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22 अप्रैल : पृथ्वी दिवस पर विशेष

 


पृथ्वी की सहनशीलता पर कुठाराघात ? 


[ हमें पेड़ लगाने ही होगें, हम स्वार्थी इंसानों के पास और कोई विकल्प नहीं] 



- आकांक्षा सक्सेना, न्यूज एडीटर सच की दस्तक 

साथियों! जब भी पृथ्वी शब्द सुनती हूं तो मुझे भगवान श्री वराह की कथा याद आती है कि कैसे भगवान श्री हरि विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी माता का उद्धार किया था। हमने जबसे याद सम्भालीं है तब से यही सुनते चले आ रहे हैं कि पृथ्वी हमारी माता है और सुबह जागते ही पृथ्वी पर पांव रखने से पहले पृथ्वी माता के पांव छूओ। यह सिखाती है हमें हमारी महान भारतीय संस्कृति पर पूर्वजों ने कितना कुछ सिखाया पर अफसोस! आज सबकुछ आधुनिकता की भेंट चढ़ गया। हमारे धार्मिक ग्रंथ कहते हैं कि हम इंसानों को तीन ऋण, 1.देव ऋण, 2. ऋषि ऋण और 3. पितृ ऋण को चुकता यानि उऋण कर के ही  संसार से मुक्ति प्राप्त होती है। पर आज जो हम इंसानों ने अपनी हरकतों से जिस तरह पृथ्वी को संकट में डाल रखा है तो यह कहना गलत न होगा कि 4.पृथ्वी ऋण से भी उऋण होना हमारी प्रतिबद्धता होनी चाहिए । यानि पृथ्वी की रक्षा जागरूकता में हम इंसानों को कुछ समय देना ही होगा और एक जिम्मेदार पृथ्वीवासी होना सिद्ध करना होगा। 

आज हमारी महत्वाकांक्षायें अंतरिक्ष के साथ-साथ पृथ्वी माँ का भी कलेजा चीरती हुई दिखाई पड़ती है कि आज जंगल न के बराबर बचे हैं। एक समय था हर भारतीय चंदन लगाता था पर आज चंदन की लकड़ी के दर्शन दुर्लभ हैं। जरा सोचो! कि जब वन नही रहे तो शुद्ध वायु नही रही और भूक्षरण बढ़ा, वर्षा की अनियमितता दिखी और रही बची कसर हम इंसानों की अंतरिक्षचीरतीऔर हृदयभेदती क्रूर असंवेदनशील महत्वाकांक्षा के परिणामस्वरूप वर्तमान में चल रहे भयंकर युद्धों ने पूरी की हुई है। जी हाँ हम उसी रूस-यूक्रेन युद्ध की बात कर रहे हैं जोकि अभी तक जारी है। उधर, चीन और ताइवान में भी जंग की आहट आने लगी है। इस्राइल और ईरान पहले से ही भिड़े हुए हैं।उससे पहले सीरिया में बमबारी कौन भूल सकता है। परिणामस्वरूप तुर्की - सीरिया में आया अभी तक का सबसे विनाशकारी भूकंप भी कोई नही भूल सकता जिसकी तस्वीरों ने पूरी दुनिया के लोगों को सहमा दिया था। भूकम्प एक चेतावनी है कि पृथ्वी माता की सहनशीलता पर कुठाराघात की अति मत करो वरना भूकम्प, सुनामी, बाढ़, तूफान, ग्लेशियर का पिघलना, जलवायु परिवर्तन, भयंकर अम्ल वर्षा, महामारी व जोशीमठ में आयीं दरारों के जिम्मेदार तुम इंसानों के कर्म स्वंय होगें। 

प्रकृति के इशारों को दरकिनार कर हम इंसानों की लूट वाली भूख कभी मिटती ही नहीं। हम अनवरत प्रकति का बड़ी ही क्रूरता से दोहन किये जा रहे हैं जिसकी कीमत हमें भयंकर महामारी और अनेक भयंकर बीमारियों के रूप में चुकानी पड़ रही हैं। बात करें तो आज सबसे बड़ी बीमारी की वजह, जल प्रदूषण है जो हमारे तन - मन को मौत के मुंह में हर पल खीचें जा रहा है। आज बनारस, सोनभद्र, पटना और झारखंड के कुछ गांव जहाँ पानी में फ्लोराइड व आर्सेनिक की अधिकता के कारण वहां के 70%बच्चे विकलांग पैदा होते हैं। 

