यहां हुई जीरो की अद्भुत खोज
आदिवराह मिहिर भोज प्रतिहार के काल में निर्मित ग्वालियर के चतुर्भुज मंदिर में शून्य का प्राचीनतम शिलालेख मिला था। ग्वालियर किले में सुशोभित भगवान श्री हरि विष्णु जी को समर्पित यह मंदिर सन् 876 ईस्वी में बनाया गया माना जाता है।
ग्वालियर किले की मजबूत , सुदृढ़ , रंगीन और खूबसूरत दीवारों से नजर हटके अगर कहीं रूकती है तो वो है चतुर्भुज मंदिर जिसे कभी चट्टान काटकर बनाया गया था लेकिन मंदिर की खासियत इसकी बनावट या खूबसूरती नहीं बल्कि इसके अंदर की दीवारें हैं जो एक ऐसा "तथ्य" समाहित किये हुए हैं जिस पर भारत गर्व का अनुभव करता है। सभी को पता है कि स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो के धर्म सम्मलेन में सन 1893 में जीरो को आधार बनाकर एक ओजस्वी , ऐतिहासिक और लंबा भाषण दिया था जिसे आज भी बहुत याद किया जाता है। बहुत सम्मान की द्रष्टि से भी देखा जाता है। ये जीरो ही है जिसने चतुर्भुज मंदिर को इतना विशिष्ट बना दिया और विश्व के लिए धरोहर के रूप में एक स्थान पा लिया। कार्बन डेटिंग विधि के माध्यम से ये पक्का हुआ है कि चतुर्भुज मंदिर की अंदर की दीवारों पर बना जीरो , विश्वभर में सबसे प्राचीन जीरो है। इसके अलावा वियतनाम और पाकिस्तान के पेशावर में भी इस तरह की आकृतियां पाई गयी हैं जिन पर जीरो की आकृति बनी हुई है।
साक्ष्यों के आधार पर बताया जाता है कि जीरो का सबसे पहले उपयोग नागवंश के शासन काल में नौवीं शताब्दी में किया था। जीरो के बारे में जो भी प्रमाण मिलते थे। लेकिन कोई तारीख अब तक खोजी नहीं जा सकी। वहीं ग्वालियर का शिलालेख भारत में जीरो के प्रयोग का तारीख समेत लिखित प्रमाण है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जीरो के बारे में भले ही दुनिया की दूसरी सभ्यताएं जानती थीं।
पहले 10 से आगे के अंकों को लिखने के लिए अलग टाइप का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे 11 लिखना होता थाए तो 101 लिखा जाता था। 12 के लिए 102 लिखा जाता था। लेकिन भारत में ही धीरे.धीरे लिखने की पद्धति विकसित हुई और अंकों को व्यवस्थित क्रम में लिखा जाने लगा।
2- इतिहासकार फिलिप जेण्डेविस ने भी अपनी पुस्तक द लार्ज नंबर्स में शून्य की खोज ग्वालियर में होने की पुष्टि की है।
3- ग्वालियर के इतिहासकार प्रो. एके सिंह व हरिहरनिवास द्विवेदी ने भी अपनी पुस्तक में जीरो संबंधी तथ्य पेश किए हैं।
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