन में भाई बहन एक साथ झूला झूलते थे। शाम के समय तालाब पर भुजरियां सिरायीं जाती थीं फिर पूरे गांव में सब से मिलने जुलना होता था । हर त्यौहार पर खूब प्यार बरसता था। पर आज इस आधुनिक युग ने सबकुछ बर्बाद कर दिया । आज कुछ लोग ज्यादा राखी नहीं बल्कि ज्यादा गर्लफ्रेंड पाकर गर्व महसूस करते हैं और कुछ लड़कियां ब्यायफ्रैंड बनाकर। एक वह समय था जब भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी से पूछते हैं कि यह सीता के ही आभूषण हैं ना लक्ष्मण तो लक्ष्मण जी हाथ जोड़कर कहते हैं, मुझे कैसे पता होगा भैया। मेरी नज़रें तो सिर्फ़ माता सीता के चरणवंदन तक ही सीमित रहीं । यह था देवर और भाभी का भैया या पुत्र का पवित्र नाता। जोकि आज किस तरह मटमैला हो चुका है वो किसी से छिपा नहीं है। कुछ अनैतिक लोगों की जहरीला मानसिकता के कारण आज हर रिश्ता स्वार्थ और वासना की भट्टी में जल कर खाक हो चुका है और त्योहार के नाम पर सिर्फ़ वह लोग खानापूर्ति करते नजर आते हैं। वहीं, कुछ लोग राखी के पर्व पर सोसलमीडिया से दूर हो जाते हैं और कुछ लोग फोन बंद कर लेते हैं कि कोई भैया या बहन न बोल दे। आप स्वंय महसूस कीजिए कि जितना हो हल्ला वेलेंटाइन डे का रहता है । उतना रक्षाबंधन का नहीं । ऐसा लगता है पूरा सोसलमीडिया में अचानक सन्नाटा सा छा गया है। दूसरी बात यह है कि आज वैमनस्यता का आलम कोरोना ने चारगुना बढ़ा दिया और लोग अपने घरों में कैद ऑनलाइन त्योहार मनाने को विवश हो गये । कुछ तो हम भारतीय लोग अपनी संस्कृति को भुलाकर बर्बाद हुए, कुछ बर्बाद किया विदेशी संस्कृति ने और दूरियां बढ़ा कर लोगों को मनोरोगी बना दिया इस बेदर्द केरोना ने। हम लोग हमेशा सोचते हैं कि चारों तरफ अच्छाई हो, सच्चाई हो, प्रेम हो, खुशी हो पर हम स्वंय और दूसरों को कितनी खुशी दे पा रहे हैं अपने कार्यों से यह हमें स्वंय अपना निरीक्षण करना होगा और हर त्यौहार की गहराई को समझना होगा कि पूर्वजों ने त्योहारों के माध्यम से सुन्दर नैतिक समाज बनाने हेतु कितनी सुन्दर व्यवस्था की थी जिसे हमें जीवंत रखना होगा।
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
इस वर्ष रक्षाबंधन का त्योहार 22 अगस्त दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस राखी पर कोई भद्रा का साया नहीं है। भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन पर्व हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी यानि रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। इस दिन भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनकी रक्षा का वचन देते हैं।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त (Rakhi Timing 2021)- रक्षाबंधन पर इस बार राखी बांधने के लिए 12 घंटे 13 मिनट की शुभ अवधि रहेगी. ज्योतिषियों का कहना है कि रक्षाबंधन पर इस बार सुबह 5 बजकर 50 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 03 मिनट तक किसी भी वक्त राखी बांधी जा सकेगी. वहीं भद्रा काल 23 अगस्त को सुबह 5 बजकर 34 मिनट से 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।
मान्यता है कि इस दिन गणपति बप्पा और कान्हा जी को राखी बांधने से भाई-बहन के बीच प्यार बढ़ता है।
रक्षाबंधन मंत्र
'येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः
तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे, माचल-माचलः'
इसका अर्थ- इस मंत्र का अर्थ है कि जिस तरह से राजा बलि ने रक्षा सूत्र से विचलित हुए बिना अपना सब कुछ दान कर दिया था, उसी प्रकार का रक्षा सूत्र आज मैं तुम्हें बांध रही हूं। तुम भी अपने उद्देश्य से विचलित हुए बिना दृढ़ बने रहना।
रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथा:
शास्त्रों में रक्षाबंधन से जुड़ी कई कथाओं का वर्णन है, पर इनमें से राजा बलि और माता लक्ष्मी की कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है. धार्मिक कथाओं के अनुसार, पाताल लोक में राजा बलि के यहां वचन में बधे भगवान श्री हरि विष्णु जी की मुक्ति के लिए माता लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधी थी. राजा बलि ने अपनी बहन माता लक्ष्मी को भेंट स्वरूप उनके पति को हमेशा के लिए पाताल में रहने का वाले वचन से मुक्त करने का वचन दिया था. यह यही रक्षाबंधन का ही दिन था। हालांकि, राजा बलि ने श्री हरि को मुक्त करने के लिए ये शर्त भी रखी थी कि नारायण को साल के चार महीने इसी तरह मुझ भक्त के पास में भी रहना होगा. इसलिए सभी भगवान श्री हरि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी यानी चार महीने तक पाताल लोक में निवास करते हैं. इस दौरान मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है। भाई बहन के पवित्र प्रेम रक्षा वचन संकल्प हेतु यह पवित्र रक्षाबंधन त्योहार हमारे महान भारतवर्ष में प्रतिवर्ष बहुत धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें ग्रामीण इलाकों में शाम के समय जौ, गेहूं की भुजरियां यानि नवअंकुरों छोटे पौधों को पुरे गांव में एक दूसरे को गले मिलकर देने का रिवाज़ है जोकि अब कोरोना काल में शायद सम्भव नहीं हो सकेगा। जो भी हो अपने पड़ोस, मोहल्ले, समाज, देश से दिल से दिल का रिश्ता महान है जिसे कोई कोरोना बाधित नहीं कर सकता। जय सनातन संस्कृति की जय🙏💐आप सभी बेहतरीन भाइयों और प्यारी बहनों को रक्षाबंधन महापर्व की अग्रिम हार्दिक बधाई और हृदय से असीम शुभकामनाएं ।भगवान लक्ष्मी नारायण आपकी और आपके परिवार की सदैव रक्षा करें। 🙏💐
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