रजाई में दिशायें _ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
रजाई में दिशाएं थीं, सिकुड़ी पड़ीं,
धुंध बाहर से निहारता, कराह रहा।
हे! सूर्य देव जरा चमको,
वो तिमिर का पंक्षी
कांपता फड़फड़ा रहा।
कल मिली थी पास
वाले बाबा से, बटौरते थे
वो नित्य कूड़ा-कचरा
हम ही मक्कारों का
फैलाया हुआ..
बोले! कूड़ा भी इस
निष्ठुर निरंकुश ठंड से हार गया
और कल इसी सड़क पर एक
नवजात शिशु
जिंदगी से जंग हार गया..
हमने अश्रुपूर्ण नयनों से
एक सवालिया निशान
उनकी तरफ़ बढ़ा दिया
बोले, मां बेचारी पगली,
उसकी भिखारन थी..
बाजार से चाय-बिस्किट
मांग खाकर सिर्फ़
श्वासों से जिंदा थी..
रात कोहरे की चादर तले
उस गर्भवती से दरिंदगी हुई..
सुबह तड़के उसे
नवजात बेटी हुई...
निर्दयी सर्द हवाएं,
उसे सुरसा बन लील गयीं...
रही बची कसर, तब पूरी हुई
जब सुबह कई अखबारों में
एक बड़ी फोटो सहित
खबर छपी
उस दरिंदे ने दी थी....
समस्त देशवासियों को
बेटी दिवस की
हार्दिक बधाई...!
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
24 जनवरी 2022
Mon. 3:44 PM
No comments