अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानी कब्ज़ा?
[अफ़गानिस्तान की बर्बादी पर असभ्य पाकिस्तान इतनी भी खुशी ना मनायें क्योंकि वक़्त का पहिया उसे भी अपनी गिरफ़्त में लेकर उसे उसकी ही धुरी के बाहर फेंक सकता है।]
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक
तालिबान-अफगानिस्तान को लेकर दोहा में क्षेत्रीय सम्मेलन में भारत ने स्पष्ट कहा कि - बातचीत से ही सुलझ पाएगा संघर्ष। आज अफगानिस्तान की दुर्दशा पर पूरा विश्व सहमा हुआ है कि अफ़गानिस्तान में जो क्रूरता की सारी हदें पार हो चुकी हैं वो इस कलयुग का भयावह रूप है। अब यह और कितना भयानक होगा। इसे सम्पूर्ण विश्व की चुप्पी खुली आखों से देख रही है। बता दें कि तालिबान भी चीन की विस्तारवाद की बदनीति से प्रभावित होकर बाढ़ के पानी रूपी तबाही की तरह आगें बढ़ रहा है। कल तक जो हथियार तालिबान पर चलने थे, जो सेना तालिबान के खिलाफ़ तैयार होती थी, आज उन सब पर तालिबान का कब्ज़ा है। पूरी दुनिया में मंथन चल रहा है कि क्या मुठ्ठी भर आतंकी पूरा देश कब्ज़ा सकते है? यह बात पूरी तरह हज़म नहीं होती कि राष्ट्रपति भाग गये और अफ़गानी चुप रहे? यहां तो पूरी की पूरी दाल ही काली नजर आ रही है। यह वैश्विक षड्यंत्र है या वैश्विक जटिल राजनीत या कहें तो बदनीति। जिसमें सब मिले लगते हैं। उस पर से पाकिस्तान की खुशियों का बिखेरना यह साबित करता है कि यह आतंकी मुल्क है और यह जिस चीन और तालीबान पर इतना इतरा रहा है एत दिन समय का पहिया उसे अपनी गिरफ़्त में भी लेकर उसे उसकी धुरी के बाहर भी फेंक सकता है।
सूत्रों के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान के रणनीतिक रूप से अहम समांगन प्रांत की राजधानी को भी तालिबान ने सोमवार को अपने कब्ज़े में ले लिया।इसी दौरान अफ़ग़ानिस्तान सरकार समर्थित एक कमांडर ने भी तालिबान के पक्ष में जाने का फ़ैसला किया।उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान तेज़ी से बढ़ रहा है। कहा जा रहा है कि अशरफ़ ग़नी सरकार पर इस्तीफ़े का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा कर दी है। तभी से तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान में प्रभाव लगातार बढ़ा है। अब तक 90 फ़ीसदी से ज़्यादा अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो चुकी है। सैनिकों को बुलाने को लेकर दुनिया भर में राष्ट्रपति बाइडन की कड़ी आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि अमेरिका ने 20 साल तक उस लड़ाई को लड़ा, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला और अफ़ग़ानों को बीच मँझधार में छोड़कर निकल गया। सवाल उठता है कि क्या अमेरिका यह हिंसा पसंद करने लगा है या फिर वह आतंकवाद व क्रूरता के पक्ष में आ खड़ा हुआ है। कुछ राजनीति विचारकों का यह भी मानना है कि अमेरिका और तालीबान में भारी-भरकम कोई गुप्त डील हुई है। यह चर्चा इसलिए गरम है क्योंकि मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी के फ़ैसले का बचाव किया और कहा कि उन्हें इसके लिए कोई पछतावा नहीं है। ऊपर से बाईडन का बयान यह है कि 75 हज़ार तालिबानी लड़ाके तीन लाख अफ़ग़ान सैनिकों पर भारी नहीं पड़ेंगे। इस पर तालिबान का बाइडन को जवाब- ‘चाहें तो दो हफ़्तों में पूरे अफ़ग़ानिस्तान का कंट्रोल संभाल सकते हैं’। