टीवी डिबेट में चीखने की हक़ीक़त
टीवी डिबेट में आकर एक दूसरे पर ज़हर उगल कर देश के बच्चों को उकसायेगें। डिबेट खत्म होते ही भाई-भाई बन जायेगें। ऊपर वाले से डरो। सारे झगड़े की जड़ टीवी डिबेट। मैं पूरी ईमानदारी से स्पष्ट कहतीं हूँ कि टीवी पर धार्मिक डिबेट बिल्कुल बंद होनी चाहिए तब जब कोई मामला कोर्ट में है। टीवी पर चिल्लाने से क्या होगा?अब आप यह सोच रहे होगें आखिर! टीवी वाले ऐसा क्यों कर रहे हैं? तो उसका जवाब है कि जिस तरह नेता भी चुनाव में पक्ष-विपक्ष आपस में लड़ते - गालियाँ देते हैं और चुनाव जीतने के बाद साथ मिलकर नाश्ता करते हैं। जनता की भावनाओं को जो नेता जितना कैश कर ले, बस वही जीत जाता है और इन नेताओं के लिए हम आप सब मात्र वोटर हैं। नेताओं की सात पीढ़ियों के लिए धन कमाने की ज़िंदा मशीन । नेता लोग का धर्म किसी भी तरह सिर्फ़ वोट को हासिल करना है। आज शिव से बड़ी सत्ता है। मतलब ऊपर वाले से भी बड़ी इनके लिए सत्ता पर काबिज़ हुए रहना है। वो भी जनता के हितों को रौंद कर। यहां में कुछ तथाकथित भ्रष्ट नेताओं की बात कर रही हूं। आज टीवी डिबेट के ध्वनि प्रदूषण ने समाज रूपी शांत सरोबर में घृणा के लहरें पैदा करके, पूरा जल अपवित्र कर दिया है। लोगों के बीच ऐसी घृणा फैलायी गयी जिससे इंसान, मात्र एक चुनावी पार्टी कार्यकर्ता भक्त और चमचा बन कर रह गया। ये सुन्दर और दुर्लभ उपाधि हमारी आज की राजनीति ने हम युवाओं को दी हैं। क्या इसी दिन के लिए महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश आजाद करवाया था? यह सवाल आज के तथाकथित नेताओं को निस्वार्थ में नज़र नहीं आता। क्या मंदिर और मज़ार तोड़ने का ही नाम विकास है? समय आ गया कि धार्मिक राजनीति से चार कदम बढ़कर रोज़ी-रोटी के अवसर तलाशें जायें। समान नागरिक संहिता लागू करके समानता का वातावरण बनाया जाये और सभी कानून बेहद ही सख्त करके सख़्ती से लागू कर दिये जाये। साथियों! आज टीवी डिबेट में सकारात्मक बातें ना के बराबर की जाती हैं, रोजगार पर कभी जोरदारी से डिबेट नहीं होती जिससे पेट भरे, युवाओं का जीवन खुशहाल बने। बस आज की तथाकथित डिबेट भावनाओं से सीमारहित होकर चप्पल, जूते चलाकर खेला जाता रहा है। आज भी बिल्कुल यही टीवी डिबेट में हो रहा है। बता दें कि चिल्मचिल्ली करके टीवी चैनलों की TRP (Television rating point) बढ़ाने का काम अनिवार्य होता है। जिस चैनल की TRP सबसे ज्यादा होती है। उस टीवी चैनल के पर्टिक्युलर शो के बीच में विज्ञापन (advertisement) दिखाने के उन्हें ज्यादा पैसे मिलते हैं। मतलब कम्पनियों को अपने प्रोडक्ट के प्रचार हेतु ज्यादा भुगतान करना होता है। और जिस टीवी चैनल की TRP कम होती है। मतलब जो चैनल बिल्कुल शांत खबर दिखाता है । दुर्भाग्य है कि लोग वो चैनल देखते ही नहीं। उसकी टीआरपी कम होती है। उदाहरणार्थ आज दूरदर्शन कितने लोग देखते हैं? दूरदर्शन पुराना सटीक न्यूज दिखाता है पर नहीं। लोगों को भी चिल्मचिल्ली हंगामा देखने की गंदी लत लग चुकी है। यह भी एक प्रकार का घातक मानसिक नशा है जोकि विकार बनता जा रहा है। साथियों! यह चिल्लमचिल्ली एक बहुत बड़ा करोड़ों का बिजनेस हैं। चैनलों के मालिक बहुत बड़े पूँजीपति व्यापारी हैं। यहां सब कुछ स्क्रिप्टिड होता है कि ज्यादा टीआरपी बढ़े। ज्यादा माल आये। टीवी ऐंकरों के ऊपर चैनल मालिकों(पूँजीपतियों) का दबाव होता है कि माल कमाओ, कुछ हाय तौबा, चांय चांय करवाओ । जिससे चैनल ज्यादा देखा जाये। टीवी पर सास बहू सीरियल में जो बहू ज्यादा रोये / चीखे चिल्लाये वो नाटक खूब चले, नकली आँसुओं का करोड़ों का कारोबार है यह। फिल्में भी वही बनायीं जा रहीं जिसमें जनता की भावनाएं रो पड़ें, आत्मा चीत्कार उठे। हर चीख और आँसू का करोड़ों का बिजनेस है साथियों!
यूट्यूब पर भी यही होता है और यूट्यूबर करोड़पति हो गये। शॉर्ट वीडियो देखते हो? फेसबुक इंस्टा पर यह भी मोटा पैसा कमाने का माध्यम है। साथियों! पैसा कमाना अच्छी बात है पर अनावश्यक चीखना, चिल्लाना, टीवी देखने वालीं गर्भवती महिलाओं, वयोवृद्ध लोगों, छोटे बच्चों को तनाव देना, भड़काना बहुत गलत बात है, पाप है। आप देखिए! अक्सर टीवी डिबेट का वही समय होता है जब लोग शाम का भोजन कर रहे होते हैं। खासकर गांवो में। उसी समय चिल्लमचिल्ली सुनते हुए भोजन करना.. यह रोज की आदत में शामिल हो गया है। आप भोजन में घृणारूपी ज़हर खाने को बाध्य हो रहे हैं। भविष्य के लिए इस तरह की तनावपूर्ण डिबेट बिल्कुल उचित नहीं है। सच कहूँ तो इंसान पैदाइशी बुरा नहीं होता, उसे बुरा बना रही है आज की घटिया स्वार्थी राजनीति और उससे उपजा तनावपूर्ण माहौल। साथियों! हम सबको जागना होगा। आप सभी को ढ़ेर सारा सम्मान । जय हिंद ।
उक्त: मात्र प्रतीकात्मक फोटो
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