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भारतीय संविधान के लेखक : प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा




भारतीय संविधान के लेखक : 

    '' प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा '' 




जब भी भारतीय संविधान का नाम आता है तो हर भारतीय का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। हो भी क्यों ना, विश्व का सबसे बड़ा हस्तलिखित संविधान, हमारा भारतीय संविधान ही है। संविधान का मतलब यह है कि किसी भी देश को सही तरीके से चलाने के लिए एक संविधान की जरूरत पड़ती है। यह लोगों को नियमों के दायरे में रहकर कार्य करने की स्वतंत्रता देता है। हम बात कर रहे हैं हमारे भारतीय संविधान की जिसे पूर्णरूप से तैयार होने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय लगा था। अब बात आती है कि इतना बड़ा हस्तलिखित संविधान आखिर! लिखा किसने? तो उसकी शुरुआत इस तरह हुई- 

बिहार प्रदेश के मूलवासी, एक ही समय में दो भिन्न-भिन्न विषयों के अपने दोनों हाथों से दोनों कलमों के द्वारा लिखने वाले आई.सी.एस. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष थे। महाराष्ट्र प्रदेश के मूलवासी, वैरिस्टर डा. भीमराव अम्बेडकर भारतीय संविधान प्रारूप कमैंटी के अध्यक्ष थे। भारतीय संविधान के ड्राफ्टमेन डॉ. वी.एन.राय ( बेनेगल नरसिंह राव , जन्म स्थान - मंगलौर, यह हेग अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश थे और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी रहे। यह  भारतीय संविधान निमार्ण के संवैधानिक सलाहकार थे।) भारतीय संविधान का ड्राफ्ट तैयार करवाने की जिम्मेदारी वैरिस्टर जवाहरलाल नेहरू ने डॉ.वी.एन. राय को सौंपी थी। डॉ.वी.एन. राय ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना, अमेरिकन संविधान की प्रस्तावना की तर्ज पर ड्राफ्ट की थी। जैसे- अमेरिकन संविधान की प्रस्तावना में “हम अमेरिका के लोग“ दर्ज है, वैसे ही डॉ.वी.एन. राय ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “हम भारत के नागरिक“ के स्थान पर “हम भारत के लोग“ दर्ज किया। इस कार्य के लिए वैरिस्टर जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. वी.एन राय को रूपया 25000 दिया था। उत्तरप्रदेश के मूलवासी कैलीग्राफिस्ट श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा भारतीय संविधान के लेखक थे। इनका जन्म 17 दिसम्बर सन् 1901 में ट्रडीशनल यानि परम्परागत कैलीग्राफिस्ट कायस्थ जाति परिवार में हुआ था।  इनके बचपन में इनके माता-पिता का निधन हो गया था। इनका पालन-पोषण दिल्ली में इनके दादाजी मास्टर साहब श्री रामप्रसाद रायज़ादा ने किया था । श्री रामप्रसाद रायज़ादा भारतवर्ष की पूर्वनिर्धारित व पूर्वप्रचलित आदिकालीन आदिपरम्परागत अपनी ''कैथी'' यानि कैथिली यानि कायस्थी यानि न्यायालयी भाषा व अपनी कैलीग्राफी जिसे इटेलियन शैली में अपनाया गया हैं इसके तथा फारसी, अंग्रेजी व हिंदी भाषा के अच्छे जानकार थे। इन्हीं अपने दादाजी मास्टर साहब से श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा ने अपनी कायस्थी यानि न्यायालयी भाषा को तथा कैलीग्राफी को  एवं फारसी, अंग्रेजी व हिंदी भाषा को सीखा था और सेण्टस्टीफन कॉलेज से स्नातक शिक्षा प्राप्त की थी।





भारतीय संविधान को लिखने की जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू ने श्री प्रेमबिहारी नारायण रायज़ादा को सौंपी थी। जवाहरलाल नेहरू ने श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा से पूछा था कि भारतीय संविधान को लिखने के एबज में आप क्या लेंगे? श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा ने कहा कि भारतीय संविधान को लिखने के एबज में मुझे धन नहीं चाहिए। मेरे परमपिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त मेरे पास सबकुछ है। मैं इतना चाहता हूं कि मेरे द्वारा लिखित भारतीय संविधान के प्रत्येक पेज पर मेरा नाम व अंतिम पेज पर मेरा व मेरे दादाजी श्री रामप्रसाद रायजादा का नाम लिखा जाए। जवाहरलाल नेहरू ने श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा की यह शर्त मान ली।