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार तालिबान के अधिकारी शहाबुद्दीन दिलावर ने एक अनुवादक के माध्यम से यह भी कहा, "हम सभी उपाय करेंगे ताकि 'इस्लामिक स्टेट' अफ़ग़ान क्षेत्र में काम न करे और हमारे क्षेत्र का इस्तेमाल हमारे पड़ोसियों के ख़िलाफ़ कभी नहीं किया जाए।'' तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने उसी समाचार सम्मेलन में कहा कि वे जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करेंगे और सभी अफ़ग़ान नागरिकों को इस्लामी क़ानून और अफ़ग़ान परंपराओं के ढाँचे में अच्छी शिक्षा का अधिकार होगा। दिलावर ने कहा, "हम चाहते हैं कि अफ़ग़ान समाज के सभी प्रतिनिधि, एक अफ़ग़ान राष्ट्र के निर्माण में भाग लें।'' 20 साल अफ़ग़ानिस्तान में बिताने के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी फौजें हट रही हैं और इसी कारण देश में नए इलाकों को तालिबान के कब्ज़े में लेने में अचानक तेज़ी देखी जा रही है। इन दोनों देशों के बीच तुर्की भी बहती गंगा में हाथ धोने की फिराक में है यानि तुर्की में बहुत से लोग इसे एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं ताकि इस क्षेत्र में वो अपना रसूख बढ़ा सके और अमेरिका के साथ उतार-चढ़ाव भरे रिश्तों को बेहतर बनाया जा सके। अब बात आती है कि आखिर! तालिबान के पास इतनी ताकत कैसे? तो जवाब है ''बेशुमार दौलत''। अंग्रेजी समाचार वेबसाइट 'इंडिया टुडे' की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 का तालिबान 1990 के तालिबान से काफ़ी अलग दिखाई देता है। तालिबान के पास एक दम नयी तकनीक के हथियार और आधुनिक एसयूवी गाड़ियां आ गई हैं। तालिबान के उग्रवादी जो कपड़े पहनते हैं वो एकदम नए और साफ सुथरे दिखते हैं। जबकि पहले की वेशभूषा और उनका रहन-सहन कबीलों की तरह था। हालांकि तालिबान की सोच या कहें विचारधारा अभी भी पहले जैसी ही है। उसमें कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ है। केवल मुखोटा चैंज हुआ बाकि असली सूरत वही की वही है 'क्रूर'। जिसकी बातें विश्वास के काबिल कतई नहीं है।
फोर्ब्स के मुताबिक तालिबान का सालाना कारोबार तकरीबन 400 मिलियन डॉलर आंका गया था। साल 2016 में तालिबान काफी कमजोर था। समय के साथ-साथ उसकी ताकत और पैसों के खजाने में भी वृद्धि हुई।रेडियो फ्री यूरोप/रेडियो लिबर्टी ने नाटो की खुफिया रिपोर्ट के हवाले से तालिबान की असल संपत्ति का खुलासा किया। इस रिपोर्ट को देखकर समझा जा सकता है कि साल 2016 के मुकाबले तालिबान की संपत्ति में काफी ज्यादा इज़ाफा हुआ है। रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2019-20 में तालिबान का सालाना बजट 1.6 अरब डॉलर बताया गया। जो साल 2016 के मुकाबले 400 फीसदी ज्यादा है।इस रिपोर्ट में तालिबान को कहां-कहां से पैसा आता है उसकी भी जानकारी दी गई है। बता दें कि माइनिंग से 464 मिलियन डॉलर, मादक पदार्थों की तस्करी से 416 मिलियन डॉलर, चंदे से 240 मिलियन डॉलर रुपए कमाता है। इसके अलावा तालिबान अलग-अलग लोगों से 249 मिलियन डॉलर, टैक्स के नाम पर 160 मिलियन डॉलर औऱ रियल स्टेट से 80 मिलियन डॉलर की कमाई करता है। नवीनतम अमेरिकी सैन्य खूफिया आकलन से पता चलता है कि काबुल 30 दिनों के भीतर विद्रोहियों के दबाव में आ सकता है और अगर मौजूदा रुख जारी रहा तो तालिबान कुछ महीनों के भीतर देश पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर सकता है। यदि तालिबान यही गति बनाए रखता है तो अफगान सरकार को आने वाले दिनों में पीछे हटने और राजधानी और केवल कुछ अन्य शहरों की रक्षा के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।