वीरान खंडहर में जो देखा
प्रेम बिना एक गली सिसकती देखी मैने
प्रेम बिना एक कली सिकुड़ती देखी मैने
दुनिया जिसे भुतवा हवेली कहती रहती
उस खिड़की से एक पीर सी रिसती देखी मैने
प्रेम बिना एक गांव हुआ था वीरान
प्रेम बिना एक रात कराहती देखी मैने
तभी दिखी मुझे किसी की परछाईं
मानों बीते कल की दर्द-ए-जीवनी देखी मैने
बैठी थी वीराने में एक पगली पहेली देखी मैने
"पगली" बोली रात बिताना साक्षात् मौत है तेरी
मुर्दों पर क्यों बर्बाद जिंदगी हो तेरी । जा लौट जा
मैंने सामान बांधा और करने लगी वापसी
बैग से दो कम्पटों के पैकिट लगे झांकने
मैनें कहा ओ! अम्मा लो कम्पट खालो
मेरी याद को इसी उपहार में समा लो
यह सुन पगली मुस्कुराई और कुछ बुदबुदाई
फिर न दिखी कहां को गयी.....
गांव के लोगों ने मुझे रोक कर टोका
क्या उस मनहूस गांव से लौट रही हो?
क्या वहां की भयावह कथा जानती हो?
सचमुच मुझे नहीं पता पर सुननी वो कहानी
बुजुर्ग ने कहा पहले आग जला लूं
उस बुढ़िया की आत्मा से तुम्हें बचा लूं । अब सुनो!
जंगल के इस गांव में थी बुढ़िया की झोपड़ी
न था उसका कोई इकलौती नातिन के सिवाय
एक दिन नातिन के कुछ सिक्के चारपाई के नीचे लुढ़के
जिन्हें खोजने वो डरते हुए चारपाई के नीचे घुस गयी
वहां उसे दिखी एक छोटी सी बकसिया
उसने खेल - खेल में खोल दी बुढ़िया की बॉक्सिया
उस बॉक्स के अंदर थी बुढ़िया की पुरानी पुटरिया
उसने कौतुहल से पुटरिया की गांठ खोली
उसमें चमक रही थी हड्डी की चाबी और कुछ मालाएं
नातिन ने पहनी मालाएँ, चाबी को लिया दांतों से दबाय
तब उसमें रखे शीशे से जों अपना मुख देखा
चीख कर वो तुंरत हुई कुछ यूं बेहोश
मानों काले विषधर ने हो उसे कांटा
सांझ को बुढ़िया ने झोपड़ी में किया प्रवेश
नातिन की हालत देख उड़ गये उसके होश
बुढ़िया ने नातिन से तिलिस्मी चाबी ली खींच
तोड़ दी चाबी और तोड़ीं सब मालाएँ
जमीं पर बिखरे थे मालाओं के मोती
और चेहरे पर बिखरे थे दर्द के अश्रुमोती
बुढ़िया ने रोते-रोते कुछ पूजन सामग्री निकाली
कांपते होठों से की शुरू कर अघोर मंत्र साधना
तभी उसे याद आयी इक घोषणा की अवेहलना
वो मंत्र रोक कर उन ख्यालों में खो गयी..
कि हां मुझे मिली है मेरे लालच की सजा
एक रात जंगल में प्यासे अघोरी को
मैंने पानी के बदले मांग लिए थे अचूक मंत्र
मुझे रात्रि जंगल में लकड़ी काटते कोई न देखे
मैं हो जाऊं अदृश्य मुझे ऐसे मंत्र दे दे
अघोरी ने दिया एक बॉक्स
घोषणा में यह कहा, सुन ओ! लालची बुढ़िया
इस धन को जरूरतमंदों पर करना खर्च
और मंत्र शक्ति से न करना तेरे खून पर प्रयोग
ग़र तूने अपने खून पर किया प्रयोग
तो छायेगा तुझ पर डोकरी बड़ा भारी प्रकोप
तूने बुढ़िया मेरी प्यास का व्यापार किया है
चल भाग तूने अपना भविष्य बर्बाद किया है
तभी बुढ़िया को इकदम चेतना आयी..
उसने देखा भीड़ उसे हिला रही थी..