एक अध्ययनानुसार जल प्रदूषण व जल की कमी को पांच वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए ’नंबर वन किलर’ करार दिया है। आंकड़े बताते हैं कि पांच वर्ष से कम उम्र तक के बच्चों की 3.1 प्रतिशत मौत और 3.7 प्रतिशत विकलांगता का कारण प्रदूषित पानी ही है।किंतु इसका उपाय, आरओ, फिल्टर या बोतलबंद पानी या बाजार नहीं हो सकता। हमें हर कीमत पर पेड़ लगाने ही होगें। आज देखने में आता है कि हम स्वार्थी इंसानों द्वारा फेंकी गयी पॉलीथिन जिन्हें आवारा जानवर और गायें खा लेती है वह भी दस - दस किलो के एवज में और बेमौत मारीं जातीं हैं। आज दिल्ली जैसे बड़े शहरों में हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि कारण वहां बच्चों को मास्क लगाकर स्कूल जाना पड़ता है।और हालत यह है कि हर दूसरे व्यक्ति को श्वांस की घातक बीमारियों ने घेरा हुआ है। हम कहां जा रहे हैं क्या यही है आधुनीकरण? और फिर जब प्रदूषण बढ़े तो गम्भीर और लाइलाज महाभयंकर बीमारियों ने हम इंसानों सहित पूरे जीव और पादप जगत को अपनी कभी न बुझने वाले प्यासे खूनी पंजों में जकड़ लिया है जिसका परिणाम यह हुआ कि तनाव बढ़ा, उम्र कम हुई और मृत्युदर बढ़ गयी। और इसीलिए हम अवसरवादी इंसानों ने पृथ्वी माता को दिये अनेकों घाव और आघातों की माफी मांगने और इन्हीं गल्तियों को सुधारनेे हेतु पृथ्वी दिवस जैसे दिनों को सामूहिक  व सार्वजनिक रूप से विश्व स्तर पर मनाये जाने की घोषणाएं की। 


साथियों! पृथ्वी दिवस की शुरुआत का श्रेय अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन को जाता है। अमेरिका में 1970 के दशक में जहां एक तरफ वियतनाम युद्ध को लेकर विद्यार्थियों का आंदोलन जोर पकड़ रहा था। वहीं दूसरी ओर एक तबके में पर्यावरण संरक्षण को लेकर चेतना जाग रही थी।इसी बीच कैलीफोर्निया के सांता बारबरा में 29 जनवरी 1969 को एक बड़ी दुर्घटना घटी। अचानक एक तेल कुएं में विस्फोट हो गया और बड़ी मात्रा में तेल और प्राकृतिक गैस सतह पर आ गया। इस भयानक तेल रिसाव ने सबकी आंखें खोल कर रख दीं। ऐसे में गेलॉर्ड नेल्सन के दिमाग में एक स्वस्थ और जनहित के विकासवादी विचार ने जन्म लिया कि यदि विद्यार्थियों की शक्ति को पर्यावरण चेतना के साथ जोड़ दिया जाए तो पर्यावरण का मुद्दा राष्ट्रीय एजेंडे में शामिल हो जाएगा। और इसी क्रम में गेलॉर्ड नेलसन ने मीडिया में पर्यावरण पर राष्ट्रीय शिक्षण के विचार की घोषणा कर दी। उन्होंने कांग्रेस में संरक्षणवादी सोच रखने वाले रिपब्लिकन प्रतिनिधि, पीट मैक्लोस्की को अपने साथ काम करने के लिए तैयार किया, और डेनिस हायेस को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया। हायेस ने देश भर में इस आयोजन के प्रसार के लिए 85 कर्मचारियों की नियुक्ति की और इस नियुक्ति का परिणाम यह हुआ कि 22 अप्रैल, 1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका की सड़कों, चैराहों, पार्कों, कॉलेजों, दफ्तरों पर स्वस्थ और सतत् पर्यावरण को लेकर रैली,जनसभायें, प्रदर्शन, प्रदर्शनी, यात्रा आदि आयोजित किए गये। विश्वविद्यालयों में पर्यावरण में गिरावट और मानवीय तनावपूर्ण भयावह हो रही स्थिति पर लम्बी बहस चल पड़ी। ताप विद्युत सयंत्र, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां, जहरीला कचरा, फसलों में पड़ने वाले जहरीले कीटनाशकों के अति प्रयोग तथा वन्य जीव व जैवविविधता सुनिश्चित करने वाली अनेकानेक प्रजातियों के खात्मे के खिलाफ एकमत हुए दो करोड़ अमेरिकियों ने अपनी आवाज बुलंद की जिसने इस तारीख को पृथ्वी के अस्तित्व के लिए आह्वान बना दिया।  तब से लेकर आज तक इस दिन को पूरी दुनिया ने आत्मसात कर लिया और जिंदगी का एक अहम हिस्सा बना लिया। इसके बाद मानो एक अच्छे कार्य की सुबह होने को बैचेन थी कि 1970 के इस पृथ्वी दिवस को अनूठा राजनीतिक समर्थन मिला। वहां के रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, गरीब और अमीर, शहरी और ग्रामीण किसान, अधिकारी और श्रमिक नेता सभी ने इस आयोजन को अपनाा पूर्ण समर्थन देकर इस आयोजन ने संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण संरक्षण एजेंसी का गठन कर मानो इस रास्तेे को समतल और पूरी दुनिया केे लिये खोल दिया। फिर, 21 मार्च, 1971 को संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थैंट ने पृथ्वी दिवस को अंतरराष्ट्रीय समारोह घोषित कर दिया। वर्ष 1990 में पहली बार आधिकारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाया गया। पर्यावरण संरक्षण के लिए आयोजित इस विश्व चर्चित भव्य समारोह या दिवस में दुनियाभर के 141 देशों में लगभग 20 करोड़ लोगों ने हिस्सा लेकर इस समारोह को दुनिया के सामने बड़ी गम्भीरता से रखा। और वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ। बाद में पृथ्वी दिवस की स्थापना के लिए राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन को प्रेसीडेंट मेडल ऑफ फ्रीडम-1995 प्रदान किया। तब, गेलाॅर्ड नेलसन ने एक बयान में कहा था कि– ’’यह एक जुआ था; जो काम कर गया।’’ सचमुच ऐसा ही है। सच कहा नेल्सन ने कि आज जितने भी इंसानों ने चमत्कार किये हैं उनके पीछे एक मजबूत सोच और स्वस्थ विचार ही था।परिणामस्वरूप पर्यावरण संरक्षण के आधुनिक सजग आंदोलन का यह यादगार दिन अब प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। और पर्यावरण बचाओ पृथ्वी बचाओ अभियान के तहत समाज और देश में सजगता और समरसता लाने हेतु सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर इस दिन अनेकों आयोजन किये जाते हैं। 