बता दें कि तालिबान ने शुक्रवार को चार और प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा करते हुए देश के समूचे दक्षिणी भाग पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और अब वह धीरे-धीरे काबुल की तरफ बढ़ रहा है। दक्षिणी भाग पर कब्जे का मतलब है कि तालिबान ने 34 (कंधार) प्रांतों में से आधे से ज्यादा की राजधानियों पर अपना नियंत्रण बना लिया है। इसके अलावा कई प्रांतों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी बंदी बना लिया है।आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक एक राजनीतिक हल निकालने की कोशिश में भारत की अहम भूमिका है। तालिबान को लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं, मगर अफगानिस्तान में शांति की हर कोशिश का भारत ने समर्थन किया है। वहीं, अफगानिस्तान में भारत द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं को लेकर तालिबान की तरफ से बयान जारी किया गया है। इसके साथ ही तालिबान की तरफ से भारत को अफगानिस्तान में सैन्य मौजूदगी के रूप में शामिल न होने की चेतावनी भी दी गई है। तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद सुहैल शाहीन ने कहा है कि हम अफगानिस्तान के लोगों के लिए किए गए हर काम की सराहना करते हैं, जिसमें बांध, राष्ट्रीय और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं। कुछ भी जो अफगानिस्तान के विकास, पुनर्निर्माण और लोगों के लिए आर्थिक समृद्धि के लिए किया जा रहा है वो तारीफ के काबिल है। तालिबान ने साफ किया है कि हमारी तरफ से दूतावासों और राजनायिकों को कोई खतरा नहीं है। हम किसी दूतावास या राजनायिक को निशाना नहीं बनाएंगे। हमने अपने बयानों में कई बार ऐसा कहा है, ये हमारी प्रतिबद्धता में शामिल है। यह सच है कि भारत के सभी देशों से अच्छे सम्बन्ध हैं। अफ़गानिस्तान हो या तालिबान भारतियों को डरने की जरूरत नहीं है फिर भी सुरक्षा कारणों से भारत सरकार ऐड़ी चोटी के जोर से अपने सभी नागरिकों को अफ़गानिस्तान से निकालने में लगी है। क्योंकि विश्व भर में प्रत्येक भारतीय की सलामती को लेकर भारत सरकार भी प्रतिबद्ध और कृतसंकल्पित है। अब कंधार पर भी कब्ज़ा होने के बाद अब पूरे विश्व में यह कयास लगाये जा रहे हैं कि अब तालीबान ने अफगानिस्तान में जबर्दस्त सेंधमारी कर दी है यानि शेर के मुंह में खून लग चुका है तो अब वह रूकने वाला नहीं है। हो सकता है पूरे ही अफ़ग़ानिस्तान पर तालीबानी कब्ज़ा हो जाये क्योंकि क्रूरता से यह सम्भव भी है पर ताज्जुब इस बात का है कि तालिबान की बहुत पुरानी इस क्रूर बदनीति पर यूनाइटेड नेशन और विश्व के सभी 57 इस्लामिक देशों ने चुप्पी क्यों साध रखी है? क्या अफ़गानी उनके मुस्लिम भाई-बहन नहीं? अब कहां है क़ौम के नाम पर एक होने का रिकार्ड? अब इस तरह के असहिष्णु माहौल को देखकर ऐसा ही लगता है कि इस हैवानियत को जन्म देने वाली इस क्रूर राजनीतिक सत्तालोलुप 'कलयुगी मानसिकता' के चलते नैतिकमूल्यों का पूरी तरह नाश हो चुका है और आने वाले समय में शांति और अभय की गोद पाने के लिए हम पृथ्वी वासियों को ''प्रेम'' और ''मानवता'' जैसे दिव्य गुणों को स्वंय में खोजना होगा क्योंकि इसके अलावा बाकि सबकुछ क्रूरता से पाया जा सकता है।
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