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जनसंख्याबाढ़ से संसाधनों में भारी कमी - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना




भारत के समस्त यातायात के साधनों को उनके इंजन नहीं चला रहे बल्कि भारत के समस्त अन्यायपीड़ित एवं बेरोजगार अपने आँसुओं का तेल डाल कर,भयंकर पीड़ा की रस्सी से दरबतर खींच रहे हैं, बस यह सब साहिब! लोगों को कभी नज़र नहीं आता.. इतना ही नहीं उनकी जान की भी किसी को परवाह नहीं...!!

साहिब! दवाइयों की जब एक्सपायरी डेट होती है, हम उन्हें फेंक देते हैं तो एक्सपायरी हो चुकीं, इन जान की दुश्मन बसों को सरकार क्यों नहीं कूड़े में फेंक रही?

साहिब! आपकी लापरवाहियों ने देश के युवाओं को एक दुखी इंजन बना रखा है... वह जी तो रहे पर उनकी जिंदगी की बस रूपी गाड़ी कैसे चल रही वो बस उनका  दिल ही जानता है....
आज जब दिन दूनी, रात चौगुनी यह जनसंख्या बढ़ती जा रही है.. ..और संसाधन उतने बन नहीं पा रहे... 

दूसरी तरफ़ भयंकर बाढ़ें आ रही हैं... क्योंकि जिस तरह जनसंख्या बढ़ी है, हम उतने पेड़ लगाते नहीं..सरकारी भ्रष्टतंत्र सुसुप्तावस्था और साईलेंट मोड पर रहने के आदतन रवैया के कारण , यह जो बाढ़ का कहर.. आमजन को तिल-तिल मार रहा है... कहीं न कहीं #जनसंख्याबाढ़ के दुष्प्रभाव का दर्दमयी फल है, यह सुनकर साहिब! आप खुश ना हो.. 

जिम्मेदारी व जवाबदेही तो सिर्फ़ आपकी ही रहेगी.. वह बाढ़ में फसें चार दिनों के भूखे-प्यासे लोगों व गर्भवती महिलाओं की जिम्मेदारी से आप मुँह नहीं मोड़ सकते... और ना ही खटारा वाहनों से हो रहे असमय हादसों से आप पल्ला ही झाड़ सकते है... क्योंकि हर मतदाता का वोट अगर जरूरी है तो हर मतदाता के सुख-दुःख की चिन्ता भी आपकी जिम्मेदारी है....ये और बात है.. कि फिर भी आप अपना ठीकरा बेबस बेरोजगार पीड़ित जनता पर हीं फोड़ दें...!!

पर, अंत में मेरा अटल सवाल वही रहेगा साहिब! कि आमजन के जीवन से खिलवाड़ आखिर! कब तक? कहाँ हैं आपके हजारों - हजारों कार्यकर्ता... कहाँ हैं आपके सम्बंधित अधिकारी? जो आमजन के दर्द में बजाय हाथ बंटाने के कान में रूई डाले पड़े हैं.....

और वह दिन दूर नहीं जब इसी पीड़ित जनता से कोई ना कोई उठकर, इनके कंधों पर चढ़कर इनके कानों में गरमागरम तेल डाल देगा...!!


-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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