#StrongGirls : आप हम लड़कियों की टांगे देखकर बेकाबू हो जाते हो, हम लड़कियां तो आप मर्दों को बनियान, लुंगी, निक्कर में भी देख कर नॉमल रहतीं हैं - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
स्त्री से सच्चा प्रेम सबकी बस की बात नहीं
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पूर्ण आत्मा से प्रेम उसके सपनों सहित प्रेम करना यानि अपनाना, स्वीकार करना समझते हैं ना आप। स्त्री को उसकी आत्मा सहित अपनाना स्वीकार करना, हर पुरूष के वश की बात नही। आज अधिकांश पुरुषों के घर में जो स्त्री है ना, .. वह स्त्री नहीं है बल्कि स्त्री की चलती फिरती लाश हैं। जिंदा स्त्री उसके सपनों सहित स्वीकार करना यानि आत्मिक प्रेम करना.. अधिकांश पुरूषों के लिए बिलकुल असंभव है। पति का यहां सिर्फ़ एक ही अर्थ होता है 'मालिक'... और मालिक या तो गुलाम रखते है या वस्तुएं।पुरुष क्या, भारतवर्ष ही जिंदा स्त्री को पूर्ण मन से, उसके सपनों सहित उसे स्वीकार नही कर सकता, क्योंकि स्त्री को आत्म से प्रेम करने के लिए सोने सा कलेजा चाहिए । यहां के पूरे समाज की चेतना में ही पितृसत्ता भरी पड़ी है।सच कहो तो गालियाँ ब्याज में... समाज तेरी इन गालियों के लिए तेरा धन्यवाद... तू इससे अधिक और दे भी क्या सकता है... .
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