कि 24 घंटे हो गये तुम बेहोश पड़ी हो
नातिन मर गयी और तुम ऐसे सो रही हो
कर दिया गांव वालों ने नातिन का अंतिम संस्कार
वरना मृत देह का होता तिरस्कार
यह सुनकर बुढ़िया बिलख उठी
वह पागलों की तरह नदी-नदी खेत-खेत दौड़ी
पूरे गांव को बद्दुआ देती सिर पटकती दौड़ी
फिर एक दिन उसको पता चला
कि ग्राम प्रधान ने काले जादू वास्ते
उसके नातिन के शव को कुएं में किया दफ़्न
बुढ़िया चीखते हुए ग्राम प्रधान के महल पहुंची
प्रधान ने बुढ़िया के मुंह पर कपड़ा बांध दिया
बुढ़िया की हाय से प्रधान बर्बाद हुआ
उस रात प्रधान की पत्नी बेटी ने दम तोड़ दिया
डर के कारण प्रधान ने अपना महल छोड़ दिया
सुबह ग्रामीणों ने उसी कुएं में प्रधान को मरा पाया
प्रधान के महल के उसी कुएं पर बुढ़िया बैठी रहती
दिन भर रोती पर किसी से कुछ न कहती....
एक दिवस बुढ़िया को सांप ने था काटा
गांव के लोगों ने बुढ़िया को किया अनदेखा
तड़प-तड़प कर बुढ़िया तो मर गयी..
गांव वालों को बद्दुआओं से शांति मिल गयी
एक रात लोगों को कुएं पर बुढ़िया रोती दिखी
फिर गांव में कई बार आग लग गयी
शादियों में दिखने लगे बुढ़िया के साये
भय से लोग बहुत घबराये....
धीरे-धीरे ग्रामवासी पलायन कर गये
गांव वीरान, प्रधान महल हुआ खंडहर
सबके डर की वजह वही पुराना खंडहर
अब पता नहीं बुढ़िया का बदला पूरा हुआ या नहीं
पर लोगों का भय कहता है बुढ़िया आज भी वहीं
मैंने कहा दादा कथा तो सचमुच विकट थी
सुन कर रोंगटे खड़े हो गए... पर भूल कर आगे बढ़ो
बुजुर्ग बोले नहीं यह गल्ती कर भी मत देना
खड़हर से लौटी हो एक हवन करके जाओ
उस पगली बुढ़िया की आत्मा से पिंड छुडाओ
(मात्र प्रतीकात्मक फोटो हैं। )
हमने कहा वहां एक पगली अम्मा मिलीं थीं मुझे
प्यारी कम्पट वाली अम्मा....!
इतना सुनकर वो बुरी तरह सहमे, बोले
घबरा के बोले कि वही पगली बुढ़िया ही चुडैल
पैर की तरफ़ देखती तो उल्टे पैर दौड़ती....
मैंने कहा दादी जी!
मैंने उन अम्मा की सिर्फ़ आखों में था देखा. ...
सच कहूं तो प्रेम बिना एक अतृप्त कहानी देखी मैंने
उस पगली अम्मा में एक भूल पुरानी देखी मैने
हाँ! दादी-नातिन प्रेम की परिभाषा देखी मैंने
उस पगली अम्मा मैं एक दया महकती देखी मैंने।
हाँ! अघोर पथिक पश्चात्तापित तपस्विनी देखी मैने
यह कहकर मैं आगें बढ़ी...
गाड़ी अपनी रफ्तार से चली जा रही थी
शीशे से अस्ताचल सूर्य को निहारे जा रही थी
तभी गाड़ी के ब्रैक लगे...
हमने कहा, गाड़ी क्यों रोक दी?
ड्राइवर ने कहा कि ढ़ावे पर कुछ खा लें
ढ़ावे पर देखा कि उन्हीं बुजुर्गों की फोटो लगीं
हमने पूछा यह लोग तो अभी हमें मिले थे
कह रहे थे हवन करके जाओ, पूरी कहानी सुनाई
ढ़ाबे वाला बोला, "दद्दू को दस वर्ष बीत गये मरे।"
यह सुनकर पूरा दिमाग घूम गया...
उसने पूछा कि दद्दू किस बात पर जोर दे रहे थे
हमने कहा कह रहे थे गांव में अंदर चलो हवन करें
वह बोला, वह भूत अपनी दुनिया में ले जाते
वहां है अच्छी - बुरी आत्माओं का डेरा...
जो बचे भगवान का चेला जो मरे वो उनका चेला
तभी मुझे किसी ने जबर्दस्त तरीके से हिलाया
मैंने सोचा फिर कोई मिलेगा कहेगा ढ़ावा भी भूतानी
यह सोच कर मुझे लगा कि क्या मैं सपनों में फंसी हूँ
या सपने में सपना, सपने में सपना देख रही हूँ
मैं जाग गयी थी.... पर मुझे जगाया किसने
उस दिन तो घर में कोई था ही नहीं.. यह क्या था?
उन सपनों के मकड़जाल से मुझे बचाया किसने?
क्या सपनों में भी दिव्य शक्तियां मदद करतीं हैं?
यह सवाल मेरे दिल-ओ-दिमाग में कौंधता रहा
सोचा! इस कहानी को भूल जाना ही सही होगा
साथियों!
जीवन है रहस्यों का थैला....
जितना जाना उतना अधूरा....
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
07/01 /2023 शाम 5:17
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