भारतीय संविधान को लिखने के लिए हस्तनिर्मित कागज पूना से मंगवाया गया था। उस समय भारतवर्ष में टाइपराइटिंग मशीन नहीं थी। उस समय भारतवर्ष का श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा से सर्वोच्च विद्वान एवं स्वविवेकवान कैलीग्राफिस्ट कोई अन्य नहीं था। श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा ने भारतीय संविधान को हिंदी एवं अग्रेंजी भाषा में लिखने में 303 निब होल्डर कलम और 254 स्याही दबात का इस्तेमाल किया और लेखनकार्य 6 माह में पूरा किया। भारतीय संविधान की 'मूलप्रति' के प्रत्येक पेज पर इनके कॉपीराइट के तहत इनका नाम तथा अंतिम पेज पर इनके नाम के साथ इनके दादाजी का नाम व इनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं।





विश्व के सबसे बडे़ं इस हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में हस्तलिखित भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 8 अनुसूचियां हैं। श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा के द्वारा हस्तलिखित भारतीय संविधान में कोई भी गलती नहीं है। एक भी असंगति का निशान नहीं है। प्रभावपूर्ण इटैलिक शैली में लिखा गया है। सुलेख उत्कृष्टता के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है। भारतीय संविधान के  प्रत्येक पेज को शांति निकेतन कलकत्ता  के प्रसिद्ध विद्वानों व इनके मुखिया पश्चिमी बंगाल प्रदेश निवासी श्री नंदलाल बोस ने सर्वोच्च गुणवत्ता वाली स्वर्ण कला से सजाया है। भारतीय इतिहास के विभिन्न अनुभवों और आंकड़ों को भारतीय संविधान के समस्त पेजों पर दर्शाया है। 



भारतीय संविधान की मूल प्रति


भारतीय संविधान के प्रस्तावना पेज को श्री नंदलाल बोस के शिष्य आचार्य श्री राममनोहर सिन्हा ने सजाया है। इस भारतीय संविधान में 251 पेज हैं । इस भारतीय संविधान की लम्बाई 22 इंच व चौड़ाई 16 इंच हैं। भारतीय संविधान की लैदर वाइन्डिंग की गयी है। भारतीय संविधान की मूलप्रति का वजन 3.75 कि.ग्रा. है। भारतीय संविधान सभा में 284 सदस्य थे जिसमें 210 सदस्यों ने भाग लिया था। इनमें 155 हिंदू, 4 मुस्लिम, 5 सिख्य, 6 ईसाई, 3 पारसी व 3 एग्लों इण्डियन शामिल थे। देश के लक्ष्यों एवं आदर्शों को रेखांकित करने वाले भारतीय संविधान पर वैरिस्टर मोहनदास करमचंद्र गांधी को छोड़कर कई लोगों ने अपने हस्ताक्षर किये थे, उस समय वैरिस्टर मोहनदास करमचंद्र गांधी की मृत्यु हो चुकी थी। भारतीय संविधान को भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष एवं भारतवर्ष के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को, भारतीय संविधान प्रारूप कमैटी के अध्यक्ष वैरिस्टर डा. भीमराव अम्बेडकर ने सौंपा था। 



भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दर्ज “हम भारत के लोग” पर अपना ध्यान केन्द्रित कर वैरिस्टर डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संविधान सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि यदि इस भारतीय संविधान को एकनीति व नेकनियति से लागू किया तो यह अच्छे परिणाम देगा और यदि बदनीति एवं बदनियति से लागू किया तो यह बुरे परिणाम देगा उनके कहने का आशय यह था कि यदि भारतवर्ष में भारतवर्ष की पूर्वनिर्धारित व पूर्वप्रचलित स्वाधीनता व अनुशासन तथा संगठन एवं विकास की एकनीति व नेकनियति की लोकतांत्रिक राज्यसुव्यवस्था संचालन की भारतीय न्यायपालिका की ईश्वरीय संघात्मक स्वचालित पारदर्शी कार्यप्रणाली संचालित व क्रियान्वित की गयी तो यह भारतीय संविधान विश्व के सर्वोच्च अच्छे सद्परिणाम देगा और यदि भारतवर्ष में आधीनता व अनुशासनहीनता तथा विभाजन एवं विनाश की बदनीति एवं बदनियति की अलोकतांत्रिक राज्यदुर्व्यवस्था संचालन की ब्रिटिश विधायिका की संसदीय कार्यप्रणाली संचालित व क्रियान्वित की गयी तो यह भारतीय संविधान विश्व के सर्वोच्च दुष्परिणाम देगा। 



       भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 09 दिसम्बर सन् 1946 दिन सोमवार को हुई थी। भारतीय संविधान पर 24 जनवरी सन् 1950 को 284 सदस्यों ने जिसमें 15 महिलायें थी अपने हस्ताक्षर किये थे। 26 जनवरी सन 1950 को यह मनतांत्रिक देश, गणतांत्रिक राष्ट्र घोषित हुआ। भारतीय सर्वोच्च विद्वान एवं स्वविवेकवान कैलीग्राफिस्ट श्री प्रेमबिहारी नारायण रायजादा द्वारा हिंदी व अंग्रेजी भाषा में हस्तलिखित भारतीय संविधान की मूलप्रति को भारतीय संसद भवन दिल्ली की लाईब्रेरी में रखी मेज पर हीलियम गैस से भरे केस में सुरक्षित रखा गया था जो वर्तमान में नाइट्रोजन गैस से भरे केस में नमी मीटर व अन्य अत्याधुनिक तकनीकि के साथ सुरक्षित है। जिसका निरीक्षण भारतवर्ष के पूर्व राष्ट्रपति एवं महान वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने किया था और उन्होंने अपने निरीक्षण के दौरान इस भारतीय संविधान के अंतिम पेज पर सभी सम्बंधित 84 सदस्यों के हस्ताक्षर देखे थे और उन्होंने यह भी देखा कि जवाहर लाल नेहरू ने अपने हस्ताक्षर करने के बाद, राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को अपने हस्ताक्षर करने के लिए नाम मात्र स्थान छोड़ा था जिसपर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने संक्षेप में पतले व तिरक्षे हस्ताक्षर किये हैं। सम्बंधित लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी केंद्रीय गृहमंत्रालय भारत सरकार से हासिल की है। अतः समस्त भारतीय नागरिकों को यह भली-भांति ज्ञात होना चाहिए कि भारतीय संविधान के लेखक कैलीग्राफिस्ट श्री प्रेमबिहारी नारायण रायज़ादा हैं। भारतीय संविधान के लेखक वैरिस्टर डा. भीमराव अम्बेडकर नहीं है।





भारतीय संविधान का मूललक्ष्य व मूलआदर्श - भारतवर्ष में, भारतवर्ष की पूर्वनिर्धारित व पूर्वप्रचलित लोकतांत्रिक राज्य सुव्यवस्था संचालन की भारतीय न्यायपालिका की स्वाधीनता व अनुशासन तथा संगठन एवं विकास की संघात्मक ईश्वरीय स्वचालित पारदर्शी कार्यप्रणाली का क्रियान्वयन करवाना है और समस्त “हम भारत के लोग“ को “हम भारत के नागरिक” बनाना है तथा भारतीय नागरिकता रजिस्टर के अनुसार जारी समस्त भारतीय नागरिकों को भारतीय नागरिक होने की पहचान का भारतीय नागरिकता की पहचान का अत्यंत महत्वपूर्ण सबूत भारतीय नागरिकता का पहिचानपत्र व प्रमाणपत्र भारतीय सर्वोच्च न्याय के मौलिक अधिकार के तहत अनिवार्य एवं परमावश्यक रूप से हासिल करवाना हैं । इसी मूललक्ष्य व इसी मूलआदर्श को हासिल करने के लिए ही समस्त भारतीय स्वाधीनता संग्राम सैनानियों ने अपना बलिदान किया व अपना सबकुछ त्याग किया।



परन्तु भारतवर्ष में मौजूद राजनैतिक समाज के फर्जी स्वदेशी भारतीय लुटेरे शासकों ने ब्रिटिशहित में एवं निजस्वार्थ में भारतवर्ष में अलोकतांत्रित राज्यदुर्व्यवस्था संचालन की ब्रिटिश विधायिका की आधीनता व अनुशासनहीनता तथा विभाजन एवं विनाश की बदनीति एवं बदनियति की संसदीय कार्यप्रणाली क्रियान्वित एवं संचालित करवा दी जो भारतीय स्वाधीनता संग्राम सैनियों एवं त्यागियों तथा भारतीय संविधान के सृजनशील मूललक्ष्य व मूलआदर्श के विरूद्ध है। इस कार्यप्रणाली की भारतवर्ष में कतई जरूरत नहीं है। 





अतः समस्त विद्वान एवं स्वविवेकवान भारतीय नागरिकों को अपने सर्वोच्च न्यायिक निर्विवादित एवं निर्वाधित जनजीविका व जनजीवन हित में अपने मतदान के द्वारा इस कार्यप्रणाली का एवं समस्त विदेशी लुटेरे शासकों की भांति, समस्त फर्जी स्वदेशी भारतीय राजनैतिक समाज के दागी, भ्रष्ट लुटेरे शासकों का भी बहुत बड़े पैमाने पर बहिष्कार कर देना चाहिए। अपनी अन्यायपीड़ा से स्वाधीन होने के लिए समस्त भारतीय नागरिकों को अपने राष्ट्रीय सर्वोच्च मर्यादाशाली स्वविवेकवान मुख्य न्यायाधीश से, अपने निर्विरोध निर्वाचित जनप्रतिनिधि भारतीय सर्वोच्च मुख्य प्रतिभाशाली काबिल और विद्वान अधिवक्ता पेशकारसाहब को पाने की मांग कर इस मांग को पूरा करवाना चाहिए और भारतीय नागरिकता रजिस्टर के अनुसार इनके द्वारा जारी अपना इंडियन पासपोर्ट आई.डी. प्रूफ हासिल करना चाहिए जिसके द्वारा प्रत्येक भारतीय स्वदेश एवं विदेश में स्वयं को गर्व के साथ भारतीय नागरिक सिद्ध कर सकें।



इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान के होते हुए भी भारतवर्ष आज भी ब्रिटिश शासन के व ब्रिटिश कानूनों के आधीन व अनुशासनहीन है तथा भारतवर्ष में सभी का विभाजन एवं विनाश अनवरत जारी है । क्योंकि वैरिस्टर जवाहरलाल नेहरू व अन्य वैरिस्टरों ने भारतवर्ष में अलोकतात्रिंक राज्य दुर्व्यवस्था संचालन की ब्रिटिश विधायक की अधीनता व अनुशासनहीनता तथा विभाजन एवं विनाश की बदनीति एवं बदनीयति की संसदीय कार्यप्रणाली संचालित एवं क्रियान्वित इसलिए की चूँकि वकालत की शिक्षा ब्रिटेन ने उन्हीं को दी जिनसे ब्रिटेन ने यह एग्रीमेंट लिखवा लिया था कि वे ब्रिटेन से प्राप्त अपनी वकालत की शिक्षा का प्रयोग ब्रिटिश भाषा में, ब्रिटिश विधायिका की संसदीय कार्यप्रणाली को भारतवर्ष में क्रियान्वित कर ब्रिटिश हित में व निज हित में अपने भारतवर्ष वापिस जाकर करेंगे। इन फर्जी स्वदेशी भारतीय गद्दार लुटेरे वैरिस्टर शासकों ने अपनी निजस्वार्थी एग्रीमेंट के अनुसार भारतवर्ष में ऐसा ही किया जो अब भी जारी है।






       इस बात सबूत लॉर्ड मैकाले, जिसका पूरा नाम 'थॉमस बैबिंगटन मैकाले' स्वंय था। जो 1823 ई. में मैकाले बैरिस्टर बना। वह 1830 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट का सदस्य चुना गया, और 1834 ई. में गवर्नर-जनरल की एक्जीक्यूटिव कौंसिल का पहला क़ानून सदस्य नियुक्त होकर भारत आया। भारत का प्रशासन उस समय तक जातीय द्वेष तथा भेदभाव पर आधारित तथा दमनकारी था। उसने ठोस उदार सिद्धान्तों पर प्रशासन चलाने की कोशिश की। सन् 1834 ई. से 1838 ई. तक वह भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमिशन का प्रधान रहा। भारतीय दंड विधान से सम्बन्धित 'दी इंडियन पीनल कोड' की लगभग सभी पांडुलिपि इसी ने तैयार की थी। अंग्रेज़ी भाषा को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाकर गुलाम बनाने में इसी मैैकाले का बड़ा हाथ था। वह ब्रिटिश का वैरिस्टर  और उसने कहा था, ''फिलहाल हमें भारत में एक ऐसा वर्ग बनाने की कोशिश करनी चाहिए जो हमारे और हम जिन लाखों लोगों पर राज कर रहे हैं, उनके बीच इंटरप्रेटर यानी दुभाषिए का काम करे। लोगों का एक ऐसा वर्ग जो खून और रंग के लिहाज से भारतीय हो, लेकिन जो अभिरूचि में, विचार में, मान्यताओं में और विद्या-बुद्धि में अंग्रेज हो।" यानि शक्ल से भारतीय हो अक्ल से ब्रिटिश हो। ब्रिटिश की इसी षड्यंत्रकारी कुचुक्र में सभी लोग फँसते चले गये। लार्ड मैकाले के नक्शे कदम पर ही जवाहरलाल नेहरू भी थे जिनके कारण अपनी अत्याधुनिक विश्वविजयी भारतीय सैन्य शक्ति के अभाव में व जवाहरलाल नेहरू के द्वारा बीस वर्ष जासूसी कराये जाने के कारण नेताजी श्री सुभाष चन्द्र बोस को अपना जीवन गुमनामी में व्यतीत करना पड़ा और जवाहरलाल नेहरू के अंतहीन षड़यंत्रों के कारण ही भारतीय संविधान के लेखक श्री प्रेमबिहारी नारायण रायज़ादा का नाम भी छिपाकर रखा गया। 




-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 








The author of the Indian Constitution, Prem Bihari Narayan Raizada.











वंदेमातरम् 🇮🇳

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