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क्या रात भी एक आकांक्षा है?

 



क्या रात भी एक आकांक्षा है?
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कभी-कभी सोचतीं हूं कि
ऐ! रात तू जल्दी बीत जा
सुबह मेरे गमलों में जो सहमी सी कली है वो पूर्णतः को प्राप्त हो फूल बन कर महक जाये। तो रात कहती है कि मैं उसे कली में फूल होने का भान करा देना चाहतीं हूं कि फूल बनते ही इसे तोड़ दिया जायेगा, महकने का बदला इसे रौंद कर लिया जायेगा। चढ़ सकेगी मंदिर में या शवयात्रा पर यह नियति इसे स्वीकारनी होगी। फिर भी इसे खिलना भी होगा महकना भी होगा और रूंदन और क्रंदन के लिए भी तैयार रहना होगा। मैं रात हूं आकांक्षा । मैं दर्द सहने की एक तैयारी हूं आकांक्षा । हाँ मैं रात हूँ आकांक्षा। कभी परीक्षा तो कभी प्रतीक्षा हूं आकांक्षा। मैं दिन की रानी और रात का एकांत हूँ आकांक्षा। मैं भी तेरी तरह हूं "एक आकांक्षा"।

 

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

07/08 /2023



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