सच है कि 22 अप्रैल का पृथ्वी माता से सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं है। पर यह वही दिन था जब एक महाविद्रोह घटा जिसे प्रकृति प्रेम की तरफ मोड़ दिया गया । परिणामस्वरूप वहां का हर कोना आज के दिन ’क्लीन-ग्रीन सिटी’ के नारे से गूंज उठा था। गौरतलब हो कि जब पूरी दुनिया 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाती है तब अमेरिका में इसे वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। हाँ यही सच है कि हमें एसी कमरों से निकल कर प्रकृति की गोद में लौटना ही होगा तथा स्वच्छ हवा और स्वस्थ जीवन के लिये हमें बहुतायत से पेड़ लगाने ही होगें, हम स्वार्थी इंसानों के पास और कोई दूसरा विकल्प नही। क्योंकि धरती माँ स्वस्थ होगीं तभी हम और आप स्वस्थ रहेगें। आज अस्तित्व की पुकार को हमें शांति से सुनना व व्यवहार में लाना होगा। हमें समझना होगा कि जो कुछ भी हमें जन्म से प्रकृति प्रदत्त निशुल्क मिला है वह बहुत अनमोल है और जिसका ऋण उतारें बिना जीवन की आशा करना बेमानी होगा। आज दुनिया में हर बड़े मुद्दे पर बहस शुरू होते देर नहीं लगती। हम तो कहते हैं कि जिस पृथ्वी पर हम सब इंसान रहते हैं उसकी सुरक्षा व स्वच्छता के परिपेक्ष्य पर भी हर घर स्तर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वस्थ सकारात्मक बहस आखिर! कब शुरू होगी? और कब बंद होगें हमारी धरती माता की संवेदनशीलता पर हो रहे कुठाराघात? याद रखो इंसानों धरती माता की सहनशीलता की भी एक सीमा है । समय रहते सुधर जाओ वरना तुम मुठ्ठी भर अतिमहत्वाकांक्षी गैरजिम्मेदार इंसानों की सजा पूरी पृथ्वी के प्राणियों को अपनी जान से चुकानी पड़ेगी फिर कोई पछतावा आपका पाप नही धुल सकेगा।


आप सभी शुभचिंतकों को पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 
हम इंसानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पृथ्वी माता की भी सहन करने की एक सीमा है। वरना हमारी अति ही हमारी दुर्गति का कारण बनेगी।
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